
Supreme Court On The Appointment Of CAG: सर्वोच्च न्यायालय ने कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) की नियुक्ति को नियंत्रित करने वाले नियमों में संशोधन की मांग करने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है. याचिका में सीएजी चुनने के लिए प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश को मिलाकर एक पैनल बनाने की मांग की गई है. वर्तमान में, राष्ट्रपति सीएजी की नियुक्ति करते हैं. सीएजी को केवल एक प्रक्रिया के माध्यम से या शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पद से हटाया जा सकता है. याचिकाकर्ता सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि सीएजी को अब स्वतंत्र नहीं माना जाता.
प्रशांत भूषण ने अदालत को क्या बताया
जब न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने इसका कारण पूछा तो भूषण ने कम होते रिपोर्ट और रुके हुए ऑडिट की ओर इशारा किया. फिर न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 148 की ओर इशारा किया, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति सीएजी को अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत वारंट द्वारा नियुक्त करेंगे. भूषण ने बताया कि न्यायालय ने सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के मामले में भी हस्तक्षेप किया था. न्यायमूर्ति कांत ने तब कहा, "हमें अपनी संस्थाओं पर भरोसा करना होगा."
न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह ने क्या कहा
पीठ में न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह भी शामिल थे, जिन्होंने कहा, "कभी-कभी हमें स्वतंत्रता के बारे में बहुत बड़ी गलतफहमियां होती हैं." भूषण ने चुनाव आयोग मामले में शीर्ष अदालत के फैसले की ओर इशारा किया, जिसमें कहा गया था कि चुनाव निकाय के सदस्यों की नियुक्ति करने वाले पैनल में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होने चाहिए. अदालत ने तर्क दिया था कि पैनल की संरचना को कार्यपालिका पर छोड़ना लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा. बाद में केंद्र ने नियमों में फेरबदल करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश को पैनल से हटा दिया और एक मंत्री को जोड़ दिया. अदालत अब इस कदम को लेकर याचिकाओं की सुनवाई कर रही है.
पीठ ने क्या कहा
जब भूषण ने चुनाव आयोग के मामले में दिए गए फैसले को उठाया, तो पीठ ने जवाब दिया कि यह मामला संसद द्वारा बनाए गए कानून के अधीन है. सीएजी की नियुक्ति का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा, "जब संविधान ने नियुक्ति की असीमित शक्ति प्रदान की है, तो अदालत किस हद तक हस्तक्षेप कर सकती है और इसे फिर से लिख सकती है?" इसके बाद न्यायमूर्ति कांत ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा और कहा कि इस मामले की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जानी चाहिए.
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