विज्ञापन
This Article is From Sep 13, 2023

आपराधिक मामलों में मीडिया ट्रायल को लेकर SC का बड़ा दखल, केंद्र से गाइडलाइन बनाने को कहा

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मीडिया ट्रायल से न्याय प्रशासन प्रभावित हो रहा है. पुलिस में संवेदनशीलता लाना जरूरी है. जांच का ब्यौरे का खुलासा किस चरण में हो ये तय करने की जरूरत है.

आपराधिक मामलों में मीडिया ट्रायल को लेकर SC का बड़ा दखल, केंद्र से गाइडलाइन बनाने को कहा
आपराधिक मामलों में मीडिया ट्रायल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कही बड़ी बात

आपराधिक मामलों में मीडिया ट्रायल को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बड़ा दखल दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पुलिस मीडिया ब्रीफिंग पर विस्तृत गाइडलाइन बनाने को कहा है.  दो महीने में एमएचए से मीडिया ब्रीफिंग को लेकर  मैन्यूअल तैयार करने के निर्देश दिए हैं. तीन महीने में विस्तृत मैन्यूअल तैयार करने के निर्देश  दिए हैं. सभी राज्यों के DGP एक महीने के भीतर MHA को सुझाव देंगे.  अब इस मामले में जनवरी 2024 के दूसरे हफ्ते में सुनवाई होगी.  

इस मामले की सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मीडिया ट्रायल से न्याय प्रशासन प्रभावित हो रहा है. पुलिस में संवेदनशीलता लाना जरूरी है. जांच का ब्यौरे का खुलासा किस चरण में हो ये तय करने की जरूरत है.  ये बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि इसमें पीड़ितों और आरोपी का हित शामिल हैं, साथ ही बड़े पैमाने पर जनता का हित शामिल है.  अपराध से जुड़े मामलों पर मीडिया रिपोर्टिंग में सार्वजनिक हित के कई पहलू शामिल होते हैं.  बुनियादी स्तर पर बोलने और अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार सीधे तौर पर मीडिया के विचारों, समाचारों को चित्रित करने और प्रसारित करने के अधिकार दोनों के संदर्भ में शामिल है. हमें मीडिया ट्रायल की अनुमति नहीं देनी चाहिए.  दरअसल, आपराधिक केस में पुलिस की ओर से मीडिया ब्रीफिंग के लिए दिशानिर्देश तय किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था.
 

हमें आरोपी के अधिकारों का भी ध्यान रखना है : CJI
CJI चंद्रचूड़ ने सरकार से कहा है कि वो तीन महीने में मीडिया ब्रीफिंग के लिए पुलिस को प्रशिक्षित करने के लिए दिशानिर्देश तय करें.  CJI कहा कि ये बेहद अहम मामला है.  एक तरफ लोगों के सूचना हासिल करने का अधिकार है, लेकिन जांच के दौरान अहम सुबूतों का खुलासा होने पर जांच भी प्रभावित हो सकती है.  हमें आरोपी के अधिकार का भी ध्यान रखना है.   एक स्तर पर, जिस आरोपी के आचरण की जांच चल रही है, वह पुलिस द्वारा निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच का हकदार है.  जांच के चरण में प्रत्येक आरोपी निर्दोषता का अनुमान लगाने का हकदार है. मीडिया ट्रायल से उनका हित प्रभावित होता है.  किसी आरोपी को फंसाने वाली मीडिया रिपोर्ट अनुचित है.

'पीड़ित की निजता भी प्रभावित नहीं होनी चाहिए '

 पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग से जनता में यह संदेह भी पैदा होता है कि उस व्यक्ति ने कोई अपराध किया है.  मीडिया रिपोर्टें पीड़ितों की निजता का भी उल्लंघन कर सकती हैं. किसी मामले में पीड़ित नाबालिग हो सकता है. पीड़ित की निजता प्रभावित नहीं होनी चाहिए. मीडिया ब्रीफिंग के लिए पुलिस को कैसे प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. हमारे 2014 के  निर्देशों पर भारत सरकार ने क्या कदम उठाए हैं.  केंद्र की ओर से ASG ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि सरकार मीडिया ब्रीफिंग को लेकर दिशानिर्देश  तय करेगी. सरकार कोर्ट को उससे अवगत कराएगी.

सुप्रीम कोर्ट ने दिया आरुषि तलवार केस का उदाहरण

सुप्रीम कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें उसने 2017 में सरकार से पुलिस द्वारा मीडिया ब्रीफिंग के लिए मानदंड तय करने को कहा था. मामले के एमिक्स क्यूरी वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने भी कहा कि आरुषि मामले में मीडिया ऐसे ही कर रहा था. हम मीडिया को रिपोर्टिंग करने से नहीं रोक सकते.लेकिन पुलिस को संवेदनशील होने की जरूरत है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com