विज्ञापन
This Article is From Feb 06, 2024

कानून की कसौटी पर कितना खरा उतरेगा उतराखंड का UCC बिल? जानें- क्या कहते हैं सुप्रीम कोर्ट के वकील

सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह ने कहा, "संविधान सभा के ड्राफ्टिंग के सदस्य केएम मुंशी ने कहा था कि हमारा मकसद पर्सनल लॉ को सिविल रिलेशनशिप से डिवोस (खत्म) करना है. डॉ भीमराव अंबेडकर ने उस समय कहा था कि अगर आप इसे (UCC) धर्म से जोड़ते हैं तो गलत होगा".

नई दिल्ली:

UCC Bill: उत्तराखंड विधानसभा में UCC यानी समान नागरिक संहिता बिल पेश हो गया है. कानून बनने के बाद उत्तराखंड आज़ादी के बाद यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य हो जाएगा. विधानसभा में BJP के पास पूर्ण बहुमत है. ऐसे में इस विधेयक का पास होना तय माना जा रहा है. NDTV ने UCC को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह से बात की.

UCC को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह ने कहा कि संविधान सभा के सदस्यों की यह मंशा थी कि देश में एक यूनिफॉर्म सिविल कोड हो. इसके तहत उन्होंने आर्टिकल 44 को संविधान में जोड़ा गया था, जिसमें यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात की  थी. लेकिन उस समय यह हवाला दिया गया था कि अभी समय ठीक नहीं है. इसको लागू करने के लिए. साथ ही सही समय पर इसको लाने की बात हुई थी. संविधान सभा के सदस्यों का मानना था कि धर्म से इसका कोई लेना-देना नहीं है.

संविधान सभा में भी हुई थी UCC पर चर्चा, लेकिन क्यों नहीं हुआ लागू? 
सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह ने कहा कि दो पहलू है, एक पहलू यह है कि यूसीसी ला सकते हैं. इसपर डिबेट आज नहीं, जब संविधान बना था. उस समय भी इस पर चर्चा हुई थी. लेकिन मुस्लिम समाज के लोगों ने इसका विरोध किया था. उनका कहना था कि यह उनके धर्म के खिलाफ है और संविधान सभा ने इसे अस्वीकार कर दिया था. संविधान सभा का तर्क था कि आप अगर मौलिक अधिकार ले लिया, तो साथ में आप इसे मना नहीं कर सकते. यह रिलेशनशिप में महिला और पुरुष को समानता का अधिकार देता है.

सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह ने कहा, "संविधान सभा के ड्राफ्टिंग के सदस्य केएम मुंशी ने कहा था कि हमारा मकसद पर्सनल लॉ को सिविल रिलेशनशिप से डिवोस करना है. डॉ भीमराव अंबेडकर ने उस समय कहा था कि अगर आप इसे (UCC) धर्म से जोड़ते हैं तो गलत होगा".

उन्होंने कहा कि जो कानून द्वारा आता है उसे कानून से हटाया भी जाता है. अब सवाल है कि हम इसे कैसे लागू कर रहे हैं? नए कानून में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर चुनौती होगी. किस तरह से आप इसे लागू किया है. यह देखना होगा कि क्या मौलिक अधिकारों का तो हनन नहीं हो रहा है या किसी के प्राइवेसी को तो खत्म नहीं किया जा रहा है. साथ ही लोगों को धार्मिक अधिकार भी है. अगर, इसमें मुसलमानों के धार्मिक अधिकार को हनन कर रहा है तो इसको चुनौती दी जा सकती है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर भी नियम तय कर चुका है. 

प्राइवेसी को लेकर कई सवाल
सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह ने कहा, "कई ऐसे पहलू हैं, जो उस समय भी आए थे. कुछ बातों को लेकर उस समय भी विरोध था. कई जगह रिति रिजाव का सवाल होता है. यह भी देखना होगा कि आदिवासियों के अधिकार को इस कानून में कैसे रखा गया है. लिव इन रिलेशनशिप में रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है. लेकिन जब दो एडल्ट साथ में रह रहे हैं तो यह कोई अपराध नहीं है. जब लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़ों का जब ब्रेकअप होगा तो क्या उसे पत्नि का दर्जा मिलेगा? लिव इन रिलेशनशिप में रजिस्ट्रेशन होने पर सबूत देने की जरुरत नहीं होगी. लेकिन प्राइवेसी को लेकर सवाल है. लिव इन रिलेशनशिप क्राइम नहीं है.  समाज में लिव इन रिलेशनशिप को अलग-अलग नजरिया से देखा जाता रहा है. लिव इन रिलेशनशिप में रजिस्ट्रेशन करना प्राइवेसी का हनन मना जा रहा है."

हर धर्म की महिला को गोद लेने का अधिकार
उत्तराखंड के लिए प्रस्तावित यूसीसी विधेयक धार्मिक सीमाओं से परे जाकर मुस्लिम महिलाओं सहित सभी को गोद लेने का अधिकार प्रदान करता है. इसमें हलाला और इद्दत (तलाक या पति की मृत्यु के बाद एक महिला को जिन इस्लामी प्रथाओं से गुजरना पड़ता है) जैसी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाना, लिव-इन रिलेशनशिप की बढ़ावा देना और गोद लेने की प्रक्रियाओं को सरल बनाना है.

ये भी पढे़ं:- "
'10 साल की सजा, 1 करोड़ जुर्माना...' : पेपर लीक पर लगाम लगाएगा केंद्र सरकार का ये नया बिल

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com