संपत्ति विरासत पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि बेटियों को बिना वसीयत के मरने वाले पिता की स्व-अर्जित संपत्ति विरासत में मिलेगी. बेटियों को परिवार के अन्य सदस्यों जैसे मृतक पिता के भाइयों के बेटे और बेटियों पर वरीयता मिलेगी. यदि एक महिला हिंदू बिना वसीयत छोड़े मर जाती है, तो उसे अपने पिता या माता से विरासत में मिली संपत्ति उसके पिता के वारिसों के पास जाएगी. जबकि जो संपत्ति उसे अपने पति या ससुर से विरासत में मिली है, वह पति के वारिसों के पास जाएगी. ये फैसला हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत हिंदू महिलाओं और विधवाओं के संपत्ति अधिकारों से संबंधित है.
जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने फैसला सुनाया है . दरअसल तमिलनाडु के एक परिवार की बेटियों के बंटवारे के मुकदमे को खारिज करने वाले मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर फैसला आया है. अदालत ने अपने इस फैसले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या की है. अदालत ने कहा है कि इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य संपत्ति के अधिकारों के संबंध में पुरुष और महिला के बीच पूर्ण समानता स्थापित करना है. एक सीमित संपत्ति की सभी धारणाओं को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए महिला के अधिकारों को पूर्ण घोषित किया गया है.
अदालत ने कहा कि कानून ने हिंदुओं के उत्तराधिकार के कानून में बदलाव किया और महिलाओं की संपत्ति के संबंध मेंअधिकार दिए, जो तब तक नहीं थे. येअधिनियम विरासत की एकसमान और व्यापक प्रणाली निर्धारित करता है और यह मिताक्षरा और दयाभाग स्कूल द्वारा शासित व्यक्तियों पर भी और मुरुमक्कट्टयम, अलियासंतन और नंबूदरी कानूनों द्वारा पूर्व में शासित लोगों पर भी भी लागू होता है.
यह अधिनियम हर उस व्यक्ति पर लागू होता है जो किसी भी रूप में धर्म से हिंदू है, जिसमें वीरशैव( लिंगायत) या ब्रह्मो प्रार्थना या आर्य समाज के अनुयायी शामिल हैं और यहां तक कि बौद्ध, जैन या सिख धर्म के लोगों पर भी लागू होता है.
अरुणाचल गौंडर के कानूनी वारिसों की अपील पर कार्रवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट और निचली अदालत के फैसलों को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि दुर्भाग्य से, किसी भी अदालत ने तय कानूनों व्यवस्था को नजरअंदाज किया. मौजूदा मामले में अदालत ने पाया कि विचाराधीन संपत्ति निश्चित रूप से मारप्पा गौंडर की स्व-अर्जित संपत्ति थी. याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया प्रश्न यह था कि क्या स्वर्गीय गौंडर की एकमात्र जीवित पुत्री कुपेयी अम्मल, संपत्ति की उत्तराधिकारी होगी और संपत्ति उत्तरजीविता द्वारा हस्तांतरित नहीं होगी? सुप्रीम कोर्ट इस सवाल पर विचार कर रहा था कि क्या एकमात्र बेटी अपने पिता की अलग-अलग संपत्ति की उत्तराधिकारी है (हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अधिनियमन से पहले). एक अन्य प्रश्न था कि ऐसी बेटी की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के संबंध में था ( जिसकी मृत्यू 1956 के अधिनियम के लागू होने के बाद हुई थी)
पहले प्रश्न के संबंध में, शीर्ष अदालत ने प्रथागत हिंदू कानून और न्यायिक घोषणाओं का हवाला देते हुए कहा कि एक विधवा या बेटी का स्व-अर्जित संपत्ति या एक हिंदू पुरुष की सहदायिक संपत्ति के विभाजन में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार न केवल पुराने प्रथागत हिंदू कानून के तहत बल्कि विभिन्न न्यायिक घोषणाओं के तहत भी अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त है.
वहीं अन्य मुद्दे पर पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14 और 15 का हवाला दिया. पीठ ने कहा है कि यदि एक हिंदू महिला बिना किसी संतानविहीन मर जाती है, तो उसके पिता या माता से विरासत में मिली संपत्ति उसके पिता के वारिसों के पास जाएगी, जबकि उसके पति या ससुर से विरासत में मिली संपत्ति पति के वारिस के पास चली जाएगी
दरअसल इस प्रावधान को लाने के पीछे विधायिका का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विरासत से संपत्ति प्राप्त करने वाली एक हिन्दू महिला संतानविही मर जाती है तो संपत्ति स्रोत को वापस चली जाती है. वर्तमान मामले में अदालत ने कहा कि कुपायी अम्मल की मृत्यु के बाद 1967 में सूट संपत्तियों का उत्तराधिकार खोला गया. इसलिए 1956 का अधिनियम लागू होगा और इस तरह रामासामी गौंडर की बेटी भी अपने पिता की प्रथम श्रेणी वारिस होने के नाते वारिस होंगी और विभाजन सूट संपत्तियों में पांचवें हिस्से की हकदार होंगी.
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