 
                                            सुप्रीम कोर्ट की फाइल फोटो.
                                                                                                                        
                                        
                                        
                                                                                नई दिल्ली: 
                                        सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने व्यभिचार कानून (Supreme Court verdict on Adultery under Section 497) को रद्द कर दिया है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने एकमत से व्यभिचार को अपराध के दायरे से बाहर करने का फैसला सुनाया . अब तक आइपीसी की धारा 497 के तहत व्यभिचार के मामले में महज पुरुषों को ही आरोपी बनाया जाता रहा, जबकि महिला के लिए कोई सजा नहीं मुकर्रर थी. महिलाओं और पुरुषों को लेकर अलग मानक वाले इस केस को गलत मानते हुए सबसे पहले केरल के मूल निवासी जोसेफ शाइन (Joseph Shine) ने मुद्दा उठाया था. उन्होंने व्यभिचार पर सिर्फ पुरुषों को दोषी मानने पर सवाल खड़े करते हुए आठ दिसंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट में आइपीसी की धारा 497 की वैधता को चुनौती दी. इस वक्त इटली में बतौर एनआरआइ(NRI) रहने वाले जोसेफ की इस याचिका को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने स्वीकार करते हुए सुनवाई करने का फैसला किया था.
. भारत से एक मामले में निर्वासित और अब इटली में गुजर-बसर कर रहे जोसेफ साइन की याचिका पर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला करते हुए 157 साल पुराने कानून को तोड़ दिया. भारतीय सामाजिक व्यवस्था के लिहाज से समलैंगिकता के बाद सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिया गया यह दूसरा बड़ा मामला है. जोसेफ साइन ने अपनी याचिका में कहा था कि आइपीसी की धारा 497 के तहत पुरुषों के साथ भेदभाव होता है. अगर यौन संबंध दोनों की सहमति से बनता है तो फिर महिलाओं को सजा से अलग रखना और पुरुषों को दंडित करने का क्या औचित्य है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें
व्यभिचार कानून की वैधता ( Adultery under Section 497) की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि ऐसे प्रावधान असंवैधानिक हैं, जो भेदभाव करता हो.सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने नौ अगस्त को व्यभिचार की धारा IPC 497 पर फैसला सुरक्षित रखा था. पीठ के सामने मसला उठा था कि आइपीसी की धारा 497 अंसवैधानिक है या नहीं, क्योंकि इसमें सिर्फ पुरुषों को आरोपी बनाया जाता है, महिलाओं को नहीं. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि पति महिला का मालिक नहीं होता है.किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं करार दिया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि चीन, जापान, ब्राजील में भी ये अपराध नहीं रहा. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून कोअसंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया.चीफ जस्टिस ने कहा-व्यभिचार कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है. हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं कि व्यभिचार तलाक का आधार हो सकता है, मगर यह अपराध नहीं हो सकता.
वीडियो-सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को किया रद्द, कहा- यह अपराध नहीं
                                                                                  
                                                                                
                                                                                                                        
                                                                                                                    
                                                                        
                                    
                                . भारत से एक मामले में निर्वासित और अब इटली में गुजर-बसर कर रहे जोसेफ साइन की याचिका पर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला करते हुए 157 साल पुराने कानून को तोड़ दिया. भारतीय सामाजिक व्यवस्था के लिहाज से समलैंगिकता के बाद सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिया गया यह दूसरा बड़ा मामला है. जोसेफ साइन ने अपनी याचिका में कहा था कि आइपीसी की धारा 497 के तहत पुरुषों के साथ भेदभाव होता है. अगर यौन संबंध दोनों की सहमति से बनता है तो फिर महिलाओं को सजा से अलग रखना और पुरुषों को दंडित करने का क्या औचित्य है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें
व्यभिचार कानून की वैधता ( Adultery under Section 497) की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि ऐसे प्रावधान असंवैधानिक हैं, जो भेदभाव करता हो.सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने नौ अगस्त को व्यभिचार की धारा IPC 497 पर फैसला सुरक्षित रखा था. पीठ के सामने मसला उठा था कि आइपीसी की धारा 497 अंसवैधानिक है या नहीं, क्योंकि इसमें सिर्फ पुरुषों को आरोपी बनाया जाता है, महिलाओं को नहीं. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि पति महिला का मालिक नहीं होता है.किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं करार दिया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि चीन, जापान, ब्राजील में भी ये अपराध नहीं रहा. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून कोअसंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया.चीफ जस्टिस ने कहा-व्यभिचार कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है. हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं कि व्यभिचार तलाक का आधार हो सकता है, मगर यह अपराध नहीं हो सकता.
वीडियो-सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को किया रद्द, कहा- यह अपराध नहीं
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