अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा से पहले दोनों देशों के बीच परमाणु करार को लेकर कई विवाद हो रहे हैं। पहले बिजली रिएक्टरों में इस्तेमाल होने वाले ईंधन की निगरानी को लेकर चिंताएं जताई गईं और अब इस बात पर सवाल खड़ा हो रहा है कि अमेरिका भारत के न्यूक्लिर लाइबिलिटी बिल (कोई हादसा होने पर मुआवज़े के प्रावधान वाला बिल) के साथ तोड़मरोड़ की कोशिश कर रहा है।
शुक्रवार को सीपीएम महासचिव प्रकाश करात ने आरोप लगाया कि अमेरिका को खुश करने के लिए भारत अपने न्यूक्लियर लाइबिलिटी बिल के ज़िम्मेदारी वाले क्लॉज को ढीला करने की कोशिश में है। करात ने कहा कि मीडिया में ख़बरें आ रही हैं कि भारत और अमेरिका के वार्ताकार लंदन में इस बारे में मीटिंग कर रहे हैं।
मौजूदा बिल में प्रावधान है कि अगर रियेक्टर में हादसा होता है तो उसे चलाने वाली कंपनी के साथ बेचने वाली (यानी बनाने वाली कंपनी) पर भी मुआवज़े के लिए दावा किया जा सकता है, लेकिन अमेरिका इस क्लॉज़ से खुश नहीं है।
करात ने एनडीटीवी इंडिया से बातचीत में कहा कि फ्रांस और रूस ने भारत के साथ परमाणु रियेक्टर बेचने का करार किया है, लेकिन अमेरिका ने अभी तक भारत के साथ परमाणु रियेक्टर बेचने का करार नहीं किया क्योंकि वह इस क्लॉज़ को बदलवाना चाहता है। भारत मुआवज़े के लिए हमारी बीमा कंपनियों के ज़रिये अमेरिकी कंपनियों को राहत देने का रास्ता खोलने की कोशिश में है, जो बिल्कुल ग़लत होगा।
गौरतलब है कि रिएक्टरों में इस्तेमाल होने वाले और रिसाइकिल होने वाले ईंधन पर भी अमेरिका निगरानी रखना चाहता है, लेकिन भारत सरकार ने अमेरिका की इस मांग को गैरज़रूरी बताया है। सरकार में सूत्रों ने कहा कि भारत अमेरिका के सामने परमाणु करार और न्यूक्लियर लाइबिलिटी बिल को लेकर किसी भी तरह नहीं झुकेगा।
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