Farooq Abdullah released: जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 (Article 370) और अनुच्छेद 35-ए (Article 35A) के खात्मे के बाद हिरासत में लिए गए पूर्व मुख्यमंत्री व नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) को रिहा कर दिया गया है. उन्हें जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में लिया गया था. उनके साथ ही उनके बेटे उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) और पीडीपी प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ति (Mehbooba Mufti) को भी हिरासत में लिया गया था. रिहा होने पर अबदुल्ला ने कहा, 'आज मैं आजाद हूं. मेरे पास बयां करने के लिए शब्द नहीं हैं. फिलहाल, मैं किसी सियासी मुद्दे पर नहीं बोलूंगा जबतकि सभी साथी रिहा नहीं हो जाते.' बता दें कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद फारूक अबदुल्ला को हिरासत में लिया गया था, शुक्रवार को उनको रिहा कर दिया गया. उन पर लगाए गए पब्लिक सेफ्टी एक्ट भी हटा दिया गया है. वह करीब सात महीने से हिरासत में थे. फारूक अब्दुल्ला को उनके बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और अन्य नेताओं के साथ 5 अगस्त को हिरासत में ले लिया गया था. बता दें, कुछ दिन पहले आठ विपक्षी पार्टियों ने भाजपा नेतृत्व वाली सरकार से मांग की थी कि कश्मीर में हिरासत में रखे गए सभी नेताओं को जल्द से जल्द रिहा किया जाए. हिरासत में रखे गए नेताओं में तीन पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती शामिल हैं.
Srinagar: National Conference leader Farooq Abdullah released from detention pic.twitter.com/eUgs3pH8y8
— ANI (@ANI) March 13, 2020
इससे पहले पीडीपी सांसद मीर मोहम्मद फयाद ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा, 'हम फारूक अब्दुल्ला की रिहाई का स्वागत करते हैं. हम मांग करते हैं कि हमारी नेता महबूबा मुफ्ती और पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला को भी रिहा किया जाए. भारत सरकार को अब कश्मीर में राजनीतिक संवाद शुरू करना चाहिए.'
वहीं, कश्मीर से राज्यसभा सांसद नाजीर अहमद लवाई ने कहा, 'हम इस फैसले का स्वागत करते हैं. हम मांग करते हैं कि सभी नेताओं जो युवा और आम लोगों को गिरफ्तार किया है उनको भी रिहा किया जाए.' बता दें कि विपक्षी पार्टियों की ओर से बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार को भेजे गए संयुक्त प्रस्ताव में कहा गया था, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में लोकतांत्रिक असहमति को आक्रामक प्रशासनिक कार्रवाई से दबाया जा रहा है. इसने संविधान में निहित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के बुनियादी सिद्धांतों को जोखिम में डाल दिया है." इसमें कहा गया था कि लोकतांत्रिक मानदंडों, नागरिकों के मौलिक अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता पर हमले बढ़ रहे हैं.
जिन नेताओं ने मीडिया में संयुक्त बयान जारी किया था, उनमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा, माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा के महासचिव डी.राजा, आरजेडी से राज्यसभा सदस्य मनोज कुमार झा, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी शामिल थे.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं