प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एकांत कारावास को असंवैधानिक घोषित कर दिया है. निचली अदालत द्वारा दो दोषियों को दी गई फांसी की सजा को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ ने कहा कि कैदियों के साथ होने वाले व्यवहार के लिए संयुक्त राष्ट नियमों में स्पष्ट है कि एकांत कारावास का प्रयोग केवल अपवाद मामलों में अंतिम विकल्प के रूप में किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसे केवल कैदियों की सजा के आधार पर लागू नहीं किया जाना चाहिए. अदालत ने आगे कहा कि यह परंपरा न केवल अतिरिक्त सजा के समान है बल्कि अत्याचार के बराबर है और बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
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गौरतलब है कि एक 55 वर्षीय महिला से गैंगरेप और हत्या से संबंधित एक मामले में अदालत ने ये टिप्पणियां कीं. हालांकि, अदालत ने इस मामले में फांसी की सजा को बरकरार रखा. अदालत ने कहा कि उत्तर प्रदेश कारावास नियमों में कहा गया है कि वार्डन अधिकारियों के अलावा किसी व्यक्ति को दोषियों से बात करने की अनुमति नहीं होगी और दोषी को दिन के 23 घंटे अकेले रहना होगा. इससे दोषी को बेहद दर्द, कष्ट और बेचैनी होती है और यह भारत के संविधान का उल्लंघन है.
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विकास नगर निवासी अनिल चौहान ने वर्ष 2012 दिसंबर में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी मां बकरियां लेकर चराने गई थीं लेकिन वापस नहीं लौटी. बाद में उनकी मां का शव नदी के किनारे झाडि़यों में पड़ा मिला. जांच के दौरान दोषियों को पकड़ा गया और देहरादून के विशेष न्यायाधीश ने उन्हें मौत की सजा सुनाई. निचली अदालत के इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई जिसे उसने बरकरार रखा. (इनपुट भाषा से)
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गौरतलब है कि एक 55 वर्षीय महिला से गैंगरेप और हत्या से संबंधित एक मामले में अदालत ने ये टिप्पणियां कीं. हालांकि, अदालत ने इस मामले में फांसी की सजा को बरकरार रखा. अदालत ने कहा कि उत्तर प्रदेश कारावास नियमों में कहा गया है कि वार्डन अधिकारियों के अलावा किसी व्यक्ति को दोषियों से बात करने की अनुमति नहीं होगी और दोषी को दिन के 23 घंटे अकेले रहना होगा. इससे दोषी को बेहद दर्द, कष्ट और बेचैनी होती है और यह भारत के संविधान का उल्लंघन है.
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