'हर सैनिक ये शपथ लेता है कि ....' : राजद्रोह कानून पर याचिका डालने वाले रिटायर्ड जनरल ने बताया सुप्रीम कोर्ट जाने का कारण

जनरल वोम्बतकेरे ने कहा कि मैंने देखा था कि बहुत सी चीजें गलत हो जाती हैं. मेरा मानना ​​​​है कि अगर एक जगह अन्याय है, तो हर जगह अन्याय है. अन्याय का विरोध करना ही होगा.

'हर सैनिक ये शपथ लेता है कि ....' : राजद्रोह कानून पर याचिका डालने वाले रिटायर्ड जनरल ने बताया सुप्रीम कोर्ट जाने का कारण

राजद्रोह कानून पर रिटायर्ड जनरल सुधीर वोम्बतकेरे ने बताया सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालने का कारण

नई दिल्ली :

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई. भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने मामले की सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने इस मामले पर अपना ऐतिहासिक फैसला दिया है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजद्रोह कानून पर तब तक रोक रहे, जब तक इसका पुनरीक्षण हो. कोर्ट ने कहा है कि राजद्रोह की धारा 124-A में कोई नया केस नहीं दर्ज हो. वहीं इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक रिटायर्ड मेजर जनरल सुधीर वोम्बतकेरे ने बताया कि वह क्यों कोर्ट गए.

उन्होंने बताया कि मामले में अदालत का रुख इसलिए किया, क्योंकि मैंने जिस संविधान की रक्षा करने की शपथ ली थी, उसे चुनौती दी जा रही थी. हर सैनिक संविधान की रक्षा के लिए शपथ लेता है, वे अपने जीवन को जोखिम में डालकर भी संविधान की रक्षा करते हैं. देश की सीमाओं की रक्षा सशस्त्र बलों द्वारा की जाती है, ताकि देश के भीतर लोग चैन की नींद ले सकें और स्वतंत्रता पूर्वक अपने अधिकारों का आनंद ले सकें,  जो कि संविधान हमें प्रदान करता है. यही कारण है कि मैं इस मामले को कोर्ट लेकर गया. 

जनरल वोम्बतकेरे ने कहा कि मैंने देखा था कि बहुत सी चीजें गलत हो जाती हैं. मेरा मानना ​​​​है कि अगर एक जगह अन्याय है, तो हर जगह अन्याय है. अन्याय का विरोध करना ही होगा.  

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सभी मामलों पर रोक लगा दी है. राजद्रोह में बंद लोग बेल के लिए कोर्ट जा सकते हैं. कोर्ट ने कहा है कि नई एफआईर होती है तो वह कोर्ट जा सकते हैं. इसका निपटारा जल्द से जल्द कोर्ट करें.  चीफ जस्टिस ने कहा है कि केंद्र सरकार कानून पर पुनर्विचार करेगी . SC ने कहा कि कोई भी प्रभावित पक्ष संबंधित अदालतों से सम्पर्क करने के लिए स्वतंत्र है. साथ ही, अदालतों से अनुरोध किया जाता है कि वे वर्तमान आदेश को ध्यान में रखते हुए मामलों पर विचार करें.

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