
- सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST और OBC आरक्षण में आय-आधारित प्राथमिकता की याचिका पर परीक्षण करने को तैयार है.
- इसमें मांग की गई कि आरक्षण का लाभ गरीब पात्र समुदायों को पहले मिले, जिससे आय-आधारित प्राथमिकता लागू हो.
- याचिका में कहा गया कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के अनुरूप होगा और आरक्षण में बदलाव नहीं होगा.
एससी-एसटी, ओबीसी आरक्षण में आय-आधारित प्राथमिकता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट परीक्षण करने को तैयार है. केंद्र सरकार और संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया गया. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने जनहित याचिका पर केंद्र सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है. याचिका में मांग की गई है कि आरक्षण का लाभ पात्र समुदायों के सबसे गरीब लोगों को पहले मिले और इसके लिए आय-आधारित प्राथमिकता लागू की जाए.
याचिकाकर्ता का कहना है कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के अनुरूप होगा और समान अवसर सुनिश्चित करेगा, जबकि मौजूदा आरक्षण कोटे में कोई बदलाव नहीं होगा. सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की कि वकील को काफी विरोध का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि ये संवेदनशील मामला है और याचिका के अनुसार- दशकों से आरक्षण लागू होने के बावजूद आर्थिक रूप से सबसे कमजोर वर्ग अक्सर लाभ से वंचित रह जाते हैं और अपेक्षाकृत संपन्न लोग ही आरक्षित वर्ग के भीतर अधिकतर लाभ उठा लेते हैं.
याचिका में क्या कहा?
याचिका में कहा गया कि आय-आधारित प्राथमिकता से यह सुनिश्चित होगा कि मदद सबसे पहले जरूरतमंदों तक पहुंचे. यूपी निवासी रमाशंकर प्रजापति और यमुना प्रसाद द्वारा दाखिल याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार को सरकारी रोजगार एवं शैक्षणिक अवसरों में अधिक न्यायसंगत एवं समान रूप से आरक्षण व्यवस्था सुनिश्चित करने हेतु नीतियां बनाने का निर्देश दें, जिससे आरक्षण के लाभ का वितरण मेरिट-कम-मीन्स (योग्यता एवं आर्थिक आधार) दृष्टिकोण से हो सके.
साथ ही कहा कि प्रत्येक आरक्षित श्रेणी में आय-आधारित वरीयताओं को लागू/अपनाने का निर्देश दें, जिससे अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के आर्थिक रूप से कमजोर अभ्यर्थियों के बीच आरक्षण लाभ का समान वितरण सुनिश्चित हो सके. ऐसे दिशा-निर्देश बनाने का आदेश दें जिससे प्रत्येक आरक्षित श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर अभ्यर्थियों को एक उप-श्रेणी के रूप में माना जाए तथा उन्हें चयन प्रक्रिया में अधिक योग्यता एवं प्राथमिकता प्रदान की जाए, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में तय किया है .
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