सुप्रीम कोर्ट ने 34 साल पुराने रोडरेज के एक मामले में गुरुवार को कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू को सश्रम एक साल के कारावास की सजा की सुनाई है. सालों पुराने मामले अपने 24 पेज के फैसले में कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं. कोर्ट ने कहा कि हाथ को भी हथियार के तौर पर देखा जा सकता है, अगर कोई ताकतवर, पूरी तरह से स्वस्थ्य या खिलाड़ी उसका इस्तेमाल लोगों के खिलाफ करता है. ये टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि जब अपराधी को सजा नहीं होती है या अपेक्षाकृत मामूली सजा के साथ छोड़ दिया जाता है तो ये अपराध के शिकार को अपमानित और निराश करती है. साथ ही ये न्यायपालिका पर उनके विश्वास को भी प्रभावित करती है.
"हाथ भी हथियार हो सकता है"
जस्टिस एएम खानविलकर और संजय किशन कौल की बेंच ने सिद्धू के मामले में सुनावई करते हुए कहा, " हाथ अपने आप में एक हथियार भी हो सकता है, जब एक मुक्केबाज, एक पहलवान या एक क्रिकेटर या शारीरिक रूप से बेहद फिट व्यक्ति दूसरे किसी कमजोर व्यक्ति को मारता है. इस परिस्थिति में पीड़ित को अधिक यातना हो सकती है. जहां तक चोट लगने का संबंध है, न्यायालय ने मृतक के सिर पर हाथ से एक ही वार देने की याचिका को भी स्वीकार कर ली है."
कोर्ट की ओर से कहा गया कि सजा इस तथ्य के कारण नहीं दी जाती है कि जैसे को तैसा मिले, बल्कि इसका समाज पर उचित प्रभाव पड़ता है. हम मामले में अनुचित कठोरता की आवश्यकता नहीं है. लेकिन अपराधी को मामूली सजा देना, बड़े पैमाने पर समुदाय की पीड़ा का कारण बन सकता है.
हमला शारीरिक रूप से समान व्यक्ति पर नहीं था
कोर्ट ने कहा कि यह हमला शारीरिक रूप से समान किसी व्यक्ति पर नहीं बल्कि 65 वर्षीय व्यक्ति पर किया गया था, जिसकी उम्र दोगुनी से भी अधिक थी. ऐसे में सिद्धू यह नहीं कह सकते कि वह इस पहलू वाकिफ नहीं थे.
कोर्ट ने कहा, "ऐसा नहीं है कि किसी को उन्हें (सिद्धू) को याद दिलाना पड़ता कि उनके मारने से दूसरे व्यक्ति को कितनी चोट लग सकती है. संभव है कि उस वक्त उन्होंने अपना आपा खो दिया होगा और अगर ऐसा है तो उन्हें इसका परिणाम भुगतना होगा. कोर्ट ने सिद्धू को आईपीसी की धारा 323 के तहत साधारण चोट के अपराध का दोषी माना है. लेकिन सवाल यह है कि क्या ये पर्याप्त सजा है क्योंकि हमले के कारण किसी की जान चली गई है."
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