सुप्रीम कोर्ट ने जाटों को ओबीसी कोटा के तहत आरक्षण देने के केंद्र के फैसले को मंगलवार को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र का फैसला दशकों पुराने आंकड़ों पर आधारित है और आरक्षण के लिए पिछड़ेपन का आधार सामाजिक होना चाहिए, न कि आर्थिक या शैक्षणिक। कोर्ट ने कहा कि सरकार को ट्रांस जेंडर जैसे नए पिछड़े ग्रुप को ओबीसी के तहत लाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह ने कहा, हम जाट आरक्षण का समर्थन करते हैं...कोई कमी रह गई हो तो उसे दूर करेंगे, सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच में अपील करेंगे और अपनी बात रखेंगे।
कुछ इसी तरह की बात हरियाणा के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने भी कही है। हुड्डा ने कहा कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर करनी चाहिए, क्योंकि एनडीए ने भी इसका समर्थन किया था। गौरतलब है कि हुड्डा और चौधरी वीरेंद्र सिंह कभी कांग्रेस में साथ-साथ थे, लेकिन वीरेंद्र सिंह पिछले साल लोकसभा चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस से नाता तोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र का फैसला दशकों पुराने आंकड़ों पर आधारित है और आरक्षण के लिए पिछड़ेपन का आधार सामाजिक होना चाहिए, न कि आर्थिक या शैक्षणिक। कोर्ट ने कहा कि सरकार को ट्रांस जेंडर जैसे नए पिछड़े ग्रुप को ओबीसी के तहत लाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि हालांकि जाति एक प्रमुख कारक है, लेकिन पिछड़ेपन के निर्धारण के लिए यह एकमात्र कारक नहीं हो सकती है और जाट जैसी राजनीतिक रूप से संगठित जातियों को ओबीसी सूची में शामिल करना अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी पैनल के उस निष्कर्ष पर ध्यान नहीं देने के केंद्र के फैसले में खामी पाई, जिसमें कहा गया था कि जाट पिछड़ी जाति नहीं है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के तहत ट्रांसजेंडर को तीसरी श्रेणी में शामिल कर उन्हें ओबीसी कोटा में आरक्षण दिया था। ओबीसी रक्षा समिति की इस याचिका पर ये फैसला आया। याचिकाकर्ता राम सिंह की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश वकील ओमबीर सिंह ने कहा कि ये एक ऐहतिहासिक फैसला है और वो इस फैसले का स्वागत करते हैं।
जबकि जाट आरक्षण समिति के अध्यक्ष कर्नल ओपी सिंधू ने इस फैसले पर निराशा जाहिर की है। उन्होंने कहा कि इस मामले में वो कई सालों से लड़ाई लड़ते आए हैं और ये लड़ाई आगे भी जारी रहेगी। उन्होंने ये भी कहा कि वो इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे और जरूरत पड़ने पर आंदोलन भी छेड़ेंगे।
पिछले साल मार्च में तब की मनमोहन सिंह सरकार ने नौ राज्यों के जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी लिस्ट में शामिल किया था। इसके आधार पर जाट भी नौकरी और उच्च शिक्षा में ओबीसी वर्ग को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण के हक़दार बन गए थे।
इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार ने भी जाटों को ओबीसी आरक्षण की सुविधा दिए जाने के फैसले का समर्थन किया है। लोकसभा चुनाव से पहले 4 मार्च 2014 को किए गए इस फैसले में दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल, बिहार, मध्य प्रदेश, और हरियाणा के अलावा राजस्थान (भरतपुर और धौलपुर) के जाटों को केंद्रीय सूची में शामिल किया था।
ओबीसी रक्षा समिति समेत कई संगठनों ने कहा था कि ओबीसी कमिशन ये कह चुका है कि जाट सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े नहीं हैं जबकि सरकार सीएसआईआर की रिपोर्ट का हवाला देती रही है।
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