नई दिल्ली:
'किसी भी पत्नी के लिए किसी भी आपराधिक मामले में कोर्ट से राहत पाने का यह आधार नहीं हो सकता कि उसने जो भी किया वह पति की आज्ञा पालन के तहत किया। देश का कानून आपराधिक मामलों में महिला और पुरुष में भेदभाव नहीं करता। किसी भी महिला को केवल इसलिए राहत नहीं दी जा सकती कि वह महिला है।' यह टिप्पणी करते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने पूर्व महिला सासंद के खिलाफ फर्जी दस्तावेज के आधार पर लोन लेने के मामले में हाइकोर्ट के आदेश को पलटते हुए क्रिमिनल केसों को फिर चलाने के आदेश जारी किए हैं।
राशि लौटा दी, इसलिए वापस नहीं हो सकते केस
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने यह आदेश सुनाया है। कोर्ट ने आदेश में कहा कि आर्थिक घोटाले देश की अर्थव्यवस्था को खोखला कर देते हैं। महिला पहले व्यावसायिक टैक्स विभाग में अफसर थी जो बाद में पब्लिक लाइफ में आई। उसकी इन दलीलों को माना नहीं जा सकता कि उसे अपने काम की जानकारी नहीं थी। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि देश में हत्या और आर्थिक अपराधों में महिला होने के चलते रियायत नहीं दी जा सकती। यह दलील भी सही नहीं है कि चूंकि सारे पैसे दे दिए गए हैं, इसलिए आपराधिक केस वापस हो जाने चाहिए।
हाईकोर्ट का केस रद्द करने का फैसला गलत
कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का केस रद्द करने का फैसला सही नहीं है। दरअसल महिला और उसके पति ने अगल-अलग बैंकों से फर्जी दस्तावेज के आधार पर 61 लाख का लोन लिया था। इसके खिलाफ बैंकों ने तमिलनाडु में चार केस दर्ज कराए थे और निचली अदालत में ट्रायल शुरू हो गए थे। उसी दौरान महिला के पति की मौत हो गई और महिला ने बैंक का सारा पैसा अदा कर दिया। इसको आधार मानकर हाई कोर्ट ने निचली अदालत में चल रही सुनवाई को रद्द कर दिया। इसके खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट आ गई और सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर महिला के खिलाफ फिर से केस चलाने का आदेश दिया है।
राशि लौटा दी, इसलिए वापस नहीं हो सकते केस
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने यह आदेश सुनाया है। कोर्ट ने आदेश में कहा कि आर्थिक घोटाले देश की अर्थव्यवस्था को खोखला कर देते हैं। महिला पहले व्यावसायिक टैक्स विभाग में अफसर थी जो बाद में पब्लिक लाइफ में आई। उसकी इन दलीलों को माना नहीं जा सकता कि उसे अपने काम की जानकारी नहीं थी। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि देश में हत्या और आर्थिक अपराधों में महिला होने के चलते रियायत नहीं दी जा सकती। यह दलील भी सही नहीं है कि चूंकि सारे पैसे दे दिए गए हैं, इसलिए आपराधिक केस वापस हो जाने चाहिए।
हाईकोर्ट का केस रद्द करने का फैसला गलत
कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का केस रद्द करने का फैसला सही नहीं है। दरअसल महिला और उसके पति ने अगल-अलग बैंकों से फर्जी दस्तावेज के आधार पर 61 लाख का लोन लिया था। इसके खिलाफ बैंकों ने तमिलनाडु में चार केस दर्ज कराए थे और निचली अदालत में ट्रायल शुरू हो गए थे। उसी दौरान महिला के पति की मौत हो गई और महिला ने बैंक का सारा पैसा अदा कर दिया। इसको आधार मानकर हाई कोर्ट ने निचली अदालत में चल रही सुनवाई को रद्द कर दिया। इसके खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट आ गई और सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर महिला के खिलाफ फिर से केस चलाने का आदेश दिया है।
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