उच्चतम न्यायालय ने दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) लाये गये तीन चीतों की दो महीने से भी कम समय में मौत होने पर बृहस्पतिवार को गंभीर चिंता व्यक्त की और केंद्र से कहा कि वह राजनीति से ऊपर उठकर उन्हें राजस्थान में स्थानांतरित करने पर विचार करे. न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने केंद्र से कहा कि विशेषज्ञों की रिपोर्ट और लेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि केएनपी बड़ी संख्या में चीतों के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है और केंद्र सरकार उन्हें अन्य अभयारण्यों में स्थानांतरित करने पर विचार कर सकती है.
पीठ ने कहा, ‘‘दो महीने से भी कम समय में (चीतों की) तीन मौत गंभीर चिंता का विषय है. ऐसा प्रतीत होता है कि कूनो इतने सारे चीतों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है. एक जगह पर चीतों की सघनता बहुत अधिक होती है. आप राजस्थान में उपयुक्त स्थान की तलाश क्यों नहीं करते? केवल इसलिए कि राजस्थान में विपक्षी दल का शासन है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप इस पर विचार नहीं करेंगे.''
केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि उन्हें अन्य अभयारण्यों में स्थानांतरित करने सहित सभी संभावित पहलुओं की जांच कर रही है.
गौरतलब है कि ‘साशा' नाम की साढ़े चार साल की मादा चीते की किडनी की बीमारी के कारण 27 मार्च को मौत हो गई थी. उसे करीब छह महीने पहले ही नामीबिया से लाकर मध्य प्रदेश के केएनपी में रखा गया था. इसके अलावा 23 अप्रैल को दक्षिण अफ्रीका से लाये गये ‘उदय' नाम के चीते की मौत हो गई थी और मादा चीता ‘दक्षा' की नौ मई को मौत हो गई थी.
पीठ ने कहा कि रिपोर्टों से ऐसा लगता है कि समागम के प्रयास के दौरान नर चीतों के हिंसक संपर्क के कारण एक चीते की मौत हो गई और एक अन्य की मौत किडनी संबंधी बीमारी के कारण हुई.
पीठ ने कहा, ‘‘हमें पता चला कि किडनी से संबंधित बीमारी के कारण मरने वाली मादा चीता भारत लाए जाने से पहले इस समस्या से पीड़ित थी. सवाल यह है कि यदि मादा चीता बीमार थी तो उसे भारत लाने की मंजूरी कैसे दी गई.''
भाटी ने कहा कि सभी चीतों का पोस्टमार्टम किया गया है और कार्यबल मामले की जांच कर रहा है.
पीठ ने कहा, ‘‘आप विदेश से चीते ला रहे हैं, यह अच्छी बात है, लेकिन उन्हें सुरक्षित रखने की भी जरूरत है. उन्हें उपयुक्त आवास देने की आवश्यकता है, आप कूनो से अधिक उपयुक्त आवास की तलाश क्यों नहीं करते.''
पीठ ने कहा कि वह सरकार पर कोई आक्षेप नहीं लगा रही है बल्कि मौतों पर चिंता व्यक्त कर रही है.
शीर्ष अदालत की हरित पीठ का नेतृत्व कर रहे न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि पर्यावरण के मुद्दे उन्हें बहुत चिंतित करते हैं और यह एक ऐसा विषय है जो उनके दिल के करीब है.
भाटी ने कहा कि चीतों की मौत कोई असामान्य बात नहीं है, लेकिन वे पूरी तरह से जांच कर रहे हैं और यदि अदालत चाहे तो सरकार मौतों का विवरण देते हुए एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करना चाहेगी.
पीठ ने कहा, ‘‘चीतों को इस अदालत के आदेश के बाद लाया गया था. ऐसा प्रतीत होता है कि कूनो उनके लिए पर्याप्त स्थान नहीं है, इसलिए उन्हें मध्य प्रदेश या राजस्थान में अन्य अभयारण्यों में स्थानांतरित करने पर विचार करें, जहां भी यह उपयुक्त हो.''
पीठ ने कहा कि सरकार चीता विशेषज्ञों से राय लेने पर विचार करे.
न्यायमूर्ति गवई ने भाटी से कहा, ‘‘इस मुद्दे में पार्टी-राजनीति को बीच में मत लाओ. सभी उपलब्ध आवासों पर विचार करो, जो भी उनके लिए उपयुक्त है. मुझे खुशी होगी अगर चीतों को महाराष्ट्र लाया जाए.''
भाटी ने कहा कि मुकुंदरा राष्ट्रीय उद्यान तैयार है और कार्यबल उनमें से कुछ को मध्य प्रदेश के अन्य राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित करने पर भी विचार किया जा रहा है.
पीठ ने मामले को ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.
शीर्ष अदालत केन्द्र सरकार की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें केन्द्र ने न्यायालय से यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के लिए अब विशेषज्ञ समिति से दिशा-निर्देश और सलाह लेने की जरूरत नहीं है. इस विशेषज्ञ समिति का गठन उच्चतम न्यायालय के 28 जनवरी, 2020 के आदेश पर किया गया था.
आदेश पारित करते हुए न्यायालय ने तब कहा था कि वन्यजीव संरक्षण के पूर्व निदेशक एम. के. रंजीत सिंह, उत्तराखंड में मुख्य वन संरक्षक, वन्यजीव प्रशासन धनंजय मोहन और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में डीआईजी (वन्यजीव) की सदस्यता वाली तीन सदस्यीय समिति भारत में अफ्रीकी चीतों को लाए जाने पर एनटीसीए का मार्गदर्शन करेगी.
मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में नामीबिया से लाए गए चीतों में से एक की मृत्यु होने के अगले ही दिन 28 मार्च को उच्चतम न्यायालय ने चीता कार्यबल में शामिल विशेषज्ञों की योग्यता और अनुभव जैसी जानकारी मांगी थी.
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