मलयालम समाचार चैनल मीडियावन (MediaOne) को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. मीडियावन चैनल को सुरक्षा मंजूरी के अभाव में प्रसारण लाइसेंस को नवीनीकृत करने से इनकार करने के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के आदेश को सुप्रीम ने खारिज कर दिया है. दरअसल मीडियावन चैनल को गृह मंत्रालय द्वारा सुरक्षा मंजूरी नहीं मिलने की वजह से केंद्र सरकार ने उसके प्रसारण लाइसेंस का नवीनीकृत करने से इंकार कर दिया था. जिसको चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी.
भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज इस मामले पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि एक मजबूत लोकतंत्र के लिए एक स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है. सरकार की नीतियों की आलोचना व अभिव्यक्ति की आजादी को प्रतिबंधित करने का आधार नहीं हो सकता. प्रेस की सोचने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है. किसी मीडिया संगठन के आलोचनात्मक विचारों को प्रतिष्ठान विरोधी नहीं कहा जा सकता है. जब ऐसी रिपोर्ट लोगों और संस्थाओं के अधिकारों को प्रभावित करती हैं, तो केंद्र जांच रिपोर्ट के खिलाफ पूर्ण छूट का दावा नहीं कर सकता है. लोगों को उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को उठाया नहीं जा सकता.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मीडिया का कर्तव्य है कि वह सत्ता से सवाल पूछे और नागरिकों को हार्ड फैक्ट्स (वस्तुस्थिति) से अवगत कराए. CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली SC बेंच ने आगे कहा कि सरकार को यह स्टैंड लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि प्रेस को सरकार का समर्थन करना चाहिए. सरकार की आलोचना किसी मीडिया/टीवी चैनल का लाइसेंस रद्द करने का आधार नहीं हो सकती. अदालत के समक्ष कार्यवाही में अन्य पक्षों को जानकारी का खुलासा करने के लिए सरकार को पूरी तरह से छूट नहीं दी जा सकती है. सभी जांच रिपोर्टों को गुप्त नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ये नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता को प्रभावित करती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि केवल 'राष्ट्रीय सुरक्षा' का आह्वान करके सभी सामग्री को गुप्त नहीं बनाया जा सकता है. अदालतें एक दस्तावेज़ से संवेदनशील हिस्सों को हटा सकती है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन करने के लिए न्यायिक कार्यवाही के दौरान इसे दूसरे पक्ष को बता सकती हैं. मीडिया द्वारा सरकार की नीतियों की आलोचना को राष्ट्रविरोधी नहीं करार दिया जा सकता है. मीडिया की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो सच को सामने रखें. लोकतंत्र मज़बूत रहे, इसके लिए मीडिया का स्वतंत्र रहना जरूरी है. उससे ये उम्मीद नहीं की जाती है कि वो सिर्फ सरकार का पक्ष रखें. मीडिया वन चैनल पर प्रतिबंध के केंद्र के फैसले को खारिज करते हुए SC ने ये टिप्पणी की है.
15 मार्च 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम समाचार चैनल 'मीडियावन' को अंतरिम राहत देते हुए चैनल पर केंद्र सरकार की ओर से लगाए गए प्रतिबंध को रद्द कर दिया और अंतरिम रूप से प्रसारण जारी रखने की अनुमति दे दी थी. CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने उसी आधार पर मीडियावन चैनल को काम जारी रखने की अनुमति दी जिस आधार पर चैनल सुरक्षा क्लीयरेंस वापस लिए जाने से पहले काम कर रहा था. पीठ ने अगले दो सप्ताह के अंदर एक जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश भी दिया था.
सुप्रीम कोर्ट जिस याचिका पर सुनवाई कर रही थी वह मीडियावन ने केरल हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती देते हुए दाखिल की है. हाईकोर्ट ने समाचार चैनल के लाइसेंस को रद्द करने के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के आदेश को बरकरार रखा था. दरअसल , केरल हाईकोर्ट को कुछ दस्तावेज केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षा उपायों का हवाला देते हुए सीलबंद लिफाफे में सौंपे गए थे.
सीलबंद लिफाफे में दस्तावेज प्रस्तुत करने के कार्य के संबंध में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि अदालत की कार्यवाही का सार यह है कि एक पक्ष द्वारा भरोसा की गई किसी भी चीज़ को दूसरे पक्ष के सामने प्रकट किया जाना चाहिए. केंद्र सरकार यह नहीं कह रही कि वे अपराधी हैं. यहां तक कि जब आप चार्जशीट दायर करते हैं, चाहे वह कितनी भी संवेदनशील हो, चार्जशीट सभी सामग्री का खुलासा करती है. हम उस सीमा पर भी नहीं हैं. यहां आप सुरक्षा मंज़ूरी पर हैं. आप अपने सूचना के स्रोतों को संशोधित कर सकते हैं, लेकिन क्या आप उन्हें अस्वीकार कर सकते हैं, जिसके आधार पर आप इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं? नज़रबंदी के मामले में भी राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत, आपको नज़रबंदी का आधार देना होगा. अब यहां आप केवल यह कहते हैं कि MHA ने सुरक्षा मंज़ूरी से इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा था कि हालांकि संबंधित अपलिंकिंग दिशानिर्देश, वास्तव में इस बात पर विचार करते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के उल्लंघन से अनुमति से इनकार किया जाएगा.
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