केंद्र सरकार ने 11 सालों में पहली बार, 24 फरवरी को अखिल भारतीय घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण ( Household Consumption Expenditure Survey) के निष्कर्ष जारी किए. डेटा से पता चलता है कि ग्रामीण खर्चे में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. पिछले दो दशक में ग्रामीण और शहरी परिवारों में औसत मासिक खर्च लगभग समान हो गया है. नए सर्वे के मुताबिक, भारतीय घरों में औसत मासिक प्रति व्यक्ति खर्च (एमपीसीई) 2011-12 के बाद से शहरी परिवारों में 33.5% बढ़कर 3,510, जबकि ग्रामीण घरों में 40.42% बढ़कर 2,008 तक पहुंच गया.
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साल 2022-23 में औसत प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू कंजप्शन खर्च (एमपीसीई) ग्रामीण भारत में 3,773 और शहरी क्षेत्रों में 6,459 था. साल 2011-12 में ग्रामीण और शहरी खर्चों में अंतर 83.9% से 71.2% , 2009-10 में 88.2% और 2004-05 में 90.8% से कम होकर 71.2% हो गया.
18 सालों में, ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ा औसत MPCI
मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिक्स की वेबसाइट पर एक फैक्टशीट से पता चला है कि 18 सालों में, ग्रामीण क्षेत्रों में औसत एमपीसीई छह गुना से ज्यादा बढ़ा है, जो शहरी क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा है. साल 2004-05 में ग्रामीण कंजप्शन 579 और शहरी में कंजप्शन 1,105 था, जो ग्रामीण क्षेत्रों में 552% और शहरी क्षेत्रों में 484% की बढ़ोतरी को दिखाता है.
अखिल भारतीय घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) अगस्त 2022 और जुलाई 2023 के बीच किया गया था. डेटा जीडीपी, खुदरा मुद्रास्फीति और गरीबी स्तर जैसे अहम आर्थिक संकेतों का आकलन करने के लिए अहम है.
2022-23 में, भारत की ग्रामीण आबादी के निचले 5% का औसत एमपीसीई 1,373 था, जबकि शहरी क्षेत्रों में इसी श्रेणी में यह 2,001 था. टॉप 5% के लिए, औसत एमपीसीई ग्रामीण क्षेत्रों में 10,501 और शहरी क्षेत्रों में 20,824 था.
सिक्किम में सबसे ज्यादा, छत्तीसगढ़ में सबसे कम खर्च
राज्यों में खर्च के तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि यह सिक्किम में सबसे ज्यादा खर्च (ग्रामीण 7,731 और शहरी 12,105) और छत्तीसगढ़ में सबसे कम खर्च (ग्रामीण 2,466 और शहरी 4,483) है. खाने पर हर महीने का खर्चा ग्राणीण इलाकों में 1,750 और शहरी इलाकों में 2,530 पाया गया, जबकि खाने से हटके होने वाला खर्च ग्राणीम इलाकों में 2,023 और शहरी इलाकों में 3,929 था. बता दें कि घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण हर पांच साल में किया जाता है. लेकिन डेटा की क्वालिटी पर उठने वाले मुद्दों की वजह से 2017-18 का डेटा जारी नहीं किया गया था. आखिरी सर्वे सार्वजनिक सर्वे साल 2011-12 में जारी किया गया था.
2017-18 के सर्वे में क्या था?
साल 2019 में, सरकार ने कहा था कि 2017-18 के सर्वे में कंजप्शन पैटर्न और परिवर्तन की दिशा में अहम बदलाव दिखाया गया है. डेटा का मूल्यांकन करने वाले एक विशेषज्ञ पैनल ने विसंगतियों को नोट कर कार्यप्रणाली में बदलाव की सिफारिश की थी. सरकार ने कहा था कि नेशनल अकाउंट्स स्टेटिक्स पर एडवाइजरी कमेटी ने अलग से सिफारिश की थी कि जीडीपी सीरीज के पुनर्निर्धारण के लिए 2017-18 नए आधार वर्ष के रूप में इल्तेमाल करने के लिए उपयुक्त साल नहीं है
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