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'इंग्लिश नॉवेल पढ़ें, लेकिन प्रेमचंद को मत छोड़ें', RSS प्रमुख मोहन भागवत ने बताया नई शिक्षा नीति क्यों जरूरी?

शिक्षा प्रणाली को लेकर सवाल का जवाब देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि पिछले समय में मिशनरी स्कूल और पब्लिक स्कूल में शिक्षा के नाम पर हजारों वर्ष पुराने इतिहास को धूमिल किया जा रहा है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्ष पूरे होने पर नई दिल्ली में आयोजित व्याख्यानमाला कार्यक्रम '100 वर्ष की संघ यात्रा: नए क्षितिज' के तीसरे दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने प्रेस कॉफ्रेंस में कई सवालों के जवाब दिए. उन्होंने नई शिक्षा नीति की जरूरत और भारत की शिक्षा प्रणाली से जुड़े सवालों पर भी जवाब दिए. मोहन भागवत ने बताया कि नई शिक्षा नीति को लागू किया जाना क्यों जरूरी था?

शिक्षा प्रणाली को लेकर सवाल का जवाब देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि पिछले समय में मिशनरी स्कूल और पब्लिक स्कूल में शिक्षा के नाम पर हजारों वर्ष पुराने इतिहास को धूमिल किया जा रहा है. तकनीक और आधुनिकीकरण के युग में संस्कार और परंपरा के संरक्षण की चुनौती मिल रही है. 

मोहन भागवत ने कहा कि तकनीकी और आधुनिकता का जैसे-जैसे ज्ञान बढ़ता है, नई तकनीक आती है. भलाई के लिए इन्हें खोजा जाता है. इनका उपयोग करना मनुष्य के हाथ में है. अगर कोई दुष्परिणाम है तो उससे बचने के प्रयास होने चाहिए. तकनीक मनुष्य का मालिक न बन जाए, इसीलिए शिक्षा आवश्यक है.

तकनीक अशिक्षित हाथ में पड़ जाए तो दिक्कत बढ़ती है. केवल स्कूली शिक्षा ही नहीं, छात्र सुसंस्कृत बने ऐसी शिक्षा होनी चाहिए. अपने देश की शिक्षा बहुत पहले लुप्त कर दी गई. नई शिक्षा पद्धति लाई गई. विदेशियों की गुलामी में हम 
उन्हें इस देश पर राज करना था. इस नजरिए से उन्होंने शिक्षा प्रणाली बनाई. लेकिन अब स्वतंत्र होने के बाद हमें सिर्फ राज्य नहीं चालाना नहीं है. 

नई शिक्षा नीति में बदलाव आवश्यक है. पिछले कुछ वर्षों में कई प्रयास हुए हैं, कई प्रयास किए जाने बाकी हैं. शिक्षा प्रणाली में बदलाव होने चाहिए. अपने मूल्यों, की संस्कृति की शिक्षा देनी चाहिए. इसमें धर्म नहीं देखा जाना चाहिए. समाज के नाते अलग हैं. हमारी संस्कृति अच्छी है. ये शिक्षा मिलनी चाहिए. गुड मैनर एक तरह से यूनिवर्सल है. 

मोहन भागवत ने आगे कहा कि इंग्लिश नॉवेल आप पढ़ें. हम अंग्रेज नहीं हैं हमें अंग्रेज नहीं बनना है. लेकिन अंग्रेजी भाषा सीखने में क्या दिक्कत है? मुझे भी पिताजी ने कई इंग्लिश नॉवेल पढ़ाए. इससे मेरे हिंदुत्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. 
लेकिन अंग्रेजी लेखकों को पढ़े और प्रेमचंद जैसे भारतीय कहानीकारों को छोड़ दें, ये ठीक नहीं है. 

रिलीजियस एजुकेशन अलग है. इसकी शिक्षा सभी स्कूलों में मिले, मिशनरी स्कूलों में भी. अच्छे भारतीय संस्कार सभी को मिलने चाहिए. मिशनरी स्कूलों में जब होंगे, तब होंगे, लेकिन हम अपनी यहां शुरू कर सकते हैं. शुरू कर दिया गया है. 

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