
- आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने नेक लोगों से दोस्ती और गलत काम करने वालों को नजरअंदाज करने की सलाह दी
- भागवत ने धर्म को सभी को सुख देने वाला बताया और धर्म की रक्षा को सृष्टि में सद्भाव का आधार माना
- भागवत ने आत्मनिर्भर राष्ट्र के लिए घर से शुरुआत करने पर जोर दिया. परिवार में बातचीत का महत्व समझाया
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 100 वर्ष पूर्ण होने पर बुधवार को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नेक और सज्जन लोगों से दोस्ती करने और उन लोगों को नजरंदाज करने की सलाह दी, जो नेक काम नहीं करते. व्याख्यानमाला कार्यक्रम ‘100 वर्ष की संघ यात्रा: नए क्षितिज' के दूसरे दिन भागवत ने कहा कि अच्छे कामों की सराहना करनी चाहिए, भले ही वे विरोधियों द्वारा क्यों न किए गए हों.
उन्होंने कहा कि गलत काम करने वालों के प्रति क्रूरता नहीं बल्कि करुणा दिखाएं. सच्चा धर्म वह है, जो आरंभ, मध्य और अंत में सभी को हमेशा सुख प्रदान करे. जहां दुख पैदा होता है, वह धर्म नहीं है. धर्म त्याग की मांग करता है और धर्म की रक्षा करके हम सभी की रक्षा करते हैं और सृष्टि में सद्भाव सुनिश्चित करते हैं.
दुनिया में अशांति-क्रूरता बढ़ रही
भागवत ने कहा कि एक स्वयंसेवक जानता है कि हम हिंदू राष्ट्र के जीवन मिशन के विकास की दिशा में काम कर रहे हैं. हिंदुस्तान का उद्देश्य ही विश्व का कल्याण करना है. उन्होंने कहा कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र संघ का गठन हुआ और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई. तीसरा विश्व युद्ध भले ही सीधे तौर पर न हुआ हो, लेकिन फिर भी दुनिया में शांति नहीं है. अशांति है और क्रूरता बढ़ रही है.
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि स्वामी विवेकानंद कहा करते थे, प्रत्येक राष्ट्र के पास देने के लिए एक संदेश, पूरा करने के लिए एक मिशन और एक नियति होती है. भारत की नियति क्या है? उन्होंने कहा था कि भारत धर्म में निहित एक राष्ट्र है. समय-समय पर, धर्म में दुनिया का मार्गदर्शन करना भारत की भूमिका है. इसके लिए भारत को तैयार रहना चाहिए. यदि दुनिया की वर्तमान समस्याओं का समाधान करना है तो हम धर्म के सिद्धांतों पर विचार किए बिना कार्य नहीं कर सकते.
संघ शाखाओं ने 3 पीढ़ियों का मार्गदर्शन किया
उन्होंने कहा कि धर्म में कोई धर्मांतरण नहीं होता. धर्म सत्य का सिद्धांत है, जिस पर सब कुछ चलता है. विदेशों में आरएसएस की शाखाओं ने हिंदुओं की तीन पीढ़ियों का मार्गदर्शन किया है, अनुशासन को बढ़ावा दिया है, उत्पादक जीवन जीने, बुरी आदतों से बचने और पारिवारिक एवं सामुदायिक मूल्यों को मजबूत करने में मदद की है.
भागवत ने कहा कि भारत ने हमेशा संयम बरता है और अपने नुकसान की परवाह नहीं की है. नुकसान होने पर भी, उसने मदद की पेशकश की है. यहां तक कि उन लोगों की भी मदद की है, जिन्होंने उसे नुकसान पहुंचाया. व्यक्तिगत अहंकार शत्रुता पैदा करता है, लेकिन उस अहंकार से परे हिंदुस्तान है. भारत में जितनी बुराई दिखती है, समाज में उससे चालीस गुना ज्यादा अच्छाइयां मौजूद हैं.
हिंदू विचार वसुधैव कुटुंबकम में निहित
संघ प्रमुख ने कहा कि समाज का कोई भी व्यक्ति अछूता नहीं रहना चाहिए. हमें अपना कार्य भौगोलिक रूप से विस्तारित करना होगा. गांव-गांव, घर-घर तक, समाज के सभी स्तरों तक पहुंचना होगा. हिंदू विचार 'वसुधैव कुटुंबकम' में निहित है. यह सभी मार्गों को महत्व देता है. उन्होंने आगे कहा कि भारत के अधिकांश पड़ोसी क्षेत्र कभी भारत का हिस्सा हुआ करते थे. लोग, भूगोल, नदियां और जंगल वही हैं, सिर्फ नक्शे पर रेखाएं खींची गई हैं. हमारा कर्तव्य इन लोगों में अपनेपन की भावना को बढ़ावा देना है.
भागवत ने कहा कि परिवार के सभी सदस्यों को सप्ताह में एक बार एक निश्चित समय पर मिलना चाहिए. घर पर भक्तिभाव से भजन करना चाहिए. घर का बना खाना खाना चाहिए और तीन-चार घंटे चर्चा में बिताने चाहिए. कोई हुक्म नहीं होना चाहिए, सिर्फ इस बारे में बातचीत होनी चाहिए कि हम कौन हैं. हमारे पूर्वज, पारिवारिक परंपराएं क्या हैं. क्या उचित है और क्या अनुचित है. आज क्या बदल सकता है और क्या बदलने की आवश्यकता है.
आत्मनिर्भर राष्ट्र का प्रयास घर से शुरु हो
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि मैं हर दिन अपने और अपने परिवार के लिए कमाता और खर्च करता हूं, लेकिन मैं और मेरा परिवार अपने देश, समाज और धर्म के लिए क्या करते हैं? ये छोटे-छोटे दैनिक कार्य हैं, जो बच्चे भी कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता हर चीज की नींव है. हर पहलू में हमारा राष्ट्र आत्मनिर्भर होना चाहिए और यह प्रयास घर से शुरू होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि अगर कोई घर अच्छी तरह से बना है, लेकिन उसमें मंदिर नहीं है तो हिंदू परंपरा के अनुसार उसे घर नहीं माना जा सकता. भागवत ने कहा कि हर परिस्थिति में संविधान, नियम और कानून का पालन होना चाहिए. अगर कोई उकसावे की स्थिति में हो तो भी कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए. अगर कोई हमारा अपमान करता है या हमें नुकसान पहुंचाता है तो हमें पुलिस को सूचना देनी चाहिए.
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