
- कविता को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) से तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है.
- कविता ने सोमवार को ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करके चचेरे भाई हरीश राव पर हमला बोला था.
- बड़े भाई बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष KTR के बढ़ते कद से भी कविता असहज बताई जाती हैं.
बीआरएस एमएलसी के. कविता पार्टी से बाहर किये जाने के एक दिन बाद बुधवार को मीडिया के सामने आईं और बताया कि पार्टी में क्या चल रहा है. के. कविता ने बताया कि उन्होंने हमेशा आम लोगों के मुद्दों को उठाया. लेकिन उनके ऊपर गलत केस डाले गए. पार्टी के कुछ नेता उनके खिलाफ साजिश रच रहे हैं. बीआरएस में उन्हें टारगेट किया जा रहा था.
15 मार्च 2024 को शाम लगभग 5:20 बजे हैदराबाद के बंजारा हिल्स स्थित आवास से प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दिल्ली शराब नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कविता कल्वाकुंतला को जब गिरफ्तार किया था, तब समर्थकों के अलावा भाई और बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामाराव (KTR) और चचेरे भाई व पार्टी के वरिष्ठ नेता टी. हरीश राव उनके साथ मौजूद थे.
27 अगस्त 2024 को कविता सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद जब दिल्ली की तिहाड़ जेल से लगभग 165 दिनों की रिहा हुईं, तब भी जेल के बाहर केटीआर और हरीश राव मौजूद थे. लेकिन लगभग एक साल बाद हालात या कहें रिश्ते पूरी तरह बदल चुके हैं. कविता ने सोमवार को खुली प्रेस कॉन्फ्रेंस करके चचेरे भाई हरीश राव पर हमला बोला, और स्थिति यहां तक पहुंच गई कि अगले ही दिन कविता को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) से तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया.
पिता KCR के आदेश पर निलंबन
बीआरएस महासचिव एस. भरत कुमार ने बताया कि काविता की हालिया टिप्पणियां और कथित पार्टी विरोधी गतिविधियां पार्टी को नुकसान पहुंचा रही थीं, इसलिए अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव (KCR) ने उन्हें निलंबित करने का आदेश दिया है. कविता ने अपने चचेरे भाइयों – पूर्व मंत्री टी. हरीश राव और राज्यसभा सांसद योगिनापल्ली संतोष कुमार को कालेश्वरम सिंचाई परियोजना में हुई अनियमितताओं का दोषी बताया था और पिता KCR छवि को नुकसान पहुंचाने का भी आरोप लगाया था.
पारिवारिक मतभेद और विवाद
के. कविता तिहाड़ जेल से रिहा होने के बाद से ही पार्टी के अंदर खुद को असहज महसूस कर रही थीं. उनके करीबियों का कहना है कि कविता शराब घोटाले में अपनी गिरफ्तारी और उन पर लगे आरोपों पर बीआरएस नेतृत्व द्वारा समुचित विरोध और खंडन न करने से व्यथित थीं. उन्हें पार्टी की सोशल मीडिया से भी समर्थन ना मिलने का मलाल था, जो कि केटीआर के अधीन है. ऐसा भी दावा है कि बड़े भाई और बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामाराव (KTR) के पार्टी के अंदर बढ़ते कद से भी कविता असहज थीं.
कविता को ये मलाल
कविता जेल से बाहर आने के बाद राज्य की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाना चाहती थीं, पर उन्हें लग रहा था कि पार्टी उन्हें मौका नहीं दे रही है. इसी दौरान उन्होंने पार्टी के कई फैसलों पर सार्वजनिक तौर पर सवाल उठाए. अप्रैल 2025 में बीआरएस की 25वीं वर्षगांठ का आयोजन वारंगल में किया गया था, वहां भी उन्हें तवज्जो नहीं मिली.
इसके बाद मई में कविता ने केसीआर को खुला पत्र लिखा. इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि वह भाजपा की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) पर पर्याप्त हमले नहीं कर रहे हैं. वह पत्र लीक हुआ तो परिवार का विवाद खुलकर बाहर आ गया. कविता उस समय विदेश में थीं. उन्होंने वापसी करते ही खुलेआम पार्टी के नेताओं पर निशाना साधना शुरू कर दिया.
भाइयों के खिलाफ मोर्चा खोला
कविता ने दावा किया कि जब वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में थीं, तब कुछ नेताओं ने उनसे बीआरएस और भाजपा के विलय की बात कही, जिसे उन्होंने सख्ती से खारिज कर दिया था. दलीय अंतर्विरोध तब और बढ़े, जब काविता ने प्रेस वार्ता में अपने भाई KTR की आलोचना की और उन पर सोशल मीडिया के जरिए पार्टी चलाने का आरोप लगाया.
हरीश राव और संतोष राव इन दिनों केसीआर के करीबी माने जाते हैं. उनका पार्टी पर भी अच्छा खासा प्रभाव है. भाई बहन के विवाद में पिता केटीआर के समर्थन में खड़े थे, कविता इससे भी नाराज थीं.
कविता की राह नहीं आसान
बीआरएस से अलग होने के बाद कविता अब क्या करेंगी? सूत्रों की मानें तो कविता अपने संगठन तेलंगाना जागृति को ज्यादा मजबूत और राजनीतिक रूप से सक्रिय कर सकती हैं. अब सबकी निगाहें बुधवार (3 सितंबर) पर टिकी हैं, जब कविता मीडिया के सामने आकर अपने आगे की रणनीति का खुलासा कर सकती हैं.
राज्य की राजनीति पर क्या असर?
अब जबकि कविता को पिता केसीआर ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है, ऐसे में बीआरएस के वफादार कार्यकर्ता चिंतित हैं. उनका मानना है कि KCR परिवार सत्ता खोने के बाद संगठित होकर लड़ने के बजाय बिखर रहा है. इसका असर पार्टी पर भी पड़ने की संभावना है.
यह पारिवारिक विवाद कांग्रेस और बीजेपी के लिए वरदान साबित हो सकता है. बीआरएस एक मजबूत पार्टी रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में भी पार्टी का खासा प्रभाव है. ऐसे में पार्टी में दरार का सीधा फायदा कांग्रेस और बीजेपी को मिल सकता है.
( रिपोर्ट- आशीष कुमार पांडे)
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