दिल्ली विकास प्राधिकरण इस साल लोगों के लिए करीब 25,000 फ्लैट्स लेकर आई है। दक्षिणी दिल्ली जैसे पॉश इलाके से लेकर नरेला और रोहिणी तक लोगों को घर मुहैया कराये जाने की तैयारी है, लेकिन क्या ये नए फ्लैटस लोगों के लिए फायदे का सौदा हैं। शायद कुछ इलाकों में ऐसा नहीं।
दक्षिणी दिल्ली से करीब 50 किलोमीटर दूर बाहरी दिल्ली का नरेला इलाका विकास की रफ्तार से अब भी दूर लगता है। यहां डीडीए करीब 10000 नए फ्लैट्स तैयार कर रहा है, लेकिन यहां के हालात ऐसे हैं कि निवेशकों को ज़्यादा फ़ायदा होता नहीं दिखता।
नए फ्लैट के पास ही डीडीए के पुराने फ्लैट हैं। नरेला के सेक्टर 10 में करीब 1800 वन बेडरूम फ्लैट हैं। यहां 1993 से लेकर अब तक फ्लैट आवंटित हो रहे हैं। फिर भी करीब 40 प्रतिशत फ्लैट्स खाली पड़े हैं। न इनके उचित दाम मिल रहे हैं और न ही खरीददार।
यहां के प्रापर्टी डीलर एएस खत्री के मुताबिक, यह इलाका विकास से कोसों दूर है। कोई मेट्रो कनेक्टिविटी नहीं है। सड़कें जर्जर हालत में हैं। शॉपिंग कॉम्प्लेक्स नहीं हैं। बच्चों के लिए अच्छे स्कूल नहीं हैं। कॉलेज और अस्पताल नहीं है। और सबसे बड़ी बात इलाके में सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम नहीं है। ऐसे में प्रापर्टी की कीमत स्थिर सी हो गई है।
इसके पास में ही है सेक्टर बी-2 है। यहां के वन वेडरूम फ्लैट 2006 में लोगों को आवंटित हुए। यहां निवेश करने वाले लोगों को लगा कि ये फ्लैट उन्हें अच्छा रिटर्न देंगे, लेकिन यहां आज भी सन्नाटा पसरा है। कुल 2,420 फ्लैटस में करीब 500 ही भर पाए हैं। हालत ये हैं कि इव फ्लैटस में ट्रांसपोर्टरों ने अपने गोदाम बना रखे हैं।
नरेला में इस साल डीडीए करीब 10,000 से ज्यादा फ्लैट आवंटित करेगा, जिनमें एलआइजी की कीमत 14 लाख से 29 लाख रुपये है। जबकि पहले से बने फ्लैट इससे कम या बराबर कीमत पर मिल रहे हैं।
नई स्कीम में एमआइजी की कीमत 42 से 70 लाख रुपये है, जबकि बिल्डर इतनी कीमत में एचआइजी आकार के फ्लैट देने को तैयार हैं। दक्षिणी दिल्ली में भले ही एलआईजी का किराया 8 से 15 हजार हो, लेकिन यहां के बाशिंदों ने बताया कि उन्हें एक फ्लैट का किराया 2 से 3 हजार तक ही मिलता है।
रोहिणी के भी पुराने डीडीए फ्लैटस का कुछ ऐसा ही हाल है। यहां की कच्ची और टूटी सड़क के रास्ते हम रोहिणी सेक्टर 28 के बागवान अपार्टमेंट पहुंचे। दूर से देखने में यहां के फ्लैट खूबसूरत दिखते हैं, लेकिन इनके रखरखाव की हालत उतनी ही बदसूरत है।
महज सात साल पुराने इन फ्लैट की दीवारों के प्लास्टर टूट−टूट कर गिर रहे हैं। सीवर और ड्रेनेज के पाइप उखड़ रहे हैं। अंदर की सड़कें भी बदहाल हैं।
यों तो यहां पानी के लिए 2 बूस्टर पंप लगे हैं, लेकिन फिर भी पीने का पानी नहीं मिलेगा। सीवर के पानी को निकालने की यहां लोग वॉटर पंप का इस्तेमाल कर रहे हैं। पंप के जरिये सीवर के पानी को अपार्टमेंट के सामने के ग्राउंड में भरा जा रहा है, यानि बीमारियों को सीधा न्योता दिया जा रहा है।
डीडीए ने यहां 830 फ्लैट 2007 में आवंटित किए थे, लेकिन बदहाली के चलते अभी भी करीब 300 फ्लैट खाली है, जिनमें कुछ इस बार आवंटित होने हैं। खाली पड़े फ्लैटस की हालत खंडहरों की तरह है, यानी आपको ये फ्लैट मिले तो उनकी मरम्मत में लाखों रुपये खर्च करने होंगे।
ये अलग बात है कि लोग फिर भी नई स्कीम पर टूटे पड़े हैं, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि ये प्राइवेट बिल्डरों के मुक़ाबले सस्ते का सौदा है और कई मायनों में है भी।
This Article is From Sep 02, 2014
डीडीए की हकीकत : सुविधाओं के अभाव में खस्ताहाल पड़े हैं पुराने फ्लैट्स
- Reported by: Mukesh Singh Senger
- India
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सितंबर 02, 2014 18:09 pm IST
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Published On सितंबर 02, 2014 17:51 pm IST
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Last Updated On सितंबर 02, 2014 18:09 pm IST
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नई दिल्ली: