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This Article is From Oct 19, 2022

रवीश कुमार का प्राइम टाइम: बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई, जब केंद्र ने दी मंज़ूरी तो ये बात क्यों छुपाई?

जब 15 अगस्त के दिन बलात्कार (Rape) के मामले में सज़ा पाए 11 कैदियों को रिहा किया गया, तब कितने सवाल उठे कि बिलकिस बानो (Bilkis Bano) के साथ बलात्कार और उनके परिवार के कई सदस्यों की हत्या में शामिल इन लोगों को सज़ा पूरी होने से पहले क्यों छोड़ा गया? गोदी मीडिया से लेकर मंत्री तक सब चुप ही रहे.

नमस्कार मैं रवीश कुमार,

जब पंद्रह अगस्त के दिन बलात्कार के मामले में सजा काट रहे ग्यारह कैदियों को रिहा किया गया तब कितने ही सवाल उठे. बिलकीस बानो के साथ बलात्कार और उनके परिवार के कई सदस्यों की हत्या में शामिल इन सभी लोगों को सजा पूरी होने से पहले क्यों छोडा गया? गोदी मीडिया से लेकर मंत्री तक सब चुप ही रहे. यदे से केंद्र सरकार तभी बोल सकती थी कि बलात्कार के मामले के इन दोषियों को समय से पहले रिहा करने की मंजूरी गृहमंत्रालय ने दी. मित शाह के मंत्रालय की मंजूरी के बाद राज्य सरकार ने दी उस समय की मीडिया रिपोर्ट को देखिए तो सब की पड़ताल पर टिकी थी. घूम रही थी कि गोधरा की कमिटी ने मंजूरी दी. तब केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय क्यों चुप रहा. उसी समय आगे आकर कहना था की हाँ, हमारे मंत्रालय ने इन आरोपियों को इन कैदियों को समय से पहले क्षमादान देने की मंजूरी दी और वे पंद्रह अगस्त के दिन रिहा कर दिए गए. सारा देश पंद्रह अगस्त को एक अलग ही टॅाक में लगा दिया गया कि घर घर तिरंगा फहराना लोग लग भी गए कि देशभक्ति साबित कर देनी है. यहाँ रिकॉर्ड बन रहा था, वहाँ रिकॉर्ड बन रहा था और उसी बीच गुजरात में ग्यारह बलात्कारी और हत्या के दोषी चुपके से रिहा किए जा रहे हैं. उनकी सजा कर समय से पहले रिहा किया गया था. घर घर तिरंगा से इतनी तो देशभक्ति आने ही चाहिए कि जब सवाल उठ गया तभी गृह मंत्रालय इस सच का सामना करता और कह देता कि उसके मंत्रालय की मंजूरी के बाद ही इन्हें रिहा किया गया है.

एक सवाल पूछा जाना चाहिए कि यह बात केंद्र सरकार खुद से क्यों नहीं बता सकी? अगर उसे अपने फैसले में इतना यकीन था तो वो क्यों नहीं बता सकी? फिर एक सवाल आप और पूछिए. अस्सी साल की सेवानिवृत प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा, पूर्व सांसद सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस की सांसद मोहुआ मोइत्रा और स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर नहीं की होती. एक ग्यारह बलात्कारियों की रिहाई को चुनौती ना दी गई होती तो क्या यह सच बाहर आता? इन चार महिलाओं ने अगर साहस ना दिखाया होता तो क्या यह सच बाहर आता? इन चारों महिला याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में ना कहा होता कि जिन्हें रिहा किया गया है, वापस जेल भेजा जाए तो क्या यह सच बाहर आता? तेईस अगस्त, पच्चीस अगस्त, नौ सितंबर तक सुनवाई हुई. मगर गृह मंत्रालय ने एक बार भी नहीं कहा कि उसकी मंजूरी के बाद राज्य सरकार ने रिहाई की मंजूरी दी है. तो इस एक सच को बाहर लाने में आप इन चारों महिलाओं का शुक्रिया अदा कीजिए. पच्चीस अगस्त को तत्कालीन चीफ जस्टिस की बेंच को कहना पडा कि इनकी रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश नहीं दिया था. इस पंक्ति को याद रखिएगा, आगे बताऊंगा. कोर्ट ने तब कहा कि हमने गुजरात को केवल कानून के अनुसार आगे बढने को कहा.

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सफाई दे दी. तब तो गृह मंत्रालय को आगे आकर कहना था कि बलात्कारियों को रिहा करने के मामले में हम ने भी मंजूरी दी है. उसके बाद गुजरात सरकार ने मंजूरी दी है. अगर ये याचिका कोर्ट में दायर ना होती तो सोचिए की आप कितना कुछ नहीं जान पाते. इसी तरह अनेक मामलों में आप कुछ नहीं जानते हैं. पच्चीस अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह बिलकिस बानो के ग्यारह दोषियों की रिहाई का परीक्षण करना चाहता है. नोटिस जारी किया गया गुजरात सरकार से और जवाब मांगा गया. जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा कि सवाल यह है कि गुजरात के नियमों के तहत दोषी छूट के हकदार है या नहीं. नौ सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से कहा की रिहाई के मामले में जितने भी दस्तावेज है रिकॉर्ड पर लाए गए. अब जब आदेश के रिकॉर्ड सामने आए हैं तो सच बाहर आया है कि गृह मंत्रालय की मंजूरी भी ग्यारह बलात्कारियों के क्षमादान और समय से पहले रिहाई में शामिल है. आज सुप्रीम कोर्ट में को लेकर सुनवाई हुई है. हम के डिटेल और आज की सुनवाई की रिपोर्ट पर आएंगे, लेकिन क्रम से देखते चलिए की आपकी आँखों पर पट्टी कैसे चिपकाई जाती है वो भी खुले आपकी.

आप देखते हुए भी ना देखिए क्योंकि अब जनता का एक बड़ा सा हिस्सा दिमाग में भरे जहर से देखता है, नजर से नहीं. अगर नजर से जानता देखती तो ये सवाल करने का नैतिक साहस रखती की क्या इस समाज में इस तरह से बलात्कार और हत्या के दोषियों को रिहा किया जाएगा. रिहा होने पर टीका लगाकर सम्मान किया जाएगा, फूल माला पहनाया जाएगा और सवाल उठने के बाद भी इनका फिर से सम्मान होगा और मिठाई खिलाई जाएगी. जनता का जो हिस्सा बलात्कार के मामले में कम से कम फांसी की मांग करता था. वही हिस्सा बिलकिस के बलात्कारियों के मामले में इतने काम पर कैसे चुप रह गया. राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार को राष्ट्र पत्नी कह देने पर कितना हंगामा हुआ, संसद तक में बयानबाजी हुई. कांग्रेस के नेता ने मांग मगर इन तस्वीरों के सामने आने के बाद भी वे सारे लोग चुप रहे जो एक आदिवासी महिला के सम्मान के नाम पर कर्ज रहे थे. 

बिपिनचंद्र जोशी, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, बाका भाई वोहानिया, केशर भाई वोहानिया, जसवंत गोविंद, प्रदीप मोरदिया, राजूभाई सोनी, नितेश भट्ट और रमेश चंदाना. जैसे ही ये लोग बाहर आए अगर सरकार उसी समय पूरी बात बताते तो लगता की सरकार को अपने फैसले में यकीन तो यह भी लगता है कि सरकार इस बात में यकीन रखती है कि इन का आचरण अच्छा रहा है इसलिए समय से पहले छोडा जाए क्योंकि इस आधार पर तमाम समय से पहले रिहा किए जाते हैं. आखिर क्या वजह थी कि गृह मंत्रालय ने तब नहीं कहा जबकि अमित शाह का मंत्रालय इसकी जवाबदेही ले सकता था. उस समय गृह मंत्रालय का चुप रह जाना इस मामले को संदेह के घेरे में लाता है. गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दे दिया है. उस हलफनामे में कहा है कि गृह मंत्रालय ने इनकी रिहाई की मंजूरी दी. दो हजार उन्नीस में महात्मा गाँधी की डेढ सौवीं जयंती के मौके पर जब कैदियों की विशेष का फैसला किया गया तब ध्यान रखा गया कि ऐसे मामलों के कैदी रिहा ना हो जाए जो आजीवन सजा काट रहे हैं. इस समय आजादी का अमृतकाल चल रहा है. इस की खुशी में भी सजायाफ्ता कैदियों को छोड़ने का फैसला हुआ, लेकिन इस बार भी यानी जून दो हजार बाईस में केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को आगाह किया कि जो संगीन मामलों में आजीवन सजा काट रहे हैं उनकी ना हो. फिर बिलकिस बानो के साथ बलात्कार करने और परिवार के सदस्यों की हत्या करने वालों को क्यों दी गई?

क्या इसके जरिए कोई राजनीतिक संदेश दिया जा रहा था? मतदाता के किसी वर्ग को इशारा किया जा रहा था. आज के दौर में ये सवाल इतना भी मामूली नहीं है. हम उस समाज को नहीं जानते जो ऐसे मामलों को अपने दम में भरे जहर से देखता है, नजर से नहीं. गृह मंत्रालय ने मंजूरी दी लेकिन उस समय तक किसी को भनक तक नहीं लगने दी. यहाँ तक कि कपिल सिब्बल जैसे वकील चारों महिला याचिकाकर्ताओं और प्रेस को भी नहीं , वरना याचिका में ये सवाल मुख्य सवाल होता कि गृह मंत्रालय ने कैसे मंजूरी दे दी. अलग से गृह मंत्रालय से सारे रिकॉर्ड मंगाए जाते हैं कि किस स्तर की बैठक में इसका फैसला हुआ. फैसले से पहले गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से क्या कहा? देखना होगा कि ये सब में है या नहीं या सुनवाई के दौरान इस पहलू पर किस तरह से सवाल जवाब होते हैं. क्या गृहमंत्री अमित शाह इसके बारे में कोई बयान देंगे? अपने मंत्रालय के फैसले की प्रक्रिया के बारे में बताएँगे. गोदी मीडिया उनसे ये सवाल पूछ पाएगा. याचिकाकर्ताओं के सवाल भी उस समिति के इर्द गिर्द घूम रहे थे जिसने ग्यारह बलात्कारियों और हत्यारों की सजा की. सब की नजर वहीं थी कि उसके सदस्य किस पार्टी के हैं, कौन -कौन हैं, किसने क्या कहा किसी की भी नजर गृह मंत्रालय की तार नहीं थी. बल्कि याचिकाकर्ता का एक मुख्य सवाल यह भी था कि जिस केस में सीबीआई ने जांच की है उसमें केंद्र सरकार से पूछे बगैर किसी को माफी देना सेक्शन चार सौ पैंतीस का उल्लंघन नहीं है.

प्रश्नवाचक चिन्ह इस सवाल को गौर से समझिए. सीबीआई की मंजूरी पर शक है मगर गृहमंत्रालय पर नहीं . वरना यह भी एक मुख्य सवाल तो होता ही है. बताइए जिस दिन खबर आती है कि गृह मंत्रालय ने एक महिला के साथ छेड़खानी करने के आरोप में एक आईएएस अफसर जितेन्द्र नारायण को निलंबित कर दिया. कोर्ट के फैसले के आधार पर नहीं बल्कि जाँच रिपोर्ट के आधार पर. उसी दिन खबर आ जाती है कि बिलकिस बानो के बलात्कारियों को रिहा करने के मामले में गृह मंत्रालय ने मंजूरी दे दी. इस केस में तो कोर्ट का फैसला है. आजीवन कैद की सजा है तब भी इन्हें रिहा किया गया. नारी की गरिमा का सम्मान किस तराजू पर तौला जा रहा है, आप देख सकते हैं. दिखेगा तभी जब नजर होगी दी दिमाग में जहर नहीं, चार सौ सतहत्तर पेज का हलफनामा है जाहिर धीरे-धीरे बातें निकलकर आती रहेगी. हमारे सहयोगी आशीष भार्गव ने बताया कि मुंबई के स्पेशल जज और सीबीआइ इन ग्यारह लोगों की रिहाई का विरोध किया था. इन पर बलात्कार और हत्या के कई गंभीर आरोप लगे थे जो साबित हुए थे ग्रेटर मुंबई की सिटी सिविल कोर्ट के स्पेशल जज आनंद ऍम करने उन्नीस अगस्त दो हजार बाईस को अपनी राय में लिखा कि इस मामले में सभी दोषी अभियुक्तों को निर्दोष लोगों के बलात्कार और हत्या के लिए दोषी पाया. आरोपियों की पीड़िता से कोई दुश्मनी नहीं थी और ना ही संबंध था.

अपराध केवल इस आधार पर किया गया पीड़िता एक विशेष धर्म की है. इस मामले में नाबालिग बच्चों और गर्भवती महिला को भी नहीं बख्शा गया. ये हेट क्राइम और मानवता के खिलाफ अपराध का सबसे जघन्य रूप है या जागरूक समाज को प्रभावित करता है. इस अपराध से समाज बड़े पैमाने पर व्यथित है. स्पेशल जज आनंद अलग लेवल करने लिखा कि जिस तरह का जघन्य अपराध हुआ है उससे समाज की चेतना पर असर पड़ता है, लेकिन जिस तरह से इस मामले में समाज ने चुप्पी साध ली यही लगता है कि समाज की चेतना में सांप्रदायिक का जहर घुल गया है.  उसकी चेतना मर चुकी है वरना वह सवाल करता चुप नहीं रहता. यही नहीं सीबीआई मुंबई के एसपी नंदकुमार नैय्यर भी रिहाई का विरोध करते हुए लिखते हैं कि दोषी द्वारा किया गया अपराध जघन्य और गंभीर है इसलिए उपरोक्त सभी अभियुक्तों को समय से पहले रिहा नहीं किया जा सकता है और कोई नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए. सीबीआई के एसपी विरोध कर रहे हैं. स्पेशल जज विरोध कर रहे हैं मगर गृह मंत्रालय इनकी रिहाई को मंजूरी देता है. आज इस मामले में सुनवाई हुई. जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सिटी रवि कुमार की बेंच इस केस को सुन रही थी. याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने जवाब देने के लिए कोर्ट से समय मांगा है. उनतीस नवंबर को अगली सुनवाई होगी.

जस्टिस रस्तोगी ने पूछा कि रात को भारी भरकम हलफनामा दाखिल हुआ. हमने सुबह से अखबारों में पढ़ा. जस्टिस रस्तोगी ने आज कई सवाल उठाए और कहा कि में इतने जजमेंट का हवाला क्यों दे दिया गया है. हमें समझ नहीं आया कि जवाब में तथ्यात्मक बयान और विवेक का आवेदन कहाँ है. इतने ज्यादा फैसलों का जिक्र करने की जरूरत नहीं थी. गुजरात सरकार की तरफ से बहस कर रहे सलिसिटर जनरल तुषार मेहता कहते हैं कि अजनबी आपराधिक मामलों में अदालत नहीं जा सकते. 

याचिकाकर्ताओं का मामले से कोई लेना देना नहीं है. उनतीस नवंबर को जब सुनवाई होगी तब तक याचिकाकर्ताओं को भी हलफनामे पर अपना जवाब दाखिल करना होगा. जब इन लोगों को सजा सुनाई गई तो कोर्ट ने कहा था कि इन लोगों को जिन जो उन्होंने हरकत ये करी अगर इनको रिहा किया जाता है तो जिस गांव में वो वापस जाते हैं वहाँ के लोग सुरक्षित है और परिस्थिति को नापते हुए आप लोग फैसला करें कि क्या आपको लगता है कि इस सरकार ने कथनी और करनी में एक फरक दिखाया है. हम लोगों को कि क्या औरतें औरतों को, इस देश की औरतों को, इस देश के हर नागरिक को सोचना चाहिए कि जो सरकार कहती है कि औरतों की सुरक्षा सबसे बड़ी जिम्मेदारी है और दूसरी ओर पर आजादी के अमृत महोत्सव के मौके को यूज करते हुए इन लोगों को रिहा किया जाता है. तो क्या आजादी के अमृत महोत्सव से क्या ताल्लुक रखती है उनकी रिहाई शिवराज पाटिल और सुशील शिंदे अब गृहमंत्री नहीं वरना उन्हें एक एक बात इसका जवाब देना पड़ता और जवाब से पहले इस्तीफा देना पड़ता है. अब गृहमंत्री अमित शाह यह सवाल पूछने की नौबत ही ना आए इसलिए गोदी मीडिया किसी और मुद्दे को लेकर आपको ज्ञान देगा. इस तरह से आप हर दिन अपने ही सवालों का तमाशा बनता देख रहे हैं. गृह मंत्रालय के आदेश की काँपी है. इस पर भारत सरकार के संयुक्त सचिव श्रीप्रकाश के दस्तखत हैं. ग्यारह जुलाई को संयुक्त सचिव श्रीप्रकाश ने गुजरात सरकार के गृह विभाग के उप सचिव को यह पत्र भेजा है, जिसमें बलात्कार और हत्या के ग्यारह दोषियों की रिहाई को मंजूरी दी गई.

ये चिट्ठी गुजरात सरकार की है जो अट्ठाईस जून को केंद्र सरकार की मंजूरी के लिए भेजी गई थी. गृह मंत्रालय के पत्र में अट्ठाईस जून के इस पत्र का हवाला भी है. ग्यारह जुलाई को गृह मंत्रालय ने अपनी मंजूरी दे दी. मात्र पंद्रह दिनों के भीतर इस मामले में ही काम तेजी से हुआ है या इसी से कम होता है इसकी जानकारी सैंकर को नहीं है. यह पत्र गोपनीय है. अगर सुप्रीम कोर्ट ने में सारे रिकॉर्ड नहीं मांगे होते तो इस सच को बाहर आने के लिए किसी की रात तक का इंतजार करना पड़ जाता है. जिस समाज में बिलकिस रह रही हैं, उनके साथ बलात्कार करने वाले और परिवार के सदस्यों को मारने वाले सभी इस समाज में क्षमा पाकर बेखौफ घूम रहे होंगे. क्या उनका हौसला इस बात से नहीं बढे़गा कि उनकी रिहाई के लिए गृह मंत्रालय पंद्रह दिनों के भीतर मंजूरी देता है और सवाल उठने पर खुद से आगे आकर नागरिकों को नहीं बताता है. क्या ये सब मतदाताओं के खास वर्ग को राजनीतिक संदेश देने के लिए किया गया है? उन्हें इस बात का भरोसा देने के लिए राजनीतिक कदम उठाया गया है. चुनाव के माहौल में ऐसे सवालों को आप आसानी से खारिज नहीं कर सकते. बिलकिस के साथ जो हुआ और इंसाफ पाने के लिए उन्होंने जितना संघर्ष किया वह सब यहाँ बताना संभव नहीं. फिर भी कुछ तो आप जान ही सकते हैं. उन्नीस साल की बिलकिस पाँच महीने की गर्भवती थी.

दंगाइयों ने बिल किसके साथ बलात्कार किया. बिलकिस की दो साल की एक बच्ची थी. उसे दीवार पर दे मारा और हत्या कर दी. उसका शव नहीं मिला. उस दिन दंगाइयों ने बिलकिस के रिश्तेदारों से चौदह लोगों की हत्या कर बिलकिस की माँ की भी हत्या कर दी गई. सत्र न्यायालय में केस हो गया, लेकिन बिलकिस का हौसला नहीं टूटा. उसने तय किया कि आगे लड़ाई लड़ेगी. इस लड़ाई में गगन सेठी, फराह नकवी से लेकर तमाम लोगों ने मदद की. सीबीआई की जांच पुख्ता थी जिससे आरोपियों का बचना मुश्किल हो गया. 21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने क्या आरोपियों को आजीवन कैद की सजा सुनाई. बिल किसके साथ बलात्कार और उसके साथ रिश्तेदारों की हत्या के मामले में यह सजा सुनाई गई थी. 4 मई दो 2017 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसी मामले में पाँच लोगों के खिलाफ सजा सुनाई. इनमें दो डॉक्टर थे. एक ऑफिसर आरएस भगोरा. इन पर आरोप था कि दोषियों को बचाने के लिए सबूत बदल दिए गए. ये लोग सुप्रीम कोर्ट गए जहां उन्हें कोई राहत नहीं मिली. भगोरा का दो रैंक हटा दिया गया. उनका पद डीमोट कर दिया गया. कोर्ट ने सीबीआई की जांच की तारीफ की. दो हजार उन्नीस में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता ने गुजरात सरकार से कहा कि को मुआवजे के तौर पर पचास लाख रुपए दिए जाएं. नौकरी दी जाए, घर बना कर दिया जाए. हत्या की धमकी के चलते को सत्रह साल में कई बार अपना ठिकाना बदलना पड़ा. केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी ने बलात्कार और हत्या के दोषियों की रिहाई का बचाव किया है. ये मामला गृह मंत्रालय का है. अच्छा होता है. गृहमंत्री अमित शाह कुछ कहते हैं लेकिन सफाई दे रहे हैं. प्रहलाद जोशी श्रीनिवासन जैन ने प्रहलाद जोशी से बात हाँ जी बट वन इश्यु फैमिली सौं बिस इन यू नो इंदी ऍम आउट. 

आपको हमने शुरू में ही बताया कि जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तब उस समय के चीफ जस्टिस ने यही कहा कि इनकी रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश नहीं दिया था. हमने गुजरात को केवल कानून के अनुसार आगे बढ़ने को कहा था, लेकिन प्रहलाद जोशी कह रहे हैं कि कोर्ट ने किया फिर ये भी कह रहे हैं कि सरकार का कोई रोल नहीं है. सीबीआई ने रिहाई देने से मना किया. स्पेशल जज ने रिहाई देने से मना किया. गृह मंत्रालय ने मंजूरी दे दी कि रिहा किया जा सकता है और मंत्री जी कहते हैं सरकार का कोई रोल नहीं है. कल देर शाम को गुजरात सरकार का वो हलफनामा सर्वविदित हुआ जोकि बिल्कुल के ग्यारह बलात्कारियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने उनसे जवाब मांगा था और उसके वजह से अब ये साफ हो गया है कि ये ग्यारह बलात्कारियों की रिहाई उसी दिन जिस दिन प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से महिला सुरक्षा की बात करते हैं, अमित शाह की स्वीकृति से हुई थी. गृह मंत्रालय ने अट्ठाईस जून की आई हुई गुजरात सरकार की अप्लीकेशन को दस जुलाई को दो हफ्ते के अंदर फटाफट स्वीकृत किया की हाँ ग्यारह बलात्कारी रिहा हो सकते हैं वो ग्यारह बलात्कारी जिन्होंने पाँच महीने की एक फॅर रेप किया. उसकी माँ का रेट क्या उसकी तीन साल की बच्ची का सिर दीवार में फोड दिया और उसके परिवार के सात सदस्यों की निर्मम हत्या करी.

वो ग्यारह बलात्कारी नरेंद्र मोदी के गृहमंत्री अमित शाह की स्वीकृति से रिहा हुए. सवाल बहुत सारे सबसे पहला सवाल तो यह है कि जिस देश में गृह मंत्रालय की कुर्सी पर कभी सरदार पटेल नौ पुरुष बैठते थे, क्या अमित शाह को उस पर बैठे रहने का एक मिनट का भी नैतिक अधिकार है? लेकिन आज देश को ये पूछना और समझना जरूरी है कि क्या बलात्कारियों के भरोसे क्या उनके बल पर क्या उनको खुश रख के अब चुनाव लड़े जाएँगे? और अगर ऐसा है तो प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से आइंदा महिला सम्मान और महिला सुरक्षा की बात मत कीजियेगा. ऐसा तो नहीं हो सकता कि समाज में सभी के दिमाग में जहर भरा है, नजर नहीं बची है. लोग इस खेल को देख समझ तो रहे होंगे. जब सीबीआई विरोध कर रही है, स्पेशल जज विरोध कर रहे हैं. तब अमित शाह का गृह मंत्रालय बलात्कार और हत्या के ग्यारह आरोपियों कि रिहाई को मंजूरी दे रहा है. लोग कुछ तो समझ रहे ही होंगे. हाउसिंग सोसाइटी और रिटार्ड वकीलों के हट सब ग्रुप में भले ही समर्थन करते रहे. मगर उन का जमीन इतना तो कहता ही होगा कि ये बलात्कार और हत्या के जघन्य मामले में दोषी लोग इन्हें समय से पहले इनकी सजा कम कर देने और रिहा करने के लिए पंद्रह दिनों के भीतर गृह मंत्रालय मंजूरी देता है. कुछ तो असहज बात है वरना इन्हें मिठाई नहीं खिलाई जाती. फूलमालाओं से स्वागत नहीं होता और टीका नहीं लगता. हम जानते हैं कि आप दर्शकों को ये अच्छा नहीं लग रहा होगा. इस कार्यक्रम ये तस्वीर फिर से इसलिए दिखाई ताकि आपको इसी से जुड़ी एक और तस्वीर दिखा सके ताकि आप इस भ्रम में ना रहे कि बलात्कार और हत्या के इन आरोपियों का स्वागत करने वाले ये अनजान चेहरे हैं, सरकार या पार्टी के नहीं. अब आप इस तस्वीर को देखिए. जयंत सिन्हा तो आज भी भाजपा के सांसद है. उस समय तो केंद्र सरकार में मंत्री थे.

घटना जुलाई दो हजार अठारह की जयंत सिन्हा जिन लोगों को मिठाई खिला रहे हैं.  ये सभी उस समय पचपन साल के अलीमुद्दीन अंसारी की हत्या के मामले में आरोपी थे. कोर्ट में सजा पा चुके थे. जमानत पर रिहा होकर आए थे. मगर जयंत सिन्हा माला पहना रहे हैं. मिठाई खिला रहे हैं. जेल से रिहा होकर ये आरोपी मंत्री जी के घर आए, जहाँ इन्हें मंत्री जी मिठाई खिला रहे थे. जयंत सिन्हा हारवर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र रहे अलीमुद्दीन की हत्या के मामले में ग्यारह लोगों को सजा सुनाई गई थी. इसमें बीजेपी का एक स्थानीय नेता नित्यानंद महतो भी था. इस हत्या के एक दिन पहले प्रधानमंत्री ने कहा था कि लोग गौरक्षा के नाम पर धंधा कर रहे हैं. तब रघुबर दास ने तुरंत जांच बिठा दी. ऍफ मैं इसकी सुनवाई हुई. इनकी सजा के बाद जयंत सिन्हा ने फिर से जांच की मांग की. सीबीआई से जांच की मांग की. तब जयंत सिन्हा ने इस पर इस घटना पर अफसोस भी जताया था. रामनवमी के जुलूस के दिन मध्यप्रदेश के खरगौन, बड़वानी सहित कुछ इलाकों में दंगे हुये. कई लोगों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया. सरकार ने दंगों में हुए नुकसान की भरपाई के लिए एक ट्रिब्यूनल का गठन कर दिया. दंगा पीड़ितों की शिकायतों पर हिंदू मुस्लिम दोनों पक्षों के लोगों को नोटिस जारी किया गया. जिन्हें नोटिस मिला है उसमें एक बारह साल का बच्चा भी है, जिनमें पत्थर चलाए संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया है. उनको दंडित किया जाएगा. लेकिन क्या है सार्वजनिक संपत्ति चाहे निजी संपत्ति हो. जितना नुकसान हुआ उसकी वसूली भी उनसे की जाएगी.

मध्य प्रदेश में हमने लोग एवं निजी संपत्ति को नुकसान और नुकसान की वसूली अधिनियम पारित किया. दस अप्रैल को खरगोन में दंगे भडके कई लोगों के मकान, दुकान जला दिए गए, तोडफोड हुई मध्यप्रदेश प्रॉक्टर पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट के तहत स्थापित ट्रिब्यूनल में शिकायतें आने लगीं. 2022 में एक महिला की शिकायत पर दावा आयुक्त ने बारह साल के फैजान को भी नोटिस भेजा. दावा दो लाख नब्बे हजार रुपए का है. फैजान का कहना है दंगों के वक्त घर पर ही था जिस दिन की घटना तो आप को जो नोटिस दिया है और आपको दंगे में शामिल होता है तो मुँह पिता कालू खान मजदूरी करते हैं. उन्हें भी चार लाख भरने का नोटिस मिला है. खाना वाना खा के हम सौ गए बाप बेटे हम घर में ही दे ऐसा कुछ भी नहीं हमारे मोहल्ले में उधर हुआ. बाकी मोहल्ले वालों ने नोटिस दिया है और बच्चे का नाम का भी. नाबालिग मेरा नाम का भी दिया. हम तो हमारे घर पे बाकी हमको इंसाफ चाहिए के परिजनों ने हाईकोर्ट की शरण ली लेकिन कोर्ट ने उन्हें दावा प्राधिकरण के सामने ही पक्ष रखने को कहा के वकील का कहना है कि प्राधिकरण ने उनका दावा ये कहकर खारिज कर दिया कि मामला दीवानी है. अगर ये आपराधिक मामला होता तो बच्चे को किशोर न्याय अधिनियम का संरक्षण मिलता है । ये मामला जुर्माने के बारे में है ना की सजा के बारे में. पैसे उसके माता पिता से वसूल किए जाएंगे क्योंकि वो उसके लिए जिम्मेदार है. हमने वो अब्जेक्शन रेस किया लेकिन ने उसको ये कहते हुए कर दिया कि वो सिवल रिकवरी है. ये एक बांटी है जो कि अपने आप में फैमिली खेती है की ये ऍम क्रिमिनल प्रसीजर फॉलो कर रहा है. सिवल प्रसीजर अपने आप पे अप्लाई कर रहा है, कोई प्रोसीड क्राइम नहीं है फिर भी लोगों के ऊपर क्लेम मुँह जो है कमिट भी हो रहे हैं और क्लेम अवॉर्ड भी हो रहा है. दावा प्राधिकरण के फैसले को लेकर सत्ता पक्ष की अपनी दलीलें है.

विपक्ष के अपने आरोप अगर ये बच्चा उसमें संलिप्त पाया गया है तो उसको सिवल कानून के तहत नोटिस गया है और मुझे लगता है कि कानूनी प्रक्रिया जो है वो अपना काम करती है. इस से जो भी जवाब देना है वो इसके कानून के माध्यम से अपने जवाब को प्रस्तुत कर सकता है. काँग्रेस तो उसकी आदत है कि अगर कोई कानून को हाथ में ले रहा है तो उनके संरक्षण में खड़ी हो जाती है. भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने ही खरगोन में दंगा भडकाने में सहयोग किया है और यह नोटिस देकर ऍम अपने चरित्र पर खुद सवालिया निशान लगा दिया है कि उसने किस के वशीभूत होकर इस रिपोर्ट को लिखा है और नोटिस दिया. खरगौन दंगों के बाद क्लेम ट्रिब्यूनल को निर्धारित समय में तीन सौ तैंतालीस प्रकरण मिले थे, जिसमें से चौंतीस मामलों में आरोपी ज्ञात थे. तीन सौ नौ में अज्ञात दंगों के आरोप में दो सौ बीस लोग गिरफ्तार हुए थे, जिसमें से दो सौ अभी भी जेल में हैं. ट्रिब्यूनल ने अभी तक छह मामलों में पचास आरोपियों से सात लाख छियालीस हजार की वसूली के नोटिस दिए हैं, जिसमें चार मामलों में मुआवजा हिन्दुओं को मिलेगा. दो मामलों में मुस्लिम परिवारों को उसका क्लेम ट्रिब्यूनल को सिविल कोर्ट के बराबर के अधिकार और शक्तियां होती है और उसके आदेश को उच्च न्यायालय में ही चुनौती दी जा सकती है. पंद्रह दिनों के अंदर मुआवजा राशि नहीं जमा करने पर ब्याज लगता है और स्थानीय प्रशासन आरोपी की संपत्ति को नीलाम करके भी जुर्माना वसूल सकता है. खरगोन से अपने सहयोगी और भोपाल से कॅश जवान खान के साथ अनुराग द्वारी एनडीटीवी इंडिया रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन प्राइमटाइम नहीं देखते हैं या प्राइमटाइम का कोई दर्शक पुतिन के संपर्क में है तो मेरी एक बात उन तक पहुंचा दे. मैं उनसे ये जानना चाहता हूँ कि क्या भारत के प्रधानमंत्री के फोन के बाद पुतिन जी ने युद्ध रोक दिया ताकि यूक्रेन में पढ़ रहे भारतीय छात्र बाहर आ सकें. यदि इसका जवाब हाँ है तो यह भी बताए कि पुतिन जी ने कभी इसका श्रेय क्यों नहीं लिया? क्या ये खबर रूस की मीडिया में भी छपी? इसके बाद अगला सवाल है कि युद्ध रोकने का फैसला रूस का एक था या उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति मुँह जी से बात कर समय तय किया था कि इतने से इतने बजे तक बम नहीं गिराएंगे या भारत ने यूक्रेन और रूस दोनों से बात कर अलॉट कर दिया था कि इतने से इतने बजे तक दोनों बम ना गिराए, युद्ध ना करें हम अपने बच्चों को निकाल लेंगे.  सवाल इसलिए पूछ रहा हूँ कि पुतिन जी को सामने आना चाहिए और सच बता देना चाहिए क्योंकि जब बीजेपी के सांसद रविशंकर प्रसाद ने ऐसा दावा कर दिया तब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसकी हंसी भी उड़ा दी एक तरह से लेकिन अब तो विदेश मंत्री ही ऐसा दावा कर रहे हैं.

पहले विदेश मंत्री का बयान सुनिए कि उन्होंने गुजरात के सूरत में क्या कहा. उसके बाद उनके ही प्रवक्ता का बयान सुनिए और फिर कांग्रेस के प्रवक्ता का बयान सुनिए. प्रधानमंत्री ने ऍम को फोन किया और उॅची को फोन किया और कहा कि हमारे बच्चे फंसे हैं और मैं चाहता हूँ ये मेरी रिक्वेस्ट है कि जब तक वो निकले आप हमें टाइम दीजिए. इस समय सीमा में उनको निकालेंगे और आप मुझे अपना वचन दीजिए कि इस समय फाइरिंग नहीं होगी और उसके कारण उसके कारण हम इन दोनों शहर है. हमारे लोगों को निकाल पाए ऑफ कन्वर्सेशन बट ऍम बडी होल्डिंग बॉम्बिंग ऍम हिंदी में एक मुहावरा है जैसी संगत वैसी रंगत. आज जयशंकर जी जिन लोगों की संगत में है आज वो तर्कों को भूल गए इस तरह की बातें कर रहे हैं.थोड़े दिन और रहे तो हमारे देश के विदेश मंत्री बोलेंगे कि मोदी जी ने दो तीन बम अपने हाथ से पकड के डिफ्यूज भी कर दिए. मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि जयशंकर जी क्यों हमारे देश की जो भुखमरी की रैंकिंग है, ये अंदर इंडेक्स में जो रैंकिंग है वो एक सौ इक्कीस देशों में एक सौ सातवें नंबर पर आ चुकी. मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि हमारे जो जितने भी आस पास के देश है, अफगानिस्तान को छोड़ के सब हमसे बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, चाहे वो बांग्लादेश हो, चाहे वो नेपाल हो, चाहे वो श्रीलंका जैसे आप फील्ड इकॉनमी वाला इस देश हो, चाहे पाकिस्तान हो, जिससे मोदी जी हमेशा अपने आप को कंपेयर करके प्रसन्न रहना चाहते हैं. क्यों हमारे देश की हंगर इंडेक्स आज इस स्थिति में पहुंची है पिछले साल जो एक सौ एक वें नंबर पे थे आज हम एक सौ तो सातवें नंबर पे आगे. एक सौ इक्कीस देशों में मैं उनसे पूछना चाहता हूँ जयशंकर जी की क्यों? जो कल जो सप्ताह हुआ उसमें सी ई के अनुसार ऍन टर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के अनुसार बेरोजगारी की दर फिर से आठ प्रतिशत पर एट परसेंट पर बनी हुई है. दो हजार बारह में वो दो प्रतिशत पर थी.

इन सवालों का जवाब दीजिए क्यों त्योहारों के सीजन में महंगाई बढ़ती जा रही है. इन सवालों का जवाब दीजिए. ये कुतर्कों से बाहर निकलें इसलिए लोगों को भ्रमित करना बंद कीजिए. आप ने क्या किया? पिछले आठ साल में उसका लेखा जोखा दीजिए. आप की गलत नीतियों के कारण हमारे देश का डॉक्टर बन चुका है. देश के जो युवा है वो नौकरियों के लिए भटक रहे हैं. आप कह रहे हमने युद्ध को बंद करवा दिया. आप अगर सोचने के मूड में तो सोच सकते हैं कि जब प्रधानमंत्री के फोन पर रूस और यूक्रेन युद्ध रोक सकते हैं तो कितनी देर के लिए युद्ध रोका गया, क्योंकि भारत के छात्रों को पोलैंड की सीमा तक आने में ही कई घंटे लगे थे. क्या वाकई युद्ध रोका गया? क्या ऐसी कोई भी खबर दुनिया के किसी अखबार में छपी है? अगर युद्ध रोकने से प्रधानमंत्री मोदी की वाहवाही हो रही है तो इसे लेकर पुतिन अपनी वाहवाही क्यों नहीं करा रहे है? दिल्ली हाईकोर्ट ने आज उमर खालिद की जमानत याचिका कर दी. उमर को दिल्ली दंगों के मामले में साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उनके खिलाफ यूएपीए की धारा लगा दी गई है. जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की बेंच ने ये फैसला सुना है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बेंच ने कहा की जमानत याचिका में कोई दम नहीं जिनकी बेंच ने तीस मई को कहा था कि उमर खालिद का भाषण आतंकी कार्यवाही नहीं. जिस भाषण की चर्चा हो रही है उसे उमर ने महाराष्ट्र के अमरावती में दिया था. उमर चौदह सितंबर दो हजार बीस से जेल में है. सात सौ दिन हो चुके हैं पर खबर यह नहीं है शायद नहीं है क्योंकि खबर तो वही है कि सीबीआइ और स्पेशल कोर्ट ने बलात्कार और हत्या के आरोपियों को रिहा करने से मना कर दिया तो गृह मंत्रालय ने क्यों मंजूरी दी? अब यही आज का दौर है और यही आपका देश ब्रेक ले लीजिये.

आए दिन कुत्ता काटने की भयंकर खबरें अखबारों में छपती रहती है. इन दिनों काफी बढ़ गई हैं. ये जानने की जरूरत है कि कुत्ते हमलावर क्यों हो रहे हैं. क्या ट्रेनिंग की कमी है या कोई और वजह? नोएडा में एक सोसाइटी के बाहर कुत्ते ने आठ महीने के बच्चे को काट लिया. वो बच्चा मर गया है. बॉलीवुड सोसाइटी में कुत्ता प्रेमी और उसे हटाने को लेकर आपस में तीखी बहस हो रही है. कुछ कुत्ता प्रेमियों ने कुत्ते को पकडे जाने का विरोध किया है. कुत्ते को लेकर कैसे दोनों पक्ष भिड़ गए. रविश रंजन बता रहे हैं नोएडा में किस सोसायटी में खासा बवाल मचा है. कुत्तों के काटने से आठ महीने के बच्चे की मौत के बाद सैकडों लोगों ने नोएडा अथॉरिटी के ओएसडी को कई घंटे तक घेरे रखा. लोगों का आरोप है कि छह महीने के भीतर कुत्ते के काटने की यह तीसरी घटना है. मुझे बच्चों को देखे हो क्या बताओ बच्चों को देख के हम जो आधा घंटा वहां बैठ गई मैं क्या इतना डरा हुआ बच्चों के नीचे नहीं चाहते. बच्चे नीचे खेलने के लिए भेज सकते हैं बच्चों को नीचे खेलने जाने के लिए फॅस दरअसल सपना कुमारी नाम की एक महिला श्रमिक सोसायटी में नए बन रहे इस स्टोर में काम कर रही थी. उसका आठ महीने का बच्चा यहीं पर सो रहा था तभी तीन कुत्तों ने उसके ऊपर हमला कर दिया. उनका जो बच्चा है उसको नींद आ गई तो उन्होंने अपने बच्चे को इस जगह पर यहाँ पर उसको सुला दिया और इसके बाद में तीन जो आवारा कुत्ते हैं उन्होंने उसके ऊपर में हमला कर दिया. कुछ देर के बाद में जब बच्चे की चीख सुनाई दी तब वो तुरंत यहाँ के जो श्रमिक है सोसाइटी के जो लोग है वो भागे हुए आए और उसके बाद में उन्होंने उन कुत्तों से उसको छुड़ाया.

बच्चे को बच्चे को तुरंत तकरीबन साढ़े चार से पाँच बजे के बीच में वो सारे लोग हॉस्पिटल लेकर गए, लेकिन हॉस्पिटल में दो बजे तक सर्जरी होने के बाद में उस मासूम बच्चे की जो है वो मौत हो जाती है. आवारा हो या पालतू हाल के दिनों में कुत्तों के हमलों के कई डरावनी वीडियो आने के बावजूद इस समस्या का कोई हल नहीं निकलता दिख रहा है. कुत्ते पालने वाले और कुत्तों को भागने वाले लोगों के बीच इस मुद्दे पर आपस में ही खासा विरोध है. कुत्ता पालने वाले लोग खाना खिलाने को जायज ठहरा रहे हैं. उनका कहना है कि बच्चे की मौत कुत्ता काटने से नहीं बल्कि माता पिता और कंस्ट्रक्शन कंपनी की लापरवाही से हुई है. ये कुत्ते काटने से नहीं हुई है. ये कुत्ते कुत्ते काटने से नहीं.  उन्होंने बुलाया गया मुँह मिलनी चाहिए. कुत्ते तुम्हारे घर की नहीं है तो वही तो मैं कह रही हूँ किसी का नहीं नहीं उन को अपने बच्चों को सात साल के बच्चे को नीचे. उधर मामला तूल पकड़ते देख नोएडा अथॉरिटी के ओएसडी हिंदू प्रकाश ने अब कुत्तों के चार और शेल्टर बनाने की बात कही है, लेकिन जिस श्रमिक ने अपने आठ महीने के मासूम बच्चे को खो दिया उसे अब दमोह भेज दिया गया और उसकी आर्थिक मदद का कोई भी आश्वासन नहीं मिला है. यही परिस्थितियों में क्या हुआ क्या नहीं हुआ.

देश में कुत्ता काटने के मामलों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. इस साल छह महीने के भीतर चौदह लाख से ज्यादा लोगों को कुत्तों ने काटा. वजह यह है कि पालतू कुत्तों से लेकर अवारा कुत्तों तक कोई स्पष्ट नीति नहीं है. नोएडा से अरविन्द उत्तम के साथ रवीश रंजन शुक्ला एनडीटीवी इंडिया आप देख रहे थे प्राइम टाइम नमस्कार. 

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