नमस्कार मैं रवीश कुमार,
गोवा में जितनी तेज़ी से लहरें नहीं बदलती हैं, उससे कहीं तेज़ी से विधायक पाला बदल लेते हैं. इस साल फरवरी में जब विधानसभा चुनाव हो रहे थे तब कांग्रेस के 37 उम्मीदवार घूम घूम कर शपथ ले रहे थे कि वे जीतने पर पार्टी नहीं बदलेंगे. गोवा की जनता इस बात से परेशान है कि वह जिसे भी वोट देती है, पार्टी बदल लेता है. बीजेपी के खिलाफ जिन कांग्रेस उम्मीदवारों को वोट दिया था, उनके आज बीजेपी में चले जाने की खबर आ गई. कांग्रेस के 11 विधायकों में से 8 बीजेपी में चले गए.
इस साल जनवरी में जब चुनाव हो रहा था तब कांग्रेस के 37 उम्मीदवार, कभी चर्च में तो कभी मंदिर में तो कभी दरगाह में कसम खाते थे कि वे जीतने पर पार्टी नहीं बदलेंगे. इनमें से 11 जीत गए और 8 बीजेपी में चले गए. चुनाव के दौरान इन उम्मीदवारों को हमज़ा शाह दरगाह, बांबोलिम क्रास और महालक्ष्मी टेंपल ले जाया गया जहां उन्होंने कसम खाई कि जीतने पर पार्टी नहीं बदलेंगे. महालक्ष्मी आदि शक्ति का रूप मानी जाती हैं. इनके सामने कोई शपथ ले कि दल नहीं बदलेंगे, और वह दल बदल कर वहां चला जाए जो देवी देवताओं के नाम पर किस बात पर आहत हो जाए पता नहीं. बीजेपी ने भी महालक्ष्मी से वादा कर तोड़ने वालों को अपनी पार्टी में कैसे ले लिया? रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई. मर्यादा राम की यही तो पहचान है, वचन दे दिया तो पलट नहीं सकते. लेकिन यहां वचन तोड़कर उसी पार्टी में चले गए जो राम को अपना आदर्श मानती है. इसमें आपको अगर कोई कन्फ्यूज़न नहीं दिख रहा है तो इसका मतलब है कि आपने देखना बंद कर दिया है. क्या ऐसे लोग भी बीजेपी में आ सकते हैं जो ईश्वर से किया गया वचन तोड़ देते हैं. या वोट के लिए नकली शपथ लेते हैं? राष्ट्रवाद और धर्म की राजनीति से राजनीति में क्या कोई नया नैतिक मूल्य स्थापित नहीं होता है? विपक्ष को खत्म करने से क्या लोकतंत्र मज़बूत होता है, वो भी उनके सहारे जिन्होंने चर्च, दरगाह और मंदिर में शपथ लेकर तोड़ दी हो. एक वीडियो में आप देख सकते हैं कि कैसे दिगंबर कामत चर्च में शपथ ले रहे हैं कि कभी दूसरे दल में नहीं जाएंगे.
गोवा में पूछा जा रहा है कि देवी देवताओं के सामने दल न बदलने की शपथ ली थी, उसे कैसे तोड़ दिया, इस पर कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए दिगंबर कामत का बयान दिलचस्प है. दिगंबर कामत ने कहा कि वे मंदिर गए थे, देवी देवताओं से पूछा तो उन्होंने कहा कि डोंट वरी, गो अहेड, यानि चिंता मत करो, आगे बढ़ो.
दिगंबर कामत कह रहे हैं कि उन्होंने भगवान से बात कर ली है. भगवान ने उनसे कह दिया है कि परिस्थिति के हिसाब से फैसला कर लो. अगर आप लोगों की किसी वजह से भगवान से बात नहीं हो पा रही है, तो दिगंबर कामत जी संपर्क कर लीजिए, क्या पता वे तरीका बता दें. अगर लोकतंत्र में जनता का विवेक इस स्तर का होगा, तो यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि कोई नेता अरस्तू या प्लेटो का सिद्धांत पब्लिक में बांचेगा. हाउंसिंग सोसायटी के व्हाट्सऐप ग्रुप ने मिडिल क्लास की राजनीतिक समझ को जिस तरह रौंद दिया है, कि अब उसके लायक इसी तरह के बयान बच जाते हैं. दिगंबर कामत गोवा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं. इन दिनों कौन दिल से जाता है, कौन बिक कर जाता है और कौन जांच एजेंसियों से डर कर, पता नहीं चलता. यह कहानी न आज शुरू हुई है और न आज के बाद से खत्म होगी. पहले अपनी सरकार को मज़बूत करने के लिए जितने विधायक चाहिए होते थे, उतने ही तोड़े जाते थे, अब विपक्ष को खत्म करने के लिए दलबदल कराया जा रहा है. आप कांग्रेस के उम्मीदवारों को एक और बार शपथ लेते हुए देखिए, और गेस कीजिए कि कौन इसमें से सबसे गंभीर है? इनमें से जो सबसे आगे हैं दिगंबर कामत, उन्होंने ही अपना वादा तोड़ दिया है. मार्च 2019 में उनका बयान है कि बीजेपी के साथ जाना राजनीतिक रुप से आत्महत्या करना होगा, 2022 में बीजेपी में चले गए. जो विधायक चर्च और मंदिर में किए गए वादे को तोड़ सकते हैं, वो राहुल गांधी के साथ झूठी शपथ क्यों नहीं ले सकते हैं.
राहुल गांधी और केसी वेणुगोपाल और पी चिदंबरम भी साथ साथ खड़े हैं और कांग्रेस के उम्मीदवार शपथ ले रहे हैं कि चाहे कुछ हो जाए पार्टी नहीं बदलेंगे. यहां शपथ लेने से पहले इन लोगों ने जनवरी में एक हलफनामे पर साइन किया था. जिसे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास भेजा गया था इन्होंने वादा किया था कि जीत गए तो पांच साल तक दलबदल नहीं करेंगे लेकिन यहां तो छह महीने के भीतर ही पार्टी बदल ली. ये लोग कोंकणी में शपथ ले रहे हैं. कह रहे हैं कि विधायकी से इस्तीफा देकर भी दूसरे दल में नहीं जाएंगे. न ही दूसरे दल से चुनाव लड़ेंगे. इनमें से जीते हुए 8 विधायकों ने पार्टी बदल ली. राहुल गांधी और केसी वेणुगोपाल भारत जोड़ो यात्रा पर हैं.
2019 में कांग्रेस के 15 विधायकों में से 10 बीजेपी में चले गए. तो विपक्ष को वोट देने से क्या फायदा हुआ? देश में दलबदल कानून है, जिसकी भावना यही है कि पार्टी न बदलें. मगर अब तो दो तिहाई विधायक दल बदल करने लगे हैं. इस कानून के आने के कई साल तक भारत की राजनीति में दलबदल थोड़ा तो थमा था लेकिन अब फिर से यह आम हो गया है. कांग्रेस की सहयोगी गोवा फारवर्ड पार्टी के अध्यक्ष विजय सरदेसाई ने बयान जारी किया है कि सारी राजनीतिक शुचिताओं, ईमानदारी को ताक पर रखकर धन और सत्ता की लालच में जिन 8 विधायकों ने दल बदला है, वे अपनी बेशर्मी, स्वार्थीपन, लोभ का इज़हार कर रहे हैं. गोवा के लोगों की पीठ में छुरी मारी गई है. उनका भरोसा तोड़ा गया. गोवा की जनता इस बात को नोट करेगी कि पितृ पक्ष में जब पितरों का ऋण चुकाया जाता है, इन विधायकों ने चालाकी की है. झूठ का सहारा लिया है. हम हमेशा ही दलबदल को जनादेश के साथ धोखे के रूप में देखते हैं लेकिन यह उससे भी ज़्यादा है. यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ है. ईश्वर का भी मज़ाक उड़ाता है. बीजेपी ने लोकतांत्रिक राजनीति को गर्त में पहुंचा दिया है, गोवा का मज़ाक उड़ रहा है. बीजेपी जनता के प्रतिनिधियों को लेन-देन का सामान समझती है. गेहूं की बोरी समझती है जिसे दाम देकर खरीदा जा सकता है. विजय सरदेसाई ने यह सब लिखा है.
गोवा की राजनीति का वाकई मज़ाक उड़ रहा है. वहां की जनता क्या करे. लेकिन ऐसा केवल गोवा में ही नहीं होता है. विधायक कहीं के भी बिक जाते हैं या जांच एजेंसी लगाकर तोड़े जा सकते हैं. हमारा एक सवाल है. जब उम्मीदवार जनता के सामने लिखित हलफनामा देता है, मंदिर से लेकर दरगाह में जाकर कसम खाता है, दल बदल लेता है तब चुनाव आयोग की क्या भूमिका है, अगर उसका कोई अधिकार नहीं बनता है तो फिर वह इसकी इजाज़त क्यों देता है कि एक उम्मीदवार हलफनामा देकर झूठ बोले. अगर आयोग के पास इसे रोकने का अधिकार नहीं है तो इस पर बात होनी चाहिए.
ADR ने एक रिसर्च की है. 2016-20 के बीच जितने भी विधायकों ने दल बदल किए हैं, उनमें से 45 प्रतिशत बीजेपी में शामिल हुए हैं. जितने भी विधायकों ने दल बदला है, उसमें सबसे अधिक कांग्रेस के रहे हैं, करीब 42 प्रतिशत.
बागी विधायक दिगंबर कामत ने कहा कि, पांच साल मैंने स्टेबल गवर्नमेंट दी. गोवा राज्य बनने के बाद स्टेट हुड मिलने के बाद अगर कोई चीफ मिनिस्टर पांच साल कंप्लीट किया तो वो दिगंबर कामत है, बाकी किसी भी मुख्यमंत्री ने कंटीन्यू पांच साल कम्प्लीट नहीं किया. उन्होंने कहा कि किसी ने मुझे डिस्कस करने के लिए दिल्ली नहीं बुलाया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस में कोई लीडरशिप नहीं बची है. भारत जोड़ो का मतलब नहीं क्योंकि कांग्रेस है ही नहीं. मुझसे बिना पूछे मुझे LOP के पद से हटा दिया. मुझे दिल्ली में बुला कर एक बार भी बात नहीं की. मैंने पार्टी न छोड़ने की शपथ ली थी. मैंने महालक्ष्मी मंदिर में भगवान की शपथ ली थी पार्टी नहीं छोड़ूंगा. मैंने फिर भगवान से बात की. यहां पूरी प्रक्रिया है. शिवलिंग पर पंडित जी भगवान पर फूल चढ़ाकर पूछते हैं. मुझे भगवान ने इशारा किया कि मैं बीजेपी में जाऊं. मुझसे ज़्यादा पूरे गोवा में भगवान को कोई नहीं मानता. मुझे कुछ बनाना है या नहीं बनाना है, ये निर्णय मैंने पार्टी पर छोड़ा है. मैं यहां का सबसे सीनियर विधायक हूं. उन्होंने कहा कि, आम आदमी पार्टी तो कुछ भी कहती है.
अगर कोई उम्मीदवार लिख कर दे कि दलबदल नहीं करेगा, और जीत कर दल बदल कर ले तो जनता क्या कर सकती है. कोई नेता उसे ठग ले तो जनता क्या कर सकती है. इस तरह थोक के भाव में दल बदल हो रहे हैं.
शिवसेना जब टूट रही थी तब भी गोवा चर्चा में आया था लेकिन वहां विधायकों ने जिस तरह से डांस किया, उससे पहली बार लगा कि दल बदल काफी कूल चीज़ है. वर्ना हमारे विधायक केवल उदघाटन या बयान देते दिखते हैं, इस तरह डांस कर दल बदल का जश्न मनाने का यह दृश्य ऐतिहासिक है और प्रमाण है कि अब लोगों ने सोचना बंद कर दिया है. व्हाट्सऐप ग्रुप में जैसा मैसेज आएगा, वही माना जाएगा. बहुत बुरा लगेगा तो कह देंगे कि पहले भी होता था. पहले गलत होता था तो अब भी गलत हो यह सवाल पूछने का टाइम कहां मिलता है, खासकर तब जब इतना अच्छा डांस चल रहा हो. प्राइवेट जेट से लेकर फाइव स्टार का खर्चा कौन देता है, कौन इतने कमरों का बिल भरता है, यह सब आप नहीं जान सकते हैं. इसलिए आप भी डांस सीख लीजिए.
जांच एजेंसियों के छापे पड़ते ही सरकार के गिरने और बनने की चर्चा शुरू हो जाती है. गोवा के विधायक बीजेपी में जाकर राष्ट्र की सेवा करने के लिए इतने बेचैन थे कि महालक्ष्मी मंदिर में किया गया वादा भी तोड़ आए. आप सरकार से सवाल कर दें तो बीजेपी के प्रवक्ता झट से गद्दार कह देंगे, लेकिन यहां तो देवी से किया गया वादा तोड़ कर आराम से कांग्रेस के विधायक बीजेपी के नेता और गोवा के मुख्यमंत्री के सामने प्रसन्न भाव से बैठे नज़र आ रहे हैं.
दल बदल कानून का अब कोई मतलब नहीं रह गया है. बल्कि नया कानून बनना चाहिए कि विधायक पांच साल के दौरान चाहे तो रोज़ पार्टी बदल सकता है. उसे जो भी पैसा देगा, उसके घर जाकर पार्टी कर सकता है. वैसे दल बदलने वालों से बीजेपी भी डरती है, भले ही छोटे स्तर पर डरती है लेकिन कई बार उसका यह डर इतना बड़ा हो जाता है कि प्रयागराज ले जाकर गंगा में शपथ दिलवाने लग जाती है. मां गंगा ने केवल उन्हीं को नहीं बुलाया था बल्कि उन्हें भी बुलाया था जो मध्य प्रदेश में पंचायत का चुनाव जीते थे.
इसी साल जब मणिपुर में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे तब बीजेपी ने भी अपने सदस्यों से सहयोग पत्र पर दस्तखत कराए थे ताकि वे पाला न बदल लें. कांग्रेस ने भी यही किया था. कांग्रेस तो अपने उम्मीदवारों को बकायदा इंफाल के कांगला फोर्ट ले गई थी और शपथ दिलाई थी.
कांग्रेस ही नहीं टूट रही है, अन्य विपक्षी दलों के विधायक भी तोड़े जा चुके हैं. हाल ही में बिहार में जब नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने हाथ मिला लिया तो उसके कुछ दिन बाद जदयू को तोड़ने का सिलसिला शुरू हो गया. सरकार बनने के एक सप्ताह के भीतर मणिपुर में जदयू के छह विधायकों में से पांच बीजेपी में शामिल हो गए. स्पीकर ने तुरंत ही पांच विधायकों का बीजेपी में विलय करा दिया. क्योंकि दो तिहाई विधायकों ने दलबदल किया था. अभी अभी तो चुनाव हुए थे. नीतीश ने कहा था कि मणिपुर में उनकी पार्टी सरकार से समर्थन वापस लेगी लेकिन उनकी पार्टी ही बीजेपी में चली गई. जबकि 60 सीटों वाली मणिपुर विधानसभा में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को 55 विधायकों का समर्थन प्राप्त था, अगर जदयू के छह सदस्य सरकार से समर्थन खींच भी लेते तब भी सत्तारूढ़ गठबंधन की संख्या 48 होती. बहुमत का आंकड़ा 31 से काफी ऊपर है. इसके पहले भी 2020 में बीजेपी ने अरुणाचल प्रदेश में जदयू के सात में छह विधायकों को अपनी पार्टी में मिला लिया था. अब तो जो एक विधायक बचे थे वे भी बीजेपी में शामिल हो गए. यह अच्छा है, चुनाव भलें न जीतें, विपक्ष को तोड़ कर विपक्ष को साफ कर दें और सरकार बना लें.
महाराष्ट्र में जो हुआ आपके सामने ताज़ा-ताज़ा है. मणिपुर अरुणाचल प्रदेश में भी जदयू का संपूर्ण विलय बीजेपी में हो गया. केवल गोवा में ऐसा नहीं होता है. यह पैटर्न बताता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष की राजनीति गंभीरता से करते हैं. यह एक रणनीति का हिस्सा हो सकता है कि विपक्ष अगर हमेशा कमज़ोर दिखता रहे, तो उनका विकल्प दिखाई नहीं देगा. विपक्ष कमज़ोर ही है लेकिन बार-बार उसे कमज़ोर साबित किया जाता रहता है ताकि लोगों को लगे कि विपक्ष की ज़रूरत नहीं है. जिस स्तर पर दलबदल हो रहे हैं उसे समझने की ज़रूरत है. कौन गया इस पर तो चर्चा बहुत होती है, लेकिन जाने वाला कैसे गया. उसके पीछे कितने दिनों से होमवर्क चल रहा था, होमवर्क में क्या हो रहा था, डराया जा रहा था, पैसा दिया जा रहा था, कोई फाइल दिखाई जा रही थी, इन सबकी जानकारी किसी के पास नहीं होती है, बस चर्चा होती है. पर्दे के पीछे कोई नहीं जाना चाहता. कई बार लगता है कि जहां भी कोई नंबर टू या थोड़ा सा प्रभावशाली है, उस पर काम शुरू हो जाता होगा, मौका देखकर तोड़ दिया जाता होगा. ऐसे कई नेताओं के नाम आप देख सकते हैं जो बीजेपी में शामिल हो गए या उसके साथ सरकार बना ली.
एकनाथ शिंदे भी शिवसेना में ताकतवर माने जाते थे. उन्होंने उद्धव ठाकरे से बगावत कर बीजेपी से गठबंधन कर लिया. एनसीपी में नंबर टू अजीत पवार तो दो दिन के लिए बीजेपी के साथ चले ही गए थे. स्वामी प्रसाद मौर्या विधानसभा में बसपा के नेता था, बीजेपी में चले गए, योगी सरकार में मंत्री रहे, पिछले चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में चले गए. हरक सिंह रावत उत्तराखंड कांग्रेस में नंबर दो थे, बीजेपी में चले गए, फिर पिछले चुनाव से पहले कांग्रेस में लौट आए. सुनील जाखड़ पंजाब कांग्रेस के प्रमुख थे, बीजेपी में चले गए. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आरपीएन सिंह बीजेपी में चले गए. मुकुल राय तृणमूल में नंबर दो माने जाते थे, बीजेपी में गए, अब लौट आए.
विपक्ष को खत्म किया जा रहा है. गोदी मीडिया के ज़रिए लगातार हमला कर लोगों की निगाह मे विपक्ष को गैर ज़रूरी बताया जाता है. जिस तरह से हर दल से लोग केवल एक दल में जा रहे हैं, वह कहीं से सामान्य प्रक्रिया नहीं है.
कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा पर है. इस यात्रा के ज़रिए कांग्रेस कहती है कि वह भारत को जोड़ने निकली है, महंगाई और बेरोज़गारी के सवालों को लेकर जनता के बीच जाने निकली है क्योंकि गोदी मीडिया विपक्ष और जनता की आवाज़ को दबाता है. लेकिन चर्चाओं में यह बात उतनी प्रमुखता से आ रही है कि कांग्रेस खुद का आधार तलाश रही है, अपने कमज़ोर घर को मज़बूत करने निकली है, इसी समय गोवा से उसके विधायकों के बीजेपी में चले जाने की खबर आई है. यह केवल तुरुप का पत्ता नहीं है, यह बता रहा है कि राजनीति में क्या चलने वाला है. जब समय जवाबदेही का आएगा, सवालों का आएगा, दलबदल या किसी विपक्ष दल पर हमला होगा, बहस बदल जाएगी.
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, ये आपरेशन कमल और आपरेशन लोटस का एक और नमूना है. और आपरेशन लोटस जिसको आपके कुछ साथी चाणक्य नीति बताते हैं वो देश का सबसे बडा भ्रष्टाचार है. वो देश की संस्थाओं का सबसे बडा दुरुपयोग है. मुझे नहीं पता कि ये लोग पैसे के लिए, पद के लिए या ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स के डर से वहां गए हैं. लेकिन अमूमन देखा ये गया है कि जो जाता है वो गंगा नहाकर सारे दाग धब्बे धोकर साफ हो जाता है. और बाकियों के पीछे एजेंसी छोड़ी जाती है. मेरा अपना मानना ये है कि भारत जोड़ो यात्रा जो हम कर रहे हैं और उसमें जिस तरह का जनसंवाद हो रहा है, उसमें जिस तरह से जनता का पार्टिसिपेशन हो रहा है, जिस तरह से जनसैलाब उमड़ रहा है, उसने भारतीय जनता पार्टी के पैरों के तले से जमीन खिसका दी है. होश फाख्ता हैं इन लोगों के. हम सोते कहां हैं, पहनते क्या हैं, खाते क्या हैं, किस से बात करते हैं....आप ऐसे आपरेशन करते रहिए, आपको लगता है हम डरकर चुप हो जाएंगे. मुझे लगता है देश आपको नमूना दिखा रहा है. गोवा के उन एमएलए ने जब वोट मांगे थे तो बीजेपी के खिलाफ वोट मांगे थे. किस मुंह से आप बीजेपी ज्वाइन कर रहे हैं.
गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा, कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू की, मुझे लगता है गोवा से कांग्रेस छोड़ो यात्रा शुरू हो चुकी है. इसी तरह पूरे देश भर में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक सभी लोग कांग्रेस को थोड़े-थोड़े छोड़ रहे थे. अभी लमसम में छोड़ रहे हैं... इसी तरह सभी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी या राष्ट्रीय हित के लिए जो पार्टी हैं, उसमें जुड़ेंगे.
दल बदल की सारी ज़िम्मेदारी दूसरे दल पर नहीं डाल सकते. लेकिन इस पैटर्न की गहरी पड़ताल करनी होगी. इसके कारण इतने सरल नहीं हैं. जहां दो तिहाई नहीं तोड़ा जा सकता है वहां विपक्षी दल का विधायक इस्तीफा दे देता है. गुजरात और कर्नाटक में यह हो चुका है. एक पैटर्न और है. विपक्ष के बड़े नेताओं को पीछे पीछे सपोर्ट मिलता है. कैप्टन अमरिंदर सिंह और गुलाम नबी आज़ाद का उदाहरण दिया जा सकता है. चुनाव से पहले कैप्टन बीजेपी के नज़दीक जाते नज़र आते हैं और जब चुनाव होता है तो बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव भी लड़ते हैं. कुल मिलाकर यह बहुत आसान तर्क है कि अपना घर संभाल नहीं सकते तो बीजेपी पर इल्ज़ाम लगा दिया, यह बात सही भी है लेकिन केवल यही बात नहीं है. क्या हम कभी पर्दा हटाकर उन मुश्किल सवालों को देखना चाहेंगे? बसपा, तृणमूल, कांग्रेस, जदयू, शिवसेना, हर दल ही टूटा जा रहा है. हर पार्टी के भीतर यह खतरा बड़ा होता जा रहा है. 2017 में दिल्ली नगर निगम के चुनाव में आम आदमी पार्टी को भी शपथ दिलानी पड़ गई थी.
आम आदमी पार्टी दिल्ली और पंजाब में भी आरोप लगा रही है कि उसके विधायकों को तोड़ने की कोशिश की जा रही है.
दलबदल कानून का अब कोई मतलब नहीं रहा. दो तिहाई की बंदिश बेकार हो गई है. हमने जगदीप छोकर जी से पूछा कि इसे रोकने का कोई रास्ता नज़र आता है, कोई तरीका है, अगर इसी तरह विपक्ष की बेंच खाली होती रही, तब विपक्ष का मतलब ही क्या रह जाएगा.
जगदीप छोकर ने कहा कि कि, जो विधायक एक दफा एक पार्टी के नाम पर चुना जाए और वो पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाए तो उसकी सदस्यता भंग हो जानी चाहिए. उसकी सदस्यता भंग होने के साथ-साथ उस पर एक रोक लगनी चाहिए कि जब तक ये केस चल रहा है वह किसी दूसरी पार्टी से या जो उसका स्थान रिक्त होता है उस पर वो चुनाव नहीं लड़ सकेगा. यह स्टेप लेने से एक नतीजा यह निकलेगा कि विधायकों, राजनीतिक दलों का कंट्रोल और बढ़ जाएगा. उस कंट्रोल के लिए ये बहुत जरूरी है. राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र हो और वो आंतरिक लोकतंत्र ऐसा हो जो दिखाई दे.
क्या पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच समझौता हो गया है, 28 महीनों से जो तनातनी चल रही थी, वो अब खत्म होने की दिशा में है? खबर है कि पूर्वी लद्दाख के हॉट स्प्रिंग और गोगरा के पेट्रोलिंग पॉइंट 15 से दोनों देशो की सेनाएं पीछे हट गई हैं. इस बात की पुष्टि सेना और सेटेलाइट इमेज के जरिए भी हुई है.
राजीव रंजन की रिपोर्ट है- उपग्रह से ली गई तस्वीरें पूर्वी लद्दाख के हॉट स्पिंग और गोगरा इलाके की हैं. सेना के मुताबिक चीन के साथ इस इलाके में तनाव घट गया है. पेट्रोलिंग पॉइंट पंद्रह से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट गई हैं. दोनों ही ओर से यहां अस्थायी निर्माण और बंकर तोड़ दिए गए हैं. इस बात की पुष्टि दोनों देशों के स्थानीय कमांडरों ने जमीनी स्तर पर भी कर दी है. ऐसे में अब ये कहा जा सकता है कि दोनों देशों की सेनाएं उस जगह लौट आई हैं जहां अप्रैल 2020 से पहले थीं. जानकारों को उम्मीद है कि इससे सीमा पर चीन के साथ तनाव और टकराव में कमी आएगी. बाली में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात होगी. 16 दौर की सीमा वार्ता के बाद तनाव कम होने के कुछ संकेत मिले थे तो आप इसे उसी दिशा में मान सकते हैं. दोनों देशों के नेता सम्मेलन में मिल रहे हैं. वहां वे एक ही छत के नीचे होंगे तो हो सकता है उससे पहले तनाव घटाने के लिए भी ऐसा किया गया.
लेकिन कांग्रेस इस समझौते को अलग निगाह से देख रही है. राहुल गांधी ने ट्वीट किया है कि चीन ने भारत की बात नहीं मानी है. उनके अनुसार भारत चाहता था कि अप्रैल 2020 की स्थिति को बहाल किया जाए. चीन ने नहीं माना. राहुल ने लिखा है कि प्रधानमंत्री ने बिना लड़े चीन को एक हज़ार वर्ग किलोमीटर इलाका दे दिया है. क्या भारत सरकार बताएगी कि इसे कैसे वापस लिया जाएगा?
कांग्रेस ने कहा- आखिर अप्रैल 2020 के पहले की स्थिति यथावत रखने का आपने वादा किया था, उसको मेनटेन क्यों नहीं किया जा रहा है? क्यों नहीं हमारी जहां पर सेना गश्त करती थी, वहां पर आज गश्त नहीं कर पा रही है? हमारा सवाल है कि क्या भारतीय सेना पेट्रोलिंग पॉइंट चौदह गलवान घाटी में पेट्रोलिंग पॉइंट पंद्रह हॉट स्प्रिंग में, पेट्रोलिंग पॉइंट सत्रह गोधरा में आज गश्त नहीं कर सकती है, क्योंकि अप्रैल दो हजार बीस के पहले हम यहां पर गश्त कर रहे थे. इसको लेकर सरकार की क्या नीति है आज ये भी पूछना जरूरी है कि अरुणाचल में चीन एक गांव बसा देता है, हमारे नागरिकों का अपहरण कर लेता है, सरकार का मौन क्यों हैं? मोदी जी वो लाल आंखें आप कब खोलेंगे, या चीनी प्रेम में आप लाल आंखें भी भूल गए हैं और आपकी छप्पन इंच की तथाकथित छाती भी कुंद हो गई है. असलियत सिर्फ ये है चीनी प्रेम आपको छोड़ना पड़ेगा और राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रहित में काम करना पड़ेगा, क्योंकि चीन समझ चुका है कि ये सरकार सिर्फ प्रचार के लिए काम करती है. अगर ऐसा न होता तो डोकलाम में फ्रिक्शन पॉइंट से चीन पीछे हुआ, पर चीन का वहां पर अतिक्रमण क्या आज भी मौजूद है?
13 सितंबर को कोलकाता में बीजेपी का एक बड़ा प्रदर्शन हुआ, इस प्रदर्शन को लेकर एक तस्वीर थी कि कोलकाता पुलिस प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछारों से हमला कर रही है, उन्हें रोक रही है. लेकिन जो दूसरी तस्वीरें आई हैं, उसे लेकर बात करने की ज़रूरत है. बीजेपी के कार्यकर्ताओं पर आरोप हैं कि उन्होंने कथित रूप से पुलिस को मारा है, बल्कि एक वीडियो में एक पुलिस अधिकारी को बार बार घेर कर मारा गया है. पुलिस की जीप जलाई गई है. कोलकाता पुलिस का दावा है कि उसने चार लोगों को इस आरोप में गिरफ्तार किया है और इनके संबंध बीजेपी से हैं. कई लोग फरार हैं. अगर यही दिल्ली में हुआ होता तो सब पर UAPA की धारा लगा दी जाती, घर पर बुलडोज़र चला दिया जाता और NIA जांच कर रही होती. लेकिन यह तस्वीर बता रही है कि आने वाले दिन किस तरह के होने वाले हैं.
अनुराग द्वारी ने पोषण आहार घोटाले को लेकर एक रिपोर्ट की थी. आज इस पर मध्य प्रदेश विधानसभा में चर्चा होनी थी. लेकिन सारी चर्चा इसी में गुज़र गई कि पहले कौन बोलेगा, कांग्रेस या बीजेपी?
एनडीटीवी ने पिछले सोमवार को महालेखाकार की रिपोर्ट के हवाले से मध्यप्रदेश में टेक होम राशन में कथित तौर पर घोटाले की पोल खोली, जिसके बाद शिवराज सरकार पर चौतरफा हमला हुआ. फिर लगातार हम मध्यप्रदेश में कुपोषण की जमीनी हकीकत दिखाते रहे. मानसून सत्र में सरकार को जवाब देना था लेकिन सदन में आज 45 मिनट सिर्फ इस बात में निकल गए कि पहले भाषण कौन देगा. बच्चों का निवाला किसने छीना इस पर चर्चा और निष्कर्ष हंगामे की भेंट चढ़ गया.
मध्यप्रदेश में महालेखकार की रिपोर्ट के हवाले से जब एनडीटीवी ने पोषण आहार में गड़बड़ी की परतें लगातार उधेड़ी तो शिवराज सरकार पर चौतरफा हमला हुआ.रिपोर्ट में दावा किया गया था कि टनों राशन कागज़ों में ट्रक पर चला लेकिन हकीकत में मोटरसाइकिल, कार, ऑटो और टैंकर में गया. बेसलाइन सर्वे पूरा नहीं हुआ. स्कूली शिक्षा विभाग ने स्कूल ना जाने वाली लड़कियों की संख्या 9,000 बताई लेकिन महिला बाल विकास ने 36.08 लाख को राशन बांटा.
महिला बाल विकास विभाग खुद मुख्यमंत्री के पास है तो देशभर से विपक्षी दलों ने उनके इस्तीफे की मांग कर दी. बुधवार को विपक्ष के 15 सदस्य इस मुद्दे पर स्थगन प्रस्ताव लाए
लेकिन सरकार के मुखिया पहले वक्तव्य देना चाहते थे, 45 मिनट इस पर ही हंगामा हुआ. बाद में हंगामा होता रहा और मुख्यमंत्री बोलते रहे. उनके खिलाफ नारे लगते रहे.
उन्होंने कहा कि, मध्यप्रदेश के AG की ड्राफ्ट रिपोर्ट 2018 से 2021 तक की है, यानी कांग्रेस के शासन के 15 माह की. राज्य की 11-14 वर्ष की लड़कियों की कुल संख्या का आंकड़ा 36 लाख का है. बेस लाइन सर्वे कर रिपोर्ट सितंबर, 2018 में भारत सरकार को भेजी थी. 2018-2021 तक हितग्राही बालिकाओं की कुल संख्या 5.51 लाख ही है. कांग्रेस ने पोषण आहार व्यवस्था को माफिया मुक्त रखने के हमारे फैसले को बदल दिया. ड्राफ्ट रिपोर्ट में 84 चालानों का नंबर ट्रक नहीं दूसरे वाहन का है. इस 84 में से 31 चालान कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के हैं. बिजली की खपत और उत्पादन की विसंगति के वक्त कांग्रेस का शासन था, जब पोषण आहार की गुणवत्ता खराब मिली. कांग्रेस सत्ता में थी हमने 35 करोड़ रुपये का भुगतान रोका. 104 अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई, 6 बर्खास्त, 22 निलंबित, 40 की जांच.
कांग्रेस नियमों के तहत चर्चा की मांग करती रही, मुख्यमंत्री बयान देते रहे. शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि, माननीय अध्यक्ष महोदय ने अनुमति दी और उसके अंतर्गत वक्तव्य देने का फैसला हमने किया था. उस समय ही हमने यह कह दिया था नेता प्रतिपक्ष बोलें और कोई सदस्य बोलें, हर एक प्रश्न का उत्तर दिया जाएगा. लेकिन कांग्रेस को चर्चा से भागना था. उन्हें तथ्यों से मतलब नहीं है. इसलिए जब मैं, वक्तव्य दे रहा था तब उन्होंने हंगामा किया और सारी बातें ठीक से ना हो पाए इस बात का प्रयास किया.
कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने कहा कि, जिस कुपोषण को लेकर मप्र कलंकित है उसका पोषण खाने वाले का वक्तव्य आता है. वो नहीं पूछते ये घोटाला कब का है 200 करोड़ का राशन बंटा 20 जुलाई है, फिर भी दोनों की सरकार है तो सजा दो.
मुख्यमंत्री ने सदन में खत का पहला पैरा तो बताया लेकिन ये नहीं बताया कि कैसे 12 अगस्त को महिला बाल विकास के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने भेजी गई रिपोर्ट के आखिरी पैरे में साफ लिखा गया कि दो हफ्ते तक जवाब नहीं मिला तो माना जाएगा कोई जवाब नहीं है और इसे कैग 2020-21 की रिपोर्ट में भेज दिया जाएगा. सरकार के बयान से साफ हो गया कि दो हफ्ते तो छोड़िए महीने भर में जवाब नहीं भेजा गया है.
सरकार ने सबसे अहम सवाल का जवाब भी नहीं दिया, जब हमने पूछा मध्यप्रदेश शिशु मृत्यु दर में नंबर वन और महिला मृत्यु दर में दूसरी पायदान पर क्यों है?
गोदी मीडिया पर फिर से हिन्दू मुस्लिम मसलों को लेकर डिबेट बढ़ने लगे हैं. ताकि जिनके भीतर ज़हर भरा गया है, ज़हर कम न हो जाए. हो सके तो ख़ुद को इस ज़हर से बचा लीजिए.
महाराष्ट्र काफ़ी समय से जिस निवेश को राज्य में लाने का प्रयास कर रहा था और बातचीत निर्णायक चरण में बतायी जा रही थी वो प्रोजेक्ट डेढ़ लाख करोड़ से ज्यादा के निवेश से गुजरात को ऐसे समय में मिल गया है जब राज्य विधानसभा चुनाव के करीब है. वेदांता-फॉक्सकॉन गुजरात में देश का पहला सेमीकंडक्टर संयंत्र स्थापित करेंगी ऐसे में महाराष्ट्र सरकार और महाविकास अघाड़ी दलों में आरोप प्रत्यारोप शुरू है. इसे लेकर राजनीति हो रही है. बहुत सारी बातें हैं. महाराष्ट्र के हाथों से बड़ा प्रोजेक्ट फिसल चुका है. एक लाख से ज्यादा रोजगार का दावा और देश में डेढ़ लाख करोड़ से ज्यादा के निवेश से सेमीकंडक्टर बनाने वाले संयुक्त प्रोजेक्ट की गुजरात में आने की घोषणा हुई है. सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल करो, मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में क्या जाता है? फिलहाल भारत में इसका निर्माण नहीं होता. ताइवान की इलेक्ट्रॉनिक कंपनी फॉक्सकॉन और भारत की कंपनी वेदांता की भागीदारी में ये प्रजेक्ट जून जुलाई तक महाराष्ट्र के पुणे में आने वाला था, लेकिन वेदांता ग्रुप ने घोषणा की कि प्रोजेक्ट गुजरात में लाया जा रहा है.
इस घोषणा के बाद महाराष्ट्र के विपक्षी दलों में शिवसेना के उद्धव गुट ने राज्य की एकनाथ शिंदे बीजेपी सरकार पर निशाना साधा है. ये महाराष्ट्र के लिए, हमारे लिए दुख की बात है कि इतना बड़ा इन्वेस्टमेंट एक दूसरे राज्य में गया है. उनका कोई इसमें दोष शायद नहीं है क्योंकि उन्होंने जो भी करना था उनके स्टेट के प्रति, उन्होंने किया है. यह इन्वेस्टमेंट महाराष्ट्र में सौ टक्का आने वाला था, यहां 160 से 200 कंपनियां आने वाली थीं. लगभग एक लाख रोजगार उपलब्ध कराने वाली थीं.
उधर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इस प्रोजेक्ट के गुजरात चले जाने के लिए उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाडी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि हमारी नई सरकार को आए हुए अभी दो महीने ही हुए हैं. अघाडी सरकार ने कंपनी को उचित रिस्पान्स नहीं दिया इसलिए कंपनी गुजरात चली गई. बताया गया कि इस मुद्दे को लेकर महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने पीएम से देर रात फोन पर बात की तो वहीं एनसीपी ने आरोप लगाया कि गुजरात चुनाव आ रहे हैं. ऐसे में महाराष्ट्र में बीजेपी गुजरात के हितों का ध्यान रख रही है. सोशल मीडिया पर सरकार को घेरा गया. राज ठाकरे ने भी ट्वीट कर सवाल उठाया और कहा कि राजनीति से परे जाकर इसकी जांच होनी चाहिए कि इतना बड़ा सौदा महाराष्ट्र से निकलकर गुजरात कैसे पहुंच गया.