रवीश कुमार का Prime Time: रिश्‍वत जैसे हमारे सिस्‍टम का हिस्‍सा हो गया...

सवाल उठ रहा है कि ऑरेकल ने रेलवे की एक कंपनी के अधिकारियों को सवा तीन करोड़ की रिश्वत दी, यह कैसे हो गया?

नमस्कार मैं रवीश कुमार, 

अमेरिका की एक कंपनी पर आरोप लगा है कि उसने रेल मंत्रालय की सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी के अधिकारियों को घूस दी है. चार लाख डॉलर की रिश्वत. करीब सवा तीन करोड़ रुपये. कौन सी कंपनी है, कौन अफसर है, उसने किस किस को पैसे दिए, कुछ पता नहीं. सवा तीन करोड़ की रिश्वत कोई मामूली रकम तो नहीं है. ऑरेकल दुनिया की बड़ी साफ्टवेयर कंपनियों में से एक है. इसी कंपनी से रेलवे की कंपनी के अफसरों ने रिश्वत ले ली. यह मामला 2016 से 2019 के बीच का है जब पीयूष गोयल रेल मंत्री थे. 

भारत में कंपनियों के हिसाब किताब पर नज़र रखने के लिए सेबी नाम की संस्था है, उसी तरह से अमेरिका में सिक्यूरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन है. यह वीडियो उसी एक्सचेंज कमीशन का है जिसमें बताया जा रहा है कि ईमानदारी का कितना महत्व है. इस आयोग के सामने ऑरेकल की पेशी हुई. सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन ने ऑरेकल पर आरोप लगाया है कि उसने भारत, टर्की और संयुक्त अरब अमीरात में रिश्वत का सहारा लिया है. भारत में अधिकारियों को सवा तीन करोड़ की रिश्वत दी है. इस पर कंपनी पर जो जुर्माना लगाया गया है वह रिश्वत की राशि से काफी बड़ी है. अमेरिका के सिक्यूरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमिशन ने ऑरेकल पर 188 करोड़ का जुर्माना लगा दिया है. 23 मिलियन डॉलर. 

इतनी बड़ी कंपनी किसे पैसा खिला रही थी, जो खा रहा था, वो ख़ुद खा रहा था या आगे भी किसी को खिला रहा था, उसने और किस-किस से पैसे खाए होंगे, इतने सारे सवाल हैं कि दिमाग़ से पहले पेट खाली हो जाए. एक जानकारी और है. यह खबर भारत से नहीं आई है. अमेरिका से आई है जब 27 सितंबर को वहां के आयोग ने फैसला दिया. आज छह अक्टूबर है. भारत में इस पर चुप्पी साध ली गई. द वायर ने इस पर पूर्व रेल मंत्री पीयूष गोयल के दफ्तर से और रेल मंत्रालय से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की है मगर कोई जवाब नहीं मिला. इतना ही कि अभी बताने के लिए कुछ नहीं है. ऐसा उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यही बताया गया की अभी बताने के लिए कुछ भी नहीं है. 

ऐसी ही खबर 2019 में आई थी. मनी लाइफ में सुचेता दलाल ने लिखा है. इस खबर के अनुसार Cognizant Technology Solutions Corporation ने भी भारत की एक कंपनी L&T को कथित रूप से पैसे दिए थे, काम कराने के लिए. अमेरिका के सिक्यूरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन ने Cognizant Technology Solutions Corporation की यह चोरी पकड़ ली. कंपनी ने इस पर कुछ नहीं कहा, मतलब खंडन किया न स्वीकार किया. बस चुपचाप करीब 200 करोड़ रुपये का जुर्माना भर दिया. 25 मिलियन डॉलर का फाइन चुका दिया. चूंकि यह रिपोर्ट 2019 की है तो ज़ाहिर है हमने यह भी देखने का प्रयास किया कि उस वक्त L&T ने क्या सफाई दी थी. मनी लाइफ में तो छपा है कि L&T ने काग्निज़ेंट के जुर्माना भरने पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया. फिर जून 2021 में इकानामिक टाइम्स में एक और खबर मिलती है कि L&T ने अमेरिकी की अदालत में कहा है कि उसे इस केस में पार्टी नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि  L&T के हिसाब से ऐसा कुछ नहीं हुआ है. आरोप था कि कांग्निजेंट के दो बड़े अधिकारियों ने सरकारी अधिकारी को 2015 में रिश्वत दी. कांग्निजेंट का चेन्नई में कैंपस बनना था और कंस्ट्रक्शन कंपनी L&T को ठेका मिला था. उसके ज़रिए कथित रूप से रिश्वत दी गई और बाद में L&T से कहा गया कि किसी और मद में पैसे का हिसाब दिखा दे. मगर अमेरिका की नियामक संस्था ने चोरी पकड़ ली. पुरानी रिपोर्ट में यह लिखा है कि कथित रूप से रिश्वत की रकम तमिलनाडु सरकार के अधिकारियों को दी गई. 

L&T और Cognizant Technology के मामले में फरवरी 2020 में लाइव मिंट में एक खबर छपी है कि किसी ने मद्रास हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर CBI से जांच की मांग की है. मद्रास हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस भी जारी किया है. 2019 में DMK ने भी इस मामले में जांच की मांग की थी. मीडिया रिपोर्ट में खबरें तो मिल जाती हैं मगर अंत में उन मामलों का क्या हुआ, कई बार इसकी जानकारी नहीं मिलती है. माना जा सकता है कि चुप्पी साध ली गई है. इस मामले में 2016 में कंपनी के प्रेसिडेंट को इस्तीफा देना पड़ा था. इस्तीफे का कारण तो नहीं बताया गया मगर इसे रिश्वत देने की घटना से जोड़ा गया था. दिलचस्प बात यह है कि इस घटना से संबंधित पुरानी खबरों में यह लिखा हुआ है कि इसके सामने के बाद भी न तो सरकारी अफसर हैरान हैं और न नेता. ठीक यही सवाल इस बार भी उठ रहा है कि ऑरेकल ने रेलवे की एक कंपनी के अधिकारियों को सवा तीन करोड़ की रिश्वत दी, यह कैसे हो गया? कुछ और पुरानी ख़बरें हमें मिली हैं, जिनसे पता चलता है कि विदेशी कंपनियों को भारत में काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है.

यह खबर 2017 की है. और भी जगहों पर छपी है लेकिन हमने हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट का सहारा लिया है. इसके अनुसार अमेरिका की एक इंजीनियरिंग कंपनी ने कथित रूप से नेशनल हाईवेज़ अथारिटी ऑफ इंडिया NHAI के अधिकारियों को दस लाख डॉलर से अधिक की राशि रिश्वत के रूप में दी है. इस कंपनी ने 2011 से लेकर 2015 के बीच कांट्रेक्ट हासिल करने के लिए पैसे दिए. यह मामला भी अमेरिका में पकड़ में आया था. अमेरिकी कोर्ट में जब मामला साबित हुआ तब भारत सरकार ने इस मामले में जांच भी की थी. CDM स्मिथ डिविज़न नाम की कंपनी के भारत में काम करने वाले कर्मचारियों ने कथित रूप से रिश्वत दी थी. खबरों के मुताबिक परिवहन मंत्री गडकरी ने जांच बिठा दी थी. सीबीआई के छापे की भी खबर मिलती है. उसके आगे की जानकारी नहीं मिल सकी. इस मामले के उजागर होने से पहले ही NHAI ne blacklist कर दिया था. 

अमेरिका में सिस्टम ऐसा है कि वहां की कंपनी जब रिश्वत देती है तो पकड़ी जाती है. फिर उसे जुर्माना भरना पड़ता है. कायदे से भारत में सिस्टम होना चाहिए कि कोई विदेशी या देशी कंपनी से रिश्वत मांगे तो सरकार की एजेंसी उसी वक्त पकड़ ले. चूंकि मीडिया गोदी मीडिया में बदल चुका है और कारपोरेट के भ्रष्टाचार के खिलाफ रिपोर्टिंग की संस्कृति समाप्त हो चुकी है, इसलिए ऐसी खबरें अब नहीं आती हैं. हिमाचल प्रदेश से खबर आई थी कि प्रधानमंत्री की रैली कवर करने वाले पत्रकारों को चरित्र प्रमाण पत्र देना होगा. हंगामा हुआ तो यह आदेश वापस ले लिया गया. गोदी मीडिया से कोई चरित्र प्रमाण पत्र मांग ले, इससे बुरा क्या हो सकता है, लेकिन आप ऐसे भी देख सकते हैं. चरित्र प्रमाण पत्र मांगने वाले अधिकारी ने गोदी मीडिया से पत्रकारिता प्रमाण पत्र नहीं मांगा. अगर पत्रकारिता का प्रमाण मांग देता तो गोदी मीडिया क्या करता. उसमें कौन सी खबर लिखवा कर ले जाते, चरित्र प्रमाण पत्र तो इस देश में कोई भी अधिकारी जारी कर देता है जिसके खुद के चरित्र का प्रमाण असंदिग्ध नहीं होता है. लोग शक कर सकते हैं कि इसका अपना चरित्र कैसा है. 

यह खबर तो पिछले साल सितंबर की है. रायटर्स, वॉल स्ट्रीट जर्नल, हिन्दू बिजनस लाइन और मनी कंट्रोल में छपी है. इस खबर के अनुसार अमेरिका के सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज आयोग (SEC) ने लंदन की विज्ञापन के क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी WPP पर 155 करोड़ का जुर्माना लगा दिया. अमरिकी नियामक आयोग ने अपने आदेश में लिखा कि इस कंपनी की एक सहायक कंपनी है जो भारत में काम करती है. उसने सरकारी विज्ञापन हासिल करने के लिए भारत के अधिकारियों को रिश्वत दी है. घूस खिलाने के कारण इस कंपनी का मुनाफा काफी बढ़ गया था. ऐसा खबरों में लिखा है. 

अब ये खबर भी पिछले साल सितम्बर की है. पिछले साल सितमबर में ही अमेज़ान के बारे में भी खबर आई थी कि कंपनी ने 2018-19 और 2019-20 के दौरान लीगल फीस के रूप में कथित रूप से 8000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का भुगतान किया था. 8000 करोड़ तो बहुत होता है, सवाल उठा कि यह राशि रिश्वत के रूप में दी गई और लीगल फीस के रूप में दिखाई गई होगी. कंपनी के वित्तीय हिसाब किताब में यह सब दिखाया गया था. खबरों में कहा गया है कि अमेज़ान इसकी जांच करा रही है और इसे लेकर वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को पत्र भी लिखा गया है. टाइम्स आफ इंडिया ने सूत्रों के हवाले से इस खबर के बारे में लिखा है कि अमेज़ान ने स्पष्टीकरण दिया कि 8500 करोड़ नहीं, 52 करोड़ रुपये लीगल फीस के रूप में खर्च हुए हैं. यह खबर भी अलग-अलग दावों में उलझकर रह गई. आखिर 8500 करोड़ की बात कहां से आ गई? 

मूल बात ये है कि रिश्वत देने के इन आरोपों की खबरें जब आती हैं तो एक दो जगहों पर छपती हैं और गायब हो जाती हैं. रफाल विमान में भी दस लाख डॉलर की कथित दलाली का मामला भी ऐसा ही निकला. फ्रांस में जांच होती है, रिश्वत देने के आरोपों की पुष्टि होती है लेकिन भारत में सील बंद लिफाफे में कोर्ट को जानकारी दी जाती है और सारे आरोप खारिज कर दिए जाते हैं. 

“French dare to order what we did not” - कोलकाता से छपने वाले अंग्रेज़ी अख़बार टेलिग्राफ ने हेडलाइन लगाई. 8 जुलाई 2021 की है. 3 जुलाई को एसोसिएट प्रेस से यह ख़बर आई थी कि  फ्रांस की national financial prosecutor office PNF ने हाल के आरोपों के संदर्भ में जांच करने के लिए एक जज को नियुक्त किया है. इस रिपोर्ट में लिखा है कि रफाल के को हासिल करने के लिए रिश्वत दी गई है. याचिका वित्तीय मामलों के एक NGO ने दायर की है. जिसने पहले भी एक याचिका दायर की थी कि दासौं ने रिलायंस ग्रुप को इसलिए चुना क्योंकि इसके प्रमुख प्रधानमंत्री मोदी के करीबी हैं. पहले इसे Hindustan Aeronautics Limited (HAL) को दिया जाना था.

हम कहां से चले थे, कहां-कहां से गुज़र गए. हमारी बात शुरू हुई थी कि साफ्टवेयर की बड़ी कंपनी ऑरेकल ने अपना काम कराने के लिए रेल मंत्रालय की कंपनी के अधिकारियों को सवा तीन करोड़ की रिश्वत दी. अमेरिका में जब यह आरोप साबित हो गया तो कंपनी को 3 करोड़ की रिश्वत के कारण 188 करोड़ का जुर्माना देना पड़ गया. मैं अक्सर सोचता हूं कि जब कोई मंत्री भारत को विश्व गुरु बनाने का दावा कर रहा होता है तब रिश्वत लेने वाले अधिकारी क्या सोचते होंगे, क्या ज़ोर ज़ोर से हंसते होंगे या ज़ोर ज़ोर से रोते होंगे? टैक्स चोरी और रिश्वत की खबरें कहीं से कम नहीं हुई हैं. नीचे की सीढ़ी पर बैठे अधिकारी का वीडियो वायरल हो जाता है, वे सस्पेंड हो जाते हैं मगर करोड़ों रुपये के आरोप लगने के बाद भी ख़बर बीच रास्ते से गायब हो जाती है. यूपी के देवरिया से एक वीडियो वायरल हो गया कि वहां के एक कर्मचारी गिरिजेश्वर मणि त्रिपाठी पेंशन का कागज़ बनाने के लिए महिला से दस हज़ार की रिश्वत मांग रहे थे. वे निलंबत कर दिए गए हैं. त्रिपाठी ने तो वीडियो में कहा है कि पैसा ऊपर के अधिकारी तक जाता है मगर ऊपर वाला ऊपर वाला होता है. उसका कुछ नहीं होता है.


राजनीति में राष्ट्रवाद और धर्म की आंधी चल रही है. सवाल यह है कि क्या धर्म की राजनीति से समाज में अलग किस्म की नैतिकता पैदा होती है? लोग झूठ बोलना छोड़ देते हैं, रिश्वतखोरी और मिलावटखोरी बंद कर देते हैं? जब धर्म के सहारे से राजनीति की जा रही है तो उसके असर का अध्ययन तो होना ही चाहिए कि इससे समाज सुंदर होता है या कुछ बदमाशों को लाइसेंस मिल जाता है? Do you get my point. गोदी मीडिया के तमाम एंकर हर दिन धर्म की रक्षा में उतर जाते हैं. कम से कम यही पूछ लेते सरकार से कि किस अधिकारी ने ऑरेकल से रिश्वत ली है या ये साहस भी खत्म हो जाता है? आप कई बार सुनते होंगे कि भारत विश्व गुरु बनने वाला है, क्या आपने सोचा है कि भारत से पहले कौन सा देश विश्व गुरु था या है, या किसी और देश ने कभी विश्व गुरु के लिए ट्राई ही नहीं किया? विश्व गुरु भारत की एक कंपनी ने भारत का नाम रोशन कर दिया है. मामला ज़रा गंभीर है. हरियाणा के एक कंपनी के बनाए कफ सिरप को लेकर WHO ने दुनिया भर में अलर्ट जारी किया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि मेडिन फार्मास्यूटिकल्स के बनाए कफ सिरफ के सेवन से 66 बच्चों की जान चली गई है. 

66 बच्चों की मौत का आरोप छोटा नहीं होता. इससे पैदा सवालों के जवाब तलाशने भारतीय ड्रग कंट्रोलर और हरियाणा के ड्रग कंट्रोलर की टीम सोनीपत की यूनिट पहुंची. स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक शक के घेरे में आई चारों दवाइयों के सैंपल ले लिए गए हैं. इसकी जांच के नतीजे दो दिनों में आएंगे. हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय की कुछ आपत्तियां भी हैं. सूत्रों के मुताबिक एडवाइजरी जारी करने से पहले नियमों के मुताबिक भारतीय रेगुलेटर को ना तो दवा के लेवल की फोटो दी और ना ही उसके बैच की जानकारी. स्वास्थ्य मंत्रालय इस बात को भी देख रहा है कि ये चारों दवाएं क्या सिर्फ गांबिया भेजे गए या कहीं और भी, किसी दूसरे देश में भेजी गईं. दवा टेस्टिंग के बाद ही प्रयोग में लाई जाती है. तो डब्ल्यूएचओ बताए कि बाजार में उतारने से पहले क्या इन चारों दवाइयों की जांच गांबिया में की गई थी. पीतमपुरा में कंपनी का कॉरपोरेट ऑफिस है. सुबह ये बताया गया कि ये ऑफिस खुला जरूर था लेकिन अब ये बंद कर दिया गया है. इसमें ताला लगा हुआ है, यहां पर कोई मौजूद नहीं है, लेकिन आरोप इसी कंपनी को लेकर लगा है कि इसके कोल्ड और कफ सिरप पीने के बाद बच्चों की मौत हो गई. डब्ल्यूएचओ ने आज चार कफ सिरप को लेकर एक अलर्ट जारी किया है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक मीडिया में इन चार कफ सिरप के इस्तेमाल से किडनी की समस्याएं और 66 बच्चों की मौत हुई है. भारत के केमिस्ट और ड्रगिस्ट सवालों के घेरे में आ गए हैं. उन्होंने चारों सिरप की भारत में मौजूदगी से इंकार किया है. देश में उसकी कोई मार्किटिंग नहीं है. फिर भी एहतियात के तौर पर डीसीआई से पूछा है. जांच पड़ताल से लेकर सवालों का दौर जारी है. सवाल भारत की कंपनी पर भी है और डब्ल्यूएचओ के ऊपर भी. जवाब जल्दी तलाशने जरूरी हैं, क्योंकि सवाल जिंदगी का है.  

भारत की दवा कंपनी के बनाए प्रोडक्ट से बच्चे मर जाएं, ग्लोबल लेवल पर साख ख़राब हो जाती है. भारत की दवा कंपनियों की साख बेहतर हुई थी लेकिन अगर यह सही निकला तो विश्व गुरु बनने के लिए आतुर भारत के लिए अच्छा नहीं होगा. बेहतर है कि हर तरह से जांच होनी चाहिए. स्वच्छता को लेकर ज़मीन पर कितना काम हुआ, विज्ञापन कितना छपा, इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन हर साल स्वच्छ सर्वेक्षण की रिपोर्ट आती है कि फलां शहर आगे हो गया, फलां शहर पीछे हो गया. उस सर्वेक्षण में इसकी जानकारी नहीं होती कि इस अभियान से सफाईकर्मियों की ज़िंदगी में क्या बदलाव आया? उनकी नौकरी कितनी पक्की हुई और सुरक्षा कितनी बेहतर हुई. आप किसी एक अखबार को लेकर सिर्फ इतना टाइप कीजिए कि सीवर या टैंक की सफाई करते समय दम घुटने से कितने लोगों की मौत हुई, आपको सच्चाई दिख जाएगी. नहीं देखना चाहते हैं कोई बात नहीं, इसके बिना भी हम विश्व गुरु बन सकते हैं. कोई रोक नहीं सकता है. 

भाषण में कभी पीछे नहीं रहना है, भले राशन का जुगाड़ न हो. पिछले दस सितंबर को दिल्ली के मुंडका में सीवर की सफाई करते समय दम घुटने से दो लोगों की मौत हो गई थी. इस साल मार्च की खबर है, दिल्ली से ही, अमर उजाला में छपी है. दो दिन के भीतर दिल्ली में छह लोग दम घुटने से मर गए. ये सभी सीवर की सफाई करने के लिए उतरे थे. पिछले साल जनवरी में फरीदाबाद में दो लोगों की मौत हो गई थी. और इस बुधवार को फरीदाबाद में ही एक प्राइवेट अस्पताल के सीवर की सफाई करते समय चार लोग मर गए.

फरीदाबाद मोर्चरी के अंदर चार सफाई मजदूरों की लाश है और बाहर मौत का कोहराम...बुधवार दोपहर बाद एक सेफ्टी टैंक की सफाई के दौरान चार मजदूर रोहित, रवि कुमार, विशाल और रवि गोलदार की मौत हो गई. इस हादसे में रवि और रोहित दो सगे भाईयों ने भी जान गंवाई. इनके पिता की पहले ही मौत हो चुकी थी. पूरा घर इन दोनों ही भाईयों की मजदूरी से चलता था. अब घर में विधवा मां और दोनों भाईयों की पत्नी और तीन बच्चे ही बचे हैं. घर की आर्थिक हालात खराब होने के चलते ये दोनों भाई 400 रुपये0 रोज़ पर एक प्राइवेट सफाई कंपनी में काम करते थे.

परिवार में अब कोई कमाने वाला नहीं है. मां हैं और उनके पति की पहले ही मौत हो चुकी है. एक महिला ने कहा, मैं रोहित और रवि की सास हूं मेरी दोनों बेटियों और बच्चे अब कैसे पलेंगे. हमें इंसाफ चाहिए.

बुधवार को दोपहर में फरीदाबाद के एक निजी अस्पताल में चार सफाई मजदूर सेप्टि टैंक की सफाई के लिए उतरे थे. अस्पताल ने कैमरे के सामने बात नहीं कि लेकिन उनका कहना है कि ये सेप्टिक टैंक नहीं बल्कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग का टैंक था. हम अस्पताल में उस जगह पर पहुंचे जहां मजदूरों की मौत हुई थी.अस्पताल में वह रेन वाटर हार्वेस्टिंग का टैंक है, पता नही हैं,  लेकिन बहुत ज्यादा स्मेल है और अस्पताल का STP प्लांट ठीक पीछे है.

पुलिस ने अस्पताल और प्राइवेट फर्म के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है लेकिन गिरफ्तारी कोई हुई नहीं है और  जांच के नाम पर उसके पास कहने को ज्यादा कुछ नहीं है. फरीदाबाद के एसीपी महेंद्र सिंह ने कहा कि अभी 4 लोगों की मौत हुई है, गिरफ्तारी कोई नहीं हुई है. हम पूछताछ कर रहे हैं. मामला दर्ज किया है.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि सीवर में सफाई के दौरान मरने पर सफाई मजदूरों को 10 लाख का मुआवजा मिलना चाहिए लेकिन इसको लेने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि ज्यादातर मामलों में गरीब मजदूरों का परिवार थक हार कर घर बैठ जाता है. 

सरकार कहती है कि हाथ से मैला ढोने के कारण कोई नहीं मरा, क्या हाथ से सीवर सफाई करना मैला ढोना नहीं है? क्या इस पर कोई बहस हो रही है? रेवड़ियों पर हो रही है. क्या आप नहीं जानते कि कोविड के समय कई देशों ने अपने नागरिकों के खाते में हज़ारों डॉलर डाले थे ताकि वे अपने आर्थिक नुकसान की भरपाई कर सकें. अमेरिका, जर्मनी, न्यूज़ीलैंड, कनाडा, आस्ट्रेलिया सब जगह. क्या वो रेवड़ियां थीं? बहस होनी चाहिए कि विज्ञापन छपवाकर और भाषणों में आर्थिक रूप से सुपर पावर होने के दावे के बाद भी अस्सी करोड़ जनता की हालत इतनी खराब क्यों है कि वह दो वक्त का अनाज भी नहीं खरीद सकती है? हमारा काम है, इन्हीं सब खबरों और सवालों को सामने लाना जो ग़ायब कर दी जाती हैं. 

स्क्रोल डॉट इन पर रिपोर्ट छपी है कि 2020 में कोविड महामारी के कारण साढ़े पांच करोड़ से ज़्यादा भारतीय गरीबी रेखा के नीचे चले गए. विश्व बैंक ने सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकॉनामी के सर्वे के आधार पर यह आकलन पेश किया है. भारत ने 2011 से इस तरह का आधिकारिक डेटा प्रकाशित नहीं किया है. 2020 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा था कि 2020 में 2.3 करोड़ भारतीय और गरीब हो गए. विश्व बैंक का कहना है कि जब आंकड़ों को अंतिम रूप दिया जाएगा तब यह संख्या साढ़े पांच करोड़ से भी अधिक हो सकती है. महामारी के कारण दुनिया भर में गरीबी बढ़ी है. 

राहुल गांधी के साथ 126 पदयात्री 3500 किलोमीटर की यात्रा पर निकले हैं. अभी तक इन सभी ने 500 किलोमीटर से अधिक की यात्रा पूरी कर ली है. इन दिनों यह यात्रा कर्नाटक से गुज़र रही है. आज सोनिया गांधी भी कुछ देर के लिए भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुईं. 


कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी पहली बार भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ीं तो कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं, सभी में उत्साह है. सोनिया गांधी करीब पौन घंटे तक पदयात्रा में शामिल रहीं लेकिन उनके स्वास्थ्य का हवाला देकर राहुल गांधी उन्हें वापस भेजने की कोशिश करते नजर आए तो बाद में सोनिया गांधी वापस चली गईं. लेकिन इसी बीच एक और तस्वीर चर्चा में आई सोनिया के जूते का फीता खुल गया तो झट से राहुल उसे बांधने बैठ गए. 

सोनिया राहुल से मिलने और उन्हें देखने काफी भीड़ उमड़ी वो भी मंड्या में जो कि जेडीएस का गढ़ माना जाता है. एक व्यक्ति ने कहा, मैंने राहुल और सोनिया दोनों को देखा, टीवी में पहले देखते थे लेकिन आज सामने देख बहुत अच्छा लगा. इस रैली से जुड़कर अच्छा लगा हमें, क्योंकि ये लोग हमारे लिए संघर्ष कर रहे हैं.

एक महिला जो देख नहीं सकती, वो फूल लेकर देने आई लेकिन भीड़ ने उसका हौसला पस्त कर दिया. उसने कहा, फूल राहुल के लिए लाए थे, भीड़ की वजह से नहीं दे पाए. कांग्रेस विद्धायक सौम्या रेड्डी खुश हैं कि वे सोनिया से मिल पाईं.

भारत जोड़ो यात्रा की वजह से राहुल की छवि बेहतर हुई है. गांधी जयंती के दिन मैसूर में बारिश में भींगकर दिया हुआ उनका भाषण वायरल हुआ है. राहुल गांधी कर्नाटक में भारत जोड़ो के साथ आए उन दिनों पे-सीएम 40 परसेंट वाला पोस्टर वायरल था, जिसमें निशाना कर्नाटक की बीजेपी सरकार और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई पर भर्ष्टाचार को लेकर साधा गया है. राहुल गांधी अपने भाषण का दायरा भी इसी के आसपास रखते हैं.

जब कभी भी कांग्रेस पर संकट गहराया गांधी परिवार ने कर्नाटक का रुख किया और इस राज्य ने कभी निराश नहीं किया. 1980 में इंदिरा गांधी को सुरक्षित सीट चिकमंगलूर में मिली तो 1999 में सोनिया गांधी ने बेल्लारी का दामन थामा और अब पार्टी के नए अध्यक्ष के तौर पर मलिकार्जुन खड़गे का नाम तय माना जा रहा है.

भारत जोड़ो यात्रा अपनी रफ्तार से मंजिल की तरफ बढ़ रही है लेकिन अभी दिल्ली दूर है. सोनिया गांधी के यात्रा से जुड़ने से नेताओं और कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह दिखा. अब देखना है कि डीके शिवकुमार और सिद्धारमैय्या के बीच की वर्चस्व की लड़ाई खत्म कर इन दोनों को जोड़ने में ये यात्रा सफल होती है या नहीं.

क्या आप जानते हैं कि पांच दिनों के भीतर गुजरात और महाराष्ट्र से 317 करोड़ के जाली नोट पकड़े गए हैं? 5 अक्टूबर को मुंबई से 227 करोड़ के जाली नोट बरामद किए गए हैं. विकास जैन को मास्टर माइंड बताया जा रहा है. विकास के साथ अंशुल शर्मा और दीनानाथ यादव को भी गिरफ्तार किया गया है. इसके पांच दिन पहले 30 सितंबर को सूरत में ही 25 करोड़ के जाली नोट पकड़ाए हैं. यह पैसा एंबुलेंस में ले जाया जा रहा था. यही नहीं जब और जांच हुई तब सूरत, जामनगर और आनंद ज़िले से 90 करोड़ के जाली नोट बरामद हुए हैं. यह सब मिलाकर 317 करोड़ से अधिक हो जाता है. एंबुलेंस में नकली नोटों का पकड़ा जाना अच्छी बात नहीं है. 

वैसे ही लोग सवाल कर रहे हैं कि दो अक्टूबर को प्रधानमंत्री के काफिले को रोक कर एंबुलेंस को जाने दिया गया. यह एंबुलेंस उनके रास्ते में कैसे आ गया? उनके काफिले का मार्ग तो पूरी तरह से बंद होता है. एंबुलेंस में कौन था, जो मरीज़ था वो किस अस्पताल में भर्ती हुआ? उसने प्रधानमंत्री का धन्यवाद क्यों नहीं अदा किया? मीडिया ने मरीज़ के परिवारों का इंटरव्यू नहीं किया? बस यही समझ नहीं आया. गुजराती अखबारों के पाठक ही बता सकते हैं कि ऐसी कोई रिपोर्ट छपी है या नहीं. उम्मीद है जल्द ही मरीज़ का परिवार सामने आएगा या लाया जाएगा जो प्रधानमंत्री का धन्यवाद अदा करेगा. पूरा देश धन्यवाद दे रहा है, मरीज़ के परिजनों को भी देना चाहिए. 

अगर बिहार में 317 करोड़ के जाली नोट पकड़े गए होते तो गोदी मीडिया रोज जंगलराज के नाम से बहस कर रहा होता. 2020 में गृह राज्यमंत्री ने लोकसभा में बताया था कि 2016 से 2019 के बीच गुजरात से 11 करोड़ से अधिक के जाली नोट पकड़े गए थे. यह देश के 17 सीमावर्ती राज्यों में सबसे अधिक था. पिछले पांच दिनों में गुजरात और महाराष्ट्र से 317 करोड़ के जाली नोट पकड़े गए हैं. मुंबई और गुजरात से आए दिन सैकड़ों करोड़ के ड्रग्स बरामद हो रहे हैं. इस पर पूरे देश को चिन्ता करनी चाहिए क्योंकि जो ड्रग्स नहीं पकड़ा जाता होगा, वो कहां-कहां पहुंच रहा होगा, किस-किस के घर में, इतना ही सोच लीजिए तो काफी है. बाकी ब्रेक ले लीजिए.

चीन की कई फर्जी कंपनियां सामने आ रही हैं जो भारतीयों को ठग रही हैं. ये कंपनियां दुबई, थाइलैंड, इंडोनेशिया में नौकरी देने के नाम पर बेरोजगारों को ठगती हैं. म्यांमार, लाओस, कंबोडिया जैसे देशों में उन्हें बंधक बनाकर अवैध रूप से उनसे आईटी का काम कराती हैं. विश्वगुरु भारत के नागरिकों को कोई कंपनी बंधक बना ले, इससे दुखद कुछ नहीं हो सकता. वैसे सरकार सक्रिय हो गई है. सरकार की ही मदद से 17 पीड़ितों को वापस लाया गया है. आप भी ऐसी कंपनियों से सावधान रहें. सौरभ शुक्ला की यह रिपोर्ट है- 

भारत से कई फ़र्ज़ी चाइनीज़ कंपनियां दुबई, थाईलैंड, इंडोनेशिया में बढ़िया आईटी नौकरी देने के नाम पर यहां से लोगों को ले जा रही हैं और थाईलैंड, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस जैसे देशों में ले जाकर उन्हें बंधक बनाकर उनसे अवैध आईटी के काम करा रही हैं. उन्हें वहां पीटा जा रहा है, उनके साथ जानवरों से बदतर बर्ताव किया जा रहा है.

हरीश कुमार ने कहा, ”मुझे लगा मैं कभी नहीं लौटूंगा. ये मेरा दूसरा जन्म है, किसी ने हमारी मदद नहीं की.” 43 साल के हरीश कुमार हमें आपबीती सुनाते हुए भावुक हो जाते हैं. इस साल मई में नौकरी की तलाश में दुबई गए फिर एक चीनी आईटी कंपनी के झांसे में आकर नौकरी के लिए थाईलैंड पहुंच गए. 

पवन से वादा किया गया था कि मोटी सैलरी और रहने के लिए घर दिया जाएगा, लेकिन थाईलैंड पहुंचते ही उनके होश उड़ गए. फिल्मी तरीक़े से उन्हें बंदूक़ की नोक पर अगवा करके म्यांमार ले जाया गया जहां पहले से ही हरीश जैसे कुछ भारतीय मौजूद थे. वहां हरीश से हर रोज़ 16-17 घंटे अवैध तरीक़े से फ़ेसबुक के ज़रिए लोगों से चैट कर उनका डेटा लेने का काम  कराया गया. और जब हरीश ने भारत जाने की बात की तो उन्हें पीटा गया. यहां तक कि बिजली का करंट भी लगाया गया.

वहां रह रहे दूसरे भारतीयों के साथ भी जानवरों जैसा बर्ताव किया गया. कुछ को तो हथकड़ियां लगाकर कमरे में बंद कर दिया जाता था. हरीश कुमार ने बताया, वहां हमसे जानवरों से बदतर बर्ताव किया जाता रहा. हमें काम न करने पर दौड़ाया जाता था, करंट लगा दिया जाता था.

हरीश और दूसरे बंधकों के परिवार भारतीय विदेश मंत्रालय से मदद की गुहार लगाते रहे पर मदद नहीं मिली. किसी तरह म्यंमार की सेना ने हरीश समेत 17 लोगों को बचाया और थाईलैंड छोड़ दिया. वहां थाईलैंड की पुलिस ने इन भारतीयों को अवैध तौर पर बार्डर पार करने के लिए लगभग एक महीने जेल में बंद रखा.

हरीश लगभग 4000 थाई बाथ का दंड देकर जेल से निकले और एक एजेंट की मदद से 29 सितंबर को भारत लौटे. हरीश कुमार ने कहा, हमें थाईलैंड की जेलों में रखे गया. खाने के नाम पर पैकेट में बस थोड़े चावल दिए जाते थे. हमारी सरकार नहीं सुन रही थी.

एक वीडियो थाईलैंड में बंधक भारतीयों ने उन्हें बचाने की गुहार लगाते हुए भेजा था. यहां तक बंधक तमिल भारतीयों की मदद के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टॉलिन को प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखना पड़ा. जिसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय की नींद टूटी.

मंगलवार को भारत सरकार कुल 13 भारतीयों को थाईलैंड से वापस लेकर आई है. भारत सरकार ने एक एडवाइज़री जारी कर भारतीयों से अपील की है. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि सोशल मीडिया पर मिल रहे जॉब ऑफ़र्स को जांच लें. कंपनी को जांचने परखने के बाद ही विदेश जाएं.

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हरीश तो किसी तरह से बचकर भारत वापस आ गए हैं पर उनके मुताबिक़ अब भी सैकड़ों भारतीय म्यांमार, थाईलैंड में चाइनीज़ कंपनियों के बंधक हैं. इन अवैध चाइनीज़ कंपनियों के सारे डिटेल्स थाईलैंड और म्यांमार की सरकारों के पास हैं पर फिर भी इन कंपनियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.