नमस्कार मैं रवीश कुमार...
हम राजनीति के अजीब दौर में प्रवेश कर गए हैं । कोई भी नेता कुछ भी आइडिया दे सकता है । चमकदार आइडिया जिसे सुनते ही लाइक करने का मन करे शेर करने लग जाए और उसे लेकर कमेंट में लोग भीड जाए । कोई सर्वे भी करने लग जाता है कि कितने प्रतिशत लोग नोट पर सावरकर की फोटो चाहते हैं और कितने प्रतिशत लोग गणेश लक्ष्मी की । इस तरह के नवीन नूतन आइडी हर दिन लॉन्च हो जाते हैं जिस पर आप लाइक करते हैं और जिसे लेकर कमेंट बॉक्स में भीड जाते हैं । ऐसे अनेक आइडी लॉन्च होते रहे हैं और आप भूल भी चुके हैं । आपका जीवन खास नहीं बदला मगर जब भी ऐसा आइडिया आता है आप दो तीन दिनों तक झगडते रह जाते हैं । दरअसल इनका मकसद यही होता है कि आप झगडने के बहाने समर्थक बने रहिए और इस की परीक्षा देते रहिये । आए दिन नेता नए नए आइडिया खोज कर ला रहे हैं कि डीबेट हो और हैडलाइन छपे ध्यान से सुनेंगे और देखेंगे तो अलग अलग दलों के नेता एक ही तरह की भाषा बोलने लगे हैं । पूरी राजनीति गुड मोर्निंग की तरह हो गई है । उच्च विचारों, प्रेरक विचारों से भरी हुई भारत की राजनीति का गुड मोर्निंग करण हो गया है ।
बातें तो अच्छी होती हैं मगर कम जीरो हाॅट में सुप्रभात और गुड मोर्निंग भेजने वालों का इस देश में अपना ही क्लॉस ये किसी धर्म या जाति के वर्ग से नहीं आती । इनके वर्ग को गुड मोर्निंग क्लॉस कहा जा सकता है । सुबह उठते ही ये किसी को अच्छे और प्रेरक विचार कर ही शौच को जाते हैं । इस तरह आपके फोन में अच्छे और प्रेरक विचारों का कचरा जमा होता रहता है । मेरे पास ये जानने का कोई तरीका नहीं कि इन पे रख गुड मॉर्निंग ऍसे भेजने वाला कितना महान होता है । चरित्रवान और सत्यवान होता है मगर अलग अलग मन के अध्ययन से पता चलता है कि भेजने वाले वर्ग में धूम की निशानी मिलती है । ठीक इसी तरह आज की राजनीति हो गई है ।
अच्छे और प्रेरक विचारों वाली काम सारे अनैतिक होंगे, सीना तानकर झूठ बोले जा रहे हैं । प्रेस कांफ्रेंस नहीं करेंगे मगर हर दिन एक आइडी लेकर आ जाते हैं जो सुनने में गुड मोर्निंग ॅ की तरह प्रेरक लगे सुन्दर लगे । जैसे हिंदी में मेडिकल की पढाई हो, संस्कृत में शपथ हो । इसमें बुरा कुछ भी नहीं है । मगर ये बातें आपको मूल समस्या से बहुत दूर तो ले ही जाती है । इस पर लिखा है सही फैसला लेना काबिलियत नहीं है । फैसला लेकर सही साबित करना काबिलियत है । सुप्रभात ये बात नोटबंदी के संदर्भ में है या तालाबंदी के पता नहीं लेकिन ध्यान से देखेंगे तो कोरा बकवास है । अब इस पर लिखा है पैसा भले ही शहर में ज्यादा हो, सुकून और शांति अभी भी गाँव में मिलती है । मुझे नहीं पता कि मन भेजने वाला शहर छोडकर गाँव चला गया है या गाँव से कोई शहर ना आए इसलिए ये ऍम भेज रहा है । मगर सुनकर तो लगेगा वहाँ कितनी सुंदर बात कह दी । इस इसलिए तरह तरह की प्रेरक बातों के नाम पर बकवास बातें आपकी सोच को घेरे रहती है । अब इसका कोई मतलब नहीं । मगर सुनने में ठीक ही लगेगा कि आपकी नियत से ईश्वर प्रसन्न होते हैं और दिखावे से इंसान सुप्रभात । जो इंसान सबका भला चाहता है वो इंसान जिंदगी में अकेला रह जाता है । सुप्रभात बताइए एक मॅन अच्छा बनाने की प्रेरणा देता है तो एक मॅन कहता है आप अच्छा मत बनिए, बनेंगे तो अकेले रह जाएँ । यह भी कम बकवास नहीं मगर पढकर लगेगा । सुबह तो अब हुई है । यह ना आता तो सुबह ना होती । इस पर लिखा है कि संसार जरूरत के नियमों पर चलता है । सर्दियों में जिस सूरज का इंतजार होता है, उसी सूरज का गर्मियों में तिरस्कार भी होता है । सुप्रभात आपकी कीमत तब होगी जब आप की जरूरत होगी । सारी दुनिया जीत सकते हैं ।
संस्कार से और जीता हुआ भी हार सकते हैं । अहंकार से सुप्रभात । पता न जिसने ये मैसेज भेजा है वो कितना विनम्र हो गया है । ये तो आज के राजनेताओं का चरित्र बताता है । लिखा है कि जिस समस्या का हल समझ ना आए उसे वक्त और ईश्वर पर छोड देना चाहिए । परिणाम सदय भी अच्छा रहेगा । सुप्रभात भारत की राजनीति गुड मोर्निंग हो गई है कि किसी माॅस् इज की तरह की जिस समस्या का हल समझ ना आए उसे वक्त और ईश्वर पर छोड दीजिए । परिणाम सदैव अच्छा रहेगा । सुप्रभात इस देश में बडी आबादी के लिए पच्चीस हजार रुपया महीना कमाना मुश्किल है । ये एक निम्न मध्यमवर्गीय देश है । इसकी प्रति व्यक्ति सालाना आय बहुत कम है । जाहिर है लोग आर्थिक तंगी में जी रहे हैं । लेकिन समाज और राजनीति का फ्रॉड देखिए कि दोनों एक दूसरे को प्रेरक संदेश खेले जा रहे हैं जिससे सुनते ही लगेगा किसी आइडिया की कमी थी । भगवान का नाम ले लिया तो गलत भी नहीं कह सकते बिरोधी धर्मविरोधी कहने लग जाएंगे । इसलिए हर दूसरा नेता अच्छे आइडिया की तरह बात कर रहा है । ये होता तो वो हो जाता है । आप जनता नहीं रहे । आप व्हाट्सप्प के इनबॉक्स हो गए हैं जिसमें नेता अपने उच्च विचार खेल देते हैं और आप फॉर्वर्ड करने लग जाते हैं ।
अब कुछ बयान भी ध्यान से सुनिए रविवार को यानी जनता कर्फ्यू के दिन शाम को ठीक पाँच बजे हम अपने घर के दरवाजे पर खडे हो कर या बॉलकनी में या खिडकियों के सामने खडे होकर पाँच मिनट तक । रविवार को शाम को पांच बजे पांच मिनट तक ऐसे लोगों का आभार व्यक्त करें और आभार कैसे व्यक्त करेंगे? ताली बजाकर के थाली बजाकर के घंटी बजा करके हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें । हम ये भी देखते हैं कि जितने बिजनिस करते हैं, व्यापारी है, इंडस्ट्रलिस्ट है । सब लोग अपने अपने यहाँ अपने कमरे में जरूर लक्ष्मी जी की और गणेश जी की मूर्ति लगा के रखते है और रोज सुबह काम शुरू करने के पहले उनकी पूजा करते हैं । आज मेरी केंद्र सरकार से प्रधानमंत्री जी से अपील है भारतीय कर रिंसी के ऊपर एक तरफ गांधी जी की तस्वीर है वो वैसे ही रहनी चाहिए । लेकिन दूसरी तरफ श्री गणेश जी की और श्री लक्ष्मी जी की तस्वीर भारतीय करेंसी के ऊपर लगाई जाए । जैसा मैंने कहा की हमें अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए भारत को आगे तरक्की देने के लिए बहुत सारे ऑफर्स की जरूरत है । लेकिन उसके साथ साथ देवी देवताओं के आशीर्वाद की भी जरूरत है ।
अगर भारतीय करेंसी के ऊपर एक तरफ गांधी जी की तस्वीर है वो इट इज रहे । दूसरी तरफ अगर लक्ष्मी जी की और गणेश जी की तस्वीर होगी तो इससे पूरे देश को उन का आशीर्वाद मिलेगा । लिखना है तो रोशन हिंदी में नहीं जा सकती है । उसमें क्या दिक्कत है, क्या पता ऊपर श्रीहरि रखो । ॅ कोरोना के समय काम करने वाले डॉक्टरों के साथ क्या हुआ? आप जानते हैं ताली बजाने के समय लगा कि सारा देश उनके साथ खडा रहेगा । बाद में वे अपनी सैलरी और वजीफे के लिए संघर्ष करने लग गए । कोरोना के ठंडा पढते ही कई राज्यों में स्वास्थ्यकर्मियों को नौकरी से निकाल दिया गया । मध्यप्रदेश के मुख् मंत्री ने कहा, पर्चे पर श्रीहरि लिखिए । हिंदी में लिखिए, सभी कहेंगे की अच्छी बात है, लिखना ही चाहिए । श्रीहरि और हिंदी में पर्ची लिखने का समर्थन करने बहुत सारे लोग निकल कर आ गए । जैसे मेडिकल की सारी समस्याओं की जड यही है । मगर उनमें से आधे भी नहीं । एक प्रतिशत भी नहीं बोलने आती जब देखते है कि सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य के क्या हालत है । आपको ही तय करना होगा कि श्रीहरि लिखना गुड मोर्निंग की तरह का सुंदर विचार है या वाकई से स्वास्थ्य व्यवस्था में ठोस सुधार आने वाला है । अनुराग वाली की पुरानी रिपोर्ट की हम छोटी सी झलक दिखाना चाहते हैं ताकि आप विचार कर सके । ऐसे जो भी मतलब हॉस्पिटल है, उन को सील कराया जाए । जान पहचान कहानी बहुत होती है । पाँच लाख रुपए क्या करेंगे? सोते भर उसने उठाया । नहीं बोला पापा पापा जबलपुर के नू लाइफ मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल में एक अगस्त को भीषण आग लग गयी । आठ लोग जिंदा जलकर मर गए । अठारह घायल हुए लाल परेड ग्राउंड में अद्भुत नृत्य है । जहाँ तक देख रहे हैं जनता से तो कई बार हमने ये मैदान भरा है । लेकिन आज ऍम बॉयल इनसे ये मैदान भरा हुआ है । संजीवनी एक सौ आठ वहाँ शववाहन माँगा नहीं मिला तो बच्चे के शव को बाइक की डिक्की में लेकर कलेक्टर कार्यालय शिकायत करने पहुंचे । एक सौ आठ एंबुलेंस सेवा को फोन लगाया । कोई नहीं आया तो मजबूरन ठेले में मरीज को अस्पताल ले गए ।
गाडी नहीं आई है जब मैं ले गए क्या करते बोले जितनी मुँह पूरा पैसा आप सोच रहे होंगे हिंदी और शववाहन की क्या तुलना एक पिता जब अपने नवजात बच्चे का शव होता है तो दुनिया की हर भाषा में उसका एक ही मतलब होता है बेइंतहा दर्द । हमारी भाषा में ही कॅाल और कानून की पढाई हो । इसी तरह अरविंद केजरीवाल जब आइडी लेकर आए की नोट पर लक्ष्मी गणेश की तस्वीर हो तो पूरे देश को उन का आशीर्वाद मिलेगा । छब्बीस अक्टूबर को इस पर कितनी बहस हो गयी । होनी भी चाहिए कि क्या राजनीति अभी इस स्तर पर आ गई है । लेकिन आपने ध्यान दिया होगा कि इसी दिन सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी सी आइ का आंकडा आता है कि भारत में बेरोजगारी की दर सात दशमलव नौ प्रतिशत हो गई है काफी ज्यादा इसी सी एम आइ का सितम्बर का डॅान है कि दिल्ली में बेरोजगारी की दर नौ दशमलव छह प्रतिशत है जो राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है । इस पर बहस क्यों नहीं होती है? इसलिए नहीं होती है कि अगर बीजेपी इस पर केजरीवाल से सवाल पूछेगी तो उसे भी कई राज्यों और देशभर में बेरोजगारी के सवाल पर जवाब देना पड जाएगा । हिंदू अखबार में छपी ये खबर बहुत पुरानी नहीं है । रिपोर्टर निखिल एम बाबू लिखते हैं कि दिल्ली सरकार के रोजगार बाजार पोर्टल से बारह हजार पाँच सौ अट्ठासी लोगों को ही रोजगार मिला है । जबकि आम आदमी पार्टी के नेता दस लाख लोगों को रोजगार देने का दावा करते हैं । यह पोर्टल जून दो हजार बीस में बनाया गया ।
अखबार लिखता है कि सरकार के पास उन लोगों के नाम या डिटेल नहीं है जिन्हें रोजगार मिला है । ये खबर सूत्रों के हवाले से लिखी गई है । अखबार ने ये भी लिखा है कि सरकार की प्रतिक्रिया लेने की बहुत कोशिशें की गई मगर नहीं मिली । दो हजार उन्नीस में रोजगार का सवाल उठा । तब एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पकौडा तलना भी तो रोजगार है । उनकी सरकार के आठ साल बीत जाने के बाद अचानक एक दिन हंगामा मचता है कि दो हजार चौबीस से पहले दस लाख नौकरियां दी जाएगी । कोई सवाल नहीं पूछता है कि अगर दो साल में करीब करीब दो साल में दस लाख नौकरियां दी जा सकती है तो पिछले आठ वर्षों में चालीस लाख नौकरियां क्यों नहीं दी गई? कहाँ गई चाहे यूपी ऍम या अन्य सरकारी ऍम सभी ने नियुक्तियों की समयबद्ध प्रक्रिया शुरू कर दी है । हाल ही में केंद्र सरकार ने रोजगार मेला कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें पचहत्तर हजार युवाओं को नियुक्ति पत्र दिया गया । किसी ने ये सवाल नहीं पूछा कि पचहत्तर हजार युवाओं ने जो परीक्षा पास की है वो कब हुई? उसका फॉर्म कब निकला? नियुक्ति कब हुई? हम ये सवाल इसलिए पूछ रहे हैं कि दो हजार बीस इक्कीस के बजट में ऐलान हुआ कि नॅशनल रिक्रूटमेन्ट एजेंसी ॅ बनेगी जो नाॅट पोस्ट की परीक्षा कराएगी । सूचक पटेल ने जब आरटीआइ से पूछा ॅ ने भर्ती के लिए जो नोटिफिकेशिन निकले हैं उसकी काँपी दीजिए तो जवाब आया कि अभी तक कोई नोटिफिकेशिन नहीं आया है ।
ये मार्च दो हजार बाईस तक की बात है । उस समय तक ऍफ साइट नहीं थी । कोई क्षेत्रीय कार्यालय नहीं बना था । अगस्त दो हजार बाईस में राज्य सभा सांसद मनोज झा ने पूछा कि फॅसने जितनी भर्तियां कराई हैं उनका राज्यवार डिटेल दीजिए तो सरकार ने डिटेल नहीं दिया । जबकि लोकसभा में कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि दो हजार इक्कीस के आखिर तक ऍम भर्ती परीक्षा लेनी शुरू कर देगी । बारह जुलाई दो हजार बाईस के इंडियन एक्स्प्रेस में जितेंद्र सिंह का बयान छपा है की इस साल के अंत तक दो हजार बाईस के अंत तक परीक्षाओं का आयोजन करेगी । इसलिए हमारा सवाल है कि जिन लोगों को प्रधानमंत्री ने नियुक्ति पत्र दिया है उन की परीक्षा किस एजेंसी ने कराई? दो साल हो गए ने क्यों नहीं कराई, कब इन्हें नियुक्ति पत्र मिला । कहीं ऐसा तो नहीं की ये लोग बहुत पहले से नौकरी करने लगे थे और अब नियुक्ति पत्र दिया गया है । जवाब आएगा तो अगले कार्यक्रम में हम लगा देंगे । इस कार्यक्रम में भाषण देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आठ वर्षों में रोजगार और स्वरोजगार अभियानों के तहत लाखों युवाओं को नियुक्ति पत्र मिला है । ये उनके शब्द स्वरोजगार वालों को किसने नियुक्ति पत्र दिया और रोजगार और स्वरोजगार की अलग अलग संख्या क्यों नहीं बताई जाती है । ताकि पता चले कि केन्द्र सरकार ने आठ वर्षों में कितने युवाओं को नियुक्ति पत्र दिया । ये संख्या कहाँ से आई लाखों कहाँ से आ गए हर चीज का प्रचार करने वाली सरकार लाखों युवाओं को नियुक्ति पत्र देने का प्रचार करना क्या भूल गई? बीते आठ वर्षों में पहले भी लाखों युवाओं को नियुक्ति पत्र दिए गए । लेकिन इस बार हमने तय किया कि इकट्ठे नियुक्ति पत्र देने की परंपरा भी शुरू की जाए ताकि डिपार्टमेंट में भी टाइम बाउंड प्रक्रियाएं पूरा करने और निर्धारित लक्ष्य को जल्दी से पार करने का एक सामूहिक स्वभाव बने । सामूहिक प्रयास हो । जैसे ही आप आर्थिक मुद्दों पर सवाल करने लग जाते हैं, राजनीतिक दलों के लिए मुश्किले बढ जाती है । ऐसा नहीं है कि नेता स्कूल, नौकरी, अस्पताल की बात नहीं कर रहे हैं मगर सारी बातों के साथ साथ या उनसे भी आगे धर्म की बात चला रहे हैं । हमने दो हजार अठारह में प्राइम टाइम में नौकरी सीरीज चलाई । कई हफ्ते तक लगातार सरकारी भर्ती परीक्षाओं की बदहाल स्थिति पर कार्यक्रम क्या अगर आप उन पुराने एपिसोड को देखेंगे तो पता चलेगा कि केन्द्र सरकार कितनी मुश्किल से नियुक्ति पत्र देने के लिए तैयार हुई थी । स्टाल, कमिश् इनकी परीक्षाओं के नतीजे निकालने और नियुक्ति पत्र देने को लेकर छात्र प्रदर्शन किया करते थे । राज्यों में भी सरकारी भर्तियों के आयोगों के बाहर प्रदर्शन होते रहे और युवा लाठियां खाते रहे । इनमें कोई बीजेपी का नेता नहीं गया ।
दिल्ली में अनशन में राहुल गांधी गए थे । मगर प्रधानमंत्री अपने बयान में कह रहे, लाखों युवा आप को नौकरी दी गई । अपने भाषण में इसका भी जिक्र कर सकते थे कि कैसे नौकरियाँ दी गई । काश वे उस समय प्राइमटाइम पर नौकरी सीरीज देख पाते तो पता चलता कि नौकरी देने के मामले में उनकी सरकार का रिकॉर्ड वैसा तो बिल्कुल भी नहीं है जैसा वे दावा करना चाहते हैं । इसलिए सब की नजर प्राइमटाइम पर है क्योंकि यह उनकी नजर में चुभता हैं । युवाओं ने भी नौकरी के मुद्दों को नहीं छोडा । वो भले धर्म और नफरत के आधार पर दिया मगर नौकरी के लिए लाठियां भी खाते रहे । उसी धरना प्रदर्शन का सहारा लिया जिससे वे धर्म की राजनीति के नशे में गलत बताने में लगे थे । या उन्हीं का संघर्ष है कि आज की राजनीति सरकारी नौकरी की भाषा बोलने लगी है और ये हर चुनाव में बडा मुद्दा होने लगा है । यही कारण है कि अब जब भी सरकारी भर्तियों का नियुक्ति पत्र दिया जाता है तब मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री आते हैं युवाओं को और देश को इतना तो समझना चाहिए कि आर्थिक मुद्दों पर बात करने से नौकरी मिलती है, भले ही कम मिलती है मगर मिलती है वरना पकौडा तलने को रोजगार बताकर रोजगार के सवाल को टाल देने वाले प्रधानमंत्री नियुक्ति पत्र नहीं बांटने आती है । जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विरासत के नाम पर मंदिर परिसरों के विक आप को अपने काम का और राजनीति का हिस्सा बना रहे हैं, वहाँ जब भी पूजा पाठ करने जाते हैं तब उसका गोदी मीडिया लगातार प्रसारण करता है । जाहिर है दूसरे दलों पर भी इसी जुबान में राजनीति की भाषा तलाशने का दबाव बढेगा । लेकिन क्या इसके जवाब में यही एक रास्ता बचा है । बार बार धर्म का नाम लेकर हम आस्था का सतहीकरण करते जा रहे हैं । क्या राजनीति के पास कोई और भाषा नहीं बची है? कितने चुनाव हार गए? दो दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी राहुल गाँधी ने धर्म का शॉर्ट कट नहीं लिया । उन्होंने तीन हजार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा का लम्बा रास्ता चुन लिया । वह भी तब जब तमाम जानकार सवाल उठा रहे हैं कि इस पदयात्रा से राहुल को कुछ नहीं मिलेगा । कांग्रेस को वोट नहीं मिलेगा या जानते हुए भी कोई नेता इसी वक्त में पदयात्रा किये जा रहा है बल्कि अपनी भाषा को भी बिगडने से बचा रहा है । तमाम निजी हमलों के बाद भी राहुल ने भाषा की शालीनता नहीं छोडी है । ना ही उन्होंने राजनीतिक हमलों को मैं मैं बदला है कि मुझे गाली दी जा रही है । मेरे पिता का अपमान किया गया है । मेरे नाना का अपमान किया गया है । मुझे ये कहा जा रहा है वो कहाँ जा रहा है । चाहते तो राहुल अपना रोना रो सकते थे मगर राहुल ने ऐसा नहीं किया । राहुल को भी कोई आइडिया दे सकें था कि आप तमाम जगहों पर देवी देवताओं की तस्वीर लगाने की मांग कर ऍम लाइन बटोर सकते हैं । जैसे कह सकते हैं कि भारत में जो भी किताब और काँपी छपेगी उसके कवर पर केवल सरस्वती जी की तस्वीर होगी ताकि सबको विद्या मिले । अगर राहुल गाँधी बाकी नेताओं की तरह ये सब करते तो जिस में उनकी पदयात्रा की खबर तक नहीं छपती है । जिस चैनल में उससे कवर तक नहीं किया जाता है वहाँ भी हेडलाइन बन जाते । लेकिन छपने और दिखने का मोह छोडकर आसान तरीका छोडकर राहुल गाँधी ने इसी दौर में एक मुश्किल रास्ता चुना है । वे अपनी इस यात्रा में कह रहे हैं कि सारी सरकारी संपत्तियां चंद उद्योगपतियों के हवाले की जा रही है । मछुआरों के सवाल उठा रहे हैं, किसानों के सवाल उठा रहे हैं ।
युवाओं के रोजगार की बात आर्थिक मुद्दों पर बात कर रहे हैं और धर्म की राजनीति से देश को आगाह कर रहे है । धर्म की राजनीति से देश ही नहीं टूट रहा राजनीति भी टूटकर बिखरती जा रही है । इसी समय में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति को धार्मिक उत्सव में बदल दिया है, जिसका जवाब खोजने में केजरीवाल भी उनकी भाषा बोलने लगे हैं । राहुल ने अपनी भाषा को बचा रखा है, हार रहे हैं मगर जल्दी में भाषा नहीं कर रहे हैं । हजार किलोमीटर से ज्यादा पैदल चल चुके हैं । उनकी यात्रा को ना तो मीडिया में हेडलाइन मिलती है, ना सोशल मीडिया के बौद्धिकों में लाइक्स । आप देख सकते हैं कि जितने लोग लक्ष्मी गणेश वाले बयान को लेकर चर्चा कर रहे हैं, उनमें से कितने लोग पदयात्रा की चर्चा करते हैं । यात्रा तब भी चल रही है जब जानकार इसे कर रहे हैं । उसके बाद मैं उनसे पूछता हूँ क्या तुम्हें लगता है तुम्हें भरोसा है कि कॉलेज के बाद स्कूल के बाद तुम्हें नौकरी मिलेगी? जवाब मिलता है भरोसा नहीं है । हमें नहीं लगता कि हमें नौकरी मिलेगी । आज हिंदुस्तान में पैंतालीस साल से सबसे ज्यादा बेरोजगारी है । प्रधानमंत्री ने कहा था हर साल दो करोड युवाओं को रोजगार दूँगा । कहाँ गए दो करोड रोजगार उल्टा करोडों युवाओं को बेरोजगार कर दिया है । कर्नाटक में ढाई लाख सरकारी पोस्ट वेकंट क्यों है और प्रधानमंत्री कि पॉलिसियों ने नोटबंदी फॅस टी और उन्होंने जो के समय क्या उसके कारण साढे बारह करोड युवाओं रोजगार हो गए । इसमें कोई शक नहीं कि आर्थिक मुद्दों की राजनीति मुश्किल राजनीति होती है । धार्मिक मुद्दों की राजनीति सबको धर्माचार्य बना देती है । राजनीति की सारी जगह धार्मिक बहसों से घिरती जा रही है । लेकिन जब भी इससे राजनीति निकलती है जनता का भला होता दिखता है । आज दिल्ली की राजनीति दो बहुत जरूरी मुद्दों को लेकर टकरा गई और राजनीति को ऐसे ही मुद्दों पर टकराते रहना चाहिए । दो हजार सोलह से हम प्राइमटाइम में यमुना नदी में बनने वाले इस झाग की तस्वीर दिखा रहे है । छठ पर्व के समय इसका जिक्र आ जाता है । दो हजार इक्कीस में भी यहाँ पानी की बौछारें की जाने लगी थी ताकि लोगों को भरमाया जा सके की झाग दूर हो रहे हैं । दो हजार बाईस में भी झाग नजर आ रहे हैं तो बीजेपी के सांसद नाव लेकर झाग में उतर गए ताकि केजरीवाल सरकार को घेर सके ।
अरविंद केजरीवाल का दावा है कि दो हजार पच्चीस तक यमुना कर दी जाएगी । इतनी की नदी नहाने लायक हो जाएगी । मनोज तिवारी को पता होना चाहिए की दिसंबर दो हजार अठारह में केंद्र सरकार ने कहा कि यमुना की सफाई नमामि गंगे प्रोजेक्ट का हिस्सा है । अंडरलाइन कर लीजिए तो मनोज तिवारी को सवाल केजरीवाल से भी पूछना चाहिए और अपने नेता प्रधानमंत्री मोदी से भी दो हजार अठारह में की । रिलीज में बताया गया है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता के विस्तार के लिए नमामि गंगे के तहत तीन हजार नौ सौ इकतालीस करोड की सत्रह योजनाओं को मंजूरी दी गई है । इसमें दिल्ली के लिए दो हजार तीन सौ इकसठ करोड के एक ग्यारह प्रजेक्ट है । यू पी के लिए तेरह सौ सैंतालीस करोड की तीन योजनाओं को मंजूर किया गया है । ये प्रजेक्ट कितने समय में पूरे होंगे इसकी जानकारी पीआईबी की रिलीस में नहीं दी गई थी । लेकिन इस साल मार्च में केंद्र सरकार राज्यसभा में कहती है कि यमुना की सफाई के लिए चार हजार तीन सौ पचपन करोड के चौबीस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है । ये सभी प्रजेक्ट दो हजार तेईस में पूरे होंगे । इसी के साथ इसी साल दिल्ली सरकार ने अपने बजट में कहा है कि तीन साल में यमुना पूरी तरह से हो जाएगी । ये सब दो हजार अठारह का डिटेल है जिसे हम ने पिछले साल के प्राइम टाइम में दिखाया था । क्या मनोज तिवारी बता देंगे कि दो हजार तेईस आने वाला है? यमुना की सफाई को लेकर केन्द्र के कितने प्रजेक्ट पूरे हो गए? क्या मनोज तिवारी और बीजेपी के अन्य सांसद जानना चाहेंगे कि नमामि गंगे प्रोजेक्ट की समीक्षा करते समय इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या क्या टिप्पणियां की हैं? यू । पी । के हिंदी अखबारों में कोर्ट की टिप्पणियां छपी हैं कि किस तरह भ्रष्टाचार हुआ है और गंगा नहीं हुई है । क्या मनोज तिवारी और बीजेपी के नेता नाव लेकर गंगा में जाएंगे? प्रधानमंत्री को दिखाएंगे कि अभी भी का पानी गंगा में क्यों गिर रहा है । मेरा मन रो रहा है । आज मैं पिछले साल भी यहां आया था । इस साल लाया सायद दावे थे कि सब ठीक हो गया है । उसके बाद भी ये झाग दिखे और झाग तो झाग है ।
ये झाग एनडीटीवी के कैमरे में ना आ जाए इसके लिए पचास हजार लीटर कॉमिकल यहाँ पे लाकर के इस झाग को छुपाने के उसको डालने से झाग खत्म हो जाता है । वो यमुना जी में जहर डाल रहे हैं । हमने जब्त कर लिया है, एफआइआर करने जा रहे हैं । आप कहते हैं की पाँच साल में दो हजार तेरह में कहाँ पाँच साल में डुबकी लगाएंगे । अठारह में कहे दो साल बाद हम उसके भी दो साल बाद खडे हैं । अरविंद केजरीवाल जी क्या यमुना जी की सफाई का आपने वादा किया था तो इसका मतलब आप लाॅन फिल साइड दिखा करके जो चिंता व्यक्त कर रहे हैं, क्या किसी दिन सांसदों के साथ बैठ करके चिंता व्यक्त किये? आज ही दिल्ली के मुख्यमंत्री गाजीपुर बॉर्डर चले गए । यहाँ पर कूडे का पहाड बन गया है । दिल्ली में एमसीडी के चुनाव होने हैं तो केजरीवाल ने कहा कि उनकी पार्टी कूडे को मुद्दा बनाकर चुनाव लडेगी । गणेश लक्ष्मी की तस्वीर से कहीं बेहतर है राजनीति इन मुद्दों पर हो नेता इन मुद्दों पर घेरे जाए । कई दिनों से आम आदमी पार्टी अपने ट्विटर हैंडल से दिल्ली में जमा कूडे के ढेर के विडियो जारी कर रही है । हाल ही में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी का बयान अमर उजाला में छपा था कि कूडे के पहाडों को हटाने के लिए आठ हजार करोड रुपए खर्च होंगे और पहाडो के हटाने से पंद्रह हजार एकड जमीन खाली होगी । इसकी मंजूरी दी गई कूडे की समस्या आज ही तो नहीं है । यह काम पहले क्यों नहीं हुआ? कूडे के ये पहाड समस्या भी हैं और अपने आप में प्रदूषण बम भी । गाजीपुर बॉर्डर पर बने इस पहाड का दौरा करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा कि बीजेपी और भी ऐसे पहाड खडे करना चाहती है । इन्हें हटाना केंद्र सरकार की जवाबदेही है । दिल्ली नगर निगम की जिम्मेदारी है जहाँ पंद्रह साल से बीजेपी सत्ता में है । कुल मिलाकर यह पहाड आज तक नहीं है । बीजेपी के सांसद गौतम गंभीर ने ट्वीट कर दिया की मैं दो हजार उन्नीस से आठ बार गाजीपुर पहाड पर गया और बार बार बुलाने पर भी मुख्यमंत्री नहीं आए । चुनावी मेंढक आसमान देखकर निकलते हैं । तकलीफ देखकर नहीं ॅ लाइडर इन चीफ केजरीवाल लिखते हैं, गौतम गंभीर सांसद है ।
एक मुख्यमंत्री को चुनावी मेंढक कह रहे हैं । लोकतंत्र में सामान्य बातों के ये भी यही भाषा बच गई है । दरअसल आप केवल कूडे का पहाड नहीं देख रहे हैं । यह भी देख रहे हैं कि राजनीति की भाषा भी कूडे के पहाड में बदलती जा रही है । प्रधानमंत्री मोदी जब मुख्यमंत्री थे तब भी गुजरात को गाली देने की बात करते थे, मुद्दा बनाते थे, छह करोड गुजरातियों के अपमान की बात कर भावुकता पैदा करते थे । अब केजरीवाल भी दिल्ली के अपमान की बात करने लगे हैं । बस दिल्ली में आते हैं । इनके बडे बडे मंत्री और केजरीवाल को गालियां दे के चले जाते हैं । केजरीवाल को गालियां दे के चले जाते हैं । मैं दिल्ली की माँ बहनों से पूछना चाहता हूँ, तुम्हारे बेटे ने तुम लोगों के बच्चों के अच्छे स्कूल बनवाए । ये मंत्री आके मेरे को तुम्हारे बेटे को गाली दे के जा रहे हैं । बर्दाश्त करोगे तुम लोग दिल्ली के बुजुर्गों से दिल्ली की माताओं से पूछना चाहता हूँ, तुम्हारे बेटे ने तुम्हारे लिए तीर्थ यात्रा का श्रवण कुमार बनके तुम्हारे बेटे ने तुमको तीर्थ यात्रा भेजा । अब ये तुम्हारे श्रवण कुमार को तुम्हारे बेटे को गालियां दे के जा रहे हैं । बर्दाश्त करोगे तुम लोग तुम्हारे बेटे को गालियां दे रहे हैं । इस बार बदला लेना है । इस बार का चुनाव केवल कूडे के ऊपर होगा । कूडा सफाई, दिल्ली की सफाई के ऊपर ये चुनाव होगा । अब इन्होंने प्लान बनाया है । सोलह कूडे के पहाड और बनाएंगे क्योंकि ये तो बहुत अच्छा हो गया । अब इसके ऊपर और कूडा डाल नहीं सकते । बता रहे हैं स्टेबल हो गया तो दिल्ली का जो सारा कूडा है । इसके ऊपर तो दाल नहीं सकता । अब सोलह जगह इन लोगों ने चिन्हित करी है जहाँ पे सोलह कूडे के पहाड और बनेंगे । आज सबसे बडी चुनौती है कि राजनीति को मुहावरों, तुकबंदियों और धार्मिक प्रतीकों से कैसे बचाएं । राजनीति से दूर नहीं रह सकती है मगर एक दूरी तो होनी ही चाहिए । कश्मीरी पंडितों को लेकर राजनीति में कितनी भावुकता पैदा की गई और अब भावुकता की इस राजनीति ने आज उसी कश्मीरी पंडित को अकेला भी कर दिया है । शोपियान जैसा इलाका जहाँ बत्तीस साल तक कश्मीरी पंडित डटे रहे, वही रहे । उन्होंने इंकार कर दिया की हम शोपियान से नहीं निकलेंगे । आज ये स्थिति आ गई कि जब हम और आप दीपावली पर हर्षोल्लास से दिए जला रहे थे कश्मीरी पंडित पंद्रह ऐसे परिवार है जो अपना पुश्तैनी घर उसी रात को छोड कर निकल गए । सत्तर मंत्री मोदी सरकार के इस महीने की दस तारीख से आउटरीच प्रोग्राम कर रहे हैं साहब कश्मीर हम पूछना चाहते हैं इनमें से एक भी मंत्री एक भी कॅश में गया हो । कश्मीरी पंडितों से मिलने तो हमें बतायें । देश को बताए कश्मीरियों को बताए ये क्या? आउटरीच हाँ मुँह फॅर उसके बाद ये कागज देखिये आपको विनीत जी भेजेंगे । अभी थोडी देर में धमकाया जा रहा है । कश्मीरी पंडित एम्प्लॉईज को की अगर आप जॉइनिंग नहीं करेंगे तो आप के खिलाफ कार्यवाही होगी । अरे आप उनको महसूस नहीं रख सकते ।
आप उनको सुरक्षा नहीं दे सकते । आप उनका उनका पुनर्स्थापन नहीं कर सकते । धमका रहे हो वो अपनी जान पे खेले क्यों? क्योंकि आप दिखाना चाहते हो विश्व को कि सब सब कुछ ठीक है । सब चंगा सीख धर्म के नाम पर डराना धमकाना बहुत हो गया । मध्य प्रदेश के खरगोन से रिपोर्ट देखेंगे तो समझ आएगा कि अब इसके नाम पर दूसरे तरह का धंधा भी हो रहा है । यहाँ एक मामला सामने आया है । बजरंग दल के नेता ने कथित तौर पर मुस्लिम संस्था बनाई, किसानों में मुसलमानों के बस जाने का भय पैदा किया और उनसे सस्ते दामों में उनकी जमीन खरीद ली । संस्था का कहना है उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है । वो समाज सेवा कर रहे हैं । जब आप ये रिपोर्ट देखेंगे तो समझ जाएंगे कि धर्म के नाम पर भय की राजनीति से आपसे क्या क्या हडपा जाने वाला है । मुँह अंग्रेजी में की गई थी, मैं भी नहीं पाया । वो हमारे पास आया और कहने लगा के दादा तुम्हारे आस पास की जमीन हमने सब खरीद ली है तो आप भेज दो क्योंकि यहाँ पर खाना बनेगा, मुसलमान होगा बीस पच्चीस साल पे इस बोर्ड का नाम था तंजीमें और यहाँ जो जमीन थी वो तंजीमें जी के नाम पर ही खरीदी गई । लेकिन दो हजार सात में इस बोर्ड का नाम बदलकर प्रोफेसर पीसी महाजन फाउंडेशन हो गया और वहाँ से जमीन खरीद बिक्री की ये कहानी शुरू हुई भारत शासन द्वारा मान्यता प्राप्त पंजीकृत संस्था प्रफेसर पीसी महाजन फाउंडेश इन खरगोन के डाबरिया गाँव में ये बोर्ड लगा है । वैसे कुछ सालों पहले तक इसका नाम तंजीमें था । लगभग तीस साल पहले जिन लोगों ने तंजीमें को जमीन बेची उनका आरोप है कि उन्हें बताया गया था कि हम मुस्लिम कब्रिस्तान बनेगा । आस पास बडी तादाद में मुस्लिम बसने वाले हैं । ऐसे में उनका रहना मुश्किल होगा । अब वो किसान खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं । वही तुम्हारी जमीन बेच दो नहीं तो तुम घेरा जाओगे । बीच में हमारे नहीं कीमत पूरी नहीं दी । चालीस हजार दिए थे ।
आज आप के पास कितनी जमीन है, आप कही नहीं है । नहीं मेरे पास क्या है? सब ले ले नहीं क्या वो? बबलू दलाल अपने पास बार बार आ रहा था । वो बोले कि यार हमने पूरे सस्ता बना रहे हैं । मुसलमानों सस्ता डाल रहे तो इधर उधर की जमीन तो मैंने पूरी ले ली । आप भी दे दो तो हमने ये सोचा कि यार वाद विवाद में कहाँ पढेंगे । अपन तो आपने मेरे पिताजी ने बोला है कि अपन भी दे देते हैं । छोटे किसान ही नहीं संजय सिंघवी जैसे कारोबारियों ने भी वहाँ खेती की जमीन खरीदी थी । कहते हैं रिश्तेदारों ने जमीन बेची, दबाव में उन्हें भी जमीन बेचनी पडी । हालांकि उनका कहना है कि उन्हें भाव अच्छा मिला । वहाँ पे तंजीमें नाम की संस्था ने जमीन खरीदी तो हमारे जो सहयोगी थे जो रिश्तेदार समाज वाले उन्होंने भी वो जमीन घबरा के उन को भेज दी । इसमें एक बबलू नामक जो दलाल था, जो बाबा अपना हमारा भी परिचय था, दशकों से उनकी कषि भूमि खरीदी थी, वहाँ पे हमारे रिश्तेदारों, हमारे समाज के लोगों की भी जमीन थी जिसमें मेरी पत्नी के नाम से भी जमीन थी । बहरहाल, संस्था में हज कमिटी या कब्रिस्तान नहीं बना । वहाँ पर हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां लगी है । हम अपने सवाल लेकर संस्था के पास गए । संस्था के संचालक ने बताया कि सब काम कानून के तहत हुआ है । यहाँ गरीबों को मकान मिले हैं । जमीन में पानी संस्था लेकर आयी है । दो सौ एकड को लेकर अपने विश इनके बारे में भी विस्तार से बताया । कहा वो खांडव वन को इंद्रप्रस्थ में बदलने का ध्यान रखते हैं । यहाँ मैं अट्ठावन साल कि जाकिर भी मिले । जाकिर संस्था में प्रबंधक थे जब जमीन तंजीमें के नाम से खरीदी गई । दो हजार चौदह में उन्होंने अर्जी दी की संस्था का नाम बदलने से नहीं है । अब वो संस्था से नहीं जुडे हैं । समाज सेवा तो मेरा मूल नेचर रहा है । मैं अन्ना हजारे जी और बाबा हम जैसे प्रभावित रहा । उनके आश्रमों में रहा जब मैंने देखा कि वो एक कैंपस में सारे सेवा प्रकल्प चला रहे हैं । आनंदवन वर्धा में दो सौ एकड का परिसर है तो हमने भी ये कल्पना कि खरगोन में भी ऐसी बेकार बंजर भूमि जो है इसको ग्रीनलैंड बनाया जाए । यहाँ पानी पैदा किया जाए और जो गैर कृषि योग्य कार्य है वो ऐसी जमीन पे ही होना चाहिए । ये समाज को मैसेज देना था तो तंजीमें का अर्थ होता है कि बेकार पडत भूमि को उपयोगी बनाना बनाना । यही हमारा मिशिन था । ये हमारे प्रजेक्ट ताज का जो है, मीनिंग भी हो रहा था और अर्थ पे निकल रहा था ये हमको नाम उचित लगा गवर्न्मेंट इंडिया ने हमको इस नाम से नहीं उन्होंने मेरे को पूरी वो बताइए । सामाजिक जो कार्य करना है वो सारी चीजें बताई इसलिए मैं उसके साथ जुडा की । आगे इनके क्या क्या काम होने वाले हैं । सैनिक स्कूल खोलने वाले हैं इनका जो भी समाजसेवा के जो भी काम है तो इसलिए मैं इस तंजीम से जुड गया । वैसे कैंपस में हरियाली थी, लोगों के घर बन चुके थे लेकिन तंजीमें जर खेल से पीसी फाउंडेश इनके नाम पर हमें जवाब नहीं मिला । रंजीत डांडे पहले बजरंग दल के प्रांत संयोजक थे । बाद में सहकारी बैंक के अध्यक्ष बने । अब बीजेपी में है । उनका कहना है कि उन्होंने ये संस्था की सीसी लिमिट बढाई । उसे दो करोड क्या फिर समाज सेवा करने इस संस्था के अध्यक्ष बने । बडा नाम है रंजीत बडे नाम को कैसे बदनाम करना? मुँह ना मेरा जीवन होगा साहब सात बार जेल गए हूँ ।
मेरे ऊपर मुँह नौकरियाँ नहीं । मेरी मेरा पूरा जीवन हिंदू समाज के लिए राष्ट्र के लिए काम करते हो गया है । जो पहले नाम था तब ये जो काम करते थे उससे मेरा कोई विषय सीधा रिश्ता नहीं है और जब उन्होंने पूरा प्रकल्प बताया जिस तरह की बातें बताई उस समय की तो मुझे लगा कोई बात नहीं । मुझे नहीं लगता कि मुँह से कोई तकलीफ है, इससे होना चाहिए । मामला अपर कलेक्टर कोर्ट में भी पहुँचा है । कोर्ट केस लडने वाले सुधीर कुलकर्णी खुद तीस साल से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता रहे हैं । दो हजार पाँच में भी जो वर्तमान बीजेपी के विधायक थे बाबूलाल महाजन उन्होंने उस समय आवाज उठाई थी कि ये गलत हो रहा है । अब हम इसमें सारा करके बहुत जल्दी धारा अस्सी सी पी सी का नोटिस देने वाले हैं और जो सारी जो प्रॉपर्टी है पीस फाउंडेशन की भी और प्रकाश स्मृति सेवा संस्थान की भी ये सारी संपत्ति सीट्स होना चाहिए । इस मामले में हमने जिला कलेक्टर से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । सवाल अब भी खडा है की आज समाज सेवा करने के लिए नाम बदलने की जरूरत थी । खरगोन से आसिफ खान और रिजवान के साथ अनुराग तिवारी की रिपोर्ट ॅ टीवी इंडिया राजनीति का पतन हो रहा है । जाहिर है जनता का भी पतन होगा । धर्म से राजनीति का पतन ही होता है । हैदराबाद से उमा सुधीर की रिपोर्ट है कि वहाँ तीन लोग गिरफ्तार किए गए हैं । इन तीनों पर आरोप है कि ये लोग कथित रूप से तेलंगाना राष्ट्र समिति के चार विधायकों को सौ करोड का प्रलोभन दे रहे थे । ये विधायकों को खरीद रहे इसमें फरीदाबाद से सतीश शर्मा नाम का कोई संत है । हैदराबाद का व्यापारी सोमिया जुलू है और तिरुपति के कोई स्वामी जी । ये लोग इन विधायकों को पैसे का प्रलोभन दे रहे थे कि टी छोडकर बीजेपी में आ जाए । ये आरोप है । फॅस के विधायक का आरोप है कि उसे सौ करोड देने का वादा किया गया था ।
एक आरोपी की तस्वीर केन्द्रीय मंत्री किशन रेड्डी के साथ सोशल मीडिया में वाइरल हो गई । मंत्री जी ने कहा कि बीजेपी का इसमें कोई रोल नहीं या मुख्यमंत्री का रचा हुआ ड्रामा है । अगर आप नहीं देखना चाहते कोई बात नहीं हम तो दिखाते ही रहेंगे और बताते भी रहेंगे कि धर्म की राजनीति से ना धर्म का भला होता है ना राजनीति का धर्म के नाम पर जनता का इस्तेमाल होता है । अब आप ब्रेक ले सकते हैं । अभी दीपावली के मौके पर ट्रेन और बसों से अपने गाँव घरों को लौटने वालों की क्या दुर्गति हुई? आप नहीं जान सके क्योंकि इसका कवरेज नहीं हुआ होगा । फिर भी कुछ हिंदी अखबारों में इसकी खबरें छपी हैं । अगर आप उस समय कवरेज देखते तो पता चलता प्रचार किया है और हालत क्या है । छठ पूजा के समय भी भारी संख्या में लोग बिहार लौटना चाहते हैं । मगर स्टेशन पहुंचते ही उनकी हालत खराब हो जाती है । सरकार इंतजाम की बात कर रही है । मगर ट्रेन के भीतर सवार लोगों से पूछ लीजिए इंतजाम कैसा है । परिमल की ये रिपोर्ट छठ में घर परिवार के बीच पहुँचने की ये भीड है । तादाद ज्यादा तो बंदोबस्त भी चुस्त दुरुस्त । क्या सामान और क्या इंसान भीड इतनी ज्यादा ट्रेन में दाखिल होने को लेकर गेट का नहीं सामान से लेकर इंसान सहारा छुट्टियों का ले रहे हैं । कभी ऐसे मुँह आप की वजह से किसी को चोट लग सकती है । हालांकि त्यौहारी सीजन में रेलवे ट्रेनों की अतिरिक्त दो हजार छह सौ चौदह ट्रिप चला रही है । बावन से तिरेपन हजार अतिरिक्त बोगियां लगाई गई है ।
करीब साढे छत्तीस लाख अतिरिक्त बर्थ का इंतजाम इन ट्रिप्स के जरिए रेलवे ने किया है । इस वक्त हम नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के चौदह नंबर प्लेटफॉर्म पे है जहाँ से बिहार संपर्क क्रांति दरभंगा को जाती है । बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो ट्रेन में चढ नहीं पाए इसी ट्रेन में टिकट लिया था और यहाँ पे आप देखिये किस तरीके से ये यहाँ पर आप स्थिति आपको नजर आएगी । गेट भी बंद कर दिया गया क्योंकि भीड इतनी ज्यादा हो गई है कि गेट को लाँग करना पड गया और कई लोगों की तकलीफ बढ गयी । यहाँ पे बाहर में कई लोग हैं । आपको इसी मुँह ही आपको आपको उं टिकिट भी ले लेंगे । मुँह दो दो ट्रेन मिस की मुँह हो गया, उसमें चढ नहीं पाया उसके बाद उसके बाद यहाँ भी चल नहीं पाए । ये हाल जनरल बोगी में करने वाले आम मुसाफिरों है । भीड की वजह से गेट बंद जो चढ गए किसी तरह से खडे खडे बिहार तक करेंगे क्योंकि अंदर बैठने की जगह ऍम के लिए गए थे कि नहीं । नहीं नहीं मिला ऍम के लिए कोशिश किये थे कि उसके लिए इंसान के लिए पहले से कोशिश कर रखा था । सीट नहीं मिला एक महीने पहले से ट्राई कर रहा हूँ । नहीं मिलेगा तो किसी तरीके से जाना है तो जाना है तो जाना पडेगा । इंतजाम का दावा तो रेलवे कर रही है पर अगर होते तो तस्वीरें कुछ और होती । छठी मैया के नाम पर यात्रियों को सारी मुश्किलें मंजूर है पर घर जाना जरूर है ।
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