Ratan Tata Death: शांतनु नायडु...घुंघराले बाल...इधर के कुछ सालों में रतन टाटा के साथ अकसर साथ दिखने वाले शांतनु उनके अंतिम संस्कार के वक्त भी साथ थे. बेहद गुमसुम. दुखी. शांतनु पूरे कार्यक्रम के दौरान अकेले और उदास दिखे. उनके चेहरे पर रतन टाटा के जाने का गम साफ दिख रहा था. शांतनु और रतन टाटा की मुलाकात भी बेहद खास तरीके से हुई थी.
अपनी किताब 'I came upon a lighthouse' में शांतनु ने लिखा है कि उन्हें कुत्तों से बचपन से खास लगाव है. मुंबई में अकसर लावारिस कुत्ते सड़क हादसे का शिकार हो जाते थे. इस परेशानी को ठीक करने के लिए शांतनु ने 2014 में कुत्तों के गले में रिफ्लेक्टर वाले पट्टे डालने का अभियान चलाया. यह काफी सुर्खियों में रहा. रतन टाटा खुद भी कुत्तों से काफी लगाव रखते थे. उनके मुंबई वाले ताज होटल समेत सभी ऑफिसों में खास हिदायत थी कि आवारा जानवर अगर घुस आएं तो किसी भी कीमत पर उन्हें भगाया न जाए. शांतनु के इस अभियान की खबर जब रतन टाटा को लगी तो उन्होंने खुद फोन कर उन्हें अपना असिस्टेंट बनने का जॉब ऑफर किया. यहीं से शांतनु रतन टाटा की परछाई बन गए.
हालांकि, ऐसा नहीं है कि शांतनु सिर्फ रतन टाटा के नजदीक इसलिए आए कि दोनों कुत्तों से लगाव रखते थे. बल्कि कुत्तों से लगाव रखना दोनों के मिलने का कारण बना. शांतनु की अपनी कंपनी है. इसका नाम गुडफेलो है. यह कंपनी बुजुर्गों को उनके अंतिम वक्त में बेहतर सुविधा देने का काम करती है. शांतनु ने अमेरिका से एमबीए किया हुआ है. इ्न्हीं खूबियों के कारण रतन टाटा स्टार्टअप बिजनेस में निवेश करने से पहले शांतनु से सलाह लिया करते थे.
रतन टाटा के निधन के बाद 31 वर्षीय शांतनु नायडू ने लिंक्डइन पर पोस्ट कर लिखा, 'रतन टाटा के निधन से उन्हें काफी गहरा दुख पहुंचा है. इस दोस्ती ने अब मेरे अंदर जो खालीपन पैदा कर दिया है, मैं अपनी बाकी की जिंदगी उस खालीपन को भरने में लगा दूंगा. प्यार के लिए दुख की कीमत चुकानी पड़ती है. अलविदा, मेरे प्यारे लाइटहाउस.' शांतनु का जन्म 1993 में पुणे में एक तेलुगु परिवार के यहां हुआ था.
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