नई दिल्ली:
नरेंद्र मोदी सरकार को दो साल हो रहे हैं। सरकार कह रही है उसने अपने चुनावी वादे पूरे किए हैं, उसका दावा है कि वह वादे निभा रही है। खाद्य आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान से निधि कुलपति ने एनडीटीवी के स्टूडियो में बातचीत की। इस चर्चा के प्रमुख अंश प्रस्तुत हैं-
सवाल - पासवान जी, सरकार की कई उपलब्धियां रहीं हैं दो साल में, लेकिन एक आम नागरिक अपने पेट की आग से समझता है कि सरकार कितनी सफल है। दाल दो सौ रुपये किलो, किसान पहले ही सूखे से परेशान है, उसे एक टन प्याज का एक रुपये मिल रहा है, ब्रेड में मिलावट, मैगी में मिलावट,अंडे में मिलावट, चिकन में मिलावट...क्या खाए इंसान। दो साल में खाने के लिए सुनिश्चित नहीं हैं चीज़े...?
रामविलास पासवान- देखिए जहां तक मेरे डिपार्टमेंट का सवाल है विभाग का सवाल है, हमारे पास चावल की कोई कमी नहीं है। हमारे पास में गेंहू की कोई कमी नहीं है। हमारे पास में चीनी की कोई कमी नहीं है और इन सारी चीज़ों का दाम भी हमने बढ़ने नहीं दिया। चीनी की हालत तो यह हो गई थी कि मिल मालिक बंद कर देते कि शायद इतने सस्ते दाम पर हम बेच नहीं सकते हैं। तो एक हमारे साथ में जो मामला है वह दाल का मामला है और दाल का मामला...
सवाल- बहुत सवाल उठ रहे हैं इस पर कि 200 रुपये किलो अगर दाल होती है तो वह मंहगी है।
रामविलास पासवान- नहीं..नहीं.. नहीं... मैं सहमत हूं..मैं आपसे सहमत हूं। आज भी हम डेली बैठक मीटिंग ले रहे हैं। असल में दाल के सामने में जो सबसे बड़ा प्रॉब्लम है वह प्रॉब्लम है कि 170 लाख टन दाल का उपज हुआ है और जो आवश्यकता है वह तो 246 लाख टन है। तो 170 लाख टन उत्पादन और 246 लाख टन जो है मांग, और विदेश में भी जो है दाल का उत्पादन नहीं हो रहा है ज्यादा क्योंकि विदेश में लोग दाल खाते नहीं हैं। हम जो खाते हैं इसी के लिए उपजाते हैं वो, तो अब जो गैप है वो बहुत बड़ा गैप है। जो इंपोर्ट है, वो भी इंपोर्ट जो है क्या कहते हैं कि 59 लाख टन क्या कहते हैं कि इंपोर्ट यह हुआ, हो रहा है तो इसीलिए यह जो मांग और डिमांड और सप्लाई का मामला है और इसमें फिर जमाखोरी होने लगती है। तो जब तक हमने देखा है कि डिमांड और सप्लाई जिसे हम लोग जो आंक रहे हैं उसमें जितनी हमारी आवश्यकता है यदि उसके अनुपात में जो है इंपोर्ट हो जाए, आयात हो जाए अब आयात हम नहीं करते आयात प्राइवेट सेक्टर...
सवाल- सरकार कहती है आप लोग कहते हैं कि भई हमारे भंडार भरे हुए हैं, हमें चिंता करने की जरूरत नहीं है, तो भंडार दाल के नहीं हैं?
रामविलास पासवान- नहीं देखिए दाल के पास, दाल में पहली बार हमने बफर स्टॉक बनाया है। अभी तक हम 50 हजार टन दाल खरीद चुके हैं। हम 26 हजार टन इंपोर्ट कर चुके हैं। एक लाख टन और खरीदने वाले हैं, खरीद रहे हैं।
सवाल- तो कम होंगे दाम?
रामविलास पासवान- नहीं दाम देखिए, दाम कम हो, सबसे बड़ी बात है कि जो भारत सरकार है या हमारा विभाग है हम बेच तो नहीं सकते, हम बिक्री का काम नहीं कर सकते हैं। राज्य सरकारों को हमने कहा है कि आपको जितना दाल लेना है आप दाल हमसे लीजिए और लोगों को 120 रुपये के अंदर में दाम को रखिए।
सवाल - आपके आलोचक क्यों आरोप लगातें हैं कि भई जो काला बाजार है, जो जमाखोर है, सरकार उनको थोड़ी सी रियायत दे रही है?
रामविलास पासवान - हां...यह जो आपने कहा है, इसमें हम पहले एक बात पहले आपको बतला दें कि हमने राज्य सरकार को कहा है कि आप अरहर का दाल 66 रुपये पर लो। जो भी राज्य सरकार हमको मांग रही है हम 66 रुपये अनमिल्ड जो होता है वो हम दे रहे हैं। और हम कह रहे हैं कि आप इसको सौ, सवा सौ, एक सौ बीस के नीचे बेचो। उसी तरीके से उड़द का दाल है। वह हमने 120 रुपये किलो...
सवाल - नहीं जो अरहर का दाल...
रामविलास पासवान-...120 रुपये ...उड़द का जो दाल है..उसको हम 82 रुपये जो है दे रहे हैं। प्रति किलो के हिसाब से अरहर का जो है 66 रुपये दे रहे हैं। अब जो दूसरी बा...लेकिन राज्य सरकार खरीद नहीं रही हैं।
सवाल- क्यों नहीं खरीद रही हैं?
रामविलास पासवान- अब पता नहीं देखिए...जब यह जवाबदेही दोनों का है, सेंट्रल का भी है, स्टेट का भी है। स्टेट में बिल में..स्टेट की जो सरकारें हैं ..नहीं हम आपसे..
सवाल- तो राज्य सरकारें..आप बेचने को तैयार हैं सस्ते में, लेकिन राज्य सरकारें अपनी जनता को मंहगी दाल बेच रही हैं। आप यह कह रहे हैं..?
रामविलास पासवान- वे खरीदने को तैयार नहीं हैं वे खरीदें न...हम तो सबको बार-बार चिट्ठी लिखे हैं। मंत्री की हैसियत से चिट्ठी लिखे हैं। विभाग ने चिट्ठी लिखा है और जब हम प्रेस के माध्यम से कह रहे हैं कि जिनको जितनी दाल की आवश्यता है वे लें। देखिए भारत सरकार..आप भारत सरकार की....
सवाल- जमाखोरी का आरोप जो लगा रहे हैं, वे जमाखोर सरकार के साथ हैं वे..
रामविलास पासवान- देखिए जहां तक जमाखोरी...जो भारत सरकार के पास में कानून है वह इतना ही कानून है कि हम राज्य सरकार को हम ऑर्थराइज़्ड करते हैं कि आप इनके खिलाफ में कार्रवाई करो कि डिफेन्सर अफेयर जो हमारा जो जमाखोरों के खिलाफ में जो कार्रवाई करने का अधिकार है, हम राज्य सरकार को हम वह अधिकार देते हैं। यह राज्य सरकार की जिम्मेवारी है, ब्लैक मार्केटिंग जो एक्ट है या जमाखोरी एक्ट है, वो भारत सरकार छापामारी नहीं करती है।
सवाल- लेकिन आप ऐसी सरकार हैं जो इन जमाखोरों पर लगाम लगाने की बात कहते थे। तो यह जो आपके राज्य हैं, बीजेपी के, तो अब ज्यादा राज्य हो गए हैं। वहीं पर सस्ती हो जाए दाल। वहां पर क्यों नहीं हो रही है सस्ती..। क्या हमारे राजस्थान में, मध्य प्रदेश में, छत्तीसगढ़ में क्या वहां पर 100 से नीचे या 120 मिल रही है अरहर की दाल आप यह बताओ?
रामविलास पासवान- हम..हम राज्य सरकार, हमने कहा कि जो केंद्र सरकार के मंत्री की हैसियत से जितनी भी राज्य सरकारें हों, चाहे बीजेपी स्टेट हों या नॉन बीजेपी का हो, जो भी स्टेट्स हों, एनडीए का हो, कांग्रेस का हो, हम तो सबको कहते हैं कि एज़ ए मिनिस्टर मैं आपसे भी कहना चाहता हूं कि जो भी राज्य सरकार दाल खरीदना चाहें दाल हमसे खरीदें, हम 66 रुपये पर अरहर और 82 रुपये पर उड़द का दाल उनको दे रहे हैं। और जनता को सस्ते दर पर दे..।
सवाल - तो बीजेपी शासित राज्य भी नहीं मांग रहे। वे भी 200 रुपये से नीचे नहीं मांग रहे, यह सवाल है न सर। क्यों नहीं हो रहा है फिर यह। कोई तो कारण होगा? आप क्या समझते हैं, आप तो एक इतने वरिष्ठ नेता हैं जो जमीन से बरसों से जुड़े हुए हैं। क्या कारण है जरा बता दीजिए..?
रामविलास पासवान- नहीं.. नहीं..कारण तो.. कारण तो आप लोग उसका बतला सकते हैं। हम तो इतना ही बतला सकते हैं। अब जैसे जमाखोरों के खिलाफ में आपने कहा, हम जमाखोरों के खिलाफ में कार्रवाई करने को कह सकते हैं। अभी देखिए भारत सरकार का समझिए हम एक लाख 30 हजार करोड़ रुपया हम सब्सिडी में देते हैं। एक लाख 30 हजार करोड़ रुपया, यह जितनी राज्य सरकारें डींग मारती हैं कि साहब हम 2 रुपये किलो गेंहू दे रहे हैं, तीन रुपये किलो गेंहू दे रहे हैं, एक नया पैसा इनका योगदान नहीं है। हम 33 रुपये किलो चावल खरीदते हैं और 3 रुपये किलो जो है फूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत चावल देते हैं गरीब को। देश में 75 फीसदी आबादी है ग्रामीण इलाका में, जिनको हम 3 रुपये किलो चावल और दो रुपये किलो गेंहू देते हैं।
सवाल- पर पासवान जी मुझे इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि जब अब देखिए, अभी जो असम के चुनाव आए उसके बाद एक आंकड़ा हम सबके सामने आया और हमने एक भारत का मैप दिखाकर दिखाया कि कांग्रेस के तहत सिर्फ 7 प्रतिशत आबादी रह गई है देश की और बीजेपी के तहत 35-40 प्रतिशत आबादी आ रही है। क्षेत्रफल भी बीजेपी के तहत ज्यादा आ रहा है। तो अगर आप मुझे कहेंगे कि भई राज्य सरकारें नहीं सुन रही हैं तो भई राज्य सरकारें ज्यादा आपकी हैं, अगर आप कहेंगे कि जमाखोरों पर कार्रवाई नहीं कर रहीं हैं राज्य सरकारें, तो केंद्र में सरकार आपकी है, राज्यों में भी सरकारें आपकी हैं। तो जवाब मुझे नहीं मिल रहा है...।
रामविलास पासवान- नहीं आप, आपका कहना सही है। मैं आपकी जवाबदेही से भाग नहीं रहा हूं। हमने आपसे बतलाया कि चैलेंज सिर्फ दाल है। सिर्फ और सिर्फ दाल है। और बाकी चीज का आप हमको बतला दीजिए। किसी चीज के दाम...आपने कहा प्याज का दाम और प्याज का दाम तो बढ़ा नहीं है। दाम इतना कम है देखिए..।
सवाल- नहीं आपने खुद...
रामविलास पासवान- प्याज एक ऐसा चीज है कि तीन महीना का खेल होता है। कभी जो है कन्ज़्यूमर के आंख से आंसू निकाल देता है, कभी किसान की आंख से आंसू निकाल देता है।
सवाल- और कभी नेता के...
रामविलास पासवान- हां-हां..कभी नेता के...। आपने पिछली बार जो है प्याज का दाम बढ़ गया, तब लोग क्या कह रहे थे, कह रहे थे कि प्याज का दाम बढ़ गया, प्याज का दाम बढ़ गया। मोदी सरकार में आज जब प्याज जो है, का दाम बिलकुल नीचे आ गया है। तब होता है कि साहब एक टन प्याज बेचा एक रुपया मुनाफा हुआ..!
सवाल- सर आपने प्याज की बात कही। यह एक मामला किसान का ही सामने रख देती हूं। यह पुणे के रासायी गांव के रहने वाले किसान हैं देवीदास परभाने। आप देख लीजिए इनको एक टन प्याज, यानि 952 किलो प्याज, उसका मिला सिर्फ एक रुपया..!
रामविलास पासवान- एक रुपया...
सवाल- आपको पता है इस खबर के बारे में?
रामविलास पासवान- नहीं-नहीं... बिलकुल हमको खबरों का पता है। कल से ही चल रहा है ..यह खबर कल से ही चल रहा है। और सबसे बड़ी उसमें अब देखिए पहली बार हुआ है कि भारत सरकार की तरफ से हमने जो है स्टॉक लिमिट में प्याज के ऊपर में जो है हमने जो है खरीदना शुरू किया है।
सवाल- हुआ कैसे यह... आप ही बताइए?
रामविलास पासवान- ज्यादा उत्पादन हो गया ना, देखिए जब ज्यादा उत्पादन होगा प्रोड्क्शन होगा और हम...
सवाल- रखरखाव की जगह नहीं बनाई हमने कि जो बफर स्टॉक बना लेते, जब कमी होती प्याज की तब निकाल लेते?
रामविलास पासवान- नहीं.. नहीं.. नहीं..देखिए प्याज एक ऐसा चीज है आलू,प्याज और टमाटर जिसके लिए सामान्य गोदाम से काम नहीं चलता है। आप जो है दाल और गेंहू के लिए चावल और गेंहूं के लिए तो बफर स्टॉक बना सकते हैं, दाल के लिए बना सकते हैं, लेकिन इसके लिए तो जो कोल्ड स्टोरेज है उसकी आवश्यकता होती है। तो जब हमको देखिए जब से आप...
सवाल- आप सुनिए इनकी बात इनको सुनिए। इन्होंने दो एकड़ जमीन में 80 हजार रुपये लगाकर प्याज उगाया और 10 मई को यह बेचने गए तो इनको पूरे इस प्याज को बेचने के लिए गए तो 992 किलो के प्रति किलो पैसे मिले एक रुपया 60 पैसे। यानि की 1523 रुपये 20 पैसे मिले। इन्हें अब 1523 रुपये मिल गए तो हम सोच रहे थे ये तो भइया मिल गए...एक रुपये की बात कहां से आ रही है? ऐसे आ रही है कि 1523 रुपये 20 पैसे मिले पूरे एक टन प्याज बेचने पर, बिचौलिये को दियए 51 रुपये 35 पैसे। फिर इसके बाद श्रमिक शुल्क जो आढ़त को देना होता है उसके लिए देने पड़े 51 रुपये। कमीशन को देने पड़े साथ ही बोरी उठाने वाले को भी देने पड़े 92 रुपये। फिर प्याज को बोरी में भराई के लिए 18 रुपये 55 पैसे देने पड़े। फिर एक विशिष्ट शुल्क होता है जो वजन करते हैं। प्याज के विशिष्ट शुल्क के लिए 33 रुपये 30 पैसे देने पड़े। कुल मिलाकर फिर 1320 रुपये ट्रक ड्राइवर को देने पड़े..और एपीएमसी गया। प्याज को लेकर तो कुल मिलाकर 1522 रुपये 20 पैसे खर्च हो गए और जो इन कटौतियों के बाद उन्होंने देखा कि अगर मैंने 1523 रुपये 20 पैसे में एक टन प्याज बेचा और इन सबको बिचौलियों को देने के बाद, जो तमाम मैंने गिनाए उसके बाद इनके पास इनके खर्च हो गए 1522 रुपये 20 पैसे और बचा केवल एक रुपया। और इन्होंने कहा मुझे कम से कम तीन रुपये प्रति किलो की तो उम्मीद थी। अब यह है हमारे किसान की विडम्बना। इसमें तो मुझे कोई गणित समझ ही नहीं आ रहा सर हम क्यों...?
रामविलास पासवान- देखिए इसमें सीधा सा गणित है कि इसके लिए कांग्रेस पार्टी जिम्मेदार है। आपको मालूम है कि जीएसटी बिल पास नहीं होने दे रही है एपीएमसी है। हम शुरू से कह रहे हैं दो साल से कि नेशनल कॉमन मार्केट बनना चाहिए..। एक ही समय में एक प्याज का कीमत ऊपर रहता है तो दूसरे समय में किसान परेशान रहते हैं। इतना न टैक्सेस का कहते हैं। जगह-जगह पर है कि आपने मंडी सिस्टम की बात कही। आप पंजाब में चले जाइए..किसान को अधिकार नहीं है कि वह मंडी से बाहर बेच सकता है।
सवाल- ठीक करेंगे..इसको ठीक करेंगे?
रामविलास पासवान- नहीं तो इसको इसलिए मैंने कहा न इसका एक ही तरीका एपीएमसी जो है, क्या कहते हैं एक्ट में क्या कहते हैं कि संशोधन होना चाहिए। जीएसटी बिल पास होना चाहिए..और पूरा नेशनल मार्केट एक फ़्लो होना चाहिए। कि अनाज यदि एक जगह पर... पानी का सवाल है एक जगह पर बाढ़ आता है और दूसरे जगह पर सूखा रहता है वही किसान की हालत है।
सवाल- सर कांग्रेस ने तो किया और वह गई... अब दो साल हो गए हमारी नई सरकार आए...। सुनिये न..मेरा मतलब यह है कि इन दो सालों में भी किसान के लिए इस तरह की चीज़ों से... कहां पर तो दाल हो नहीं रहीं..तो हम बाहर से मंगा रहे हैं। कहां पर हमारे पास प्याज कभी होता नहीं है जो इतना मंहगा होता है। अब है तो बेचारे को एक रुपया मिल रहा है। हां...सर सुनिए आप इसका जवाब नहीं, आप कांग्रेस को कह रहे हैं किसान के लिए मूलभूत, जो किसान के लिए फ़ायदे होते हैं उस लिहाज से कुछ सोचेंगे अलग कि नहीं सोचेंगे?
रामविलास पासवान- देखिए न, पहली बार मैंने कहा कि, आजादी के पहली बार हम जो है 15000 टन प्याज हम खरीद रहे हैं। करीब-करीब 13-14 हजार टन हमने खरीद भी लिया तो, एकाएक अप्रत्याशित रूप से कोई चीज सामने में आ जाए..जब एकाएक...हमने कहा न पिछली बार हमारी सर...
सवाल- मिनिमम सपोर्ट, आप कह रहे हैं दे रहे हैं...
रामविलास पासवान- नहीं-नहीं मिनिमम सपोर्ट नहीं हम मार्केट में खरीद रहे हैं। हम मार्केट में खरीद रहे हैं 9 रुपये किलो के हिसाब से। हम मार्केट से खरीद रहे हैं..
सवाल- तो हमारे पुणे के इस किसान को...
रामविलास पासवान- देखिए-देखिए वहां तो...नासिक में क्या कहते हैं पूना के बगल में ही तो नसिक है न..। नासिक में क्या कहते हैं कि हजारों टन क्या कहते हैं कि हजारों टन हमने प्याज खरीदा है। राजस्थान में हम खरीद रहे हैं। मध्य प्रदेश में हम खरीद रहे हैं, लेकिन जैसा कि हमने कहा कि हमारे पास में जो भारत सरकार के पास में इन्फ़्रास्ट्रक्चर है, हमारे पास में क्या है। हमारे पास में एफसीआई है तो एफसीआई का गोडाउन है। वहां मैनेजर रहते हैं। गांव-गांव में जो कर्मचारी हैं वे राज्य सरकार के कर्मचारी हैं। हमने कहा कि 20 दिन, 25 दिन पहले जब हमको मालूम हुआ कि शायद किसान के पास में प्याज की उपज ज्यादा हो गया है। बहुत सस्ते दर में बिक रहा है। हमने उस समय से खरीदना शुरू कर दिया है।
सवाल- आप देवीदास परभाने को क्या कहेंगे, उसको बताइए कि उसको क्या कहेंगे?
रामविलास पासवान- नहीं.. नहीं इंडीविजुअल जो किसान हैं इसीलिए मैंने कहा कि जो राज्य सरकारें हैं उनकी भी जवाबदेही है न..।
सवाल- आप ही की सरकार है सर फडनवीस को कह दीजिए आप...
रामविलास पासवान-नहीं नहीं यह नहीं कह रहे कि हमारी सरकार है या किसकी सरकार है। मैं तो यह बात कहता हूं कि राज्य सरकारें हैं और राज्य सरकार की ही जवाबदेही सब जगह पर है कि राज्य सरकार देखे कि किसान को उचित मूल्य मिले..उचित मूल्य का मतलब है...
सवाल- तो बीजेपी सरकार फडनवीस सरकार से आप कहेंगे कि देखें किसानों की इस परेशानी को ...
रामविलास पासवान- जी बिलकुल कहेंगे..हम जरूर कहेंगे...। हमने ऑलरेडी क्या कहते हैं कि इसको कन्वे कर दिया है।
सवाल- ठीक है..अब यह सवाल जो आपने कहा कि देखिए बफर इसको रखने के लिए जगह नहीं है लेकिन सर हर साल चाहे यूपीए सरकार थी चाहे अभी आप ही के मंत्री ने बताया कि 90 हजार करोड़ का जो खाद्य सामान होता है, हमारे देश में जाया हो रहा है। यह पहले से चुनौती चली आ रही है, लेकिन दो साल में क्या हुआ बताइए इसमें?
रामविलास पासवान- कुछ नहीं..दो साल में हम दावे के साथ में कह सकते हैं कि हमारा एफसीआई में जो लॉसेस था वह बिलकुल घट करके 003 पर्सेंट बचा है।
सवाल- नहीं जो हजार करोड़ अनाज गेंहू सड़ता है उसका क्या हो रहा है?
रामविलास पासवान- देखिए अनाज गेंहू हमारा....हम इतना ही जानना चाहते हैं कि हमारे पास में जो जिस महकमे के हम मंत्री हैं उस महकमे में उस विभाग में करप्शन नाम की अब कोई चीज नहीं बची है। हम जो ट्रांसपेरेन्ट कर दिए। अब जो आप जाकर देखेंगे जो गल्ला का दुकान है मतलब फेयर प्राइज़ शॉप है, उस शॉप पर हम सब जगह जो है एन्ड टू एन्ड कम्प्यूराइजेशन की व्यवस्था जो है कर दिए हैं।
सवाल- आप कह रहे हैं आपके विभाग में नहीं आता यह?
रामविलास पासवान- कौन..नहीं.. नहीं... नहीं देखिए सबसे बड़ी है कि एफसीआई जो अनाज खरीदती है उसके लिए हम जिम्मेदार हैं, जो सामान खेत में है या राज्य सरकार खरीदती है।
सवाल - एफसीआई के गोडाउन बढाए क्या सर?
रामविलास पासवान- नहीं काहे के लिए गोडाउन बढ़ाएंगे। हमारे पास में 600 लाख टन की आवश्यकता है, 8 से 11 लाख टन का हमारे पास कैपेसिटी है।
सवाल- यह अनाज सड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा, तमाम लोग कहते हैं, उसका क्या..आप उसके बारे में क्या कहते हैं?
रामविलास पासवान- नहीं.. नहीं उसके विषय में दो तरह की एजेंसी होती हैं। एक राज्य सरकारें खरीदती हैं तो 90 पर्सेंट तो राज्य सरकारें ही खरीदती हैं। 10 परसेन्ट सिर्फ क्या कहते हैं कि एफसीआई खरीदती है। हम तो राज्य सरकार को पैसा देते हैं। कोई राज्य सरकार यह नहीं कह सकती है कि चावल और क्या कहते हैं गेंहू वो खरीदते हैं और हमको भारत सरकार पैसा नहीं देती है।
सवाल- नहीं नहीं..वह बात नहीं कह रही। वो तो आप दे रहे होंगे, लेकिन जो अनाज सड़ता है उसका क्या करोड़ों का फल, सब्ज़ी, अनाज,गेंहू...
रामविलास पासवान- हमको नहीं मालूम है कि 90 हजार टन का है या 80 हजार करोड़ का है। उससे बड़ी बात मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि जितना भी अनाज, चाहे चावल हो, गेंहू हो, राज्य सरकार किसान बेचना चाहे हम एक एक दाना खरीदते हैं और खरीदने के लिए तैयार हैं।
सवाल- ठीक है इसको बफ़र्स जगह बनाने की जो गोडाउन की ज़रूरत थी?
रामविलास पासवान- उसकी हमारे पास में कमी नहीं है। सौ लाख टन का अभी हम साइलो का हम निर्माण कर रहे हैं...और हमारे पास में जो ऑलरेडी गोडाउन हैं उसमें पर्याप्त अनाज रखा जा सकता है।
सवाल- ठीक है आपने बहरहाल कहा, लेकिन यह एक हम सबके सामने आंकड़ा है कि हमारा अनाज लाखों टन का बर्बाद होता है और उसका आखिरी में सर जो शहरों की बात कर लेते हैं। हमने गांव के किसानों की अपनी बात की। ब्रेड का आपने मसला सुना होगा जो हाल में आया है ब्रेड खाने से अब कैंसर हो जाता है। उसमें आप लोग जांच भी कर रहे हैं? क्या हो रहा है उस सिलसिले में...?
रामविलास पासवान- देखिए सबसे बड़ी बात है कि हमारे यहां जो एफएएसएसआई है वह हेल्थ मिनिस्ट्री के अन्तर्गत है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अन्तर्गत है और वह ऑथराइज़्ड रेग्यूलेटर है तो वो देखती है कि जो खाद्य पदार्थ है उसमें मिलावट तो नहीं है। और जब भी मिलावट होता है तो उसके खिलाफ वह कार्रवाई करती है क्योंकि उसका एक स्टैंडर्ड उन्होंने बना रखा है। जैसे पानी है तो पानी का हम लोग देखते हैं कि पीने का जो बोतल का पानी है उसमें देखेंगे आईएसआई मार्क है। उसी तरीके से खाना जो होता है चाहे मैगी हो या जितने भी पदार्थ जिनका नाम आपने कहा है ब्रेड है वह एफएएसएसआई देखती है। आजादी के बाद पहली बार इतिहास में हुआ जब एफएएसएसआई ने पकड़ा मैगी के मामले में। शिकायत दर्ज किया तो तुरंत हमने कुछ क्रिटिसिज्म भी हुआ। लेकिन हमने तुरंत जो है उसको नेशनल कमीशन के पास में जो हमारा कंज़्यूमर कोर्ट है। नेशनल कंज्यूमर कोर्ट है, उसके पास में हमने भेज दिया।
सवाल- और ब्रेड के लिए..
रामविलास पासवान- कोर्ट ने सब जगह उनको क्लीन चिट दे दिया है, लेकिन हमारे यहां जो है कंज़्यूमर कोर्ट में उनको ग्रीन चिट अभी तक नहीं दिया गया है।
सवाल- ब्रेड को सर ब्रेड को...
रामविलास पासवान- लेकिन वही हमने कहा न कि जब ब्रेड के मामले में एफएसएसआई यह साबित कर देगा या कहेगा कि इसमें मिलावट है या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तो निश्चित रूप से हम उस पर भी कार्रवाई करेंगे। लेकिन एफएएसएसआई को कहना होगा। दूसरी बात हम शुरू से हम कंज़्यूमर मिनिस्टर की हैसियत से कह रहे हैं कि यह जितनी भी चीजें हैं, स्वास्थ्य संबंधित चीज़ें हैं। इनको लिखना चाहिए कि स्वास्थ्य के लिए कितना हानिकारक है।
सवाल- सर जैसे पोटैशियम ब्रोमेट इसमें डाला गया, कहा जा रहा है। और देशों में बैंड है, हमारे यहां बैंड नहीं है। अब जब यह सामने आया तब एफएसएसआई ने कहा चलिए अब हम बैंड कर देते हैं बड़े अनमने ढंग से...!
रामविलास पासवान- नहीं नहीं देखिए हमने कहा कि स्वास्थ्य के साथ में किसी को खिलवाड़ करने की इजाज़त नहीं है। यह बात अलग है कि विदेश में कोई सोचता नहीं है कि मिलावट हो सकता है। और यहां कोई सोचता नहीं है कि बिना मिलावट का कोई चीज़ मिल सकता है। तो इसीलिए जो है जो स्टैंडर्ड है वह तय भी होना चाहिए और स्टैन्डर्ड को कड़ाई से लागू भी किया जाना चाहिए। इसीलिए हम लोगों ने भी एफएसएसआई को कई एक बार जो है कहा है कि जो खास करके जो खाद्य पदार्थ हैं..
सवाल-इस मामले में सर आपने कहा है..
रामविलास पासवान- नहीं इस मामले में हमारा जो अधिकार क्षेत्र है, उस अधिकार क्षेत्र से हम बाहर नहीं जा सकते, जब तक कि हमारे पास में एफएसएसआई का रिपोर्ट नहीं आ जाता है कि इसमें मिलावट है या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
सवाल- अच्छा...सर तो यह जो मैं पढ़ रही थी उसमें कि हमारे यहां जो है बाहर के देश से बहुत स्ट्रिक्ट रुल्स हैं और हमारे यहां स्ट्रिक्ट रुल्स नहीं है और हमारे यहां मापदंड सजा भी नहीं है। अब एक आंकड़ा मैं पढ़ रही थी पिछले सालों में कन्विक्शन रेट बहुत होता था लेकिन 14-15 में देखा गया कन्विक्शन रेट इसका घटा है। करप्शन की बात कही जा रही है। अब यह मैं नहीं जानती कि किसके तहत कौन सा विभाग रहता है, लेकिन जब अगर खाने की चीजों से जो इंसान के पेट के अंदर जा रहा है, उसमें अगर अडल्टरेशन हो रहा है उसमें आप कुछ करेंगे या नहीं?
रामविसाल पासवान- नहीं निश्चित रूप से करना चाहिए, लेकिन हमने कहा कि हर मंत्रालय का अलग-अलग दायरा क्या कहते हैं कि होता है। और खाना भी दो तरह का होता है एक फास्ट फूड होता है जिसमें आप ब्रेड कहते हैं मैगी कहते हैं। यह सब फास्ट फूड है जिसको बड़ी-बड़ी कंपनियां हैं वे बनाती हैं। दूसरा स्ट्रीट फूड होता है, जिसमें छोटे-छोटे जो हमारे वेन्डर्स होते हैं, दुकान खाना बनाने वाले होते हैं। हालांकि हमने राज्य सरकारों को भी लिखा है कि आप यह जितने खाना इधर-उधर बनाते हैं उसके लिए जैसे दिल्ली है आप मोहल्ला में हर कॉलोनी में एक बढ़ियां जमीन दे दो और वहीं सारे के सारे अपना बनावें और वहीं क्या कहते हैं कि लोग जाएं खाने के लिए तो किसी को यह भी नहीं लगेगा कि हम जाकर के जो है रोड पर खा रहे हैं।
सवाल- सर दूध में मिलावट चिकन में कहा जा रहा है एंटीबायोटिक्स। आप पढ़ते होंगे अखबार में यह तमाम चीजें आती हैं। तो उस लिहाज़ से यह क्वालिटी ऑफ फूड जो खा रहे हैं, जो दे रहे हैं, वह बेहतर हो उसके लिए आपकी सरकार क्या कर रही है?
रामविलास पासवान- नहीं उसके लिए हमारी सरकार सतत प्रयत्नशील है और जैसा कि हमने कहा कि एफएएसएसएआई और हमारा डिपार्टमेंट जो है कंज़्यूमर है। जो कंज़्यूमर के इंनट्रेस्ट को देखते हैं हम दोनों मिलकर।
सवाल- अपनी तरफ से कोई पहल है...
रामविलास पासवान- जी बिलकुल बल्कि हम लगातार पहल कर रहें हैं। हमने लगातार पहल करने का काम किया है, और काफी। हमने तो यहां तक कह दिया है कि यह जो जितना आप करते हो जितना पब्लिसिटी करते हो जैसे यह बोतल है हमने कहा है कि बोतल में जो आप लिखते हो कि जैसे आईएसआई मार्क है, अब यह बहुत छोटा है। पहले तो बहुत ही छोटा था डेट ऑफ मैन्यूफ़ैक्चरिंग है, डेट ऑफ एक्सपाइरी है कि कितने दिन के लिए वैलिड है। इन सारी चीज़ों के लिए ये मेन्डेट्री है। ऑलरेडी मेन्डेट्री है..।
सवाल- लिखते हैं, कितने लोग लिखते हैं?
रामविलास पासवान- नहीं-नहीं, अलग-अलग है न हर सामान मेन्डेट्री नहीं है।
सवाल-हां तो वो आप करेंगे क्या सर...
रामविलास पासवान- नहीं-नहीं, वो इंस्पेक्टर राज भी हम लाना नहीं चाहते हैं न, हम हर चीज़ को मेन्डेट्री कर दें..एक मिनट एक मिनट..।
सवाल- क्योंकि एमएलसीज़ दबाव डालती हैं सर, एमएलसीज़ दबाव डालती हैं?
रामविलास पासवान- ..एक मिनट-एक मिनट...। जैसे हमने कहा इसका इतना पोर्शन है हमने कहा इसको 40 पर्सेंट करो तो जैसे हमने कहा कि पानी जो है हमारे अंडर में आता है लेकिन खाना जो है वो एक अथॉरिटी है। मतलब एफएसएसआई कोई मामूली चीज नहीं है..वो अथॉरिटी है। उनका यही काम है।
सवाल- न ट्रेनिंग होती है सर उनकी न उनके इंस्पेक्शन होते हैं। सेंटर की तरफ से न सेंटर के स्टेट या सेंटर से उनका कोर्डनेशन नहीं होता सर। मैं इसलिए बता रही हूं कि यह तमाम चीजें नेट पर मिल जाती हैं। लोग कह रहे हैं इस बात पर न एजेंसीज हैं जांच करने की। दिल्ली के पास देखिए सिर्फ तीन एंजेंसीज़ हैं। कैमिस्ट हैं जो जांच करते हैं। वह भी बाहर दे देते हैं। वह भी स्पेसिफाइड लोग नहीं हैं कि सर्टीफाइड हों। वे लोग तो क्या करें कुछ हो नहीं रहा है?
रामविलास पासवान- हमने तो इतना ही कहा कि हमारे पास में यो जो है वह एफएएसएसआई है। जो है उनका है, फूड स्टैन्डर्ड अथारिटी उनका है। शिकायत आती है हम उसके ऊपर में कार्रवाई करते हैं, लेकिन जैसे दिल्ली है अब किसको कहिएगा, दिल्ली में पानी है, दिल्ली का पानी जो नल से पानी चलता है वह स्टेट गवर्मेंट का है। दिल्ली का नल का पानी पीने लायक है हम लोग तो बोतल का पानी पी लेते हैं। या कहीं-कहीं अपने घर में कोई फिल्टर लगा लेते हैं। गरीब क्या करेगा जाकर के खोलिए पानी सवेरे में। कहीं नीला पानी आएगा, कहीं पीला पानी आएगा।
सवाल- दिल्ली सरकार से यह सवाल बहुत अहम है लेकिन अब अंत में मैं आपसे यह सवाल पूछना चाहूंगी कि आप हमारे देश की जनता को क्या बताएंगे, जो खाने का सामान वे खा रहे हैं पी रहे हैं जिसके आप पूरे ज्ञाता हैं और आप ध्यान रखते हैं दस में से कितने मार्क्स देंगे?
रामविलास पासवान- नहीं-नहीं.. कुछ नहीं। मार्क्स देना आपका काम है। हमारा काम है कि जो हम...।
सवाल-फिर भी फिर भी..
रामविलास पासवान- नहीं, कुछ नहीं, उसमें वो आपका हमने कह दिया कि जो खाने का सामान है, उसका एक माप होना स्टैन्डर्ड होना चाहिए, और स्टैन्डर्ड पर मिलना चाहिए। एफएसएसआई को क्या कहते हैं कारगर तरीके से काम करना चाहिए। हमारा डिपार्टमेंट कंज़्यूमर का है। कंज़्यूमर इन्टरेस्ट के लिए आपने देखा होगा जागो ग्राहक जागो के माध्यम से हम कंज़्यूमर को हमेशा चेताने का काम करते हैं। सोना का मामला है हमने कह दिया है कि हॉल मार्किंग जो है अब यहां एक से एक कानून बना हुआ था। अब सोना आप खरीदने जाइए। चांदी खरीदने जाइए। आपको पता है कि ये 9 कैरेट का सोना है या 23 कैरेट का सोना है।
निधि कुलपति- सर खाना ठीक करा दीजिए सोना तो देश खरीदता है या नहीं खरीदता, लेकिन बहुत-बहुत धन्यवाद आपने हमसे बात की एक बार फिर से आपका बहुत-बहुत बधाई।
सवाल - पासवान जी, सरकार की कई उपलब्धियां रहीं हैं दो साल में, लेकिन एक आम नागरिक अपने पेट की आग से समझता है कि सरकार कितनी सफल है। दाल दो सौ रुपये किलो, किसान पहले ही सूखे से परेशान है, उसे एक टन प्याज का एक रुपये मिल रहा है, ब्रेड में मिलावट, मैगी में मिलावट,अंडे में मिलावट, चिकन में मिलावट...क्या खाए इंसान। दो साल में खाने के लिए सुनिश्चित नहीं हैं चीज़े...?
रामविलास पासवान- देखिए जहां तक मेरे डिपार्टमेंट का सवाल है विभाग का सवाल है, हमारे पास चावल की कोई कमी नहीं है। हमारे पास में गेंहू की कोई कमी नहीं है। हमारे पास में चीनी की कोई कमी नहीं है और इन सारी चीज़ों का दाम भी हमने बढ़ने नहीं दिया। चीनी की हालत तो यह हो गई थी कि मिल मालिक बंद कर देते कि शायद इतने सस्ते दाम पर हम बेच नहीं सकते हैं। तो एक हमारे साथ में जो मामला है वह दाल का मामला है और दाल का मामला...
सवाल- बहुत सवाल उठ रहे हैं इस पर कि 200 रुपये किलो अगर दाल होती है तो वह मंहगी है।
रामविलास पासवान- नहीं..नहीं.. नहीं... मैं सहमत हूं..मैं आपसे सहमत हूं। आज भी हम डेली बैठक मीटिंग ले रहे हैं। असल में दाल के सामने में जो सबसे बड़ा प्रॉब्लम है वह प्रॉब्लम है कि 170 लाख टन दाल का उपज हुआ है और जो आवश्यकता है वह तो 246 लाख टन है। तो 170 लाख टन उत्पादन और 246 लाख टन जो है मांग, और विदेश में भी जो है दाल का उत्पादन नहीं हो रहा है ज्यादा क्योंकि विदेश में लोग दाल खाते नहीं हैं। हम जो खाते हैं इसी के लिए उपजाते हैं वो, तो अब जो गैप है वो बहुत बड़ा गैप है। जो इंपोर्ट है, वो भी इंपोर्ट जो है क्या कहते हैं कि 59 लाख टन क्या कहते हैं कि इंपोर्ट यह हुआ, हो रहा है तो इसीलिए यह जो मांग और डिमांड और सप्लाई का मामला है और इसमें फिर जमाखोरी होने लगती है। तो जब तक हमने देखा है कि डिमांड और सप्लाई जिसे हम लोग जो आंक रहे हैं उसमें जितनी हमारी आवश्यकता है यदि उसके अनुपात में जो है इंपोर्ट हो जाए, आयात हो जाए अब आयात हम नहीं करते आयात प्राइवेट सेक्टर...
सवाल- सरकार कहती है आप लोग कहते हैं कि भई हमारे भंडार भरे हुए हैं, हमें चिंता करने की जरूरत नहीं है, तो भंडार दाल के नहीं हैं?
रामविलास पासवान- नहीं देखिए दाल के पास, दाल में पहली बार हमने बफर स्टॉक बनाया है। अभी तक हम 50 हजार टन दाल खरीद चुके हैं। हम 26 हजार टन इंपोर्ट कर चुके हैं। एक लाख टन और खरीदने वाले हैं, खरीद रहे हैं।
सवाल- तो कम होंगे दाम?
रामविलास पासवान- नहीं दाम देखिए, दाम कम हो, सबसे बड़ी बात है कि जो भारत सरकार है या हमारा विभाग है हम बेच तो नहीं सकते, हम बिक्री का काम नहीं कर सकते हैं। राज्य सरकारों को हमने कहा है कि आपको जितना दाल लेना है आप दाल हमसे लीजिए और लोगों को 120 रुपये के अंदर में दाम को रखिए।
सवाल - आपके आलोचक क्यों आरोप लगातें हैं कि भई जो काला बाजार है, जो जमाखोर है, सरकार उनको थोड़ी सी रियायत दे रही है?
रामविलास पासवान - हां...यह जो आपने कहा है, इसमें हम पहले एक बात पहले आपको बतला दें कि हमने राज्य सरकार को कहा है कि आप अरहर का दाल 66 रुपये पर लो। जो भी राज्य सरकार हमको मांग रही है हम 66 रुपये अनमिल्ड जो होता है वो हम दे रहे हैं। और हम कह रहे हैं कि आप इसको सौ, सवा सौ, एक सौ बीस के नीचे बेचो। उसी तरीके से उड़द का दाल है। वह हमने 120 रुपये किलो...
सवाल - नहीं जो अरहर का दाल...
रामविलास पासवान-...120 रुपये ...उड़द का जो दाल है..उसको हम 82 रुपये जो है दे रहे हैं। प्रति किलो के हिसाब से अरहर का जो है 66 रुपये दे रहे हैं। अब जो दूसरी बा...लेकिन राज्य सरकार खरीद नहीं रही हैं।
सवाल- क्यों नहीं खरीद रही हैं?
रामविलास पासवान- अब पता नहीं देखिए...जब यह जवाबदेही दोनों का है, सेंट्रल का भी है, स्टेट का भी है। स्टेट में बिल में..स्टेट की जो सरकारें हैं ..नहीं हम आपसे..
सवाल- तो राज्य सरकारें..आप बेचने को तैयार हैं सस्ते में, लेकिन राज्य सरकारें अपनी जनता को मंहगी दाल बेच रही हैं। आप यह कह रहे हैं..?
रामविलास पासवान- वे खरीदने को तैयार नहीं हैं वे खरीदें न...हम तो सबको बार-बार चिट्ठी लिखे हैं। मंत्री की हैसियत से चिट्ठी लिखे हैं। विभाग ने चिट्ठी लिखा है और जब हम प्रेस के माध्यम से कह रहे हैं कि जिनको जितनी दाल की आवश्यता है वे लें। देखिए भारत सरकार..आप भारत सरकार की....
सवाल- जमाखोरी का आरोप जो लगा रहे हैं, वे जमाखोर सरकार के साथ हैं वे..
रामविलास पासवान- देखिए जहां तक जमाखोरी...जो भारत सरकार के पास में कानून है वह इतना ही कानून है कि हम राज्य सरकार को हम ऑर्थराइज़्ड करते हैं कि आप इनके खिलाफ में कार्रवाई करो कि डिफेन्सर अफेयर जो हमारा जो जमाखोरों के खिलाफ में जो कार्रवाई करने का अधिकार है, हम राज्य सरकार को हम वह अधिकार देते हैं। यह राज्य सरकार की जिम्मेवारी है, ब्लैक मार्केटिंग जो एक्ट है या जमाखोरी एक्ट है, वो भारत सरकार छापामारी नहीं करती है।
सवाल- लेकिन आप ऐसी सरकार हैं जो इन जमाखोरों पर लगाम लगाने की बात कहते थे। तो यह जो आपके राज्य हैं, बीजेपी के, तो अब ज्यादा राज्य हो गए हैं। वहीं पर सस्ती हो जाए दाल। वहां पर क्यों नहीं हो रही है सस्ती..। क्या हमारे राजस्थान में, मध्य प्रदेश में, छत्तीसगढ़ में क्या वहां पर 100 से नीचे या 120 मिल रही है अरहर की दाल आप यह बताओ?
रामविलास पासवान- हम..हम राज्य सरकार, हमने कहा कि जो केंद्र सरकार के मंत्री की हैसियत से जितनी भी राज्य सरकारें हों, चाहे बीजेपी स्टेट हों या नॉन बीजेपी का हो, जो भी स्टेट्स हों, एनडीए का हो, कांग्रेस का हो, हम तो सबको कहते हैं कि एज़ ए मिनिस्टर मैं आपसे भी कहना चाहता हूं कि जो भी राज्य सरकार दाल खरीदना चाहें दाल हमसे खरीदें, हम 66 रुपये पर अरहर और 82 रुपये पर उड़द का दाल उनको दे रहे हैं। और जनता को सस्ते दर पर दे..।
सवाल - तो बीजेपी शासित राज्य भी नहीं मांग रहे। वे भी 200 रुपये से नीचे नहीं मांग रहे, यह सवाल है न सर। क्यों नहीं हो रहा है फिर यह। कोई तो कारण होगा? आप क्या समझते हैं, आप तो एक इतने वरिष्ठ नेता हैं जो जमीन से बरसों से जुड़े हुए हैं। क्या कारण है जरा बता दीजिए..?
रामविलास पासवान- नहीं.. नहीं..कारण तो.. कारण तो आप लोग उसका बतला सकते हैं। हम तो इतना ही बतला सकते हैं। अब जैसे जमाखोरों के खिलाफ में आपने कहा, हम जमाखोरों के खिलाफ में कार्रवाई करने को कह सकते हैं। अभी देखिए भारत सरकार का समझिए हम एक लाख 30 हजार करोड़ रुपया हम सब्सिडी में देते हैं। एक लाख 30 हजार करोड़ रुपया, यह जितनी राज्य सरकारें डींग मारती हैं कि साहब हम 2 रुपये किलो गेंहू दे रहे हैं, तीन रुपये किलो गेंहू दे रहे हैं, एक नया पैसा इनका योगदान नहीं है। हम 33 रुपये किलो चावल खरीदते हैं और 3 रुपये किलो जो है फूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत चावल देते हैं गरीब को। देश में 75 फीसदी आबादी है ग्रामीण इलाका में, जिनको हम 3 रुपये किलो चावल और दो रुपये किलो गेंहू देते हैं।
सवाल- पर पासवान जी मुझे इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि जब अब देखिए, अभी जो असम के चुनाव आए उसके बाद एक आंकड़ा हम सबके सामने आया और हमने एक भारत का मैप दिखाकर दिखाया कि कांग्रेस के तहत सिर्फ 7 प्रतिशत आबादी रह गई है देश की और बीजेपी के तहत 35-40 प्रतिशत आबादी आ रही है। क्षेत्रफल भी बीजेपी के तहत ज्यादा आ रहा है। तो अगर आप मुझे कहेंगे कि भई राज्य सरकारें नहीं सुन रही हैं तो भई राज्य सरकारें ज्यादा आपकी हैं, अगर आप कहेंगे कि जमाखोरों पर कार्रवाई नहीं कर रहीं हैं राज्य सरकारें, तो केंद्र में सरकार आपकी है, राज्यों में भी सरकारें आपकी हैं। तो जवाब मुझे नहीं मिल रहा है...।
रामविलास पासवान- नहीं आप, आपका कहना सही है। मैं आपकी जवाबदेही से भाग नहीं रहा हूं। हमने आपसे बतलाया कि चैलेंज सिर्फ दाल है। सिर्फ और सिर्फ दाल है। और बाकी चीज का आप हमको बतला दीजिए। किसी चीज के दाम...आपने कहा प्याज का दाम और प्याज का दाम तो बढ़ा नहीं है। दाम इतना कम है देखिए..।
सवाल- नहीं आपने खुद...
रामविलास पासवान- प्याज एक ऐसा चीज है कि तीन महीना का खेल होता है। कभी जो है कन्ज़्यूमर के आंख से आंसू निकाल देता है, कभी किसान की आंख से आंसू निकाल देता है।
सवाल- और कभी नेता के...
रामविलास पासवान- हां-हां..कभी नेता के...। आपने पिछली बार जो है प्याज का दाम बढ़ गया, तब लोग क्या कह रहे थे, कह रहे थे कि प्याज का दाम बढ़ गया, प्याज का दाम बढ़ गया। मोदी सरकार में आज जब प्याज जो है, का दाम बिलकुल नीचे आ गया है। तब होता है कि साहब एक टन प्याज बेचा एक रुपया मुनाफा हुआ..!
सवाल- सर आपने प्याज की बात कही। यह एक मामला किसान का ही सामने रख देती हूं। यह पुणे के रासायी गांव के रहने वाले किसान हैं देवीदास परभाने। आप देख लीजिए इनको एक टन प्याज, यानि 952 किलो प्याज, उसका मिला सिर्फ एक रुपया..!
रामविलास पासवान- एक रुपया...
सवाल- आपको पता है इस खबर के बारे में?
रामविलास पासवान- नहीं-नहीं... बिलकुल हमको खबरों का पता है। कल से ही चल रहा है ..यह खबर कल से ही चल रहा है। और सबसे बड़ी उसमें अब देखिए पहली बार हुआ है कि भारत सरकार की तरफ से हमने जो है स्टॉक लिमिट में प्याज के ऊपर में जो है हमने जो है खरीदना शुरू किया है।
सवाल- हुआ कैसे यह... आप ही बताइए?
रामविलास पासवान- ज्यादा उत्पादन हो गया ना, देखिए जब ज्यादा उत्पादन होगा प्रोड्क्शन होगा और हम...
सवाल- रखरखाव की जगह नहीं बनाई हमने कि जो बफर स्टॉक बना लेते, जब कमी होती प्याज की तब निकाल लेते?
रामविलास पासवान- नहीं.. नहीं.. नहीं..देखिए प्याज एक ऐसा चीज है आलू,प्याज और टमाटर जिसके लिए सामान्य गोदाम से काम नहीं चलता है। आप जो है दाल और गेंहू के लिए चावल और गेंहूं के लिए तो बफर स्टॉक बना सकते हैं, दाल के लिए बना सकते हैं, लेकिन इसके लिए तो जो कोल्ड स्टोरेज है उसकी आवश्यकता होती है। तो जब हमको देखिए जब से आप...
सवाल- आप सुनिए इनकी बात इनको सुनिए। इन्होंने दो एकड़ जमीन में 80 हजार रुपये लगाकर प्याज उगाया और 10 मई को यह बेचने गए तो इनको पूरे इस प्याज को बेचने के लिए गए तो 992 किलो के प्रति किलो पैसे मिले एक रुपया 60 पैसे। यानि की 1523 रुपये 20 पैसे मिले। इन्हें अब 1523 रुपये मिल गए तो हम सोच रहे थे ये तो भइया मिल गए...एक रुपये की बात कहां से आ रही है? ऐसे आ रही है कि 1523 रुपये 20 पैसे मिले पूरे एक टन प्याज बेचने पर, बिचौलिये को दियए 51 रुपये 35 पैसे। फिर इसके बाद श्रमिक शुल्क जो आढ़त को देना होता है उसके लिए देने पड़े 51 रुपये। कमीशन को देने पड़े साथ ही बोरी उठाने वाले को भी देने पड़े 92 रुपये। फिर प्याज को बोरी में भराई के लिए 18 रुपये 55 पैसे देने पड़े। फिर एक विशिष्ट शुल्क होता है जो वजन करते हैं। प्याज के विशिष्ट शुल्क के लिए 33 रुपये 30 पैसे देने पड़े। कुल मिलाकर फिर 1320 रुपये ट्रक ड्राइवर को देने पड़े..और एपीएमसी गया। प्याज को लेकर तो कुल मिलाकर 1522 रुपये 20 पैसे खर्च हो गए और जो इन कटौतियों के बाद उन्होंने देखा कि अगर मैंने 1523 रुपये 20 पैसे में एक टन प्याज बेचा और इन सबको बिचौलियों को देने के बाद, जो तमाम मैंने गिनाए उसके बाद इनके पास इनके खर्च हो गए 1522 रुपये 20 पैसे और बचा केवल एक रुपया। और इन्होंने कहा मुझे कम से कम तीन रुपये प्रति किलो की तो उम्मीद थी। अब यह है हमारे किसान की विडम्बना। इसमें तो मुझे कोई गणित समझ ही नहीं आ रहा सर हम क्यों...?
रामविलास पासवान- देखिए इसमें सीधा सा गणित है कि इसके लिए कांग्रेस पार्टी जिम्मेदार है। आपको मालूम है कि जीएसटी बिल पास नहीं होने दे रही है एपीएमसी है। हम शुरू से कह रहे हैं दो साल से कि नेशनल कॉमन मार्केट बनना चाहिए..। एक ही समय में एक प्याज का कीमत ऊपर रहता है तो दूसरे समय में किसान परेशान रहते हैं। इतना न टैक्सेस का कहते हैं। जगह-जगह पर है कि आपने मंडी सिस्टम की बात कही। आप पंजाब में चले जाइए..किसान को अधिकार नहीं है कि वह मंडी से बाहर बेच सकता है।
सवाल- ठीक करेंगे..इसको ठीक करेंगे?
रामविलास पासवान- नहीं तो इसको इसलिए मैंने कहा न इसका एक ही तरीका एपीएमसी जो है, क्या कहते हैं एक्ट में क्या कहते हैं कि संशोधन होना चाहिए। जीएसटी बिल पास होना चाहिए..और पूरा नेशनल मार्केट एक फ़्लो होना चाहिए। कि अनाज यदि एक जगह पर... पानी का सवाल है एक जगह पर बाढ़ आता है और दूसरे जगह पर सूखा रहता है वही किसान की हालत है।
सवाल- सर कांग्रेस ने तो किया और वह गई... अब दो साल हो गए हमारी नई सरकार आए...। सुनिये न..मेरा मतलब यह है कि इन दो सालों में भी किसान के लिए इस तरह की चीज़ों से... कहां पर तो दाल हो नहीं रहीं..तो हम बाहर से मंगा रहे हैं। कहां पर हमारे पास प्याज कभी होता नहीं है जो इतना मंहगा होता है। अब है तो बेचारे को एक रुपया मिल रहा है। हां...सर सुनिए आप इसका जवाब नहीं, आप कांग्रेस को कह रहे हैं किसान के लिए मूलभूत, जो किसान के लिए फ़ायदे होते हैं उस लिहाज से कुछ सोचेंगे अलग कि नहीं सोचेंगे?
रामविलास पासवान- देखिए न, पहली बार मैंने कहा कि, आजादी के पहली बार हम जो है 15000 टन प्याज हम खरीद रहे हैं। करीब-करीब 13-14 हजार टन हमने खरीद भी लिया तो, एकाएक अप्रत्याशित रूप से कोई चीज सामने में आ जाए..जब एकाएक...हमने कहा न पिछली बार हमारी सर...
सवाल- मिनिमम सपोर्ट, आप कह रहे हैं दे रहे हैं...
रामविलास पासवान- नहीं-नहीं मिनिमम सपोर्ट नहीं हम मार्केट में खरीद रहे हैं। हम मार्केट में खरीद रहे हैं 9 रुपये किलो के हिसाब से। हम मार्केट से खरीद रहे हैं..
सवाल- तो हमारे पुणे के इस किसान को...
रामविलास पासवान- देखिए-देखिए वहां तो...नासिक में क्या कहते हैं पूना के बगल में ही तो नसिक है न..। नासिक में क्या कहते हैं कि हजारों टन क्या कहते हैं कि हजारों टन हमने प्याज खरीदा है। राजस्थान में हम खरीद रहे हैं। मध्य प्रदेश में हम खरीद रहे हैं, लेकिन जैसा कि हमने कहा कि हमारे पास में जो भारत सरकार के पास में इन्फ़्रास्ट्रक्चर है, हमारे पास में क्या है। हमारे पास में एफसीआई है तो एफसीआई का गोडाउन है। वहां मैनेजर रहते हैं। गांव-गांव में जो कर्मचारी हैं वे राज्य सरकार के कर्मचारी हैं। हमने कहा कि 20 दिन, 25 दिन पहले जब हमको मालूम हुआ कि शायद किसान के पास में प्याज की उपज ज्यादा हो गया है। बहुत सस्ते दर में बिक रहा है। हमने उस समय से खरीदना शुरू कर दिया है।
सवाल- आप देवीदास परभाने को क्या कहेंगे, उसको बताइए कि उसको क्या कहेंगे?
रामविलास पासवान- नहीं.. नहीं इंडीविजुअल जो किसान हैं इसीलिए मैंने कहा कि जो राज्य सरकारें हैं उनकी भी जवाबदेही है न..।
सवाल- आप ही की सरकार है सर फडनवीस को कह दीजिए आप...
रामविलास पासवान-नहीं नहीं यह नहीं कह रहे कि हमारी सरकार है या किसकी सरकार है। मैं तो यह बात कहता हूं कि राज्य सरकारें हैं और राज्य सरकार की ही जवाबदेही सब जगह पर है कि राज्य सरकार देखे कि किसान को उचित मूल्य मिले..उचित मूल्य का मतलब है...
सवाल- तो बीजेपी सरकार फडनवीस सरकार से आप कहेंगे कि देखें किसानों की इस परेशानी को ...
रामविलास पासवान- जी बिलकुल कहेंगे..हम जरूर कहेंगे...। हमने ऑलरेडी क्या कहते हैं कि इसको कन्वे कर दिया है।
सवाल- ठीक है..अब यह सवाल जो आपने कहा कि देखिए बफर इसको रखने के लिए जगह नहीं है लेकिन सर हर साल चाहे यूपीए सरकार थी चाहे अभी आप ही के मंत्री ने बताया कि 90 हजार करोड़ का जो खाद्य सामान होता है, हमारे देश में जाया हो रहा है। यह पहले से चुनौती चली आ रही है, लेकिन दो साल में क्या हुआ बताइए इसमें?
रामविलास पासवान- कुछ नहीं..दो साल में हम दावे के साथ में कह सकते हैं कि हमारा एफसीआई में जो लॉसेस था वह बिलकुल घट करके 003 पर्सेंट बचा है।
सवाल- नहीं जो हजार करोड़ अनाज गेंहू सड़ता है उसका क्या हो रहा है?
रामविलास पासवान- देखिए अनाज गेंहू हमारा....हम इतना ही जानना चाहते हैं कि हमारे पास में जो जिस महकमे के हम मंत्री हैं उस महकमे में उस विभाग में करप्शन नाम की अब कोई चीज नहीं बची है। हम जो ट्रांसपेरेन्ट कर दिए। अब जो आप जाकर देखेंगे जो गल्ला का दुकान है मतलब फेयर प्राइज़ शॉप है, उस शॉप पर हम सब जगह जो है एन्ड टू एन्ड कम्प्यूराइजेशन की व्यवस्था जो है कर दिए हैं।
सवाल- आप कह रहे हैं आपके विभाग में नहीं आता यह?
रामविलास पासवान- कौन..नहीं.. नहीं... नहीं देखिए सबसे बड़ी है कि एफसीआई जो अनाज खरीदती है उसके लिए हम जिम्मेदार हैं, जो सामान खेत में है या राज्य सरकार खरीदती है।
सवाल - एफसीआई के गोडाउन बढाए क्या सर?
रामविलास पासवान- नहीं काहे के लिए गोडाउन बढ़ाएंगे। हमारे पास में 600 लाख टन की आवश्यकता है, 8 से 11 लाख टन का हमारे पास कैपेसिटी है।
सवाल- यह अनाज सड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा, तमाम लोग कहते हैं, उसका क्या..आप उसके बारे में क्या कहते हैं?
रामविलास पासवान- नहीं.. नहीं उसके विषय में दो तरह की एजेंसी होती हैं। एक राज्य सरकारें खरीदती हैं तो 90 पर्सेंट तो राज्य सरकारें ही खरीदती हैं। 10 परसेन्ट सिर्फ क्या कहते हैं कि एफसीआई खरीदती है। हम तो राज्य सरकार को पैसा देते हैं। कोई राज्य सरकार यह नहीं कह सकती है कि चावल और क्या कहते हैं गेंहू वो खरीदते हैं और हमको भारत सरकार पैसा नहीं देती है।
सवाल- नहीं नहीं..वह बात नहीं कह रही। वो तो आप दे रहे होंगे, लेकिन जो अनाज सड़ता है उसका क्या करोड़ों का फल, सब्ज़ी, अनाज,गेंहू...
रामविलास पासवान- हमको नहीं मालूम है कि 90 हजार टन का है या 80 हजार करोड़ का है। उससे बड़ी बात मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि जितना भी अनाज, चाहे चावल हो, गेंहू हो, राज्य सरकार किसान बेचना चाहे हम एक एक दाना खरीदते हैं और खरीदने के लिए तैयार हैं।
सवाल- ठीक है इसको बफ़र्स जगह बनाने की जो गोडाउन की ज़रूरत थी?
रामविलास पासवान- उसकी हमारे पास में कमी नहीं है। सौ लाख टन का अभी हम साइलो का हम निर्माण कर रहे हैं...और हमारे पास में जो ऑलरेडी गोडाउन हैं उसमें पर्याप्त अनाज रखा जा सकता है।
सवाल- ठीक है आपने बहरहाल कहा, लेकिन यह एक हम सबके सामने आंकड़ा है कि हमारा अनाज लाखों टन का बर्बाद होता है और उसका आखिरी में सर जो शहरों की बात कर लेते हैं। हमने गांव के किसानों की अपनी बात की। ब्रेड का आपने मसला सुना होगा जो हाल में आया है ब्रेड खाने से अब कैंसर हो जाता है। उसमें आप लोग जांच भी कर रहे हैं? क्या हो रहा है उस सिलसिले में...?
रामविलास पासवान- देखिए सबसे बड़ी बात है कि हमारे यहां जो एफएएसएसआई है वह हेल्थ मिनिस्ट्री के अन्तर्गत है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अन्तर्गत है और वह ऑथराइज़्ड रेग्यूलेटर है तो वो देखती है कि जो खाद्य पदार्थ है उसमें मिलावट तो नहीं है। और जब भी मिलावट होता है तो उसके खिलाफ वह कार्रवाई करती है क्योंकि उसका एक स्टैंडर्ड उन्होंने बना रखा है। जैसे पानी है तो पानी का हम लोग देखते हैं कि पीने का जो बोतल का पानी है उसमें देखेंगे आईएसआई मार्क है। उसी तरीके से खाना जो होता है चाहे मैगी हो या जितने भी पदार्थ जिनका नाम आपने कहा है ब्रेड है वह एफएएसएसआई देखती है। आजादी के बाद पहली बार इतिहास में हुआ जब एफएएसएसआई ने पकड़ा मैगी के मामले में। शिकायत दर्ज किया तो तुरंत हमने कुछ क्रिटिसिज्म भी हुआ। लेकिन हमने तुरंत जो है उसको नेशनल कमीशन के पास में जो हमारा कंज़्यूमर कोर्ट है। नेशनल कंज्यूमर कोर्ट है, उसके पास में हमने भेज दिया।
सवाल- और ब्रेड के लिए..
रामविलास पासवान- कोर्ट ने सब जगह उनको क्लीन चिट दे दिया है, लेकिन हमारे यहां जो है कंज़्यूमर कोर्ट में उनको ग्रीन चिट अभी तक नहीं दिया गया है।
सवाल- ब्रेड को सर ब्रेड को...
रामविलास पासवान- लेकिन वही हमने कहा न कि जब ब्रेड के मामले में एफएसएसआई यह साबित कर देगा या कहेगा कि इसमें मिलावट है या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तो निश्चित रूप से हम उस पर भी कार्रवाई करेंगे। लेकिन एफएएसएसआई को कहना होगा। दूसरी बात हम शुरू से हम कंज़्यूमर मिनिस्टर की हैसियत से कह रहे हैं कि यह जितनी भी चीजें हैं, स्वास्थ्य संबंधित चीज़ें हैं। इनको लिखना चाहिए कि स्वास्थ्य के लिए कितना हानिकारक है।
सवाल- सर जैसे पोटैशियम ब्रोमेट इसमें डाला गया, कहा जा रहा है। और देशों में बैंड है, हमारे यहां बैंड नहीं है। अब जब यह सामने आया तब एफएसएसआई ने कहा चलिए अब हम बैंड कर देते हैं बड़े अनमने ढंग से...!
रामविलास पासवान- नहीं नहीं देखिए हमने कहा कि स्वास्थ्य के साथ में किसी को खिलवाड़ करने की इजाज़त नहीं है। यह बात अलग है कि विदेश में कोई सोचता नहीं है कि मिलावट हो सकता है। और यहां कोई सोचता नहीं है कि बिना मिलावट का कोई चीज़ मिल सकता है। तो इसीलिए जो है जो स्टैंडर्ड है वह तय भी होना चाहिए और स्टैन्डर्ड को कड़ाई से लागू भी किया जाना चाहिए। इसीलिए हम लोगों ने भी एफएसएसआई को कई एक बार जो है कहा है कि जो खास करके जो खाद्य पदार्थ हैं..
सवाल-इस मामले में सर आपने कहा है..
रामविलास पासवान- नहीं इस मामले में हमारा जो अधिकार क्षेत्र है, उस अधिकार क्षेत्र से हम बाहर नहीं जा सकते, जब तक कि हमारे पास में एफएसएसआई का रिपोर्ट नहीं आ जाता है कि इसमें मिलावट है या स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
सवाल- अच्छा...सर तो यह जो मैं पढ़ रही थी उसमें कि हमारे यहां जो है बाहर के देश से बहुत स्ट्रिक्ट रुल्स हैं और हमारे यहां स्ट्रिक्ट रुल्स नहीं है और हमारे यहां मापदंड सजा भी नहीं है। अब एक आंकड़ा मैं पढ़ रही थी पिछले सालों में कन्विक्शन रेट बहुत होता था लेकिन 14-15 में देखा गया कन्विक्शन रेट इसका घटा है। करप्शन की बात कही जा रही है। अब यह मैं नहीं जानती कि किसके तहत कौन सा विभाग रहता है, लेकिन जब अगर खाने की चीजों से जो इंसान के पेट के अंदर जा रहा है, उसमें अगर अडल्टरेशन हो रहा है उसमें आप कुछ करेंगे या नहीं?
रामविसाल पासवान- नहीं निश्चित रूप से करना चाहिए, लेकिन हमने कहा कि हर मंत्रालय का अलग-अलग दायरा क्या कहते हैं कि होता है। और खाना भी दो तरह का होता है एक फास्ट फूड होता है जिसमें आप ब्रेड कहते हैं मैगी कहते हैं। यह सब फास्ट फूड है जिसको बड़ी-बड़ी कंपनियां हैं वे बनाती हैं। दूसरा स्ट्रीट फूड होता है, जिसमें छोटे-छोटे जो हमारे वेन्डर्स होते हैं, दुकान खाना बनाने वाले होते हैं। हालांकि हमने राज्य सरकारों को भी लिखा है कि आप यह जितने खाना इधर-उधर बनाते हैं उसके लिए जैसे दिल्ली है आप मोहल्ला में हर कॉलोनी में एक बढ़ियां जमीन दे दो और वहीं सारे के सारे अपना बनावें और वहीं क्या कहते हैं कि लोग जाएं खाने के लिए तो किसी को यह भी नहीं लगेगा कि हम जाकर के जो है रोड पर खा रहे हैं।
सवाल- सर दूध में मिलावट चिकन में कहा जा रहा है एंटीबायोटिक्स। आप पढ़ते होंगे अखबार में यह तमाम चीजें आती हैं। तो उस लिहाज़ से यह क्वालिटी ऑफ फूड जो खा रहे हैं, जो दे रहे हैं, वह बेहतर हो उसके लिए आपकी सरकार क्या कर रही है?
रामविलास पासवान- नहीं उसके लिए हमारी सरकार सतत प्रयत्नशील है और जैसा कि हमने कहा कि एफएएसएसएआई और हमारा डिपार्टमेंट जो है कंज़्यूमर है। जो कंज़्यूमर के इंनट्रेस्ट को देखते हैं हम दोनों मिलकर।
सवाल- अपनी तरफ से कोई पहल है...
रामविलास पासवान- जी बिलकुल बल्कि हम लगातार पहल कर रहें हैं। हमने लगातार पहल करने का काम किया है, और काफी। हमने तो यहां तक कह दिया है कि यह जो जितना आप करते हो जितना पब्लिसिटी करते हो जैसे यह बोतल है हमने कहा है कि बोतल में जो आप लिखते हो कि जैसे आईएसआई मार्क है, अब यह बहुत छोटा है। पहले तो बहुत ही छोटा था डेट ऑफ मैन्यूफ़ैक्चरिंग है, डेट ऑफ एक्सपाइरी है कि कितने दिन के लिए वैलिड है। इन सारी चीज़ों के लिए ये मेन्डेट्री है। ऑलरेडी मेन्डेट्री है..।
सवाल- लिखते हैं, कितने लोग लिखते हैं?
रामविलास पासवान- नहीं-नहीं, अलग-अलग है न हर सामान मेन्डेट्री नहीं है।
सवाल-हां तो वो आप करेंगे क्या सर...
रामविलास पासवान- नहीं-नहीं, वो इंस्पेक्टर राज भी हम लाना नहीं चाहते हैं न, हम हर चीज़ को मेन्डेट्री कर दें..एक मिनट एक मिनट..।
सवाल- क्योंकि एमएलसीज़ दबाव डालती हैं सर, एमएलसीज़ दबाव डालती हैं?
रामविलास पासवान- ..एक मिनट-एक मिनट...। जैसे हमने कहा इसका इतना पोर्शन है हमने कहा इसको 40 पर्सेंट करो तो जैसे हमने कहा कि पानी जो है हमारे अंडर में आता है लेकिन खाना जो है वो एक अथॉरिटी है। मतलब एफएसएसआई कोई मामूली चीज नहीं है..वो अथॉरिटी है। उनका यही काम है।
सवाल- न ट्रेनिंग होती है सर उनकी न उनके इंस्पेक्शन होते हैं। सेंटर की तरफ से न सेंटर के स्टेट या सेंटर से उनका कोर्डनेशन नहीं होता सर। मैं इसलिए बता रही हूं कि यह तमाम चीजें नेट पर मिल जाती हैं। लोग कह रहे हैं इस बात पर न एजेंसीज हैं जांच करने की। दिल्ली के पास देखिए सिर्फ तीन एंजेंसीज़ हैं। कैमिस्ट हैं जो जांच करते हैं। वह भी बाहर दे देते हैं। वह भी स्पेसिफाइड लोग नहीं हैं कि सर्टीफाइड हों। वे लोग तो क्या करें कुछ हो नहीं रहा है?
रामविलास पासवान- हमने तो इतना ही कहा कि हमारे पास में यो जो है वह एफएएसएसआई है। जो है उनका है, फूड स्टैन्डर्ड अथारिटी उनका है। शिकायत आती है हम उसके ऊपर में कार्रवाई करते हैं, लेकिन जैसे दिल्ली है अब किसको कहिएगा, दिल्ली में पानी है, दिल्ली का पानी जो नल से पानी चलता है वह स्टेट गवर्मेंट का है। दिल्ली का नल का पानी पीने लायक है हम लोग तो बोतल का पानी पी लेते हैं। या कहीं-कहीं अपने घर में कोई फिल्टर लगा लेते हैं। गरीब क्या करेगा जाकर के खोलिए पानी सवेरे में। कहीं नीला पानी आएगा, कहीं पीला पानी आएगा।
सवाल- दिल्ली सरकार से यह सवाल बहुत अहम है लेकिन अब अंत में मैं आपसे यह सवाल पूछना चाहूंगी कि आप हमारे देश की जनता को क्या बताएंगे, जो खाने का सामान वे खा रहे हैं पी रहे हैं जिसके आप पूरे ज्ञाता हैं और आप ध्यान रखते हैं दस में से कितने मार्क्स देंगे?
रामविलास पासवान- नहीं-नहीं.. कुछ नहीं। मार्क्स देना आपका काम है। हमारा काम है कि जो हम...।
सवाल-फिर भी फिर भी..
रामविलास पासवान- नहीं, कुछ नहीं, उसमें वो आपका हमने कह दिया कि जो खाने का सामान है, उसका एक माप होना स्टैन्डर्ड होना चाहिए, और स्टैन्डर्ड पर मिलना चाहिए। एफएसएसआई को क्या कहते हैं कारगर तरीके से काम करना चाहिए। हमारा डिपार्टमेंट कंज़्यूमर का है। कंज़्यूमर इन्टरेस्ट के लिए आपने देखा होगा जागो ग्राहक जागो के माध्यम से हम कंज़्यूमर को हमेशा चेताने का काम करते हैं। सोना का मामला है हमने कह दिया है कि हॉल मार्किंग जो है अब यहां एक से एक कानून बना हुआ था। अब सोना आप खरीदने जाइए। चांदी खरीदने जाइए। आपको पता है कि ये 9 कैरेट का सोना है या 23 कैरेट का सोना है।
निधि कुलपति- सर खाना ठीक करा दीजिए सोना तो देश खरीदता है या नहीं खरीदता, लेकिन बहुत-बहुत धन्यवाद आपने हमसे बात की एक बार फिर से आपका बहुत-बहुत बधाई।
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