पीएम मोदी ने कल राज्यसभा में बनाया माहौल, आज फिर 'तू-तू, मैं-मैं'

पीएम मोदी ने कल राज्यसभा में बनाया माहौल, आज फिर 'तू-तू, मैं-मैं'

नई दिल्ली:

राज्यसभा में मंगलवार को बोलते हुए प्रधानमंत्री ने 'तू-तू, मैं-मैं' की राजनीति से ऊपर उठकर काम करने की बात कही। मगर इसका असर बुधवार को राज्यसभा में देखने को नहीं मिला। कांग्रेस सांसद कुमारी शैलजा के गुजरात में एक मंदिर जाने पर उनकी जाति पूछे जाने के दो दिन पुराने मामले को बीजेपी ने उठा दिया, फिर क्या था जो कुछ भी सौर्हाद प्रधानमंत्री के भाषण से बना था वो एक मिनट में खत्म हो गया।

दरअसल राज्यसभा में सदन के नेता अरुण जेटली ने कहा कि कांग्रेस की एक महिला सांसद ने गुजरात के जिस मंदिर के बारे में जाति पूछे जाने की शिकायत की थी कि आजादी के इतने सालों बाद भी भारत में ऐसा होता है, उसी मंदिर के विजिटर बुक में उन्होंने मंदिर की खूब प्रशंसा की है। जबाब में कुमारी शैलजा ने सफाई में कहा कि उन्होंने द्वारिका के मुख्य मंदिर का जिक्र नहीं किया था, उनका मतलब बेट द्वारिका मंदिर से था।

बेट द्वारिका या शंखोदर मंदिर मुख्य द्वारिका मंदिर से अलग है। बेट द्वारिका मंदिर एक टापू पर है, जहां द्वारिका से जाने में एक घंटा लगता है और वहां नाव या स्टीमर से ही पहुंचा जा सकता है। इतनी सी बात को लेकर विपक्ष और सरकार में ठन गई। एक पुराने मामले की वजह से राज्यसभा की कार्यवाही बार-बार रोकनी पडी। विपक्ष नेता सदन से माफी मांगने को कह रहा था, तो सरकारी पक्ष कुमारी शैलजा से।

किसी तरह दोनों पक्षों में सुलह हुई, मगर तब मंहगाई पर बहस को टालकर चेन्नई में बाढ़ पर बहस शुरू की जा सकी, वो भी इसलिए कि इससे मानवीय पहलू जुडा हुआ है। सवाल यही उठता है कि सरकार की तरफ से शैलजा का मुद्दा क्यों उठाया गया। क्या यह किसी रणनीति के तहत था, क्योंकि यदि यह मामला नहीं भी उठता तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। बहस तो खत्म हो चुकी थी। प्रधानमंत्री का जबाब भी आ चुका था। क्या यह मामला राहुल गांधी के लोकसभा में किए गए सरकार पर तीखे हमलों की वजह से हुआ।

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क्या यह इसलिए भी हुआ कि कांग्रेस ने लोकसभा की कार्यवाही शुरू होते ही काम रोको प्रस्ताव की मांग शुरू कर वी.के. सिंह के इस्तीफे की मांग शुरू करते हुए वेल में पहुंच गए थे। कांग्रेस के लोकसभा से वॉक आउट करते ही बीजेपी की तरफ से राज्यसभा में कुमारी शैलजा का मामला उठा और सबको साथ लेकर चलने का ताना-बाना तहस-नहस हो गया। यदि संसद के शीतकालीन सत्र में भी इसी तरह से शह और मात का खेल चलता रहा तो सरकार के महत्वर्पूण बिलों का क्या होगा कहना थोडी जल्दबाजी होगी।