रवीश कुमार का प्राइम टाइम : क्या हम भारतीय लोकतंत्र में मना सकते हैं ऐसा जश्न?

ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को लेकर भारत में उत्साह है. इसे ब्रिटिश उपनिवेशवाद का बदला कहा जा रहा है तो इतिहास का न्याय.

रवीश कुमार का प्राइम टाइम : क्या हम भारतीय लोकतंत्र में मना सकते हैं ऐसा जश्न?

ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को लेकर भारत में उत्साह है. इसे ब्रिटिश उपनिवेशवाद का बदला कहा जा रहा है तो इतिहास का न्याय. लेकिन हम जश्न किस बात का मना रहे हैं, इस बात का कि भारतीय मूल के ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने हैं या इस बात का कि ब्रिटेन का लोकतंत्र कितना परिपक्व है, कि वहां कोई व्यक्ति किस मूल का है, किस देश का है, उसके दादा किस देश के हैं, इन सबकी परवाह किए बग़ैर वह उस देश का प्रधानमंत्री बन सकता है.तो क्या ऋषि सुनक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने से ख़ुश होने वाले लोग ब्रिटेन के लोकतंत्र की ख़ूबियों का जश्न मना रहे हैं? क्या वे यह भी कहना चाहते हैं कि लोकतंत्र ब्रिटेन के जैसा होना चाहिए, जहां कोई भी कहीं से आकर प्रधानंमत्री बन सकता है. क्या हम ऐसा ही जश्न भारत के लोकतंत्र को लेकर मना सकते हैं? 

ख़ास कर उस देश में जहां आए दिन एक धर्म विशेष की आबादी के बढ़ जाने को लेकर भय पैदा किया जाता है. जनसंख्या नियंत्रण के कानून के नाम पर असुरक्षा पैदा की जाती है. ग़लत-सलत आंकड़ों का सहारा लेकर बताया जाता है कि जल्दी ही बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हो जाएगा और अल्पसंख्यक बहुसंख्यक. इसलिए देश ख़तरे में है. बताइये उस देश में जश्न मन रहा है कि खुद को हिन्दू कहने वाले भारतीय मूल के ऋषि सुनक ईसाई बहुल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन रहे हैं. तो क्या भारत की राजनीति से यह सवाल पूछा जा सकता है कि क्या ऐसी उदारता की उम्मीद भारत से की जा सकती है? बीजेपी के नेता इसे काल चक्र के घूम जाने की व्याख्या के रुप में पेश कर रहे हैं, क्या वही नेता इसका जवाब दे सकते हैं कि उनकी पार्टी कई चुनावों में किसी मुस्लिम को टिकट तक नहीं देती है, क्या वह किसी मुसलमान को प्रधानमंत्री बनाने के विचार का समर्थन कर सकती है? वह तो विधायक और सांसद बनाने के नाम पर पीछे हट जाती है. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अपने ट्विट में पूछा है कि क्या भारत में ऐसा हो सकता है कि विदेशी मूल का कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सकता है? उनका इशारा साफ है कि सोनिया गांधी के समय विदेशी विधवा और विदेशी मूल की महिला कह कर कितना विरोध किया गया, तब वह देश और उस देश की एक पार्टी बीजेपी कैसे जश्न मना सकती है कि भारतीय मूल के ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि जाने अनजाने में बीजेपी के नेता टोरी पार्टी की तारीफ कर रहे हैं कि उस पार्टी के किसी नेता ने एक हिन्दू के प्रधानमंत्री बनने पर सिर मुंड़वाने की धमकी नहीं दी है? ब्रिटेन को कितना भरोसा है अपने सांसद और उसकी राजनीति पर. ब्रिटेन एक ईसाई बहुल देश है, वहां की संसद में ऋषि सुनक गीता पढ़ कर शपथ लेते हैं. ऐसा करने वाले ब्रिटेन के पहले सांसद बनते हैं. उस देश में इसकी सराहना होती है. ऋषि खुद को हिन्दू कहते हैं, उनकी पार्टी का कोई सांसद इसे लेकर असुरक्षित महसूस नहीं करता है.उन्हें रोकने के लिए कोई नए किस्म का नागरिकता कानून लाने की बात नहीं कर रहा है, कि जो प्रवासी होगा वह होटल तो खोल सकता है मगर देश का सर्वोच्च पद नहीं ले सकता. ब्रिटेन में भारतीय मूल बनाम ब्रिटिश मूल का झगड़ा नहीं है मगर भारत में भारतीय मूल का जश्न मनाया जा रहा है. 

हम जितना ज़्यादा ऋषि सुनक के भारतीय होने पर ज़ोर देंगे,उतना ही ज़्यादा भारत की राजनीति के दोहरेपन से पर्दा उठाते जाएंगे. एक सीमा तक ही हम इसकी खुशी मना सकते हैं. ऋषि सुनक ने कोई विश्व विजय अभियान के तहत यह पद हासिल नहीं किया है. देश दोनों हैं. ब्रिटेन भी और भारत भी.आज ब्रिटेन के अखबारों में उनके हिन्दू होने, भारतीय मूल के होने का ज़िक्र है, मगर कहीं भी इस बात का शोर नहीं है कि जब ब्रिटेन आर्थिक तबाही से गुज़र रहा है,युद्ध की आशंका से घिरा हुआ है, तब ऐसा व्यक्ति क्यों प्रधानमंत्री बन गया है जो ब्रिटिश मूल का नहीं है? इससे ब्रिटेन की सुरक्षा ख़तरे में पड़ जाएगी. आखिर कितने देश ऋषि सुनक की पृष्ठभूमि का हिस्सा ले सकते हैं?

यह पाकिस्तान का जीओ न्यूज़ है.इसकी हेडलाइन है कि पाकिस्तानी मूल का हिन्दू ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने जा रहा है.लिखता है कि ऋषि सुनक के दादा दादी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के शहर गुजरांवाला की पैदाइश थे. 1935 में उनके दादा रामदास सुनक गुजरांवाला छोड़ नैरोबी चले गए.उनकी पत्नी सुहाग रानी सुनक गुजरावालां से दिल्ली आईं और फिर 1937 में अपनी सास के साथ केन्या आ गईं. रामदास के बेटे यशवीर साठ के दशक में ब्रिटेन आ जाते हैं. पाकिस्तान का एक और अख़बार डॉन की हेडलाइन जियो न्यूज़ से अलग है. डॉन लिखता है कि 1960 में ऋषि के दादा दादी अफ्रीका से ब्रिटेन आ गए.दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन के पुनर्निमाण में हिस्सा लेने के लिए बहुत सारे लोग ब्रिटेन के उपनिवेशों से ब्रिटेन आ गए थे.भारत की प्रमुख समाचार एजेंसी PTI की हेडलाइन है कि सुनक पहले गैर व्हाइट प्रधानमंत्री बन रहे हैं, उनके प्रधानमंत्री बनने पर भारत और पाकिस्तान दोनों को गर्व है. PTI ने लिखा है कि ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री भारतीय भी हैं और पाकिस्तानी भी. भारत के अखबार द टेलिग्राफ ने लिखा है कि सुनक की वंशावली पर भारत और पाकिस्तान दोनों दावा कर रहे हैं. 

पाकिस्तान का अख़बार हिन्दू पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पर ज़ोर दे रहा है तो सवाल उससे भी है कि उसके अपने देश में कोई हिन्दू प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सकता? आज उसे भी सुनक के हिन्दू होने का श्रेय लेना पड़ रहा है. इन दोनों देशों ने हिन्दू मुस्लिम डिबेट में कितना वक्त  पानी की तरह बहा दिया. ऋषि सुनक की पहचान के साथ भारत के विभाजन का दुखद अतीत जुड़ा हुआ है. उनके दादा दादी गुजरावांला शहर से थे और 1947 के विभाजन से 12 साल पहले उस भारत को छोड़ चुके थे, जो तब नहीं बंटा था. कितनी अच्छी बात है कि उनके मूल को भारतीय बताने के लिए पाकिस्तान के उस शहर को भारतीय रुप में देखा जा रहा है.आज गुजरांवाला पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में आता है. ज़ाहिर है, वहां भी जश्न मन रहा होगा और इसी के साथ एक टीस भी उठती होगी, अगर उठती होगी. लेकिन विभाजन के बाद हज़ारों लोग गुजरांवाला शहर से भारत आने वाले ज़रुर किसी और अहसास के साथ इस घटना को देख रहे होंगे. दिवंगत पत्रकार विनोद दुआ भी इसी इलाके से आते थे. ऋषि सुनक पर पाकिस्तान से लेकर भारत के अलावा केन्या भी दावा कर रहा है. 

.केन्या मानता है कि सुनक की मातृभूमि केन्या है. भारत उनकी मातृभूमि भारत मानता है. ऋषि की शादी भारतीय परिवार से हुई है और बंगलुरू शहर में हुई है. उनके पास अमरीका का ग्रीन कार्ड था. जिसके ज़रिए वे वहां के स्थायी निवासी बन गए थे. ब्रिटेन में पैदा होकर भी अमरीका में बसने का ग्रीन कार्ड लेते हैं.तो ऋषि भूगोल और देश को किस तरह से देखते होंगे, इसकी कल्पना कुछ आप भी कर सकते हैं.इसलिए ऋषि सुनक को उनके कुल खानदान और वंशावली से देखना एक सीमा तक ही ठीक है. इससे हम बहुत कुछ नहीं जान पाते है. 

जानने के लिए समझना होगा कि ब्रिटेन के साउथम्पटन शहर में पैदा हुए ऋषि अमरीका का ग्रीन कार्ड क्यों लेते हैं, और राजनीति में आने के बाद भी बहुत साल तक नहीं बताते हैं. छह साल से सांसद थे, तब भी ग्रीन कार्ड सरेंडर नहीं किया और 19 महीने तक वित्त मंत्री रहे तब भी नहीं. जब अप्रैल महीने में विवाद उठा तब जाकर सफाई आई कि वित्त मंत्री के रुप में जब अमरीका गए तब इसके सरेंडर करने के बारे में पूछा और सरेंडर कर दिया. आरोप लगा कि ग्रीन कार्ड इसलिए रखे रहे ताकि इससे ब्रिटेन में टैक्स की छूट हासिल कर सकें. ऋषि की पत्नी अक्षता के बारे में गार्डियन अखबार में खबर छपी है कि उन्होंने नॉन डोमिसाइल सर्टिफिकेट इसलिए रखा ताकि टैक्स बचा सकें. 20 मिलियन स्टर्लिन टैक्स बचाए हैं, यह एक तरह की नैतिक टैक्स चोरी है. भारतीय रुपये में यह पैसा 187 करोड़ के करीब होता है.  नॉन डोमिसाइल स्टेटस से जो आप विदेशों में कमाते हैं, उस पर टैक्स नहीं लगता है. अक्षता को भारतीय कंपनी से डिविडेंड के रुप में काफी पैसे मिलते हैं. तब लेबर पार्टी ने आरोप लगाया था कि अक्षता मूर्ति टैक्स बचाने के तरीके खोज रही हैं जबकि उनके पति जनता पर टैक्स लाद रहे हैं. 

जनता पर टैक्स लगाने वाले खुद टैक्स चुराने या बचाने के सौ रास्ते निकाल लेते हैं. बेहतर है आप इस पर फोकस करें, न कि वे किस मूल के हैं. इस पर फोकस करें कि आज की दुनिया में कोई नेता किस नेटवर्क से आ रहा है? उस नेटवर्क का आर्थिक प्लान क्या है? अमीरों के नेटवर्क से आने वाले इस नेता का जश्न भारत में उस पार्टी के नेता मना रहे हैं, जो चायवाला को प्रधानमंत्री बनाने का श्रेय लेते हैं. यह भी नहीं देखते कि ऋषि सुनक की आर्थिक सोच क्या है? सुनक के बारे में पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि वे अमीरों के उस नेटवर्क से आते हैं जो केवल अमीरों को और अमीर बनाने के सपने देखता है और कदम उठाता है. जिसके बहुत से तार वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम से जुड़ते हैं. वहां से तय होने वाली भाषा ही दुनिया में अलग अलग नेता अलग अलग नाम से बोलते हैं. सुनक अमीरों के ऐसे नेटवर्क से आते हैं, जिसके सहारे किसी बड़ी यूनिवर्सिटी में पहुंचना या किसी पद पर पहुंचना कोई बड़ी बात नहीं. चैनल फोर से लेकर गार्डियन तक में सुनक के वित्तीय संसार के बारे में कई ख़बरें छपी हैं. 

जिन स्कूलों और कालेज में सुनक की पढ़ाई हुई है, वे ब्रिटने के महंगे प्राइवेट स्कूल और कालेज हैं, जिसकी फीस लाखों में होती हैं. जो सुपर अमीर होता है, उसी के बच्चे वहां पढ़ते हैं. वैसे ब्रिटेन में ज़्यादातर लोगों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ते हैं. यह कालेज 14 वीं सदी से चल रहा है, जिसकी केवल फीस ही भारतीय रुपये में 43 लाख रुपये सालाना होती है. इस स्कूल से निकलने वाले छात्रों का एक नेटवर्क होता है, जिसके सहारे किसी पद पर पहुंचना कोई बड़ी बात नहीं. ब्रिटेन के एक प्रधानमंत्री और पांच वित्त मंत्री यहां के छात्र रहे हैं. आक्सफोर्ड से पढ़ाई पूरी कर सुनक लंदन में घर खरीद लेते हैं और अमरीका गोल्डमैन शैश की नौकरी करने चले जाते हैं. फिर वहां की एक और अमीर यूनिवर्सिटी स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हैं. लबालब दौलत के बीच पले बढ़े सुनक से ग़रीबी और आर्थिक तंगी की मार झेल रही ब्रिटेन की जनता उम्मीद करती है या उसके ऐसे फैसले से सहमी हुई है, इसका एक उदाहरण देता हूं. सुनक ने वित्त मंत्री रहते हुए कोरोना के समय दी जाने वाली राहत में कटौती कर दी.प्रति सप्ताह बीस पाउंड की कटौती कर देने भर से दो लाख से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए. उनकी ही पार्टी के सांसदों ने खूब आलोचना की थी. हम भारतीय सुनक की भारतीय मूल की पहचान पर ही अटके हैं जबकि ब्रिटेन के अखबारों में इनकी दौलत के किस्से भरे हुए हैं.इस किस्से में अपने देश में टैक्स बचाने के लिए अनाम गुमनाम छोटे देशों में पैसा रखने के किस्से भी है. इन किस्सों को पढ़ कर सुनक की वित्तीय नैतिकता को लेकर सवाल होने चाहिए.

इतनी दौलत होने के बाद भी टैक्स बचाने के लिए दूसरे देशों में निवेश करे और न देने का जुगाड़ निकाले, इससे बता चलता है कि सुनक की निष्ठा किसी देश से भी ज्यादा पैसे के प्रति है. ब्रिटिश मीडिया में बताया जा रहा है कि सुनक की अपनी संपत्ति करीब सात हज़ार करोड़ रुपये से अधिक की है. पत्नी के पास भी बेशुमार दौलत हैं. पहली बार कोई इतना अमीर ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बना है. वो भी तब जब ब्रिटेन की जनता दो वक्त के भोजन के लिए संघर्ष कर रही है. यह भी देखिए कि यह अमीरी केवल प्रतिभा और खुले कारोबार से आई है या टैक्स हेवेन में निवेश कर टैक्स बचाने से आई है. 

ब्रिटेन में ब्याज दरों के बढ़ने का दौर जारी है. इस कारण जिन लोगों ने लोन पर घर लिया है, उनके लिए घर महंगा होता जा रहा है. ऊपर से बिजली बिल और महंगाई की मार. ब्रिटेन में महंगाई ऐतिहासिक स्तर पर है. बिजली और गैस के दाम 140 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं. लोगों की कमाई का बड़ा हिस्सा केवल बिजली बिल भरने में चला जा रहा है. इसका दबाव इतना है कि हज़ारों और लाखों की संख्या में दुकानें, होटल और फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं. वहीं के अखबारों में यह सब छपा है. इस ऐंकर ने वहां जाकर नहीं देखा है. लोग जानना चाहते हैं कि सुनक एनर्जी बिल पर जो सब्सिडी दी गई है, उसे जारी रखेंगे या बंद कर देंगे. स्वास्थ्य का खर्चा बढ़ता जा रहा है तो उन्हीं का नारा था कि नेशनल इंश्योरेंस में सरकारी हिस्सेदारी बढ़ाएंगे. अब इस वादे से पीछे हट रहे हैं क्योंकि सरकार के पास पैसे नहीं है. यह भी सवा है कि क्या सुनक कारपोरेट टैक्स बढ़ा कर आम जानता को राहत देंगे या आम जनता की सामाजिक सुरक्षा कम कर देंगे और कारपोरेट पर टैक्स नहीं बढ़ाएंगे? मतलब साफ है कि यह प्रधानमंत्री अमीरों का होगा या आम लोगों का? ब्रिटेन का यह वो समय है जब वहां की जनता  की संपत्ति हवा होती जा रही है, और एक ऐसा व्यक्ति प्रधानमंत्री बन रहा है जिस पर टैक्स बचाने और टैक्स चोरी के इल्ज़ाम हैं और वह सुपर अमीर है. ब्रिटेन में आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है. वहां नीचे की दस प्रतिशत आबादी के पास जितनी संपत्ति है, उसका 230 गुना चोटी के एक प्रतिशत अमीरों के पास है. 

ब्रिटेन बहुत मुश्किल दौर से गुज़र रहा है. वहां के लोगों की हालत खराब है. क्या सुनक ब्रिटेन को इस दौर से निकाल पाएंगे, 2024 में चुनाव होने वाले हैं, उनके पास डेढ़ दो साल का ही वक्त है. उनकी नाव मंझधार में फंसी है. अगर जनता को राहत देने के लिए खर्च करते हैं तो पैसे के लिए अमीरों पर टैक्स बढ़ाने होंगे. ऐसा किया तो उनकी कुर्सी चली जाएगी. तब फिर महंगाई और बढ़े ब्याज दरों से जनता को कैसे राहत देंगे? इस संकट से ब्रिटेन को निकाल ले गए तो इतिहास में अमर हो जाएंगे. फिर उस नेटर्वक को भी उन्हें हराना होगा, जिसके शातिराना खेल से वे इस कुर्सी पर पहुंचे हैं.मिसाल के तौर पर आप विरोधी दल लेबर की सांसद नाडिया व्हाइटहोम के ट्विट को देख सकते हैं

नाडिया व्हाइट होम ने ट्विट कर दिया कि इसमें ऐसी कोई बात नहीं कि एशियाई मूल को प्रतिनिधित्व मिला है, क्योंकि सुनक घोर अमीर हैं. यह केवल अमीरों के साथ हैं, आप इन्हें ब्लैक, व्हाइट या एशियन की नज़र से नहीं देख सकते. बाद में नाडिया व्हाइटहोम ने ट्विट डिलिट कर दिया मगर एक और लेबर सासंद ने सुनक को फ्राड कहा है.

कोरना के समय जब मार्च 2020 में ब्रिटेन में तालाबंदी लगी थी, तब सुनक ने एलान किया कि किसी को नौकरी से नहीं निकाला जाएगा, उनकी सैलरी का अस्सी फीसदी हिस्सा सरकार देगी तब उनकी काफी तारीफ हुई थी. इसी के साथ उन्होंने एक और योजना का एलान किया. कोरोना वायरल बाउंस लोन स्कीम. इसके तहत छोटे उद्योग धंधे को लोन दिया जाना था, ताकि वे खुद को बंद होने से बचा सकें. भारत में भी ऐसी स्कीम का एलान हुआ था. बल्कि आगे का डिटेल जानकर आप अंदाज़ा कर सकते हैं कि भारत में क्या हुआ होगा. 

गार्डियन की यह खबर बताती है कि जिन लोगों ने लोन लिया, उसे बिजनेस में नहीं लगाया. ऐसे लोगों ने भी लोन लिया जिनका बिज़नेस बंद हो चुका था और ऐसे लोगों ने भी जो बिज़नेस नहीं कर रहे थे. ब्रिटेन की सरकार ने गारंटी दी की कि अगर लोन नहीं लौटेगा तो सरकार राजकोष से पैसा देगी. बस धड़ाधड़ लोन बंटने लगे और लोन लेने वाले इस पैसे से महंगी कारें, घर और गाड़ियां खरीदने लगे. जनता का पैसा मुफ्त की रेवड़ी की तरह बंटने लगा. इस स्कीम के तहत 47 अरब पाउंड का लोन बंटा था, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 27 अरब पाउंड का घोटाला हो गया. घोटाले का स्केल इतना बड़ा था कि योजना के लांच होने के एक साल के भीतर 2100 खुफिया रिपोर्ट आ गई, जिसकी जांच करने की क्षमता सरकार की एजेंसी के पास थी ही नहीं. राजकोष के मंत्री लार्ड एग्नू ने इस्तीफा दे दिया कि फ्राड करने वालों के साथ सख्ती नहीं बरती जा रही है. 

यह सब सुनक के कार्यकाल में हुआ. 27 अरब पाउंड का घोटाला. यह पैसा किसके हाथ में पहुंचा, क्या उन अमीरों के हाथ में जिनके पास ब्रिटेन की कुल संपत्ति का 43 प्रतिशत पहले से ही था. क्या यह सब आपको बताया जा रहा है? सवाल उठ रहा है कि बिना किसी राजनीतिक अनुभव के इतने कम समय में सुनक इस पद तक कैसे पहुंच जाते हैं. 
 
2017 में लियो वरादकर आयरलैंड के प्रधानमंत्री बने थे. तब उनकी उम्र 40 साल थी. उनके पिता अशोक वरादकर का जन्म मुंबई में हुआ था, मां मरियम ब्रिटेन की थीं. 2019 में लियो वरादकर अपने परिवार के साथ महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग इलाके में अपने पैतृक गांव भी आए थे.लियो वरादकर आयरलैंड के पहले समलैंगिक प्रधानमंत्री बने.खुल कर अपनी समलैंगिकता का इज़हार करते थे. आयरलैंड कैथोलिक बहुल देश है मगर एशियाई मूल के व्यक्यि तो प्रधानमंत्री के पद पर स्वीकार करता है. क्या वहां भी उपनिवेशवाद का बदला लिया गया? 

ऋषि सुनक और लियो वरादकर का प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचना, वैश्विक नागरिकता का शानदार उदाहरण है, यह नागिरकता भी उसी पश्चिम के लोकतंत्र की फैक्ट्री में तप कर बनती है, जिसे तमाम संदेहों के साथ देखा जाता है. हमें सोचना ही चाहिए कि भारत के महान लोकतंत्र में कब ऐसा होगा?कांग्रेस नेता शशि थरुर ने अपने ट्विट में लिखा है कि क्या ऐसा भारत में हो सकता है? इसका जवाब ढूंढा जाना चाहिए, अगर भारत में नहीं हो सकता है तब फिर भारत क्यों जश्न मना रहा है?यह सब कुछ ब्रिटेन के अखबारों में जो छपा है, उसी से आपको बताया है. 2015 में पहली बार ऋषि सुनक चुनाव जीतते हैं. उन्हें विपक्ष का भी अनुभव नहीं है. सात साल की राजनीति में प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचते हैं. उनके बारे में फाइनेंशियल टाइम्स ने लिखा है कि उनकी राजनीतिक सोच रूढ़ीवादी दक्षिणपंथी  है मगर वे पार्टी की वाम धारा से अपना समर्थन हासिल करते हैं. राजनीति के दांव पेंच में उनकी नैतिकता कम से कम आदर्शवादी नहीं है. 

मई 2020 में जब कोरोना की पाबंदियां लगी थीं तब उन पाबंदियों को नज़रअंदाज़ कर बोरिस ने पार्टी की थी. इसकी तस्वीर लीक हो गई और जॉनसन के इस्तीफे में भी इसका रोल रहा. ब्रिटेन के अखबारों में छपा है कि यह तस्वीर कथित रुप से ऋषि सुनक की बालकनी से ली गई. बाद में सुनक ने भी माना कि वे भी उस पार्टी में थे. पार्टी गेट कांड के कारण जॉनसन को पद से इस्तीफा देना पड़ा. इस घटना को भारत के लोग नहीं समझ  सकते जहां कोरोना की पाबंदियां तोड़ कर चुनावी रैलियां हो रही थीं मगर प्रेस कांफ्रेंस के समय डिजिटल कांफ्रेंस हुआ करती थी.ऋषि सुनक वित्त मंत्री थे, मगर अपने ही प्रधानमंत्री की पोल खोल देने का इल्ज़ाम उन पर लगता है. उनकी कुर्सी गई, उसके बाद लिज़ ट्रस प्रधानमंत्री बनीं, उनकी कुर्सी गई, अब सुनक उस कुर्सी पर विराजमान होने जा रहे हैं.2015 में सांसद बना व्यक्ति 2018 में मंत्री बनता है. 2019 में बोरिस जॉनसन का समर्थन कर मंत्री बनते हैं. जब वित्त मंत्री जावेद इस्तीफा देते हैं तब फरवरी 2020 में सुनक वित्त मंत्री बनते हैं. जुलाई 2022 में इस पद से इस्तीाफा देते हैं. प्रधानमंत्री पद की दावेदारी करते हैं. लिज़ ट्रस से हार जाते हैं. अक्तूबर 2022  में प्रधानमंत्री बन जाते हैं. जनता के वोट से, या उसके बीच दावेदारी से नहीं बल्कि पार्टी की कमेटी के चुनाव से बनते हैं. 

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अगर आप यह मानते हैं कि केवल प्रतिभा या भारतीय मूल के होने के कारण सुनक इतने कम समय में प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे हैं तब आप राजनीतिक रूप से मासूम हैं. दरअसल मूल बात यह है कि उनकी पहचान, किस नस्ल के हैं, किस भूगोल से हैं, इन्हीं सब पर ज़ोर दिया जाता है ताकि उनकी आर्थिक सोच पर किसी का ध्यान नहीं जाए. क्योंकि जैसे ही आप इस क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, मुश्किल सवालों का समाना करने लग जाते हैं. ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति खराब है. सुनक इस गिरावट को रोक पाएंगे या और बदतर बना देंगे, ब्रिटेन के अखबारो में दोनों तरह की संभावनाओं पर खूब लेख लिखे जा रहे हैं. किसी नेता के उभार को इसी तरह देखा जाना चाहिए न कि उसके नाम और गांव की चर्चा में ही दिन बिता देना चाहिए.