वृंदावन के केलिकुंज आश्रम में प्रेमानंद महाराज से न जाने कितनी ही हस्तियां और अनगिनत श्रद्धालु मिलने आए होंगे, लेकिन ये नजारा ही कुछ अलग था. ये दुर्लभ क्षण देखने को मिला जब पूज्य भाईजी महाराज की कृपापात्र मानी जाने वाली कमल बहनजी से प्रेमानंद महाराज का भाव भरा मिलन हुआ. दोनों संतों के बीच आध्यात्मिक और भावपूर्ण बातचीत को जिसने भी देखा अचंभित-सा रह गया. जैसे ही वह उनसे मिलने पहुंचीं तो बहन जी के लिए वह अपने स्थान पर खड़े हो गए और उनका अभिनंदन किया. जैसे ही वह आईं उन्होंने प्रेमानंद महाराज के हाथों को अपने माथे से लगा लिया. इसके बाद प्रेमानंद जी ने उनके गिरते स्वास्थ्य और कृष शरीर को देखा तो चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि कुछ खा पी नहीं रहीं, एकदम शरीर कमजोर हो गया. इसके बाद बहनजी कहती हैं कि अब वो (भगवान) बुला रहे ना. इसके बाद प्रेमानंद महाराज जी कहते हैं कि पहले हम जाएंगे, वहां श्रीजी और उनकी सखियों से कहकर व्यवस्था करेंगे, तब आप आना.

इसके बाद बहनजी को प्रेमानंद जी बरसाने का श्रीजी (राधा रानी) का लहंगा भेंट करते हैं. इसके बाद प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि आपकी कृपा है जो आप दर्शन देने आईं. इस पर बहनजी कहती हैं कि आपके दर्शन के लिए तरसती हूं, लेकिन अब आ नहीं पाती. एक इच्छा थी कि एक बार देख लूं आपको. प्रेमानंद जी कहते हैं कि आपका वात्सल्य है, आपकी कृपा है जो दर्शन देने आईं. हमारे पूज्य बाबा जी और बाबूजी दोनों की कृपापात्र आप हैं.
सबसे मार्मिक क्षण तब आया जब बहनजी अपने कांपते हुए हाथों से एक पोटली से कुछ निकालती हैं. बहनजी ने पूज्य भाई जी महाराज की चरणरज प्रेमानंद महाराज को अर्पित की. महाराज जी ने इस चरणरज को तुरंत मुख में ग्रहण किया और माथे पर लगाया. यही नहीं बहनजी ने भी प्रेमानंद महाराज के माथे पर इस चरणरज को लगाया. इसके बाद वह इसके बाद सकुचाए हुए मन से कहती हैं कि मेरे पास आपको भेंट करने के लिए कुछ नहीं है तो ये सुनकर महाराज जी हंस पड़ते हैं और कहते हैं इससे बड़ा उपहार क्या हो सकता है.

प्रेमानंद जी आगे कहते हैं कि बहुत कृपा की आपने दर्शन दिए. वह कहती हैं कि आपके रूप में हमें हमारे बाबाजी का प्यार मिल रहा है, दुलार मिल रहा है. उन्हीं की कृपा से देखिए आपके दर्शन हो गए. ये सुनकर महाराज जी भी भावविभोर हो जाते हैं और कुछ देर के लिए मौन होकर उनको देखते रहते हैं. बहनजी सामने हाथ जोड़े बैठी हैं और इधर सामने प्रेमानंद महाराज हाथ जोड़कर बैठे उनकी बात आदरपूर्वक सुन रहे हैं. इसके बाद बहन जी कहती हैं कि अब बस अंत में उनको देखते-देखते प्रभु के धाम चली जाऊं... यही कामना करती हूं. इस पर प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि पूजनीय भाई जी महाराज और बाबा कृपा का साक्षात स्वरूप हैं आप.
जाते समय श्रीजी (राधा रानी) से कुछ प्रार्थनाएं करके और ढेर सारी कृपा लेकर वह चली जाती हैं. प्रेमानंद महाराज हाथ जोड़कर ही उन्हें विदा करते हैं. ऐसा लगा जैसे दो संत एक-दूसरे का अभिनंदन कर रहे हों...ये आम दृश्य नहीं था, ये वो पल था, जिसने भी चाहे वहां मौजूद रहकर देखा हो या वीडियो के रूप में, यह हमेशा के लिए उनके दिल में कैद हो गया है.
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