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This Article is From Aug 17, 2022

प्रशांत किशोर का महागठबंधन सरकार पर निशाना, कहा- चुनाव से पहले बिहार में फिर होगा उलटफेर

प्रशांत किशोर ने कहा, अगर यह सरकार एक-दो साल में 5-10 लाख नौकरियां दे देती है तो मैं इसके समर्थन में अपना अभियान वापस ले लूंगा

प्रशांत किशोर का महागठबंधन सरकार पर निशाना, कहा- चुनाव से पहले बिहार में फिर होगा उलटफेर
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार की महागठबंधन सरकार के भविष्य पर सवाल उठाए हैं (फाइल फोटो).
पटना:

जन सुराज अभियान के तहत आज समस्तीपुर पहुंचे प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने बिहार (Bihar) की नई नवेली महागठबंधन सरकार (Mahagathbandhan government) पर जमकर निशाना साधा. दस लाख नौकरियों के मुद्दे पर प्रशांत किशोर ने कहा कि, ''अगर यह सरकार एक-दो साल में 5-10 लाख नौकरियां दे देती है तो मैं इसके समर्थन में अपना अभियान वापस ले लूंगा. उन्होंने कहा कि जो नियोजित शिक्षक स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, उन्हें तो सरकार समय पर तनख्वाह दे नहीं पा रही, यह और नई नौकरियां कहां से दे पाएगी?'' 

प्रशांत किशोर यहीं नहीं रुके और उन्होंने आने वाले समय में राजनीतिक उठापटक की भी बात कही. प्रशांत किशोर ने कहा, "अभी हमको आए हुए तीन महीने ही हुए और बिहार की राजनीति 180 डिग्री घूम गई. अगला विधानसभा चुनाव आते-आते अभी कई बार बिहार की राजनीति घूमेगी.'' 

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा कि, ''नीतीश कुमार फेवीकॉल लगाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गए हैं और बाकी की पार्टियां कभी इधर तो कभी उधर होती रहती हैं. जनता ने इस सरकार को वोट नहीं दिया था. यह सरकार जुगाड़ पर चल रही है, इसे जनता का विश्वास प्राप्त नहीं है." उन्होंने 2005 से 2010 के बीच एनडीए सरकार के काम की प्रशंसा भी की.

गौरतलब है कि एक सप्ताह पहले चुनावी रणनीतिकार और बिहार की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले प्रशांत किशोर ने कहा था कि 2024 के चुनावों पर इसका प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि अगले कुछ महीनों में ये गठबंधन कैसे काम करता है. अगर ये अच्छे से काम करते हैं तो ताकत बढ़ेगी और यदि वे अच्छी तरह से सरकार नहीं चलाते तो इसका नुकसान होगा.  

प्रशांत किशोर ने कहा था कि, साल 2015 और आज के महागठबंधन में जमीन आसमान का फर्क है. 2015 में राजनीतिक और शासकीय दोनों तरीके से नया प्रयोग किया गया था. उस प्रयोग को जनता के बीच में लेकर गए थे. जनता ने उसके पक्ष में जनमत दिया था और फिर सरकार बनी थी. अभी ऐसी कोई बात नहीं है. 2020 में महागठबंधन ने जिस फॉर्मेशन में चुनाव लड़ा था उसे जनमत नहीं मिला. जनमत एनडीए को मिला था. अब ये एक नई फॉर्मेशन बना रहे हैं. ये उससे अलग है. 2015 में वो एक राजनीति माहौल और एक अलग प्रयोग के तौर पर देखा जा रहा था. इसे बिहार से आगे देखा जा रहा था.  2015 तीन दलों का महागठबंधन था, ये 7 दलों का है. 2015 में महागठबंधन जनता से चुनकर आया था, अब यह एक सोच-विचार करके एक पॉलिटिकल अरेंजमेंट किया गया है. अगर लोगों की स्थिति ठीक होगी, तो ही कोई राजनीतिक गठबंधन टिक पाएगा, वरना वह नहीं टिक पाएगा.

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