कांग्रेस द्वारा प्रेस ब्रीफिंग में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा फसल बीमा में किए गए संशोधन को लेकर वक्तव्य दिया गया है जो सच से बिल्कुल परे है और उनकी समझ की कमजोरी को दर्शाता है. सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2016 में इस आशय से शुरू की थी कि किसान पर कम प्रीमियम का बोझ पड़े. इस योजना में किसान बीमित राशि का खरीफ में 2 प्रतिशत, रबी में 1.5 प्रतिशत और बागवानी व वाणिज्यिक के लिए अधिकतम 5 प्रतिशत देता है बाकी प्रीमियम केन्द्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा 50:50 अनुपात में वहन किया जाता है. मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित प्रावधानों में भी किसान द्वारा देय प्रीमियम राशि दर 1.5 प्रतिशत रबी में, 2 प्रतिशत खरीफ में व 5 प्रतिशत दर बागवानी इत्यादि फसलों में कोई भी परिवर्तन नहीं किया गया. कांग्रेस पहले भी झूठ का सहारा लेती थी और अब भी झूठ का सहारा लेकर भ्रम पैदा करना चाहती है.
सूत्रों ने बताया कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल के अनुमोदन के अनुसार जिन सिंचित जिलों में किसी भी फसल की प्रीमियम दर अगर 25 प्रतिशत से अधिक होगी एवं असिंचित जिलों के लिए यह दर 30 प्रतिशत से अधिक होगी तब भारत सरकार द्वारा देय प्रीमियम सब्सिडी, 25 और 30 प्रतिशत क्रमश: प्रीमियम दर का 50 प्रतिशत देय होगा. उस दर के ऊपर की सब्सिडी राज्य सरकार वहन करेगी परन्तु किसान को कोई अतिरिक्त प्रीमियम नहीं देना होगा. इस प्रावधान द्वारा भारत सरकार की यह मंशा है कि उच्च प्रीमियम दर वाली फसलों में अधिक प्रीमियम दर होने के कारणों का संबंधित राज्य सरकारें अध्ययन करें और उसको फसल विवधिकरण, मौसम सलाह एवं फसल उपज के आंकड़ों के सृजन की तकनीकी में आ रही खामियों को दूर करें ताकि किसानों की आय वृद्धि सुनिश्चित की जा सके.
केन्द्र सरकार का यह मानना है कि जो भारत वर्ष के 151 जिले पानी के अभाव से प्रभावित हैं उनका विस्तृत अध्ययन किया जाए और उन जिलों में फसल बीमा सहित अन्य जोखिम निवारण के उपायों का पता लगाकर किसानों को और अधिक लाभकारी योजना दी जाए.
यहां पर एक बात स्पष्ट करना आवश्यक है कि वर्तमान जारी वैकल्पिक पंजीकरण की योजना इन 151 जिलों में प्रभावी रहेगी और नई योजना बनाने के बाद ही वहां राज्य सरकार के सहयोग से नई योजना लागू की जाएगी. तब तक वहां के किसानों को वर्तमान योजना का लाभ मिलता रहेगा. एक बात और कह देना यहां पर उचित होगा कि पूर्वोत्तर भारत के राज्यों को प्रीमियम सब्सिडी का पहले 50 प्रतिशत प्रीमियम देना पड़ रहा था, जिसे पहली बार 10 प्रतिशत कर दिया गया है. (प्रीमियम सब्सिडी का 90 प्रतिशत भार भारत सरकार वहन करेगी) इस बदलाव से यह आशा की जाती है कि वहां की राज्य सरकारें अधिक फसलीय क्षेत्रों को अधिसूचित करती रहेंगी, व वहां के फसलीय क्षेत्रों को विस्तृत करती रहेंगी.
विगत 3 वर्षों में बीमा कंपनियों ने कुल प्राप्त प्रीमियम के 85 प्रतिशत से अधिक की राशि का दावों के रूप में भुगतान किया है एवं बीमा योजना का उद्देश्य के अनुसार प्रभावित राज्यों एवं जिलों में फसल क्षति के अनुपात से मुआवजा दिया है. बीमा कंपनियों ने विगत तीन वर्षों में लगातर आपदा प्रभावित राज्यों के किसानों को तीन वर्षों के प्राप्त कुल प्रीमियम से भी अधिक बीमा राशि का भुगतान किया गया है. उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु 184%, छत्तीसगढ़ 168%, उड़ीसा 134%, हरियाणा 131%, कर्नाटक 104%. इस योजना के क्रियान्वयन में सार्वजनिक बीमा कंपनियों की भागीदारी 50% है.
किसानों की लंबित मांग को ध्यान में रखते हुए इस योजना को सभी किसानों के लिए स्वैच्छिक कर दिया गया है. किसान की मांग के अनुसार नए फसल बीमा उत्पाद भी उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि किसान अपनी आवश्यकताओं के अनुसार योजना से स्वैच्छिक रूप से जुड़ सकें. बीमा कंपनियों की प्रतिबद्धता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बीमा कंपनी अब किसी क्षेत्र में 3 वर्षों तक काम करेंगी.
राज्य सरकार द्वारा देय प्रीमियम सब्सिडी के भुगतान एवं बीमा दावों की गणना के लिए उपज आकड़े को उपलब्ध कराने में हो रही देरी से किसान को उचित लाभ देने में विलंब हो रहा था. नए प्रावधान में दूर संवेदी आकड़ों सहित उन्नत प्रोद्योगिकी द्वारा उपज क्षति आकलन पारदर्शी एवं त्वरित किया जाएगा ताकि किसानों को बीमा दावा का भुगतान अतिशीघ्र दिया जा सके.
किसानों के हित, उनकी आवश्यकताओं एवं मांगों के आधार पर मोदी सरकार ने फसल बीमा योजना को और अधिक किसान हितैषी एवं समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिए विगत 4 वर्षों में दो संशोधन किये हैं जिसमें बीमा कंपनियों की सुनिश्चित जवाब देही एवं दण्डात्मक प्रावधान भी शामिल है. योजना में केन्द्रीय बजट प्रावधान को बढ़ाकर वर्ष 2020-21 के लिए 15500 रुपये कर दिया गया है.
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