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राजनीति में सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव: भारत में नेताओं की बढ़ रही ऑनलाइन उपस्थिति

2014 के लोकसभा चुनाव से ही हर दल का एक राज्यस्तरीय ‘वार रूम ‘ बनाया गया जो अपने अपने दल के प्रत्याशिओं को डिजिटल वर्ल्ड में मदद करता था. लेकिन 2025 आते आते अब लगभग हर प्रत्याशी का अपना वार रूम होने लगा है जहां बजट के हिसाब से टेक्नोलॉजी के साथ नवयुवक रात दिन काम कर रहे हैं.

राजनीति में सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव: भारत में नेताओं की बढ़ रही ऑनलाइन उपस्थिति
फाइल फोटो
  • पिछले पंद्रह वर्षों में राजनेता सोशल मीडिया का उपयोग चुनाव प्रचार और अपनी बात कहने के लिए तेजी से बढ़ा रहे हैं
  • PM नरेंद्र मोदी के एक्स हैंडल पर एक करोड़ से अधिक फॉलोवर हैं जबकि राहुल गांधी के लगभग 28 लाख फॉलोवर हैं
  • बिहार के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के सोशल मीडिया पेज और आधिकारिक आईडी सभी प्रमुख प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हैं
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नई दिल्ली:

पिछले 15 वर्षों में राजनीति में चुनावी प्रचार के साथ साथ स्वयं की बातों को रखने के लिए अब राजनेता डिजिटल वर्ल्ड के विभिन्न सोशल मीडिया का सहारा बड़ी तेजी से ले रहे हैं. प्रधानमंत्री से लेकर वार्ड सदस्य तक लगभग सभी प्रमुख सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम , यूट्यूब के साथ साथ राजनेता अब लिंक्ड इन पर भी नजर आ रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपने एक्स हैंडल पर करीब 1.08 करोड़ लोग फॉलोवर हैं जबकि राहुल गांधी के करीब 28 लाख फॉलोवर एक्स पर हैं. यह तो राष्ट्रीय स्तर के नेताओं का डाटा है.

बिहार पर नजर डालें तो लगभग हर दल का अपना पेज, हैंडल, आधिकारिक आईडी लगभग सभी सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. सस्ता डाटा और टेक्नोलॉजी में हार्डवेयर के साथ सॉफ्टवेर में गुणवता ने सभी के अंदर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों से जुड़ने की होड़ लगा दी है . टेलीफोन नंबर की तरह सोशल मीडिया पर मौजूदगी का प्रचार भी दिखता है. फेसबुक पर जनसुराज लीड ले रही है तो इंस्टाग्राम पर बिहार भाजपा. जनता दल ( यूनाइटेड ) और कांग्रेस के साथ राजद भी आम नागरिकों के बीच सीधा संवाद कर रही है. 

2014 के लोकसभा चुनाव से ही हर दल का एक राज्यस्तरीय ‘वार रूम ‘ बनाया गया जो अपने अपने दल के प्रत्याशिओं को डिजिटल वर्ल्ड में मदद करता था. लेकिन 2025 आते आते अब लगभग हर प्रत्याशी का अपना वार रूम होने लगा है जहां बजट के हिसाब से टेक्नोलॉजी के साथ नवयुवक रात दिन काम कर रहे हैं. प्रत्याशिओं के साथ उनकी एक दो लोगों की टीम होती है जो पल पल तस्वीर और भाषण को वीडियो फॉर्मेट में क़ैद कर के वार रूम में भेजती है जहां महज चंद मिनट में प्रोसेस कर के सोशल मीडिया पर अपलोड किया जाता है. 

इसका असर यह हुआ कि वाल पेंटिंग, बैनर, पंपलेट इत्यादि का चलन लगभग समाप्ति पर आ गया है. शहरी क्षेत्रों में शायद ही किसी प्रत्याशी ने कोई बैनर लगवाया हो. नामांकन के वक्त दिए जाने वाले शपथ पत्र में प्रत्याशी को अपने अधिकृत सोशल मीडिया की भी जानकारी देनी पड़ रही है. इसके अलावा किसी दल, राजनेता या प्रत्याशी के अलग से भी सोशल मीडिया पहचान होती है जिसे समर्थकों द्वारा चलाया जाता है.

इस चुनाव बिहार भी डिजिटल रंग से भरा हुआ देखने को मिला. किसी भी नेता का सही या गलत संवाद पल भर में समर्थक या विरोधी द्वारा प्रचारित/वायरल किया जा रहा है. मोकामा की दुर्घटना के कई वीडियो महज चंद घंटों में समस्त बिहार के छा गए. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ब्रेकिंग न्यूज की हवा सोशल मीडिया पर पहले से मौजूद हो जा रही है. लेकिन इसका एक और असर यह है की आम जनता ‘इन्फॉर्मेशन ओवर लोडिंग ‘ की शिकार भी है. किसी भी खबर की आयु दो घंटे से चौबीस घंटे तक ही की इस तेज रफ़्तार दुनिया टिक पाती है तो किसी खास मुद्दे पर राय विचार में दिक्कत है. 

फिर भी सोशल मीडिया का ताम झाम चुनाव और चुनाव के बाद जारी है. हर कोई स्वयं को हर पल जनता के बीच स्वयं को प्रस्तुत कर रहा है, शादी विवाह में सम्मलित होने से लेकर श्राद्ध कर्म में श्रद्धांजलि तक के तस्वीरों से सोशल मीडिया पाट दिया जाता है. अब तो सरकार के हर विभाग का भी अपना सोशल मीडिया साईट है.

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