उत्तराखंड राज्य के सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की शाखाओं में सुबह और शाम को शामिल होने की इजाजत देने का फैसला राज्य सरकार ने लिया है. इस पर उत्तराखंड में राजनीति गरमा गई है और आरोप-प्रत्यारोप का दौरा शुरू हो गया है. शाखाओं में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर इसे नियम का उल्लंघन नहीं माना जाएगा.
उत्तराखंड की धामी सरकार ने गुरुवार को सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर लगी 58 साल पहले की पाबंदी को हटा लिया. इसके बाद कर्मचारी न सिर्फ शाखाओं में बल्कि अन्य सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी भाग ले सकेंगे.
इस फैसले पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने टिप्पणी की कि जिनको राष्ट्रवादी बनना है वे संघ की शाखाओं में आएंगे. उन्होंने कहा कि, विपक्ष तो हर मामले पर सवाल खड़ा करता है. मैं उनसे आग्रह करता हूं कि राष्ट्रवादी सोच के लिए वह आरएसएस की शाखों में आएं. धर्म का कोई विषय नहीं है, सभी धर्म के लोग आएंगे और जिनको राष्ट्रवादी बनना है वे संघ की शाखाओं में आएं.
कांग्रेस ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, भाजपा के पास कार्यकर्ताओं की कमी हो गई है इसलिए अब वह सरकारी कर्मचारियों को कार्यकर्ता बना रही है. पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने कहा कि, किसी को आरएसएस में भेजने के लिए आदेश होंगे तो निश्चित रूप से सरकार को इस बात के लिए तैयार रहना होगा, हो सकता है कि आगे सेवादल की बैठक में भी जाना पड़ेगा. भारतीय जनता पार्टी के पास कार्यकर्ताओं की कमी हो गई है. उनको कार्यकर्ताओं पर विश्वास नहीं है और कार्यकर्ता भी समझ गए हैं कि नेता इनको ठग रहे हैं. इस बात को समझते हुए कार्यकर्ताओं के स्थान पर क्या करें, आरएसएस के माध्यम से सरकारी कर्मचारियों को कार्यकर्ता बनाएं.
सरकार के फैसले को लेकर कांग्रेस और भाजपा के अपने-अपने तर्क हैं. कोई फायदा बता रहा है तो कोई इसका नुकसान. इस मामले पर जमकर राजनीति हो रही है. यह फैसला सही है या गलत, यह भविष्य में राज्य के कर्मचारियों का रुख बताएगा.
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