शिरोमणि अकाली दल नेता हरसिमरत कौर बादल (Harsimrat Kaur Badal) पर परोक्ष हमला करते हुए केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी (Hardeep Singh Puri) ने रविवार को एम्स बठिंडा के उद्घाटन में भाग लेने के बाद कहा कि "अनुभवी राजनेताओं" को ऐसे आयोजनों में अपनी "राजनीतिक हताशा" फैलाने के प्रलोभन से बचना चाहिए. उनका यह बयान शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) द्वारा एम्स बठिंडा के वर्चुअल उद्घाटन के बाद प्रदर्शनकारी किसानों का मुद्दा उठाने के बाद आया है.
पुरी ने एएनआई से कहा, "इस समारोह में, जिसमें मैंने वर्चुअली भाग लिया, मैंने एक व्यक्ति विशेष को बेहद राजनीतिक भाषण देते सुना. मुझे नहीं लगता कि चिकित्सा सुविधा के समर्पण जैसा कोई अवसर है. वे शपथ लेते हैं और मानव जीवन के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं और अराजनीतिक हैं. देखिए, प्रधानमंत्री की सरकार उन समस्याओं से इस तरह निपट रही है, जैसा पहले किसी सरकार ने नहीं किया.''
पुरी ने आगे कहा कि अन्य मांगों को उठाने के लिए यह आयोजन सही समय और मंच नहीं था और उन्होंने इसे "दुर्भाग्यपूर्ण" करार दिया.
उन्होंने कहा, "किसानों को अधिक कवरेज और अधिक लाभ के साथ एमएसपी कई गुना बढ़ गया है और किसानों को हर तीन महीने में भुगतान किया जा रहा है (पीएम किसान सम्मान योजना के तहत). आज के कार्यक्रम में राजनीति का संदर्भ दुर्भाग्यपूर्ण था. मैं सोचता हूं कि अनुभवी राजनेताओं को ऐसे अवसरों पर अपनी राजनीतिक हताशा फैलाने के प्रलोभन से बचाना चाहिए."
पीएम मोदी ने देश को समर्पित किए 5 एम्स
यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रायबरेली (उत्तर प्रदेश), राजकोट (गुजरात), मंगलागिरी (आंध्र प्रदेश), बठिंडा (पंजाब) और कल्याणी (पश्चिम बंगाल) में पांच अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences) का उद्घाटन करने के बाद सामने आई. पीएम मोदी ने कहा कि उन्होंने रायबरेली की जनता को जो गारंटी दी थी, उसे पूरा किया है.
प्रदर्शनकारी किसानों ने ठुकराई केंद्र की पेशकश
18 फरवरी की आधी रात को समाप्त वार्ता के दौरान तीन केंद्रीय मंत्रियों के पैनल ने किसानों से पांच फसलों - मूंग दाल, उड़द दाल, अरहर दाल, मक्का और कपास को केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से पांच साल के लिए एमएसपी पर खरीदने की पेशकश की थी. हालांकि प्रदर्शनकारी किसानों ने इस पेशकश को ठुकरा दिया था.
शिरोमणि अकाली दल और भाजपा 1996 में गठबंधन सहयोगी बने थे. हालांकि केंद्र के अब निरस्त किए गए कृषि कानूनों पर विवाद के कारण भाजपा के सबसे पुराने सहयोगियों में से एक अकाली दल 2020 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग हो गया था.
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