देश के गांवों के विकास के लिए लांच की गई भारत सरकार की महत्वाकांक्षी 'सांसद आदर्श ग्राम योजना' (Sansad Adarsh Gram Yojana) अधर में लटकती नजर आ रही है. पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की पसंदीदा इस योजना के तहत, हर साल सांसदों को अपने इलाके में विकास के लिए एक ग्राम पंचायत को चुनना होता है. लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में लोकसभा और राज्यसभा के कुल 781 सांसदों में से सिर्फ 96 सांसदों यानी महज़ 12.29% ने ग्राम पंचायत को चुना. केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को लेकर उठ रहे सवालों के बीच मंगलवार को ग्रामीण विकास मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने इसके कार्यान्वयन में आ रही अड़चनों का जायज़ा लिया.योजना के तहत हर सांसद को हर साल विकास के लिए एक ग्राम पंचायत चुनना होता है,लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, योजना के पांचवे चरण के दौरान 2020-21 में लोकसभा के 545 सांसदों में सिर्फ 81 सांसदों (14.86%) ने ग्राम पंचायत को चुना जबकिराज्य सभा के 236 में से सिर्फ 16 ने आपने इलाके में विकास के लिए ग्राम पंचायत को चुना, यानी महज़ 6.7%.
दरअसल, सांसद आदर्श ग्राम योजना को लागू करने में सबसे बड़ी अड़चन फंड्स की है. इस योजना के लिए अलग से फंड्स का आवंटन नहीं किया गया है. इस वजह से सांसदों के लिए अपने चुने हुए ग्राम पंचायत में नई विकास की योजनाओं को शुरू करना संभव नहीं है. शिरोमणि अकाली दाल के सांसद बलविंदर सिंह भुंडर कहते हैं, 'योजना की डिज़ाइन और फंडिंग से लेकर उसके कार्यान्वयन तक में कई प्रशासनिक खामियां हैं.'
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सांसद मनोज झा (Manoj Jha) ने 2018-2019 में बिहार के दो ग्राम पंचायतों, बीहड़ा और पश्तकार को चुना था लेकिन पिछले साल कोरोना लॉकडाउन लगने से ठीक पहले फंडिंग रोक दी गई. RJD सांसद मनोज झा ने NDTV से बातचीत में कहा, "MPLAD फंड्स को कोरोना संकट की वजह से फ्रीज करने का सबसे बुरा असर सांसद आदर्श ग्राम योजना पर पड़ा है.अलग से फंड्स न होना एक बहुत बड़ी दिक्कत है. यही कारण है कि सांसदों की रुचि इस योजना में गिरती जा रही है". ज़ाहिर है, इस सवालों को दूर करने के लिए सरकार को जल्दी पहल करनी होगी..
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