प्रधानमंत्री ने प्रशासनिक अधिकारियों का आह्वान किया कि वे कामकाज में होने वाली देरी पर आत्ममंथन करें...
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिविल सेवा दिवस, यानी सिविल सर्विसेज़ डे पर सरकार में लाल फीताशाही का सवाल उठाया, और विज्ञान भवन में शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम के दौरान प्रशासनिक अधिकारियों को संबोधित करते हुए सवाल किया, "क्या कारण है कि 20-25 सालों से मामले अटके पड़े हैं...? दो मंत्रालयों के बीच फाइलें क्यों लटकी रहती हैं...? सरकार के ही दो विभाग अदालत में क्यों झगड़ा करते हैं...?"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि प्रगति प्लेटफॉर्म पर जब वह खुद बड़े सरकारी प्रोजेक्टों पर चर्चा करते हैं, तो बरसों से लटके हुए आठ-नौ लाख के सरकारी प्रोजेक्ट क्लियर हो जाते हैं.
प्रधानमंत्री ने सभी अधिकारियों का आह्वान किया को वे इस बात पर आत्ममंथन करें कि ऐसा क्यों हो रहा है. क्या इसके पीछे की वजह अधिकारियों की व्यक्तिगत ईगो है या कमज़ोरियों को छिपाने की कोशिश की वजह से यह सब हो रहा है...?
पीएम ने कहा कि वह समय आ गया है कि सरकारी अधिकारी 'आउट ऑफ द बॉक्स' सोचें और व्यवस्था में सुधार लाने के लिए पहल करें. प्रतिस्पर्द्धा के इस दौर में सरकार में फैसले जल्दी लेने होंगे और काम करने की कार्यशैली बदलनी होगी.
गौरतलब है कि गुरुवार को ही केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी नौकरशाहों को समय की कीमत का ध्यान रखने और समयबद्धता का पालन करने का सुझाव दिया था, क्योंकि दिल्ली में जिस कार्यक्रम में उन्हें प्रमुख अतिथि बनाया गया था, वह निर्धारित समय से 12 मिनट देर से शुरू हो पाया था. कार्यक्रम में शामिल अधिकतर अधिकारी भारतीय प्रसानिक सेवा तथा अन्य राष्ट्रीय सेवाओं से जुड़े थे, जिन्हें संबोधित करते हुए गृहमंत्री ने कहा था, "मुझे आज कुछ चिंता हो रही थी... कार्यक्रम को 9:45 बजे शुरू होना था... हम कार्यक्रम के निर्धारित समय से पांच मिनट पहले ही आ गए थे... लेकिन वह 9:57 बजे शुरू हुआ..."
देश के पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल, जो देश की प्रशासनिक सेवा को 'इस्पात का फ्रेम' कहकर पुकारा करते थे, का ज़िक्र करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री ने पूछा था कि क्या इस्पात का फ्रेम कमज़ोर हो गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि प्रगति प्लेटफॉर्म पर जब वह खुद बड़े सरकारी प्रोजेक्टों पर चर्चा करते हैं, तो बरसों से लटके हुए आठ-नौ लाख के सरकारी प्रोजेक्ट क्लियर हो जाते हैं.
प्रधानमंत्री ने सभी अधिकारियों का आह्वान किया को वे इस बात पर आत्ममंथन करें कि ऐसा क्यों हो रहा है. क्या इसके पीछे की वजह अधिकारियों की व्यक्तिगत ईगो है या कमज़ोरियों को छिपाने की कोशिश की वजह से यह सब हो रहा है...?
पीएम ने कहा कि वह समय आ गया है कि सरकारी अधिकारी 'आउट ऑफ द बॉक्स' सोचें और व्यवस्था में सुधार लाने के लिए पहल करें. प्रतिस्पर्द्धा के इस दौर में सरकार में फैसले जल्दी लेने होंगे और काम करने की कार्यशैली बदलनी होगी.
गौरतलब है कि गुरुवार को ही केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी नौकरशाहों को समय की कीमत का ध्यान रखने और समयबद्धता का पालन करने का सुझाव दिया था, क्योंकि दिल्ली में जिस कार्यक्रम में उन्हें प्रमुख अतिथि बनाया गया था, वह निर्धारित समय से 12 मिनट देर से शुरू हो पाया था. कार्यक्रम में शामिल अधिकतर अधिकारी भारतीय प्रसानिक सेवा तथा अन्य राष्ट्रीय सेवाओं से जुड़े थे, जिन्हें संबोधित करते हुए गृहमंत्री ने कहा था, "मुझे आज कुछ चिंता हो रही थी... कार्यक्रम को 9:45 बजे शुरू होना था... हम कार्यक्रम के निर्धारित समय से पांच मिनट पहले ही आ गए थे... लेकिन वह 9:57 बजे शुरू हुआ..."
देश के पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल, जो देश की प्रशासनिक सेवा को 'इस्पात का फ्रेम' कहकर पुकारा करते थे, का ज़िक्र करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री ने पूछा था कि क्या इस्पात का फ्रेम कमज़ोर हो गया है.
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