कोलकाता:
हमारे देश में पढ़े-लिखे लोगों की बढ़ती संख्या के अनुपात में नौकरी के अवसर पैदा नहीं होने के नकरात्मक प्रभाव का बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है. पश्चिम बंगाल सरकार के दावे से इतर राज्य में नौकरी की कड़की कुछ इस कदर छाई है कि मुर्दा घर में नौकरी करने के लिए ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और यहां तक कि पीएचडी और एमफिल करने वाले अभ्यार्थियों ने आवेदन कर डाला है. मामला मालदा मेडिकल कॉलेज से जुड़ा है. यहां अस्पताल प्रबंधन की ओर से ग्रुप डी पद पर मुर्दा घर में नौकरी के लिए आवेदन मांगे गए थे. इसके लिए करीब 350 लोगों ने आवेदन किया है, लेकिन अस्पताल प्रबंधन भी इस बात को लेकर आश्चर्य में है कि आवेदन करने वालों में से कोई ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, पीएचडी और एमफिल है.
मालदा मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा अधीक्षक सह उपाध्यक्ष अमित दान ने बताया, '30-40 पोस्टग्रेजुएट लोगों ने मुर्दा घर में नौकरी के लिए आवेदन किया है. दो लोग पीएचडी धारक भी हैं. जबकि इस नौकरी के लिए महज 8वीं की योग्यता मांगी गई थी. साथ ही आवेदन के लिए उम्र सीमा 18-40 साल है.' उन्होंने कहा कि ये आंकड़े बताते हैं कि सरकारी नौकरी की कितनी डिमांड है.
वैसे ग्रुप डी में नौकरी के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त आवेदकों द्वारा आवेदन करने का देश में यह कोई पहला मामला नहीं है, लेकिन यहां सवाल मुर्दा घर में नौकरी को लेकर उठता है. अस्पताल प्रबंधन भी यह समझ नहीं पा रहा कि उच्च शिक्षा प्राप्त इन आवेदकों को लेकर वह क्या निर्णय ले.
अगस्त में नौकरी के लिए साक्षात्कार होना है. सवाल यह है कि क्या महज सरकारी नौकरी के लिए ही यह आवेदन है? क्या अभ्यर्थी इस बात से अवगत नहीं कि उन्हें नौकरी मिल भी गई तो क्या करना होगा?
ऐसे में अस्पताल प्रबंधन ने नौकरी के लिए काउंसलिंग करने का निर्णय लिया है. वहीं नौकरी पाने की इस होड़ को लेकर राज्य का बुद्धिजीवी वर्ग भी अचंभे में है. कुछ लोगों का मानना है कि एक तो नौकरी की कड़की इसके लिए जिम्मेदार है. दूसरा यह कि लोग सरकारी नौकरी का मतलब आराम समझते हैं.
इनपुट: IANS
मालदा मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा अधीक्षक सह उपाध्यक्ष अमित दान ने बताया, '30-40 पोस्टग्रेजुएट लोगों ने मुर्दा घर में नौकरी के लिए आवेदन किया है. दो लोग पीएचडी धारक भी हैं. जबकि इस नौकरी के लिए महज 8वीं की योग्यता मांगी गई थी. साथ ही आवेदन के लिए उम्र सीमा 18-40 साल है.' उन्होंने कहा कि ये आंकड़े बताते हैं कि सरकारी नौकरी की कितनी डिमांड है.
वैसे ग्रुप डी में नौकरी के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त आवेदकों द्वारा आवेदन करने का देश में यह कोई पहला मामला नहीं है, लेकिन यहां सवाल मुर्दा घर में नौकरी को लेकर उठता है. अस्पताल प्रबंधन भी यह समझ नहीं पा रहा कि उच्च शिक्षा प्राप्त इन आवेदकों को लेकर वह क्या निर्णय ले.
अगस्त में नौकरी के लिए साक्षात्कार होना है. सवाल यह है कि क्या महज सरकारी नौकरी के लिए ही यह आवेदन है? क्या अभ्यर्थी इस बात से अवगत नहीं कि उन्हें नौकरी मिल भी गई तो क्या करना होगा?
ऐसे में अस्पताल प्रबंधन ने नौकरी के लिए काउंसलिंग करने का निर्णय लिया है. वहीं नौकरी पाने की इस होड़ को लेकर राज्य का बुद्धिजीवी वर्ग भी अचंभे में है. कुछ लोगों का मानना है कि एक तो नौकरी की कड़की इसके लिए जिम्मेदार है. दूसरा यह कि लोग सरकारी नौकरी का मतलब आराम समझते हैं.
इनपुट: IANS
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