जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद के बने हालात को लेकर अपने पद से इस्तीफा देने वाले IAS अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने NDTV से खास बातचीत की. इस बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि मैंने सिर्फ इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि सरकार लोकतंत्र में लोगों को उनके मौलिक अधिकार से वंचित कर रही है. कश्मीर में सरकार ने जो निर्णय लिया वह सही है या गलत वो विवाद का विषय हो सकता है लेकिन सरकार के इस निर्णय पर कश्मीर की जनता का प्रतिक्रिया देने का अधिकार है. लेकिन सरकार उन्हें ऐसा नहीं करने दी रही है. मैं इसके खिलाफ हूं.
कन्नन ने कहा कि ये संवेदनशीलता कश्मीर मुद्दे से ज्यादा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर है. अगर देश में कहीं भी कुछ गलत हो रहा है, तो उस पर लोगों को प्रतिक्रिया देनी चाहिए. चुनी हुई सरकार को फैसले लेने का हक है लेकिन जनता का भी हक है उस पर प्रतिक्रिया देने का. उन्होंने कहा कि सरकार का फैसला एक तरफ लेकिन उस पर प्रतिक्रिया देना मौलिक अधिकार है और उसका सम्मान होना चाहिए.
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नौकरी छोड़कर इस तरह विरोध जताने को के सवाल को लेकर कन्नन ने कहा कि देश की संस्थाओं, समाज, प्रजातांत्र और मीडिया से जो उम्मीदें थी वो पूरी नहीं हुई. इसलिए मुझे लगा कि आवाज उठानी चाहिए और सर्विस में रहते हुए ऐसा करना ठीक नहीं था, तो अपनी राय बताने के लिए मैंने ऐसा किया है.
बता दें कन्नन गोपीनाथन ने 7 साल तक भारतीय प्रशासनिक सेवा में काम किया और 1 अगस्त को इस्तीफा दे दिया है. साल 2018 में केरल में आई बाढ़ के दौरान गोपीनाथ ने अपनी पहचान छिपाकर वहां पर लोगों को मदद की थी. इस पर उन्हें सरकार को जवाब भी देना पड़ा था. मिजोरम में कलेक्टर के पद पर रहते हुए उन्होंने पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद को 30 ट्रेनिंग सेंटर खोलने के लिए काफी प्रोत्साहित किया था ताकि वहां के बच्चों को बैडमिंटन की ट्रेनिंग दी जा सके.
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