
हाई कोर्ट (High Court) के आदेश पर सदियों पुराने पटना कलेक्ट्रेट (Patna Collectorate) परिसर को ढहाए जाने की कार्रवाई शुरू होने के एक दिन बाद रविवार को विरासत से जुड़े विशेषज्ञों ने इस फैसले को देशभर में ऐतिहासिक संरक्षण को लेकर जारी नागरिक प्रयासों के लिए बड़ा झटका बताया. विशेषज्ञों ने आशंका जतायी कि यह फैसला एक खराब मिसाल कायम करेगा. शीर्ष अदालत द्वारा परिसर के विध्वंस का मार्ग प्रशस्त करने के एक दिन बाद शनिवार को बुलडोजर ने पटना कलेक्ट्रेट परिसर में वर्ष 1938 में बने जिला बोर्ड पटना भवन के सामने के स्तंभों को गिरा दिया. इस भवन के कुछ हिस्से डच काल के दौरान बनाए गए थे.
रविवार को ब्रिटिश-युग की इस इमारत का अग्र भाग तहस नहस नजर आ रहा था, क्योंकि तत्कालीन बर्मा से लाई गई सागौन की लकड़ी से बने दरवाजे और अन्य सजावटी चीजों को दीवारों से बाहर निकाल दिया गया था. इसके अलावा बैठक हॉल के अंदर के भित्ति स्तंभ बुलडोजर चलने के कारण मलबे के ढेर में बदल गये थे. अदालत के आदेश ने देश-विदेश के धरोहर प्रेमियों को झकझोर कर रख दिया है. कोलकाता के लेखक अमित चौधरी ने बताया कि वह स्तब्ध हैं कि कुछ लोग पहली बार में ऐसी ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त करना चाहते थे.
चौधरी ने कहा, ‘‘मैं फैसला सुनाने से पहले अदालत द्वारा की गई टिप्पणियों को पढ़कर अधिक चकित था, जो मुझे लगता है कि ऐतिहासिक इमारतों को विध्वंस से बचाने के लिए देशभर के जन अभियानों के लिए एक भयानक झटका होगा.''चौधरी, जो अपने शहर की विरासत को बचाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, ने कहा कि शीर्ष अदालत का फैसला ‘एक बहुत खराब मिसाल कायम करेगा'. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे डर है कि कल किसी भी असुरक्षित पुरानी इमारत को कलेक्ट्रेट के मामले का हवाला देते हुए गिराया जा सकता है.''
चौधरी ने कहा कि वह यह पढ़कर चौंक गए जिसमें कहा गया कि हर पुरानी इमारत को विरासत नहीं माना जा सकता और यह सिर्फ एक डच-युग का अफीम गोदाम था, जो संरक्षण के योग्य नहीं था. सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को 18वीं सदी के कलेक्ट्रेट परिसर के विध्वंस का रास्ता साफ करते हुए कहा कि औपनिवेशिक शासकों द्वारा बनाई गई हर इमारत को संरक्षित करने की जरूरत नहीं है. दिल्ली स्थित कला और सांस्कृतिक विरासत के लिए भारतीय राष्ट्रीय न्यास (आईएनटीएसीएच) वर्ष 2016 से कलेक्ट्रेट को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, जबकि बिहार सरकार ने एक बहुमंजिला कलेक्ट्रेट परिसर के लिए रास्ता बनाने के लिए इसे ध्वस्त करने की घोषणा की थी.
आईएनटीएसीएच (पटना) ने वर्ष 2019 में कानूनी लड़ाई शुरू की थी. आईएनटीएसीएच की प्रशासनिक परिषद के सदस्य जीएम कपूर ने कहा कि भले ही विध्वंस की अनुमति दी गई हो, कलेक्ट्रेट का विरासत मूल्य अब भी बरकरार है. कलेक्ट्रेट परिसर के कुछ हिस्से 250 साल से अधिक पुराने हैं. कलेक्ट्रेट बिहार की राजधानी में डच वास्तुकला की अंतिम धरोहरों में से एक है, विशेष रूप से इसके शानदार स्तंभों के साथ रिकॉर्ड कमरा और पुराना जिला अभियंता कार्यालय. इसके परिसर में ब्रिटिश काल की संरचनाओं में जिलाधिकारी कार्यालय भवन और जिला बोर्ड पटना भवन शामिल हैं.
वर्ष 2016 में बिहार सरकार द्वारा कलेक्ट्रेट को ध्वस्त करने के प्रस्ताव के तुरंत बाद इस ऐतिहासिक स्थल को बचाने के लिए एक सार्वजनिक आंदोलन - ‘ऐतिहासिक पटना कलेक्ट्रेट बचाओ' शुरू किया गया था. इसमें पटना और अन्य भारतीय शहरों के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, कनाडा और बांग्लादेश सहित कई देशों के सदस्य शामिल हैं. पटना के एक संरक्षण वास्तुकार और ‘ऐतिहासिक पटना कलेक्ट्रेट बचाओ' आंदोलन के सदस्य, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि वह कलेक्ट्रेट के भाग्य को देखकर हतप्रभ हैं. उन्होंने कहा, ‘हम सब दोषी हैं.
सरकार को भूल जाओ, क्या लोग परवाह करते हैं? हमारा पटना भी कंक्रीट और कांच के बक्से का जंगल बन जाएगा जिसमें कोई चरित्र नहीं होगा और ना ही कोई आत्मा होगी.'' उन्होंने कहा कि अतीत और भविष्य साथ-साथ रह सकते हैं, लेकिन पटना में विकास के नाम पर हमारा अतीत निगल लिया गया है.
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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं