जल संसाधन मामलों पर संसदीय समिति ने संसद में पेश अपनी ताज़ा रिपोर्ट में आगाह किया है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की वजह से हिमालय के ग्लेशियर के सिकुड़ने और पिघलने (Glacier Management in the Country) की रफ़्तार बढ़ रही है. 7 फरवरी 2021 के चमोली आपदा का हवाला देते हुए संसदीय समिति ने एनडीआरएफ (NDRF) के लिए एक एयर फ्लीट तैयार करने की सिफारिश की है. जिससे राहत बचाव के लिए एनडीआरएफ जवानों को आपदा स्थल पर जल्दी से जल्दी पहुंचाया जा सके.
जलसंसाधन मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने बुधवार को 'देश में ग्लेशियर मैनेजमेंट' पर एक रिपोर्ट संसद में पेश की. समिति ने अपनी रिपोर्ट में 7 फरवरी, 2021 को चमोली में ग्लेशियर टूटने की वजह से बाढ़ आपदा की समीक्षा के बाद कहा है कि एनडीआरएफ को और मज़बूत करने के लिए कई स्तर पर पहल जरूरी है.
रिपोर्ट के मुताबिक, समिति ये जानकर हैरान है कि सड़कें ठीक होने के बावजूद दूरी के कारण 7 फरवरी 2021 को उत्तराखंड के चमोली जिले के रेनी में आपदा स्थल पर पहुंचने में एनडीआरएफ बचाव दल की ओर से काफी देरी हुई. चमोली जिले जैसे आपदा से निपटने के लिए एनडीआरएफ आधुनिक मलवा सफाई उपकरणों/उपकरणों से सुसज्जित नहीं है.
फरवरी 2021 के चमोली हादसे का हवाला देते हुए संसदीय समिति ने कहा है कि एनडीआरएफ के पास अपना एक एयर फ्लीट होना चाहिए. इससे डिजास्टर साइट पर NDRF के जवानों को जल्दी से जल्दी पहुंचाया जा सके. फिलहाल एनडीआरएफ को इंडियन एयरफोर्स या राज्यों सरकारों द्वारा मुहैया कराये जाने वाले एयरक्राफ्ट्स पर निर्भर रहना पड़ता है.
एनडीआरएफ के पूर्व डीजी ओपी सिंह ने एनडीटीवी से कहा- "NDRF में हमेशा एक डेडिकेटेड एयर विंग की आवश्यकता महसूस की गयी थी. 2014 में जब श्रीनगर में बाढ़ आई थी, उस समय ये बात ताज़ा थी. केदारनाथ हादसे के दौरान भी एनडीआरएफ की टीम समय पर नहीं पहुंच पायी थी, क्योंकि उनके पास कोई एयरक्राफ्ट नहीं था. मैंने एनडीआरएफ के डीजी के तौर पर भारत सरकार से ये अनुरोध किया था कि एक डेडिकेटेड एयर विंग की आवश्यकता है. मुझे खुशी है कि अब ये बात चल रही है कि एनडीआरएफ के पास एक डेडिकेटेड एयर विंग होना चाहिए".
समिति ने आगाह किया है कि हिमालयन क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के असर से हाल के वर्षों में ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार बढ़ी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि हिमालय-काराकोरम क्षेत्र ग्लोबल औसत की तुलना में 0.5 डिग्री सेंटीग्रेड की तेज गति से गर्म हो रहा है, जिससे ग्लेशियरों के पिघलने में वृद्धि होगी और आपदाओं की ओर ले जाने वाली घटनाओं की संख्या भी बढ़ेगी.
हिमालय क्षेत्र के छोटे ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं. उनके सिकुड़ने की दर बड़े ग्लेशियर की तुलना में अधिक मानी जाती है. दुर्गम इलाका होने की वजह से हिमालयी ग्लेशियरों की उस पैमाने पर निगरानी नहीं हो पा रही है जितनी होनी चाहिए.
जेएनयू में स्पेशल सेंटर फॉर डिजास्टर रिसर्च की पूर्व चेयरपर्सन अमिता सिंह ने कहा, "हम सभी जानते हैं कि हिमालयी क्षेत्र वर्तमान में दुनिया में सबसे अशांत क्षेत्रों में से एक है. ग्लेशियरों के पिघलने, पतले होने और हिमनदी झील के फटने के खतरे बढ़ रहे हैं. रिपोर्ट में एक बहु-संकट हिमालयी अध्ययन आधारित संस्थान की जरूरत बताई गई है."
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