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देश में एकता और वफादारी के लिए सांसद समेत हर धर्मगुरु हुए एक साथ खड़े, चढ़ाई देश में अमन शांति के लिए चादर

दस्त ए वफा(अब्बास डे) प्रोग्राम में शामिल हुए लद्दाख के सांसद हनीफा जान ने कहा हमें वफादारी को जीवन का आधार बनाना चाहिए. आध्यात्मिक एकता और भाईचारे को अपनाने से ही समाज मज़बूत होगा.

देश में एकता और वफादारी के लिए सांसद समेत हर धर्मगुरु हुए एक साथ खड़े, चढ़ाई देश में अमन शांति के लिए चादर
  • सर्व धर्म ख्वाजा मंदिर में दस्त ए वफा अब्बास डे का आयोजन किया गया, जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल हुए
  • दस्त ए वफा अब्बास डे करबला की जंग में हज़रत अब्बास की शहादत और उनकी वफादारी को याद करता है.
  • सांसद हनीफा जान ने वफादारी को जीवन का आधार मानते हुए सभी समुदायों को मिलकर देश के विकास पर जोर दिया.
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संसद में जहां वंदे मातरम पर बहस सोमवार से होगी. वहीं पंजाब के होशियारपुर में सांसद और धर्म गुरुओं ने एक साथ मिलकर राष्ट्रगान गाया. पंजाब के होशियारपुर में सर्व धर्म ख्वाजा मंदिर ने दस्त ए वफा अब्बास डे का आयोजन किया गया. इसमें लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफा जान, बीजेपी के पूर्व सांसद एवं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अविनाश राय खन्ना,  जैन धर्मगुरु आचार्य विवेक मुनि, इस्लामिक स्कॉलर डॉ. कल्बे रुशेद रिज़वी, हिंदू धर्मगुरु आचार्य अनिरुध शिवानंद, ईसाई धर्म स्कॉलर फादर गौरव सिंघा राय, अजमेर दरगाह के गद्दीनशीन हाजी गफ्फार हुसैन फरीदी समेत हर धर्म के लोग इस प्रोग्राम में मौजूद रहे. 

राष्ट्रगान सभी ने खड़े होकर गाया

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देश की एकता को बढ़ाने की बात हो और राष्ट्रगान ही ना हो तो ये कैसे संभव है. जैसे ही प्रोग्राम शुरू हुआ, वैसे ही सभी गेस्ट और प्रोग्राम में आए सभी नेता, जनता ने खड़े होकर राष्ट्रगान गाया. इसमें हिंदू मुस्लिम सभी धर्म के पुरुष और महिलाएं भी मौजूद थी. खास बात ये रही कि सर्व धर्म ख्वाजा मंदिर में जहां मंदिर, दरगाह, अलम(परचम) सभी हैं, वहीं दरगाह के ऊपर भारत का तिरंगा शान ओ शौकत से लहराता भी है. इसका अर्थ ये है कि हम चाहे किसी भी धर्म के क्यों न हो लेकिन सबसे पहले हम सब भारतीय हैं. वहीं प्रोगाम से पहले अलम(वफा का परचम) लहराया गया. इसके बाद तिरंगे कलर के गुब्बारे भी आसमान में शांति के प्रतीक के रुप में छोड़े गए.

दस्त ए वफा अब्बास डे का मतलब?

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दस्त ए वफा अब्बास जैसे कि नाम से ही पता चल रहा है कि वफादारी करने वाला.जो हमेशा वफादार हो. ये वफादारी आज से 1400 साल पहले कि इराक के करबला की जंग को याद दिलाती है. जिसमें इमाम हुसैन के 72 साथियों को तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया था. इमाम हुसैन के भाई हज़रत अब्बास थे. जो उन 72 लोगों के अलमबरदार थे. जब वो नहर पर पानी लेने काफिले में मोजूद बच्चों के लिए पहुंचे तो वो खुद प्यासे थे. लेकिन उन्होंने नहर से पानी नहीं पिया. बल्कि उन छोटे बच्चों की प्यास को याद किया और पानी एक मश्किज़े में भरकर वापिस आने लगे. लेकिन जैसे ही वो वापिस काफिले के पास पहुंचने वाले थे तभी यज़ीद की फौज ने उनके दोनों हाथों को काट दिया और पानी के मश्किज़े पर भी तीर मार दिया जिससे पानी तक गिर गया. और जिसके बाद हज़रत अब्बास की शहादत हो जाती है. इसीलिए आज तक दुनिया हज़रत अब्बास की इस वफा को याद करती है. और इसी लिए इस प्रोग्राम का नाम भी दस्त ए वफा अब्बास डे के नाम से रखा गया. जिसमें अपने वतन से मोहब्बत करना, इंसानितयत के साथ खड़े होना, हक के लिए खड़े होना, ज़ालिम के खिलाफ आवाज़ उठाना शामिल है. 

सांसद और धर्मगुरुओं ने क्या क्या कहा

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दस्त ए वफा(अब्बास डे) प्रोग्राम में शामिल हुए लद्दाख के सांसद हनीफा जान ने कहा हमें वफादारी को जीवन का आधार बनाना चाहिए. आध्यात्मिक एकता और भाईचारे को अपनाने से ही समाज मज़बूत होगा. जिसमें सभी समुदाय को मिलकर देश व क्षेत्र का विकास करें. वहीं हज़रत अब्बास से हमें हक और वफा सीखनी चाहिए जिससे वतन के साथ वफा करना और देश की तरक्की के साथ खड़े होना शामिल है. प्रोग्राम के संयोजक डॉ सुफी राज जैन कहते हैं कि नफरत का बीज दिलों में बोना बहुत आसान है लेकिन मोहब्बत का पैगाम फैलाना उससे भी बहुत आसान है.वहीं बीजेपी के पूर्व सांसद एवं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अविनाश राय खन्ना ने भी एकता के इस प्रोग्राम की सराहना की. साथ ही उन्होंने खुद कव्वाली में बैठकर आनंद लिया. वहीं इस्लामिक स्कॉलर डॉ कल्बे रुशेद रिज़वी ने कहा कि एक जैन धर्म के राज जैन ने हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई जैन सभी को जोड़ कर रखा है. मौलाना कल्बे रुशेद ने कहा कि दुनिया में 2 किस्म के मुसलमान है. 1400 साल पहले भी करबला की जंग में  एक तरफ इमाम हुसैन और उनके 72 साथी थे. और दूसरी तरफ लाखों की फौज यज़ीद के साथ थे. 

क्या है ये सर्व धर्म ख्वाजा मंदिर

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पंजाब के होशियारपुर के चौहाल में स्थित सर्व धर्म ख्वाजा मंदिर एक ऐसा एकता का दरबार है, जहां आपको हिंदुस्तान की ताकत नज़र आएगी. यहां आपको  मंदिर भी मिलेगा, तो आपको गरीब नवाज़ की गद्दी और मज़ार भी. यहां आपको गुरबाणी भी करते हुए लोग मिलेंगे और क्रिसमिस पर सेंटाक्लॉज बनते हुए लोग भी. यहां ईद भी मनाई जाती. यहां दिवाली भी. मोहर्रम पर यहां गम होता तो होली, जनमाष्टमी में अलग ही रंग होता है.

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