पीएम मोदी की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
देश में 'बेहद खराब माहौल' से पैदा चिंताओं पर कोई भरोसे दिलाने वाला बयान ना देने पर लेखकों, कलाकारों, फिल्म निर्माताओं और वैज्ञानिकों के बाद 50 से ज्यादा इतिहासकारों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आवाज उठाई। रोमिला थापर, इरफान हबीब, केएन पन्निकर और मृदुला मुखर्जी सहित 53 इतिहासकारों ने सहमत द्वारा जारी संयुक्त बयान में हालिया घटनाक्रमों पर गंभीर चिंता जताई है।
तर्कों का जवाब गोलियों से
बयान में दादरी घटना और मुंबई में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम को लेकर सुधींद्र कुलकर्णी पर स्याही फेंके जाने की घटना का जिक्र करते हुए कहा गया, 'वैचारिक मतभेदों पर शारीरिक हिंसा का सहारा लिया जा रहा है। तर्कों का जवाब तर्क से नहीं दिया जा रहा, बल्कि गोलियों से दिया जा रहा है।'
हालात पर नहीं दिया जा रहा ध्यान
इसमें कहा गया, 'जब एक के बाद एक लेखक विरोध में अपने पुरस्कार लौटा रहे हैं, ऐसे में उन स्थितियों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की जा रही, जिनके चलते विरोध की नौबत आई, इसके स्थान पर मंत्री इसे पत्र क्रांति कहते हैं और लेखकों को लिखना बंद करने की सलाह देते हैं। यह तो यह कहने के समान हो गया कि यदि बुद्धिजीवियों ने विरोध किया तो उन्हें चुप करा दिया जाएगा।' उन्होंने कहा कि यह खासकर उन इतिहासकारों को चिंता में डाल रहा है, जो इस तथ्य के बावजूद पहले ही अपनी किताबों पर प्रतिबंध और बयानों पर अंकुश के प्रयासों का सामना कर चुके हैं कि उनके पास साक्ष्य हैं और उनकी व्याख्या पारदर्शी है।
तर्कों का जवाब गोलियों से
बयान में दादरी घटना और मुंबई में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम को लेकर सुधींद्र कुलकर्णी पर स्याही फेंके जाने की घटना का जिक्र करते हुए कहा गया, 'वैचारिक मतभेदों पर शारीरिक हिंसा का सहारा लिया जा रहा है। तर्कों का जवाब तर्क से नहीं दिया जा रहा, बल्कि गोलियों से दिया जा रहा है।'
हालात पर नहीं दिया जा रहा ध्यान
इसमें कहा गया, 'जब एक के बाद एक लेखक विरोध में अपने पुरस्कार लौटा रहे हैं, ऐसे में उन स्थितियों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की जा रही, जिनके चलते विरोध की नौबत आई, इसके स्थान पर मंत्री इसे पत्र क्रांति कहते हैं और लेखकों को लिखना बंद करने की सलाह देते हैं। यह तो यह कहने के समान हो गया कि यदि बुद्धिजीवियों ने विरोध किया तो उन्हें चुप करा दिया जाएगा।' उन्होंने कहा कि यह खासकर उन इतिहासकारों को चिंता में डाल रहा है, जो इस तथ्य के बावजूद पहले ही अपनी किताबों पर प्रतिबंध और बयानों पर अंकुश के प्रयासों का सामना कर चुके हैं कि उनके पास साक्ष्य हैं और उनकी व्याख्या पारदर्शी है।
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