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1971 की जंग में कौन-कौन से देश थे पाकिस्तान के साथ, अमेरिका के सातवें बेड़े को किसने घेरा था

India Pakistan Attack: 1971 के समय दुनिया शीत युद्ध का सामना कर रहे थे. अमेरिका और सोवियत संघ इसके दो ध्रुव थे. भारत पाकिस्ता युद्ध के समय भी यह नजर आया था. आइए देखते हैं कि उस समय किन देशों ने पाकिस्तान का साथ दिया था.

1971 की जंग में कौन-कौन से देश थे पाकिस्तान के साथ, अमेरिका के सातवें बेड़े को किसने घेरा था
नई दिल्ली:

India Pakistan Conflict: दुनिया के राजनीतिक नक्शे में 1971 के दिसंबर का महीना काफी महत्व रखता है. उस समय भारत ने 13 दिन तक एक युद्ध लड़ा था.इसके परिणाम में बाग्लादेश नाम के एक नए देश का जन्म हुआ था. इससे पहले पाकिस्तान की 90 हजार फौजों ने  पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खा नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसर्पण कर दिया था. इसे दुनिया का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण माना जाता है. यह भारत की बहुत बड़ी जीत था. भारत ने यह जीत तब हासिल की थी, जब पाकिस्तान के साथ पश्चिमी गठबंधन और अरब जगत पूरी मजबूती से खड़ा था. अब करीब 55 साल बाद भारत और पाकिस्तान एक बार फिर जंग जैसे हालात में हैं. ऐसा लग रहा है कि जंग का ऐलान किसी भी समय हो सकता है. आइए जानते हैं कि 1971 के बाद 2025 में दुनिया कितनी बदल चुकी है. अब पाकिस्तान के साथ कौन खड़ा है.   

जब अमेरिका के पीछे पड़ गया था सोवियत संघ

1971 की जंग में अमेरिका पाकिस्तान के साथ मजबूती से खड़ा था. रिचर्ड निक्सन उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति और हेनरी किसिंजर उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे.ये दोनों उस समय की भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जरा भी पसंद नहीं करते थे. हालात यह थी कि 1971 के युद्ध से ठीक एक महीने पहले जब इंदिरा गांधी अमेरिका की यात्रा पर गईं तो रिचर्ड निक्सन ने उन्हें अपने आफिस से बाहर इंतजार कराया था. ऐसे में युद्ध के समय भारत का साथ देने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती थी.

1971 की लड़ाई में अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ देते हुए आर्थिक और सामरिक मदद की थी.

India Pakistan Conflict: 1971 की लड़ाई में अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ देते हुए आर्थिक और सामरिक मदद की थी.

अनुमान के मुताबिक अमेरिका ने युद्ध में पाकिस्तान का साथ दिया. अमेरिका ने पाकिस्तान को हथियार और पैसा दोनों से मदद की. युद्ध के दूसरे ही दिन भारत के हमले से हिले पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान ने अमेरिकी राष्ट्रपति भवन को एक आपात संदेश भेजकर मदद मांगी थी. इसके बाद अमेरिका ने अपने सातवें बेड़े को बंगाल की खाड़ी में भेजने का फैसला किया था. यूएसएस एंटरप्राइज नाम का यह बेड़ा परमाणु शक्ति से चलता था. इसमें सात विध्वंसक, एक हेलिकॉप्टर वाहक यूएसएस ट्रिपोली और एक तेलवाहक पोत शामिल था. इसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि एक बार ईंधन भरे जाने के बाद यह बिना ईंधन भरे पूरी दुनिया का चक्कर लगा सकता था. अमेरिका के सातवें बेड़े का मुकाबला करने के लिए तत्कालीन सोवियत संघ ने अपना एक बेड़ा भेजा था. यह बेड़ा अमेरिकी बेडे के आगे-पीछे ही चल रहा था, अमेरिकी बेड़े की किसी भी कार्रवाई का जवाब देने के लिए तत्पर था. लेकिन इसकी नौबत नहीं आई. पाकिस्तान सेना के आत्मसमर्पण के बाद अमेरिका का सातवां बेड़ा लौट गया. 

चीन ने भी की थी अमेरिका की मदद

इस लड़ाई में पाकिस्तान का साथ देने वाला अकेले अमेरिका ही नहीं था. उसे चीन का भी साथ मिला हुआ था. चीन भारत को 1962 के युद्ध में हरा चुका था. वह भारत पर दक्षिण एशिया में साम्राज्यवादी नितियां चलाने का आरोप लगाया. उसने बहुत दिनों तक बांग्लादेश के विभाजन को मान्यता नहीं थी. बांग्लादेश ने जब 1972 में संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के लिए आवेदन किया तो चीन ने वीटो लगा दिया था. चीन ने बांग्लादेश को 1975 में मान्यता दी. बांग्लादेश के बंटवारे से श्रीलंका डर गया था. उसे डर था कि भारत उसका भी बंटवारा न करा दे. इसलिए श्रीलंका ने पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों को अपने अपने भंडारनायके हवाई अड्डे पर उतरने और उसमें ईंधन भरने की इजाजत दे दी थी. 

भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करते पाकिस्तान सेना के लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खा नियाजी.

India Pakistan Conflict: भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करते पाकिस्तान सेना के लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खा नियाजी.

अरब जगत भी आया था पाकिस्तान के साथ

उस सयम दुनिया में शीत युद्ध चल रहा था. सोवियत संघ और अमेरिका दुनिया के शक्ति के दो ध्रुव थे. दुनिया के अधिकांश देश इन्हीं दो देशों के बीच बंटे हुए थे.उस समय सोवियत संघ अफगानिस्तान में कम्युनिस्ट सरकार बनवाने की कोशिश कर रहा था. अमेरिका दुनिया में कही भी कम्युनिस्ट शासन नहीं चाहता था. इसलिए वह सोवियत संघ को हराना चाहता था. इसमें पाकिस्तान उसका बेहतर साथ दे रहा था. इसलिए वह भारत के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान का खुलकर साथ दे रहा था.पाकिस्तान की मदद के लिए अमेरिका जॉर्डन और सऊदी अरब को भी साथ लाने की कोशिश कर रहा था. उसने दोनों देशों के राजाओं को पत्र लिखकर मदद करने के लिए कहा था. इनके साथ-साथ लीबिया ने भी पाकिस्तान की मदद में अपने लड़ाकू जहाज तैनात किए थे. उस समय के शाह रजा पहलवी ने भी पाकिस्तान की मदद की थी. ईरान ने पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई की थी. 

अब कौन किसके साथ

आज का वर्ल्ड ऑर्डर पूरी तरह से बदल चुका है. यह उस समय नजर आया जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भारत-पाकिस्तान के बढ़ते तनाव पर शुक्रवार को कहा दिया कि 'दिस इज नन ऑफ ऑर बिजनेस'. उनका कहना था कि अमेरिका इस झगड़े में हस्तक्षेप नहीं करेगा. वहीं 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान को मदद करने वाले अधिकांश देशों के साथ इस समय भारत के साथ कूटनीतिक और व्यापारिक संबंध बहुत ही अच्छे हैं. वहीं इन देशों के साथ पाकिस्तान के संबंध बिगड़ चुके हैं. अमेरिका का अब अफगानिस्तान में कोई इंटरेस्ट नहीं है, इसलिए अब उसके लिए पाकिस्तान की कोई अहमियत नहीं है. आज के समय केवल चीन ही मजबूती से खड़ा है. दरअसल चीन ने पाकिस्तान में बहुत निवेश किया हुआ है. लेकिन भारत से उसका व्यापारिक रिश्ता पाकिस्तान से भी बड़ा है. 

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