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ऑपरेशन महादेव: आतंकियों की हार और चीनी तकनीक की असफलता, कैसे मारा गया पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड

ऑपरेशन की शुरुआत 18 जुलाई को हुई, जब डाचीगाम नेशनल पार्क के पास संदिग्ध रेडियो संचार को इंटरसेप्ट किया गया. यह सिग्नल ‘T-82 अल्ट्रासेट’ नामक एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन डिवाइस से आया था, जो आमतौर पर हाई-एन्क्रिप्शन वाले सैन्य संचार के लिए प्रयोग होता है और इसकी पहचान करना बेहद कठिन माना जाता है.

ऑपरेशन महादेव: आतंकियों की हार और चीनी तकनीक की असफलता, कैसे मारा गया पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड
नई दिल्ली:

श्रीनगर के हरवान इलाके में सुरक्षाबलों को मिली बड़ी सफलता के पीछे एक ऐसी चीनी तकनीक की धोखेबाजी थी, जिस पर आतंकी औरही और उनके आका आंख मूंदकर भरोसा कर रहे थे. यह वही तकनीक थी, जिसने आतंकियों को 96 दिनों तक सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ से दूर रखा. लेकिन अंततः उनकी कब्र भी खुदवाकर दी.

तीन पाकिस्तानी आतंकी ढेर, पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड मारा गया
27 जुलाई को सुरक्षाबलों ने श्रीनगर के बाहरी इलाके हरवान के पास लिडवास के घने जंगलों में तीन पाकिस्तानी आतंकियों को मार गिराया. मारे गए आतंकियों में एक की पहचान सुलेमानी शाह के रूप में हुई है जो अप्रैल 2025 के पहलगाम आतंकी हमले का मास्टरमाइंड और मुख्य शूटर था. यह मुठभेड़ ‘ऑपरेशन महादेव' का हिस्सा थी, जिसे खुफिया और तकनीकी निगरानी के बाद अंजाम दिया गया.

ऑपरेशन की शुरुआत 18 जुलाई को हुई, जब डाचीगाम नेशनल पार्क के पास संदिग्ध रेडियो संचार को इंटरसेप्ट किया गया. यह सिग्नल ‘T-82 अल्ट्रासेट' नामक एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन डिवाइस से आया था, जो आमतौर पर हाई-एन्क्रिप्शन वाले सैन्य संचार के लिए प्रयोग होता है और इसकी पहचान करना बेहद कठिन माना जाता है.

सूत्रों के अनुसार, यह वही उपकरण था जिससे 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद संपर्क साधा गया था. इस उपकरण के सक्रिय होते ही सुरक्षाबलों ने इलाके की घेराबंदी शुरू कर दी. यही तकनीकी चूक आतंकियों पर भारी पड़ी.

चीनी रेडियो सिस्टम: जो ताकत थी, वही कमजोरी बन गई

यह रेडियो सिस्टम चीन की सैन्य-स्तरीय तकनीक है, जो अल्ट्रा हाई फ्रिक्वेंसी बैंड्स पर सुरक्षित संचार की सुविधा देता है. 2016 से लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन इसे 'WYSMS' कोडनेम से इस्तेमाल कर रहे थे. इसका एन्क्रिप्शन इतना मजबूत होता है कि इसके सिग्नल्स को पकड़ना लगभग नामुमकिन माना जाता था. लेकिन इस बार, लगातार ट्रांसमिट होते सिग्नल्स ने सुरक्षा एजेंसियों को आतंकियों की लोकेशन तक पहुंचा दिया. यानी जिस तकनीक को आतंकी अपनी सबसे बड़ी ताकत मानते थे, वह उनकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई.

11 दिन का ऑपरेशन, घेराबंदी और निर्णायक मुठभेड़

करीब 11 दिनों तक सैटेलाइट ट्रैकिंग, ह्यूमन इंटेलिजेंस, थर्मल इमेजिंग ड्रोन और सिग्नल इंटरसेप्शन के सहारे पूरे दक्षिण कश्मीर में व्यापक तलाशी अभियान चलाया गया. अंततः 28 जुलाई को सुबह करीब 11:30 बजे 24 राष्ट्रीय राइफल्स और 4 पैरा स्पेशल फोर्सेज की संयुक्त टीम ने तीन “हाई वैल्यू” आतंकियों को लिडवास के जंगलों में घेर लिया और मुठभेड़ में मार गिराया. सुलेमानी शाह को लेकर सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि वह पाकिस्तान सेना का पूर्व कमांडो था. उसके पास से एक M4 कार्बाइन, दो AK-47 राइफलें, ग्रेनेड, भारी मात्रा में गोला-बारूद और खाने-पीने का सामान बरामद किया गया.

पहलगाम हमले की जांच में बड़ी कामयाबी

22 अप्रैल 2025 को हुए पहलगाम आतंकी हमले में 25 पर्यटकों और एक स्थानीय टट्टू ऑपरेटर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस मामले की जांच में जुटी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को भी लंबे समय से सुलेमानी शाह की तलाश थी. अब उसकी मौत से इस हमले की जांच को भी निर्णायक दिशा मिल सकती है.

‘ऑपरेशन महादेव' सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ तकनीक और धैर्य से जीती गई एक निर्णायक जंग थी. यह उदाहरण है कि जब आतंकी ताकतें आधुनिक तकनीक का सहारा लेती हैं, तो भारतीय सुरक्षा एजेंसियां उससे एक कदम आगे निकलकर उन्हें उन्हीं की चाल में मात दे सकती हैं.

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