पटना:
चुनावी रणनीतिकार के रूप में मशहूर प्रशांत किशोर ने बिहार सरकार के वरिष्ठ सदस्य के रूप में कभी अपने कर्तव्यों को पूरा करने में कोई कोताही नहीं की है, यह बात बुधवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कही। राज्य में विपक्षी पार्टी बीजेपी ने आरोप लगाया था कि प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश और पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की मदद करने के लिए अपने गृहराज्य (बिहार) को छोड़ दिया है।
37-वर्षीय प्रशांत किशोर ने पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, और उसके बाद नीतीश ने उन्हें विहार विकास मिशन के लिए मुख्यमंत्री का विशेष सलाहकार नियुक्त किया था, और कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था।
नीतीश कुमार ने कहा, "मैं जानता हूं, बहुत-से लोगों के पास पतंग उड़ाने के अलावा कोई काम नहीं है, लेकिन हम जानते हैं कि वह (प्रशांत किशोर) उत्तर प्रदेश और पंजाब में अपने राजनैतिक उत्तरदायित्वों में व्यस्त हैं, और ऐसा परस्पर सहमति से किया गया है कि वह अगले आठ महीने तक दोहरी ज़िम्मेदारी संभालते रहेंगे..." मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि प्रशांत किशोर न सिर्फ बिहार के लिए नई विकास योजनाएं बनाने में महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वह 'मेरा अभिन्न अंग हैं...'
बिहार में बीजेपी प्रमुख सुशील कुमार मोदी ने सरकार से सवाल किया था कि प्रशांत किशोर को इतने लंबे समय के लिए गैरहाज़िर रहने की अनुमति क्यों दे दी गई। मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों का कहना है कि प्रशांत किशोर के आलोचकों को यह याद रखना चाहिए कि उन्हें बिहार सरकार से कोई वेतन या सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। प्रशांत किशोर का आवास तथा कार्यालय भी पटना स्थित मुख्यमंत्री आवास में ही बना हुआ है।
प्रशांत किशोर पहली बार वर्ष 2014 में तब सुर्खियों में आए थे, जब बीजेपी ने केंद्र में उनकी मदद से शानदार बहुमत हासिल कर सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी। लेकिन इसके बाद वह बिहार राज्य चुनाव के दौरान नीतीश कुमार के साथ आ गए, और बीजेपी के खिलाफ उन्हें जिताने में सहायता की। अब कांग्रेस ताजातरीन पार्टी है, जिसकी मदद वह कर रहे हैं, और उनके आलोचक तथा प्रशंसक भी मानते हैं कि यह प्रशांत किशोर की राजनैतिक सूझबूझ का सबसे बड़ा इम्तिहान है।
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस इस वक्त बहुत-से राज्यों में हाशिये पर पहुंच चुकी है। पंजाब में पार्टी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ मतभेदों की लगातार आईं ख़बरों के बाद कैप्टन साहब मजबूर हो गए - 'सब कुछ ठीक है' दिखाने की खातिर - और प्रशांत जब भी वहां जाते हैं, उनके पास ही ठहरते हैं।
उधर, उत्तर प्रदेश में प्रशांत किशोर इस बात के लिए कांग्रेस को मनाने में विफल रहे कि वह मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित कर दे, या राहुल की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए कोई भूमिका सुनिश्चित कर दी जाए, जिनसे लगातार अनुरोध किया जाता रहा है कि वह परिवार की अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीटों के अलावा भी राज्य में पार्टी का प्रचार किया करें।
37-वर्षीय प्रशांत किशोर ने पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, और उसके बाद नीतीश ने उन्हें विहार विकास मिशन के लिए मुख्यमंत्री का विशेष सलाहकार नियुक्त किया था, और कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया था।
नीतीश कुमार ने कहा, "मैं जानता हूं, बहुत-से लोगों के पास पतंग उड़ाने के अलावा कोई काम नहीं है, लेकिन हम जानते हैं कि वह (प्रशांत किशोर) उत्तर प्रदेश और पंजाब में अपने राजनैतिक उत्तरदायित्वों में व्यस्त हैं, और ऐसा परस्पर सहमति से किया गया है कि वह अगले आठ महीने तक दोहरी ज़िम्मेदारी संभालते रहेंगे..." मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि प्रशांत किशोर न सिर्फ बिहार के लिए नई विकास योजनाएं बनाने में महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वह 'मेरा अभिन्न अंग हैं...'
बिहार में बीजेपी प्रमुख सुशील कुमार मोदी ने सरकार से सवाल किया था कि प्रशांत किशोर को इतने लंबे समय के लिए गैरहाज़िर रहने की अनुमति क्यों दे दी गई। मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों का कहना है कि प्रशांत किशोर के आलोचकों को यह याद रखना चाहिए कि उन्हें बिहार सरकार से कोई वेतन या सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। प्रशांत किशोर का आवास तथा कार्यालय भी पटना स्थित मुख्यमंत्री आवास में ही बना हुआ है।
प्रशांत किशोर पहली बार वर्ष 2014 में तब सुर्खियों में आए थे, जब बीजेपी ने केंद्र में उनकी मदद से शानदार बहुमत हासिल कर सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी। लेकिन इसके बाद वह बिहार राज्य चुनाव के दौरान नीतीश कुमार के साथ आ गए, और बीजेपी के खिलाफ उन्हें जिताने में सहायता की। अब कांग्रेस ताजातरीन पार्टी है, जिसकी मदद वह कर रहे हैं, और उनके आलोचक तथा प्रशंसक भी मानते हैं कि यह प्रशांत किशोर की राजनैतिक सूझबूझ का सबसे बड़ा इम्तिहान है।
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस इस वक्त बहुत-से राज्यों में हाशिये पर पहुंच चुकी है। पंजाब में पार्टी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ मतभेदों की लगातार आईं ख़बरों के बाद कैप्टन साहब मजबूर हो गए - 'सब कुछ ठीक है' दिखाने की खातिर - और प्रशांत जब भी वहां जाते हैं, उनके पास ही ठहरते हैं।
उधर, उत्तर प्रदेश में प्रशांत किशोर इस बात के लिए कांग्रेस को मनाने में विफल रहे कि वह मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित कर दे, या राहुल की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए कोई भूमिका सुनिश्चित कर दी जाए, जिनसे लगातार अनुरोध किया जाता रहा है कि वह परिवार की अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीटों के अलावा भी राज्य में पार्टी का प्रचार किया करें।
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