भारत-बांग्लदेश सीमा पर रहने वाला श्यामली और प्रबीर का जोड़ा
कोलकाता:
41 साल से अटके पड़े ऐतिहासिक भूमि सीमा समझौते पर शुक्रवार को भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री दस्तख़त करने जा रहे हैं। ठीक एक महीने पहले संसद ने आम राय से इस बिल को मंज़ूरी दी थी। इन तमाम वर्षों में, इन एन्क्लेव्स में रह रहे हज़ारों लोग जैसे बिना राज्य के जीवन जी रहे थे, जिनके काम न भारत आता था, न बांग्लादेश। इनके पास न राशन कार्ड थे, न वोटर आइडी, न पासपोर्ट, न शिक्षा या स्वास्थ्य की सुविधा। अब इस समझौते से ये सब बदल जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक ये बर्लिन की दीवार गिरने जैसा है। एन्क्लेव में रहने वाले कहते हैं, ये पुनर्जन्म जैसा है।
यहां के श्यामली और प्रबीर की शादी 12 साल पहले हुई। लेकिन नहीं हो पाती, अगर श्यामली के पिता को मालूम होता कि दूल्हा भारतीय हिस्से के भीतर बांग्लादेशी इन्क्लेव में रहने वाला लड़का है और जिसका असल में कोई राज्य नहीं है।
जोड़ी बनाने वालों ने बताया ही नहीं कि लड़का एन्क्लेव में रहता है। मेरे पिता उन्हें पसंद करते थे। लेकिन उनके पास कोई दस्तावेज़ नहीं हैं। हमारे बच्चों के लिए स्कूल जाना मुश्किल है। अस्पताल में हमारा इलाज नहीं होता। अगर पिता को मालूम होता कि लड़का एन्क्लेव में रहता है तो हमारी शादी नहीं होती।
देबब्रत 37 साल के हैं, लेकिन इसी वजह से उनकी शादी नहीं हुई। बुरा ये हुआ कि उन्होंने भारतीय बनकर कॉलेज की डिग्री भी ले ली, लेकिन काम नहीं मिला।
उनका कहना है कि बीए करने के बाद बीएसएफ़ में नौकरी के लिए अप्लाई किया था। लेकिन उनके पास रेज़िडेंट परमिट या रोजगार कार्यालय के कागज नहीं थे, इसलिए उन्हें नौकरी नहीं मिली।
1947 से ही सरहद के दोनों तरफ़ ऐसी 111 भारतीय बस्तियां और 51 बांग्लादेशी बस्तियां हैं जो गलत तरफ़ पड़ गई हैं। इनमें 51,000 से ज़्यादा लोग रहते आए हैं। इस सीमा समझौते के बाद ये एन्क्लेव उन देशों का हिस्सा हो जाएंगे जहां वे पड़ते हैं और यहां रहने वाले अपनी नागरिकता चुन सकेंगे।
अब यहां के लोगों का कहना है कि हम भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्रियों को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने आख़िरकार मुद्दा सुलझा दिया। ये पुनर्जन्म जैसा है। जैसे हमें फिर से आज़ादी मिली हो- दूसरी बार। अब यहां रहने वाले धन्यवाद रैलियां कर रहे हैं।
नरेंद्र मोदी ने सीमा समझौते की तुलना बर्लिन की दीवार गिराए जाने से की है। और इन बस्तियों में रहने वाले महसूस करते हैं कि उन्हें दूसरी आजादी मिली है।
यहां के श्यामली और प्रबीर की शादी 12 साल पहले हुई। लेकिन नहीं हो पाती, अगर श्यामली के पिता को मालूम होता कि दूल्हा भारतीय हिस्से के भीतर बांग्लादेशी इन्क्लेव में रहने वाला लड़का है और जिसका असल में कोई राज्य नहीं है।
जोड़ी बनाने वालों ने बताया ही नहीं कि लड़का एन्क्लेव में रहता है। मेरे पिता उन्हें पसंद करते थे। लेकिन उनके पास कोई दस्तावेज़ नहीं हैं। हमारे बच्चों के लिए स्कूल जाना मुश्किल है। अस्पताल में हमारा इलाज नहीं होता। अगर पिता को मालूम होता कि लड़का एन्क्लेव में रहता है तो हमारी शादी नहीं होती।
देबब्रत 37 साल के हैं, लेकिन इसी वजह से उनकी शादी नहीं हुई। बुरा ये हुआ कि उन्होंने भारतीय बनकर कॉलेज की डिग्री भी ले ली, लेकिन काम नहीं मिला।
उनका कहना है कि बीए करने के बाद बीएसएफ़ में नौकरी के लिए अप्लाई किया था। लेकिन उनके पास रेज़िडेंट परमिट या रोजगार कार्यालय के कागज नहीं थे, इसलिए उन्हें नौकरी नहीं मिली।
1947 से ही सरहद के दोनों तरफ़ ऐसी 111 भारतीय बस्तियां और 51 बांग्लादेशी बस्तियां हैं जो गलत तरफ़ पड़ गई हैं। इनमें 51,000 से ज़्यादा लोग रहते आए हैं। इस सीमा समझौते के बाद ये एन्क्लेव उन देशों का हिस्सा हो जाएंगे जहां वे पड़ते हैं और यहां रहने वाले अपनी नागरिकता चुन सकेंगे।
अब यहां के लोगों का कहना है कि हम भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्रियों को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने आख़िरकार मुद्दा सुलझा दिया। ये पुनर्जन्म जैसा है। जैसे हमें फिर से आज़ादी मिली हो- दूसरी बार। अब यहां रहने वाले धन्यवाद रैलियां कर रहे हैं।
नरेंद्र मोदी ने सीमा समझौते की तुलना बर्लिन की दीवार गिराए जाने से की है। और इन बस्तियों में रहने वाले महसूस करते हैं कि उन्हें दूसरी आजादी मिली है।
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