नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट में आज पर्यावरण से जुड़े एक ऐसे मामले की सुनवाई हो रही है, जो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिये शर्मिंदगी की वजह बन सकता है. खुद को दिल्ली में 'आदिवासियों का सिपाही' कहने वाले राहुल गांधी की पार्टी कांग्रेस की हिमाचल प्रदेश में सरकार है और हिमाचल सरकार सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका ले आई है, जिसमें आदिवासियों के ग्राम सभा के अधिकार को चुनौती दी गई है.
मामला हिमाचल प्रदेश में बन रही कशांग जलविद्युत परियोजना का है, जिसमें नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने वन अधिकार कानून के तहत ग्रामसभा की अनुमति लेने को कहा था, लेकिन राज्य के पॉवर कॉरपोरेशन ने कोर्ट के सामने दायर याचिका में कहा है कि इन गांवों में अकुशल और स्थानीय लोग हैं और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशानुसार उनकी अनुमति मुमकिन नहीं है.
करीब 130 मेगावॉट का हाइड्रो-पॉवर प्रोजेक्ट हिमाचल की किन्नौर घाटी में प्रस्तावित है और उसमें प्रोजेक्ट के दायरे में आने वाले गांवों की वनभूमि पर असर पड़ेगा और ग्रामीणों को विस्थापित भी होना पड़ेगा. कानूनन ऐसे प्रोजेक्ट को पहले फॉरेस्ट क्लियरेंस लेना ज़रूरी है, जिसमें ग्राम सभाओं की सहमति चाहिए. राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई है कि कशांग परियोजना की ज़द में आने वाले लोग इस बात का आकलन नहीं कर सकते कि परियोजना की वजह से उनकी ज़मीन कैसे और कितना प्रभावित होगी.
इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सबकी नज़र रहेगी, लेकिन हिमाचल प्रदेश सरकार का यह रुख कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए परेशानी और उनकी पार्टी के लिए शर्मिंदगी बन सकता है, क्योंकि कांग्रेस आदिवासियों के अधिकारों को कमजोर करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को निशाना बनाती रही है.
छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में कई परियोजनाओं को पास कराने के लिए आदिवासी अधिकारों की अनदेखी का आरोप कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर लगाया है. उड़ीसा के नियामगिरी में वेदांता के प्रोजेक्ट का विरोध करने गए राहुल गांधी ने आदिवासियों से कहा कि वह 'दिल्ली में उनके सिपाही' हैं. ऐसे में कांग्रेस के राजनीतिक विरोधियों को हिमाचल प्रदेश सरकार की इस याचिका के बहाने कांग्रेस पर हमला करने का मौका मिलेगा.
मामला हिमाचल प्रदेश में बन रही कशांग जलविद्युत परियोजना का है, जिसमें नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने वन अधिकार कानून के तहत ग्रामसभा की अनुमति लेने को कहा था, लेकिन राज्य के पॉवर कॉरपोरेशन ने कोर्ट के सामने दायर याचिका में कहा है कि इन गांवों में अकुशल और स्थानीय लोग हैं और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशानुसार उनकी अनुमति मुमकिन नहीं है.
करीब 130 मेगावॉट का हाइड्रो-पॉवर प्रोजेक्ट हिमाचल की किन्नौर घाटी में प्रस्तावित है और उसमें प्रोजेक्ट के दायरे में आने वाले गांवों की वनभूमि पर असर पड़ेगा और ग्रामीणों को विस्थापित भी होना पड़ेगा. कानूनन ऐसे प्रोजेक्ट को पहले फॉरेस्ट क्लियरेंस लेना ज़रूरी है, जिसमें ग्राम सभाओं की सहमति चाहिए. राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई है कि कशांग परियोजना की ज़द में आने वाले लोग इस बात का आकलन नहीं कर सकते कि परियोजना की वजह से उनकी ज़मीन कैसे और कितना प्रभावित होगी.
इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सबकी नज़र रहेगी, लेकिन हिमाचल प्रदेश सरकार का यह रुख कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए परेशानी और उनकी पार्टी के लिए शर्मिंदगी बन सकता है, क्योंकि कांग्रेस आदिवासियों के अधिकारों को कमजोर करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को निशाना बनाती रही है.
छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में कई परियोजनाओं को पास कराने के लिए आदिवासी अधिकारों की अनदेखी का आरोप कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर लगाया है. उड़ीसा के नियामगिरी में वेदांता के प्रोजेक्ट का विरोध करने गए राहुल गांधी ने आदिवासियों से कहा कि वह 'दिल्ली में उनके सिपाही' हैं. ऐसे में कांग्रेस के राजनीतिक विरोधियों को हिमाचल प्रदेश सरकार की इस याचिका के बहाने कांग्रेस पर हमला करने का मौका मिलेगा.
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