
- राजस्थान की सेंट्रल यूनिवर्सिटी की लैब में भारतीय करेंसी नोटों पर खतरनाक फंगस और बैक्टीरिया पाए गए हैं.
- नोटों पर पाए गए फंगस में पेनीसिलियम, क्लेडोस्पोरियम, फ्यूजेरियम, एस्परजिलस और ट्राइकोडर्मा शामिल हैं.
- नोट कॉटन पेपर से बने होते हैं जो नमी को सोखते हैं और बैक्टीरिया तथा फंगस के पनपने का कारण बनते हैं.
Fungus-Bacteria on Indian Currency Notes: आपकी जेब में रखे नोट भी आपको बीमार बना सकते हैं. राजस्थान के किशनगढ़ स्थित सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान की बायोटेक्नोलॉजी लैब में हुई एक जांच ने हैरान कर देने वाला खुलासा किया है. हमारी जेब में रखी नकदी यानी भारतीय करेंसी नोट सिर्फ लेन-देन का जरिया ही नहीं बल्कि खतरनाक बीमारियों का वाहक भी हो सकते हैं. खासतौर पर 10, 20, 50 और 100 रुपये तक के नोटों में संक्रमण का खतरा ज्यादा पाया गया है. दरअसल NDTV की टीम ने इस रिसर्च के लिए दूध बेचने वालों, पताशी की ठेलियों, दुकानों, अस्पतालों, मेडिकल स्टोर्स और पेट्रोल पंप जैसे भीड़-भाड़ वाले स्थानों से नोट एकत्रित किए.
लैब की जांच में नोटों पर 5 तरह के खतरनाक फंगस
इसके बाद इन नोटों को सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान की बायोटेक्नोलॉजी लैब में परीक्षण के लिए दिया गया. जांच में पाया गया कि इन नोटों पर 5 तरह के खतरनाक फंगस – पेनीसिलियम, क्लेडोस्पोरियम, फ्यूजेरियम, एस्परजिलस और ट्राइकोडर्मा मौजूद हैं. इसके अलावा 4 प्रकार के बैक्टीरिया – ई.कोलाई, स्टैफिलोकोकस, क्लेबसिएला और स्यूडोमोनास भी पाए गए.
कॉटर पेपर से बनी होती है नोट, जल्दी सोखता है नमी
विशेषज्ञों का कहना है कि मुद्रा कॉटन पेपर से बनी होती है, जो नमी को सोख लेता है और जल्दी चिपकता भी है. यही कारण है कि इसमें बैक्टीरिया और फंगस आसानी से पनप जाते हैं. कई बार लोग नोट गिनते समय थूक लगाकर पलटते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है. इनकी वजह से आंखों का संक्रमण, फेफड़ों की बीमारी और यहां तक कि टीबी तक फैल सकती है.
24 से 48 घंटे तक नोटों पर जिंदा रहते हैं टीबी के बैक्टीरिया
सेंट्रल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जयकांत और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. जन्मेजय का कहना है कि फंगल स्पोर 3 से 4 साल तक खत्म नहीं होते. वहीं टीबी के बैक्टीरिया नकदी पर 24 से 48 घंटे तक जीवित रहते हैं. इस दौरान अगर यह नोट किसी और व्यक्ति के संपर्क में आते हैं तो बीमारी सीधे फैल सकती है.
कैसे की गई नोटों के बैक्टीरिया की जांच
रिसर्च करने वाली टीम ने बताया कि इस जांच प्रक्रिया भी बेहद सख्त रही. नोटों को पहले सेनेटाइज्ड कॉटन से पोछा गया और लैमिनर फ्लोहुड में संक्रमण रहित वातावरण में परीक्षण किया गया. इसके बाद इन्हें ठोस एगर प्लेट्स पर रखा गया और 37 डिग्री तापमान पर इनक्यूबेटर में 8 से 9 घंटे रखा गया. कुछ ही समय बाद बैक्टीरिया की कॉलोनियां बड़ी संख्या में उग आईं.
2017 में प्लॉस वन जर्नल की रिसर्च में भी मिली थी इसी तरह की कहानी
यह रिसर्च केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के लिए चिंता का विषय है. साल 2017 में प्लॉस वन जर्नल में प्रकाशित न्यूयॉर्क करेंसी पर हुई स्टडी में भी इसी तरह के परिणाम सामने आए थे. उस शोध में भी ऐसे सूक्ष्मजीव मिले थे जो त्वचा रोग, मुहांसों और गंभीर संक्रमण का कारण बन सकते हैं.
नोट गिनते समय थूक लगाने की आदत खतरनाक
विशेषज्ञों का मानना है कि नकदी का इस्तेमाल करते समय लोगों को सतर्क रहना चाहिए. संभव हो तो बार-बार हाथ धोएं, नोट गिनते समय थूक लगाने की आदत छोड़ें और ज्यादा से ज्यादा डिजिटल पेमेंट का उपयोग करें. क्योंकि हमारी जेब में रखा यह पैसा हमें कब किसी बड़ी बीमारी का शिकार बना दे, कहा नहीं जा सकता.
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