सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फिर दोहराया, सार्वजनिक सड़कों को रोक कर रखा नहीं जा सकता है. उन्होंने कहा कि सड़क बंद कर लोगों के लिए लगातार असुविधा पैदा नहीं की जा सकती है. नोएडा दिल्ली रोड ब्लॉक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस एस के कौल ने कहा कि राजनीतिक या प्रशासनिक विवाद से हमारा कोई लेना- देना नहीं है. हम अपने फैसलों में कई बार कह चुके हैं कि पब्लिक रोड ब्लॉक नहीं होने चाहिए. उन्होंने कहा कि यातायात का सुचारु आवागमन होना चाहिए. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने यूपी और हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया है. बताते चलें कि नोएडा से दिल्ली के बीच अवरोधकों को हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है.
26 मार्च को जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस कमिश्नर को नोटिस जारी किया था. याचिका में मांग की गई है कि रास्ते में आने वाले अवरोधकों को दूर किया जाए और यह सुनिश्चित करने कि लोगों को एक जगह से दूसरी जगह जाने में सड़क पर रुकावटें ना आएं, दरअसल, मार्केटिंग के पेशे से जुड़ी और नोएडा की रहने वाली एक महिला मोनिका अग्रवाल ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर मामले पर केंद्र और दिल्ली पुलिस को निर्देश करने की मांग की थी. मोनिका ने रिट पिटीशन दाखिल कर कहा है कि वह सिंगल पेरेंट हैं और अक्सर मार्केटिंग के काम और स्वास्थ्य समस्याओं के चलते उन्हें दिल्ली जाना पड़ता है, लेकिन दिल्ली जाना अब उनके लिए एक बुरे सपने जैसा हो गया है. महज 20 मिनट के सफर को तय करने में 2 घंटे का वक्त लगता है.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई सुनवाई के दौरान महिला ने कोर्ट के सामने खुद अपना पक्ष रखा और कहा कि इससे पहले भी कोर्ट की तरफ से सार्वजनिक सड़कों को बाधित ना किए जाने को लेकर कई अहम दिशानिर्देश जारी किए जा चुके हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन की तरफ से इन्हें अमल में नहीं लाया गया. कोर्ट ने महिला की दलीलों को सुनकर कहा कि अगर ऐसा हो रहा है तो ये स्थानीय प्रशासन की विफलता है.कोर्ट ने नोटिस जारी कर सभी संबंधित पक्षों को निर्देश का पालन करने और 9 अप्रैल तक निर्देश पर उठाए कदमों की जानकारी और जवाब देने के लिए कहा है. अब इस मामले पर कोर्ट अगली सुनवाई 9 अप्रैल को करेगी.
बता दें कि जस्टिस संजय किशन कौल ने ही नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में शाहीन बाग धरने मामले में एक जनहित याचिका पर फैसला दिया था. उस फैसले में अदालत ने साफ तौर पर कहा था कि शांतिपूर्ण धरना हर नागरिक का अधिकार है, लेकिन सार्वजनिक जगहों को अनिश्चितकाल काल तक के लिए बाधित नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा था कि ये स्थानीय प्रशासन का कर्तव्य है कि वो कानून के अनुसार उचित कार्रवाई कर बाधित स्थान को खाली कराए. केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में किसान दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर पिछले 4 महीने से धरने पर बैठे हुए हैं और दिल्ली आने-जाने के रास्तों को बंद किया हुआ है, इस मामले को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में कई याचिका मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट में लंबित हैं.
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