(मोबोर) गोवा:
संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को ब्रिक्स सम्मेलन के गोवा घोषणापत्र में शामिल करने पर कोई आम सहमति नहीं बन पाई क्योंकि समूह के अन्य देश पाकिस्तान स्थित आतंकवाद से प्रभावित नहीं हैं. घोषणापत्र में आतंकवाद से मुकाबले का आह्वान किया गया. भारत के एक शीर्ष राजनयिक ने यद्यपि कहा कि भारत दस्तावेज से ''काफी खुश'' है.
विदेश मंत्रालय के सचिव (आर्थिक संबंध) अमर सिन्हा ने कहा, ''मुझे लगता है कि इससे वे चिंतित नहीं हैं, मुख्य तौर पर ब्रिक्स. यह हमें प्रभावित करता है. ऐसा इसलिए कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों का ध्यान गतिविधियों के मामले में भारत पर है.'' यह पूछे जाने पर कि घोषणापत्र जिसमें आईएसआईएस का नाम लिया गया है उसमें पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों विशेष तौर पर जैश-ए-मोहम्मद का उल्लेख नहीं है जिसे संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधित किया है, उन्होंने कहा, ''इसलिए चूंकि...(यह उन्हें प्रभावित नहीं करता), मेरा मानना है कि हम दोनों को शामिल करने को लेकर वास्तव में आम सहमति नहीं बना पाये.'' उन्होंने कहा कि बयान में आईएसआईएस और अन्य संबद्ध संगठनों का उल्लेख है. उन्होंने कहा, ''मैं समझता हूं कि उन आतंकवादी संगठनों का उल्लेख है जिसे संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधित किया है.''
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि गोवा घोषणापत्र को पूर्व के सम्मेलनों के घोषणापत्रों के अगले क्रम के रूप में देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ''कृपया पूर्व में हुए सम्मेलन की भाषा देखिये. आतंकवाद पर उस भाषा को देखिये जो अब की है तब आप देखेंगे कि वह निश्चित तौर पर आतंकवाद पर अधिक कड़ी भाषा है.''
सिन्हा ने आतंकवाद के मुद्दे पर विभिन्न सवालों के जवाब में कहा कि बहुपक्षीय शिखर सम्मेलन को मात्र आतंकवाद के मुद्दे तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए. उन्होंने गोवा घोषणापत्र में शब्द ''सीमापार आतंकवाद'' शामिल नहीं करने का बचाव किया और कहा कि जोर विचार पर होना चाहिए कि आतंकवाद का कोई भी राजनीतिक तर्क नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि भारत अपने विचारों से सभी को साथ लाने पर सफल रहा है. सिन्हा ने कहा कि घोषणापत्र में सभी देशों से आतंकवाद के खिलाफ व्यापक कदम उठाने के लिए कहा गया है.
उन्होंने कहा, ''मेरा मानना है कि संदेश बिल्कुल स्पष्ट है और सब कुछ व्याख्या करने की जरूरत नहीं है. आपको देखना होगा कि जोर में अंतर्निहित क्या है.'' चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के उस भाषण के बारे में पूछे जाने पर जिसमें उन्होंने मूल कारणों पर जोर देने के लिए कहा, सिन्हा ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि ''मूल कारणों'' से उनका क्या तात्पर्य था. उन्होंने कहा कि यदि ऐसा होता कि तो वे सीसीआईटी का समर्थन नहीं करते. वरिष्ठ राजनयिक ने रेखांकित किया कि भारत, गोवा घोषणापत्र से ''संतुष्ट'' है.
उन्होंने कहा, ''ऐसी चर्चाओं में प्रत्येक देश अपने राष्ट्रीय रुख से शुरुआत करता है जैसा कि हमने किया और उसके बाद उस पर लंबे सत्र के दौरान तब तक चर्चा होती है जब तक कि आप एक ऐसे निष्कर्ष पर नहीं पहुंच जाते जो कि सभी को स्वीकार हो.'' उन्होंने कहा कि घोषणापत्र में आतंकवाद को शांति एवं सुरक्षा के लिए अभूतपूर्व वैश्विक खतरे के तौर पर उल्लेख किया गया है. उन्होंने कहा, ''ये कड़े शब्द हैं. मैं नहीं मानता कि उन्होंने इसे कम करके आंका है.''
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
विदेश मंत्रालय के सचिव (आर्थिक संबंध) अमर सिन्हा ने कहा, ''मुझे लगता है कि इससे वे चिंतित नहीं हैं, मुख्य तौर पर ब्रिक्स. यह हमें प्रभावित करता है. ऐसा इसलिए कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों का ध्यान गतिविधियों के मामले में भारत पर है.'' यह पूछे जाने पर कि घोषणापत्र जिसमें आईएसआईएस का नाम लिया गया है उसमें पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों विशेष तौर पर जैश-ए-मोहम्मद का उल्लेख नहीं है जिसे संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधित किया है, उन्होंने कहा, ''इसलिए चूंकि...(यह उन्हें प्रभावित नहीं करता), मेरा मानना है कि हम दोनों को शामिल करने को लेकर वास्तव में आम सहमति नहीं बना पाये.'' उन्होंने कहा कि बयान में आईएसआईएस और अन्य संबद्ध संगठनों का उल्लेख है. उन्होंने कहा, ''मैं समझता हूं कि उन आतंकवादी संगठनों का उल्लेख है जिसे संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधित किया है.''
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि गोवा घोषणापत्र को पूर्व के सम्मेलनों के घोषणापत्रों के अगले क्रम के रूप में देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ''कृपया पूर्व में हुए सम्मेलन की भाषा देखिये. आतंकवाद पर उस भाषा को देखिये जो अब की है तब आप देखेंगे कि वह निश्चित तौर पर आतंकवाद पर अधिक कड़ी भाषा है.''
सिन्हा ने आतंकवाद के मुद्दे पर विभिन्न सवालों के जवाब में कहा कि बहुपक्षीय शिखर सम्मेलन को मात्र आतंकवाद के मुद्दे तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए. उन्होंने गोवा घोषणापत्र में शब्द ''सीमापार आतंकवाद'' शामिल नहीं करने का बचाव किया और कहा कि जोर विचार पर होना चाहिए कि आतंकवाद का कोई भी राजनीतिक तर्क नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि भारत अपने विचारों से सभी को साथ लाने पर सफल रहा है. सिन्हा ने कहा कि घोषणापत्र में सभी देशों से आतंकवाद के खिलाफ व्यापक कदम उठाने के लिए कहा गया है.
उन्होंने कहा, ''मेरा मानना है कि संदेश बिल्कुल स्पष्ट है और सब कुछ व्याख्या करने की जरूरत नहीं है. आपको देखना होगा कि जोर में अंतर्निहित क्या है.'' चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के उस भाषण के बारे में पूछे जाने पर जिसमें उन्होंने मूल कारणों पर जोर देने के लिए कहा, सिन्हा ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि ''मूल कारणों'' से उनका क्या तात्पर्य था. उन्होंने कहा कि यदि ऐसा होता कि तो वे सीसीआईटी का समर्थन नहीं करते. वरिष्ठ राजनयिक ने रेखांकित किया कि भारत, गोवा घोषणापत्र से ''संतुष्ट'' है.
उन्होंने कहा, ''ऐसी चर्चाओं में प्रत्येक देश अपने राष्ट्रीय रुख से शुरुआत करता है जैसा कि हमने किया और उसके बाद उस पर लंबे सत्र के दौरान तब तक चर्चा होती है जब तक कि आप एक ऐसे निष्कर्ष पर नहीं पहुंच जाते जो कि सभी को स्वीकार हो.'' उन्होंने कहा कि घोषणापत्र में आतंकवाद को शांति एवं सुरक्षा के लिए अभूतपूर्व वैश्विक खतरे के तौर पर उल्लेख किया गया है. उन्होंने कहा, ''ये कड़े शब्द हैं. मैं नहीं मानता कि उन्होंने इसे कम करके आंका है.''
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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